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Home » ब्लॉग » धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें: उपयोगी उपाय

धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें: उपयोगी उपाय

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान में एकीकृत रोग प्रबंधन

धान में विभिन्न क्षतिकर रोग लगते है, जो इस प्रकार है, जैसे- धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड एवं अन्य की समस्या प्रमुख है| हालाँकि धान की विभिन्न उन्नतशील किस्में जो कि अधिक उपज देती हैं| उनका प्रचलन भारत में भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है| परन्तु मुख्य समस्या कीट और रोगों की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा विरिडी एवं ट्राइकोडर्मा हारजिएनम से जैविक रोग व कीट नियंत्रण

धान की फसल में एकीकृत रोग नियंत्रण

धान में प्रमुख रोगों के प्रभावी प्रबन्ध के लिये निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं| जैसे-

1. गर्मी में गहरी जुताई, और मेड़ों एवं खेत के आसपास के क्षेत्र को खरपतवार से यथा सम्भव मुक्त रखना चाहिए| (सभी बीमारियों हेतु)

2. धान में समय पर रोग प्रतिरोधी या सहिष्णु प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करनी चाहिए| (सभी बीमारियों हेतु)

3. नर्सरी डालने से पहले क्षेत्र विशेष की समयानुसार बीजशोधन अवश्य कर लेना चाहिए|

4. जीवाणु झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम बीज के लिए 38 ग्राम एम ई एम सी और 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को 45 लीटर पानी में रात भर भिगों दें, दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें|

5. अन्य क्षेत्रों में बीज को 3 ग्राम थाइम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए|

6. तराई और पहाड़ी क्षेत्रों में थाइरम 1.5 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1.5 ग्राम मिश्रण से किलो बीज को उपचारित करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है?

7. नर्सरी, सीधी बुवाई या रोपाई के बाद खैरा धान में रोग के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया 1000 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से दो हफ्ते बाद छिड़काव करना चाहिए|

8. धान में रोगों के लक्षण दिखते ही नत्रजन की शेष टापड्रेसिंग रोककर रोग सहायक परिस्थितियों के समाप्त होने पर करना चाहिए|

9. धान में उर्वरकों का संतुलित प्रयोग कई रोगों की वृद्धि को रोकता है|

10. धान में सफेद रोग की रोकथाम के लिए आवश्यकता पड़ने पर 5 किलोग्राम फेरस सल्फेट की 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए|11. बड़े क्षेत्र में महामारी से बचने के लिए एकाधिक किस्मों को लगाना चाहिए|

12. धान में भूमि शोधन हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडरमा + थ्ल्ड 4:6 से करें|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव

धान फसल के प्रमुख रोग

धान में प्रमुख रोग- सफेद रोग (नर्सरी में), जीवाणु झुलसा, शीथ झुलसा, भूरा धब्बा, जीवाणु धारी झोंका और खैरा आदि|

धान में असिंचित परिस्थितियों के प्रमुख रोग- भूरा धब्बा, शीथ झुलसा, झोंका, खैरा आदि|

धान में गहरे पानी वाली परिस्थितियों के प्रमुख रोग- जीवाणु झुलसा, जीवाणु धारी और शीथ झुलसा आदि|

सफेदा रोग

पहचान- धान में यह रोग लौह तत्व की अनुपलब्धता के द्वारा नर्सरी में अधिक लगता है| नई पत्ती सफेद रंग की निकलेगी जो कागज के समान पड़कर फट जाती है|

उपचार- धान में इसके उपचार के लिए प्रति हेक्टर 5 किलोग्राम फेरस सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया या 2.50 किलोग्राम बुझे हुए चूने का 800 लीटर प्रति हेक्टर पानी के साथ मिलाकार 2 से 3 छिड़काव 5 दिन के अन्तर पर करना चाहिए|

पत्तियों का भूरा धब्बा

पहचान- धान में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल या अण्डाकार धब्बे पड़ जाते हैं, जिसका बीच का हिस्सा कुछ पीलापन लिए हुए कत्थई रंग का होता है| इन धब्बों के चारों तरफ पीला सा घेरा बन जाता है, जो इस रोग का विशेष लक्षण है|

उपचार-

1. बोने से पूर्व 3 ग्राम थीरम या 4 ग्राम ट्राइकोडरमा बिरिडी प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर लेना चाहिए|

2. धान की खड़ी फसल पर जिंक मैंगनीज कार्बामेट या जीरम 80 प्रतिशत का दो किलो या जीरम 27 ई सी 3 लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|

3. खड़ी फसल पर थायोफेनेट मिथाइल 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

जीवाणु झुलसा

पहचान- इसमें पत्तियाँ नोंक या किनारे से एकदम सूखने लगती हैं| सूखे हुए किनारे अनियमित और टेढ़े मेढ़े होते हैं|

उपचार-

1. धान में बोने से पूर्व बीजोपचार उपर्युक्त विधि से करें|

2. रोग के लक्षण दिखाई देते ही यथा सम्भव खेत का पानी निकालकर 15 ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लीन एवं कॉपर आक्सीक्लोराइड के 500 ग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|

3. रोग लक्षण दिखाई देने पर नत्रजन की टापड्रेसिंग यदि बाकी है, तो उसे रोक देना चाहिए|

शीथ झुलसा

पहचान- इस रोग से धान में पत्र कंचुल पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिनका किनारा गहरा भूरा एवं बीच का भाग हल्के रंग का होता है| पत्तियों पर घेरेदार धब्बे बनते हैं|

उपचार- धान में खड़ी फसल पर 1.5 किलोग्राम थायोफिनेट मिथाइल या 1 किलोग्राम कार्बेन्डाजिम का प्रति हेक्टर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 10 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए या 500 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 250 ग्राम मैंकोजेब 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की जैविक खेती, जानिए प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ

जीवाणु धारी रोग

पहचान- धान की पत्तियों पर कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियां नसों के बीच में पड़ जाती हैं|

उपचार- इसके लिए धान में झुलसा रोग की तरह उपचार करें|

झोंका रोग

पहचान- पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो बीच में राख के रंग के एवं किनारों पर गहरे कत्थई रंग के होते हैं| इनके अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प शाखाओं तथा गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं|

उपचार-

1. धान बोने के पूर्व बीजों को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें|

2. खड़ी फसल पर धान में निम्न में से किसी एक रसायन का छिड़काव करना चाहिए, जैसे- कार्बेन्डाजिम 1 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 2 से 3 छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर करें या 500 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 250 ग्राम मैंकोजेब 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध तैयार कैसे करें

खैरा रोग

पहचान- यह रोग जस्ते की कमी के कारण होता है, इसमें पत्तियॉ पीली पड़ जाती हैं| जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं|

उपचार- फसल पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया या 2.5 किलोग्राम बुझे हुए चूने को 800 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टर छिड़काव करना चाहिए| एकीकृत नाशीजीव प्रबन्ध की अधिक जानकारी के लिए किसान बन्धु यहाँ पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए पूरी प्रक्रिया

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