
सितंबर के महीने में खेती के कई काम निपटाने पड़ते हैं| यह समय कई फसलों की बुआई/रोपाई के लिए उपयुक्त है| इसके साथ ही इस समय कुछ फसलों में खाद एवं उर्वरक की आपूर्ति भी होती है| सितम्बर माह में वातावरण में नमी अधिक होने के कारण फसलों में विभिन्न कीटों का प्रकोप होता है| अच्छी फसल पाने के लिए इस समय फसलों में किये जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में जानना आवश्यक है| आइए सितंबर माह में किए जाने वाले कुछ प्रमुख कृषि कार्यों के बारे में विस्तार से जान लें|
सितंबर माह में किये जाने वाले फसलोत्पादन कार्य
शस्य क्रियाएँ
1. सिंचित अरंडी में निराई-गुडाई के पश्चात 30-35 दिन की फसल होने पर नत्रजन की 20 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्ट्रर वर्षा के दिन या सिंचाई के साथ दें| सितंबर माह में वर्षा की कमी होने पर अरंडी में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें|
2. सितंबर माह में वर्षा की कमी होने पर कपास व अन्य फसलों की संकर किस्मों मे भी आवश्यकतानुसार सिंचाई करें|
3. मुंगफली की फसल में फूल आते समय व फली के विकसित होने की प्रारंभिक अवस्थाओं में अधिक नमी की आवश्यकता होती है| अतः सितंबर माह में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें| मूंगफली की फसल में पीलापन (हरिमाहीनता/आयरन क्लोरोसिस) दिखाई देवे तो 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें| घोल में ढाई ग्राम प्रति लीटर की दर से बुझे हुए चुने का पानी डाल कर उदासीन कर देंवें| आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल के बाद पुनः छिड़काव करें|
4. चारे की फसलों की कटाई: बाजरे की चारे के लिए एक ही कटाई लेनी हो तो जब फूल आने लगे तब कटाई करें और यदि दो कटाई लेनी हो तो पहली कटाई 55-60 दिन बाद व दूसरी कटाई फूल आने पर करें| अगर दो से ज्यादा कटाई लेनी हो तो पहली कटाई 55 दिन बाद व अगली कटाईयां 35-40 दिन के अन्तराल पर करें| ज्वार की एक कटाई 50 प्रतिशत फूल आने पर करें| बहु कटाई वाली किस्मों की पहली कटाई बुवाई के 50 दिन बाद व अगली कटाई फूल आने पर करें| कटाई जमीन से 9-10 से.मी. उँचाई से करें| तारामीरा की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- हरे चारे के लिए ज्वार की खेती कैसे करें
5. सितंबर माह में तारामीरा की बुवाई का कार्य करें| चारे की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- तारामीरा की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
6. सितंबर माह में सौंफ की रोपाई का कार्य करें| सौंफ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सौंफ की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार
रोग नियंत्रण क्रियाएँ
बाजरा
अरगट: सितंबर माह में इस रोग से फसल को बचाने हेतु सिट्टे निकलते समय मौसम अनुकूल होने पर ढाई किलों जाइनेब या दो किलों मैन्कोजेब प्रति हैक्टेयर तीन दिन के अन्तर पर दो तीन बार छिड़कियें| इससे इस रोग का प्रकोप कम होगा|
अरगट, काग्या एवं जोगिया रोग: सिट्टे निकलते समय इन रोगों से ग्रसित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें| अरगट रोग ब्लिस्टर बीटल या चैफर बीटल से भी फैलता है अतः सिट्टे आते समय इन कीटों की रोकथाम करें| खड़ी फसल खेतो मे जहां जोगिया रोग दिखाई देंवे वहा पर बुवाई के 21 दिन बाद दो किलों मैन्कोजेब प्रति हैक्टर छिड़के| बाजरा की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बाजरे की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
ज्वार
पत्ती धब्बा: पौधे उगने के 40-45 दिन बाद, वर्षा एवं वातावरण में अधिक नमी के कारण पत्तियों पर पत्ती चकत्ता, अंगमारी, एन्थ्रेक्नोज एवं जोनेट पत्ती धब्बा रोग हो जाते हैं| यदि सितंबर माह में रोग प्रकोप की सम्भावना हो वहां 2.5 किलो जाइनेब या 1.5-2.0 किलो मैन्कोजेब प्रति हैक्टेयर छिड़के| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद पुनः छिडकाव करें|
सिट्टा फंफूद: बीज के लिये फसल लेने की स्थिति में दाना बनते समय वर्षा हो जाए तो सिट्टा फंफूद की रोकथाम हेतु ओरियोफन्जिन 13 ग्राम व कैप्टान 330 ग्राम का घोल बनाकर छिड़के| दूसरा छिड़काव वर्षा के 15 दिन बाद करें| ज्वार की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ज्वार की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
मक्का
पत्ती धब्बा: रोग का प्रकोप होने पर जाईनेब या मैन्कोजेब दवा का दो किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| यह छिड़काव 7 – 10 दिन के अन्तर पर दो या तीन बार दोहरायें| मक्का की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मक्का खेती के रोग और उनकी रोकथाम
कपास
जीवाणु अंगमारी: इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही 5-10 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 50–100 ग्राम प्लान्टोमाइसीन या पोसामाइसीन + 300 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड – 50 डब्लयू. पी. प्रति 100 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें| कीट नियंत्रण हेतु दूसरे, तीसरे एवं चौथे छिड़काव के साथ उक्त दवा मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं| कपास की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
मूंगफली
टिक्का रोग: इस रोग से फसल के पौधों पर गोल मटियाले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोग दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिन 50 डब्लयू पी 0.05 प्रतिशत अथवा मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव कीजियें| मूंगफली में टिक्का व अल्टरनेरिया रोग की रोकथाम के लिए पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13.3 प्रतिशत + इपोक्सीकोनाजोल 5 प्रतिशत के बने हुए मिश्रण का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिडकाव करें| 10-15 दिन के अन्तर से पुनः छिड़काव आवश्यकतानुसार दोहरावें| मूंगफली की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंगफली फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
तिल
झुलसा एवं अंगमारी: इस बीमारी की शुरूआत सितंबर माह में पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के शुष्क धब्बों से होती हैं| बाद में यें बड़े होकर पत्तियों को झुलसा देते हैं| तनों पर भी इसका प्रभाव भूरी गहरी धारियों से होता हैं| ज्यादा प्रकोप की स्थिति में शत प्रतिशत हानि होती हैं| इस रोग के प्रथम लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब या जाईनेब 1.5 किलों प्रति हैक्टेयर दवाई का छिड़काव 15 दिन के अन्तर से करें| तिल के अल्टरनेरिया व छाछ्या रोग की रोकथाम के लिए ट्राईफ्लोक्सीट्रोबिन 25 प्रतिशत + टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत के बने हुए मिश्रण का 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिडकाव करें|
पर्ण कुंचन: खेत में रोगी पौधे दिखाई देते ही रोगी पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें तथा मिथाइल डिमेटॉन 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
छाछ्या रोग: सितंबर माह में में पत्तियों की सतह पर पाउडर फैल जाता हैं एवं पत्तिया छोटी रहकर पीली पड़ जाती हैं| इसकी रोकथाम के लिये प्रति हैक्टेयर 20 किलों गंधक चूर्ण का भुरकाव करें|
फाइलोडी रोग: यह बीमारी विषाणु द्वारा होती है एवं कीटों द्वारा फैलती हैं| रोग के लक्षण फूल आने के समय प्रकट होते हैं| चूंकि यह रोग कीटों द्वारा फैलता हैं अतः कीट नियंत्रण हेतु क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1 लीटर प्रति हैक्टयर की दर से या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 25 मिलीलीटर की दर से दो बार बुवाई के 25 दिन बाद एवं 40 दिन बाद छिड़काव करें| तिल की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- तिल में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
मूंग, मोठ व धान
चित्ती जीवाणु रोग: सितंबर माह में छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पत्तों पर दिखाई देते हैं तथा प्रकोप बढने पर फलियों और तने पर भी दिखाई देते हैं| इससे पौधे मुरझा जाते हैं| रोग के लक्षण दिखाई देते ही दो किलों ताम्रयुक्त कवकमार का प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें|
पीला मोजेक: यह रोग विषाणु से होता हैं तथा कीडों से फैलता हैं| जैसे ही रोग के एक-दो पौधे खेत में दिखाई पड़े उन्हे उखाडकर नष्ट कर दें, तथा डाइमिथोएट 30 ई. सी. एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करें| आवश्यकता हो तो 15 दिन के अन्तर पर फिर छिडकाव करें|
छाछ्या रोग: इसमें पत्तियों की उपरी सतह पर पाउडर फैल जाता हैं एवं पत्तियाँ छोटी रहकर पीली पड़ जाती हैं| इसकी रोकथाम के लिये प्रति हैक्टेयर ढाई किलों घुलनशील गंधक अथवा डाईनोकेप एल.सी 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें तथा आवश्यकतानुसार 10 दिन बाद दोहरावें अथवा 25 किलों गंधक चूर्ण का भुरकाव करें|
किंकल विषाणु रोग: रोग में पत्तियाँ व्याकुचित हो जाती है| फलियाँ बहुत कम या बनती ही नहीं है नियंत्रण हेतु डायमिथोएट 30 ई. सी. एक लीटर अथवा मिथाईल डिमेटोन 25 ई.सी. 750 मिली लीटर प्रति का छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करें|
तना झुलसा: बीजोपचार के बाद जहां इस बीमारी का प्रकोप दिखाई देवे वहां खडी फसल में बुवाई के 30 दिन बाद चंवला में एवं 30 से 40 दिन बाद मूंग की फसल में मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा: पत्तियों पर कोण दार भूरे लाल रंग के धब्बे बनते है जिनके बीच का भाग सलेटी या हल्के हरे रंग का होता हैं| ऐसे धब्बे डंठलों तथा फलियों पर बनते है| रोगी पौधो की नीचे की पत्तिया पीली पडकर सूखने लगती है| ऐसे पौधों का आधार भाग व जडे सूख जाती है| रोग की रोकथाम के लिये कार्बेण्डजिम 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें| मूंग, मोठ व धान की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें-
मूंग में एकीकृत कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें
मोठ की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें
ग्वार
जीवाणु अंगमारीः इस रोग की रोकथाम के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही कॉपरआक्सीक्लोराईड 50 डब्लू. पी. 0.3 प्रतिशत या स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.02 प्रतिशत या कॉपरआक्सीक्लोराईड 50 डब्लू. पी. 0.15 प्रतिशत + स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.01 प्रतिशत का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
छाछ्या रोग: इस रोग की रोकथाम के लिये 25 किलों गंधक चूर्ण प्रति हैक्टेयर तथा डाइनोकेप एल.सी 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें| ग्वार की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्वार फसल के कीट व रोग और नियंत्रण के उपाय
कीट नियंत्रण क्रियाएँ
खड़ी फसलों में सर्वेक्षण: फसलों में समय – समय पर सर्वेक्षण व निगरानी की जाये एवं यदि किसी कीट विशेष जैसेः फड़का, ग्रेवीविल, सेमीलूपर, दीमक, ब्लिस्टर बीटल आदि का प्रकोप हो तो समय पर उपाय किया जायें| फसलवार कीट नियंत्रण उपचार निम्न रूप से हैं, जैसे-
बाजरा: सितंबर माह में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ग्रेवीविल का आक्रमण अधिक हो सकता हैं| सिट्टों पर चेफर बीटल व ब्लिस्टर बीटल का आक्रमण शुरू होने पर इनकी रोकथाम हेतु क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलों प्रति हैक्ट्रर दर से भुरकाव करें|
ज्वार: फडका, आर्मीवर्म व अन्य कीटों की रोकथाम हेतु क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलों प्रति हैक्ट्रर की दर से भुरकें| प्रकाश पाश पर वयस्क कीटों को आकर्षित कर नष्ट करें| तना छेदक व तना मक्खी का प्रकोप कम करने हेतु क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत कण 8-10 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 25 दिन बाद पौधों के पास में 5-7 कण प्रति पौधा डालें|
तिल: सितंबर माह में फसल पर पत्ती मोडक एवं फली छेदक लट के साथ – साथ गांठ मक्खी का भी आक्रमण हो सकता हैं| वर्षा वाले क्षेत्रों में गाठ मक्खी पर विशेष निगरानी रखी जाए| इन कीटों की रोकथाम हेतु फसल पर क्यूनालफॉस 25 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. एक लीटर प्रति हैक्टर या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. रसायन 2 मि.ली. प्रति लीटर या स्पाइनोसेड 45 एस. सी. रसायन 0.15 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिडकें आवश्यकता होने पर 15-20 दिन बाद पुनः छिडकें|
मूंग, मोठ, धान: पहले से बोई गई फसलों में यदि सितंबर माह में रस चूसक कीट सफेद मक्खी, जैसिड, थ्रिप्स, ऐफिड, व पत्ती भक्षक काली वीविल का प्रकोप शरू होता हैं तो उपचार शुरू करे| रस चूसक कीटो की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. 1 लीटर प्रति हैक्टर दर से छिडके फली छेदक तथा अन्य कीटों की रोकथाम हेतु दलहनी फसलों पर क्यूनालफॉस 25 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से फूल व फली आते ही छिडकें| फेरामोन ट्रेप्स का प्रयोग करें|
ग्वार: रस चूसक कीटों के विरूद्ध मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. 1 लीटर प्रति हैक्ट्रर दर से छिडकें| वर्तमान में ग्वार में जड़ भक्षक भृंग का प्रकोप देखा जा रहा हैं| इस कीट से बचाव हेतु प्रकाश पाश का उपयोग करें एवं क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलों प्रति हैक्टर की दर से भुरकें|
मूंगफली: सितंबर माह में खडी फसल में दीमक का प्रकोप शुरू होने पर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा का 4 लीटर प्रति हेक्टर की दर से सिंचाई के पानी के साथ करना चाहिए| ऐफिड व अन्य रस चूसक कीटों की रोकथाम हेतु मिथाईल डेमेटोन 25 ई.सी. 1 लीटर या मैलाथियान 50 ई. सी. 1.25 लीटर / है. दर से छिडकें|
कपास: रस चूसक कीटों के अतिरिक्त फसल पर चित्तीदार सूंडी, ग्रेवीविल व भूरी सूंडी आदि कीटों की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1.25 लीटर या क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 1 लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिडकें| सितंबर माह में फसल पर समय-समय पर कीटों की गतिविधि की निगरानी जरूरी हैं| कीटनाशी दवाओं का फेर बदल कर प्रयोग करने से प्रतिरोधिता को उत्पन्न होने से टाला जा सकता हैं| फसल में उपस्थित परभक्षी मित्रकीटों का संरक्षण करें| फेरामोन ट्रेप्स का प्रयोग करें|
अरण्डी: सेमीलूपर (कुबड़ा) कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1.25 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 1 लीटर प्रति हैक्टर पानी में घोल बनाकर कीट की प्रारम्भिक अवस्था पर छिड़काव करें| मूंग, मोठ व धान की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अरंडी की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार
सितंबर माह के अति महत्वपूर्ण कृषि कार्य
1. सितंबर माह में खरीफ की खड़ी फसलों में लगातार वर्षा होने पर पीलापन की समस्या आती है| अतः फेरस सल्फेट (हरा कसीस) का 0.5 प्रतिशत घोल का छिडकाव करें|
2. सोयाबीन में अर्धकुण्डल इल्ली व गर्डल बीटल के नियंत्रण हेतु मैलाथियान 5 प्रति चूर्ण या क्यूनोलफास 1.5 प्रति 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्ट. की दर से भुरकाव करें|
3. धान में तना छेदक व पत्ती लपेटक कीट नियंत्रण हेतु प्रोफेनोफॉस 1 लीटर तथा केवल पत्ती लपेटक हेतु एसीफेट 75 एस. पी. 500 ग्राम प्रति हैक्ट का छिडकाव करें| आवश्यकता होने पर 15-20 दिन बाद पुनः दोहरावें|
4. प्रतिकूल मौसम में ज्वार, मक्का व बाजरा फसलों में सिट्टे आते समय तथा सोयाबीन, मूंगफली व उड़द में फूल एवं फली बनते समय सिंचाई अवश्य करें|
5. सितंबर माह में असिंचित क्षेत्र में रबी की फसलों की बुवाई सुनिश्चित करने हेतु वर्षा बन्द होने पर बक्खर चला कर नमी का संरक्षण करें|
6. सोयाबीन की फसल में फूल झड़ने की समस्या हो तो फूल आते समय ब्रेसिनोस्टेरोइड 0.25 ग्राम + साइटोकाइनिन 2.5 ग्राम 500 लीटर पानी में घोल बना कर 10-15 दिन के अन्तर पर प्रति हैक्ट. की दर से दो छिड़काव करें|
7. अरहर की खड़ी फसल में थायोयूरिया 500 पी.पी.एम. के 2 पर्णीय छिड़काव फूल आने व फली बनने की अवस्था पर करें|
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