मूंग में कीट और रोग नियंत्रण आवश्यक है| क्योंकि यह भारत की प्रमुख दलहनी फसल है, किसान बन्धुओं को इसकी अधिक पैदावार के लिए खेत की अच्छे से तैयारी करना, अपने क्षेत्र की उन्नत और प्रचलित किस्म उगाना, समय पर सिंचाई करना, पोषक तत्व की उपलब्धता के साथ साथ फसल संरक्षण यानि की कीट और रोग नियंत्रण करना भी आवश्यक है|
जिससे की उसको इस फसल से उचित पैदावार प्राप्त हो सके| इस लेख में मूंग में एकीकृत कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें, आधुनिक तकनीक द्वारा का उल्लेख है| मूंग की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंग की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार
यह भी पढ़ें- मूंग की बसंतकालीन उन्नत खेती कैसे करें
मूंग के प्रमुख कीट
बिहार की बालदार सुंडी
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ कीट हल्के पीले रंग का होता है और इसके ऊपरी एवं निचले पंखों पर काले रंग के धब्बे होते हैं| इसकी आँखे और भृगिकायें काले रंग की होती है| पूर्ण विकसित हूंड़ी 40 से 45 मिलीमीटर लम्बी दोनों किनारों पर काले एवं बीच में गन्दे पीले रंग के शरीर वाली होती हैं| इनका पूरा शरीर घने बालों से ढका होता है| कीट की सुंडियां प्रारम्भ में झुंड में पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाती हैं| अधिक प्रकोप की दशा में पौधे के तने को छोड़कर सारी पत्तियों खा जाती है| सुंडियां बड़ी होने पर पूरे मूंग में फैल कर फसल को हानि पहुंचती है|
लाल बालदार सुंडी
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ कीट काले धब्बेयुक्त सफेद पंख वाला होता है, इसका ऊपरी पंख का किनारा और पूरा उदर लाल होता है| सूंड़ी 25 मिलीमीटर लम्बी लाल रंग की घने बालों वाली होती है| यह सुंडियां प्रारम्भ में झुंड में मूंग की फसल में पत्तियों को खुरचकर खाती हैं| अधिक प्रकोप की दशा में इनके द्वारा पौधे के तने को छोड़कर सारी पत्तियाँ खा ली जाती है| सुंडियां बड़ी होने पर पूरे क्षेत्र में फैल कर फसल को नुकासान पहुचती है|
फली बेधक कीट (हेलीकोवार्पा आर्मीजेरा)
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा पीले बादामी रंग का होता है| अगली जोड़ी पंख पीले भूरे रंग के होते हैं और पंख के मध्य में एक काला निशान होता है| पिछले पंख कुछ चौड़े मटमैले सफेद से हल्के रंग के होते हैं एवं किनारे पर काली पट्टी होती है| सुंडियां हरे, पीले या भूरे रंग की होती है और पार्श्व में दोनों तरफ मटमैले सफेद रंग की धारी पायी जाती है| इसकी गिडारें मूंग की फसल में फलियों के अन्दर घुसकर दानों का खाती है| क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते हैं|
यह भी पढ़ें- मूंग की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं एवं पैदावार
सफेद मक्खी
पहचान और हानि की प्रकृति- ये कीट आकार में छोटे लगभग एक से डेढ़ मिलीमीटर लम्बे पीले रंग के शरीर वाले होते हैं| इनका पूरा शरीर सफेद चूर्ण से ढका होता है, इनके पंख सफेद होते है| शिशु और प्रौढ़ दोनों मूंग की फसल में पत्तियों, कोमल टहनियों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है| यह मक्खी उदर में पीला चित्रवर्ण रोग का विषाणु फैलाती है| अतिरिक्त अधिक रस चूसने के कारण यह मधुस्राव करती है, जिस पर काले कवक का आक्रमण हो जाता है और पत्तों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है|
फली से रस चूसने वाला कीट (क्लैवीग्रेला जिबोसा)
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ बग लगभग दो सेन्टीमीटर लम्बा कुछ-कुछ हरे भूरे रंग का होता है| इसके शीर्ष पर एक शूल युक्त प्रवक्ष पृष्ठक पाया जाता है| उदर प्रोथ पर मजबूत कॉटे होते है| इसके शिशु और प्रौढ़ मूंग की फसल में तने, पत्तियों और पुष्पों तथा फलियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं, प्रकोपित फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते है और अत्यधिक प्रकोप होने पर फलियॉ सिकुड़ जाती है तथा दाने छोटे रह जाते है|
फलीबेधक कीट (नीली तितली)
पहचान और हानि की प्रकृति- पूर्ण विकसित हूंड़ी पीली हरी, पीली लाल या हल्के रंग की होती है और इनके शरीर की निचली सतह छोटे छोटे बालों से ढकी होती है| प्रौढ़ तितली आसमानी नीले रंग की होती है| इसकी सुंडियां मूंग की फसल में फलियों को छेद कर उनके दानों को नुकसान पहुँचाती है|
माहू (एफिस क्रेक्सीवोरा)
पहचान और हानि की प्रकृति- यह एफिड गहरे कत्थई या काले रंग की बिना पंख या पंख वाली होती है| एक मादा 8 से 30 शिशु को जन्म देती है और इनका जीवनकाल 10 से 12 दिन का होता है| इसके शिशु और प्रौढ़ पौधे के विभिन्न भागों विशेषकर मूंग की फसल में फूलों तथा फलियों से रस चूसकर हानि करते हैं|
यह भी पढ़ें- अरंडी की खेती की जानकारी
मूंग में एकीकृत कीट नियंत्रण
1. बुवाई के लिए पीली पत्ती मोजैक सहिष्णु किस्मों जैसे पन्त मूंग- 2, पंत मूंग- 3, पीडीएम- 54 (मोती), पीडीएम- 84-139 (सम्राट), पीडीएम- 11, एमएल- 337, नरेन्द्र मूग- 1 का चुनाव करना चाहिए|
2. फसल पर कीटों के प्रकोप का सप्ताह अन्तराल पर निरीक्षण करते रहना चाहिए|
3. मूंग की फसल में पीली पत्ती प्रकोपित पौधों को देखते ही सावधानीपूर्वक उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए|
4. मूंग की फसल में बालदार सुंडी के पतंगों को प्रकाश प्रपंच के द्वारा इक्ट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए|
5. तम्बाकू की सूंड़ी के नियंत्रण हेतु 20 से 25 फेरोमोन टेप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
6. तम्बाकू की सूंड़ी के अण्डों और झुन्ड में खा रही सुंडियों को इक्ट्ठा कर सप्ताह में दो बार नष्ट कर देना चाहिए|
7. तम्बाकू की सूंड़ी की एन पी वी 250 लार्वी समतुल्य प्रति हेक्टेयर की दर से सप्ताह के अन्तराल पर दो तीन बार सायंकाल छिड़काव करना चाहिए|
8. सफेद मक्खी के आर्थिक क्षति स्तर पहुँचने पर दैहिक रसायन जैसे डाइमेथोएट 30 ई सी, 1 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 250 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
9. अन्य फलीबेधकों से 5 प्रतिशत प्रकोपित फली पाये जाने पर निम्न में से किसी एक कीटनाशक का जैसे- बी टी 5 प्रतिशत डब्लू पी,1.5 किलोग्राम या इन्डाक्साकार्ब 14.5 एस सी, 400 मिलीलीटर या क्यूनालफस 25 ई सी, 1.50 लीटर, फेनवेलरेट 20 ई सी, 750 मिलीलीटर, साइपरमेथ्रिन 10 ई सी, 750 मिलीलीटर या डेकामेथ्रिन 28 ई सी, 450 मिलीलीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
यह भी पढ़ें- तिल की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार
मूंग में एकीकृत रोग नियंत्रण
पीला चित्रवर्ण रोग
पहचान- मूंग की फसल में पत्तियों पर पीले सुनहरे चकत्ते पाये जाते हैं| उग्र अवस्था में सम्पूर्ण पत्ती पीली पड़ जाती है| यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है|
नियंत्रण- सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए निम्न में से किसी एक कीटनाशक का 2 से 3 छिड़काव करना चाहिए|
1. डायमिथोएट 30 ई सी, 1 लीटर प्रति हेक्टर|
2. मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ई सी, 1 लीटर प्रति हेक्टर|
3. रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
यह भी पढ़ें- मक्का की खेती कैसे करे
पत्तियों का धब्बा रोग
पहचान- पत्तियों पर गोलाई लिये हुए कोणीय धब्बे बनते हैं, जिसमें बीच का भाग हल्के राख के रंग का या हल्का या भूरा और किनारा लाल बैंगनी रंग का होता है|
नियंत्रण- इसके नियंत्रण के लिए मूंग की फसल में 3 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टर, 10 दिन के अन्तर पर 2 से 3 छिड़काव करना चाहिए| कार्बेन्डाजिम का एक छिड़काव 500 ग्राम प्रति हेक्टर पर्याप्त होगा| थायोफिनेट मिथाइल 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मात्र एक छिड़काव संस्तुत है|
मुख्य बिन्दु
1. रोगरोधी किस्मों की बुवाई की जाये|
2. गर्मी में गहरी जुताई करें|
3. पंक्तियों में बुवाई करें|
4. विरलीकरण किया जाये|
5. बीजोपचार और बीज शोधन अवश्य करें|
6. सल्फर और फास्फोरस का प्रयोग करें|
यह भी पढ़ें- बारानी क्षेत्रों की फसल उत्पादकता वृद्धि हेतु उन्नत एवं आधुनिक तकनीक
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply