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Home » ब्लॉग » श्री विधि से धान की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

श्री विधि से धान की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

श्री विधि से धान

श्री विधि (एस आर आई) भी धान की खेती करने की एक पद्धति या तरीका है| इस पद्धति 1983 में अफ्रिका के मेडागास्कर में खोजा गया| इस पद्धति को वहां के चर्च के एक पादरी हेनरी ने खोजा था| श्री विधि हमारे परम्परागत विधि बोवाई और रोपाई विधि से भिन्न है| इस लेख में श्री विधि से धान की खेती कैसे करें, और इसकी पूरी प्रक्रिया, देखभाल एवं पैदावार का उल्लेख है| धान की परम्परागत खेती के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- धान बोने की प्रचलित पद्धतियाँ

श्री विधि से धान की खेती की मुख्य विशेषताएं

1. 10 से 12 दिन के या दो पत्तों के पौधों को लगाया जाता है|

2. पौधों की रोपाई 25 सेंटीमीटर (10 इंच) की दूरी पर लाईन में की जाती हैं|

3. एक बार में एक पौधे को लगाया जाता है|

श्री विधि में एकड़ खेत में धान रोपने के लिए सिर्फ 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है| क्योंकि एक किलोग्राम धान में लगभग चालीस हजार दाने होते हैं| इस तरह 2 किलो बीज में अस्सी हजार दाने होते हैं| जबकि एक एकड़ खेत में दस इंच की दूरी पर एक एक पौधा लगाने में लगभग चौंसठ हजार पौधों की आवश्यकता पड़ती है| जिसके लिए 2 किलो बीज पर्याप्त है|

श्री विधि में जो दूसरा सबसे जरूरी बात है, कि कम से कम दो बार घास या खरपतवार निकालना जरूरी है| क्योकि ज्यादा दूरी में पौधा लगाने के कारण घास ज्यादा होती है| घास निकालने के लिए एक मशीन प्रयोग में लाई जाती है, जिसे कोनो या अम्बिका बीडर कहते हैं| यह मशीन चलाने में आसान होती है तथा किसान भाई खुद इसे चला सकते हैं| अम्बिका बिडर कोनो बिडर सस्ता और थोड़ा हल्का है| लाईन से पौधों को इसलिए लगाया जाता है, जिससे उसके बीच अम्बिका बिडर को चलाना आसान होता है|

अम्बिका बिडर घास निकालने के अलावा मिट्टी भी पलटती है, जिससे मिट्टी पोला होता है एवं उससे धान के पौधों की जड़ो को हवा मिलती है| श्री विधि में प्रति पौधे में औसतन 40 से 50 कल्ले निकलते हैं, जो अधिकतम 80 तक जा सकते हैं| इस विधि से खेती करने से परम्परागत विधि की तुलना में 2 से 3 गुणा ज्यादा उपज होती है|

यह भी पढ़ें- धान में पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन कैसे करें

श्री विधि ही क्यों चुने

उदाहरण स्वरूप परम्परागत और श्री विधि से किसान भाई 1 एकड़ में कितना खर्च करते हैं एवं उससे कितनी पैदावार मिलती है, जैसे-

परम्परागत विधि से-

एक किसान के अनुसार एक एकड़ जमीन में कुल 40 किलोग्राम बीज लगता था (बदरा) मिलाकर एवं मजदूरी के लिए कुल 40 मजदूर लगते थे तथा उससे उसे 12 बोरा (75 किलोग्राम प्रति बोरा) धान की प्राप्ति होती थी| इससे उसे छः माह तक खाने के लिए चावल मिल पाता था|

श्री विधि से धान की खेती से-

श्री विधि से 2.5 किलो बीज लगता है (बदरा मिलाकर) एवं मजदूरी के लिए कुल 20 मजदूर लगते हैं तथा उससे उसको 20 बोरा (75 किलोग्राम प्रति बोरा) धान की प्राप्ति होती है| इससे उसे दस माह तक खाने के लिए चांवल मिल जाता है|

श्री विधि से धान की खेती के अन्य फायदें

1. श्री विधि की खेती में पानी कम लगता है|

2. इस विधि का प्रयोग खरीफ, रबी एवं गरमी तीनों मौसम में कर सकते हैं|

3. हर किस्म के धान को इस विधि से लगाया जा सकता है|

4. बिमारियों और कीटों का प्रकोप कम होता है|

यह भी पढ़ें- धान के कीटों का समेकित प्रबंधन कैसे करें

बीज की मात्रा और उपचार

धान की अच्छी उपज के लिए खराब बीजों को अलग कर चुने हुए बीज का उपचार किया जाता है| आमतौर पर किसान भाई घर का बीज इस्तेमाल करते है, जिसमे बदरा, खराब बीज होता है|

बीज उपचारित करने की का तरीका-

1. सबसे पहले कितने खेत में श्री विधि अपनाएंगे उसके हिसाब से बीज लें, जैसे एकड़ के पीछे 2 किलोग्राम या आधा एकड़ के लिए एक किलोग्राम बीज लें|

2. उसके बाद आप एक बाल्टी में आधा बाल्टी पानी ले एवं उसमें एक मुर्गी का अंडा डालें, फिर उसमें नमक डालकर घोलिए, नमक तब तक डाले जब तक अंडा पानी की सतह के उपर न आ जाए|

3. पानी में नमक मिलाने से पानी गाढ़ा हो जाता है एवं उसके बाद उक्त घोल में बीज को डाले जो खराब बीज होगा वह उपर में आ जाएगा और अच्छा बीज जो भारी होता है, वह पानी के नीचे बैठ जाएगा, इस तरह पूरे बीज को घोल में डालकर खराब बीज को अलग कर लें|

4. अब जो बीज ऊपर तैरने लगते हैं उसे बाहर निकालकर फेंक दें|

5. नीचे डूबे अच्छे बीज को निकालकर उसे साफ पानी से दो बार धोए जिससे उसमें से नमक हट जाएगा|

6. साफ बीज को सूखे बोरा में रखकर एक चम्मच बाविस्टीन पाउडर मिलाएं|

7. बाविस्टीन पाउडर एक फफूद नाशक दवा है, जो बीज के साथ आने वाले रोग को नष्ट कर देता है|

8. बाविस्टीन मिलाने के बाद हाथ को साफ पानी से धो लें|

9. बाविस्टीन मिलाने के बाद बीज को गिले बोरे से ढककर या बांधकर 24 घंटे के लिए अंकुरण के लिए रख दें|

10. इसके बाद अच्छे बीजों को नर्सरी में डाला जाता है|

यह भी पढ़ें- धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें

पौधशाला या नर्सरी

1. जैसा की किसान भाई जानते है, कि परम्परागत विधि से आमतौर पर एक एकड़ खेती के रोपाई के लिए करीब 25 किलोग्राम बीज लगता है एवं नर्सरी के लिए 10 डिसमिल भूमि की आवश्यकता होती है|

2. इतने बीज जब 10 डिसमिल जमीन में डाले जाते है, तो पौधे बहुत घने होते हैं| जिसके चलते पौधों को पर्याप्त मात्रा में भोजन तथा सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता, जिसके चलते पौधे कमजोर पड़ जाते हैं|

श्री विधि में नर्सरी तैयार करने का तरीका-

1. इस विधि से 400 वर्ग फीट (0.1 डिसमिल) जगह में सिर्फ 2 किलो बीज लगाते हैं, जिसके चलते पौधे घने नहीं होते एवं पौधों को पर्याप्त मात्रा में भोजन तथा सूर्य का प्रकाश मिलता है व पौधे स्वस्थ्य और मजबूत होते हैं|

2. नमक घोल में खराब बीजों को छांटने के कारण सभी पौधे स्वस्य और मजबूत होते हैं|

3. नर्सरी को आमतौर पर खेत के किनारे या खेत के पास डाले जिससे पौधों को उखाड़ने के आधे घंटा के अंदर रोपाई की जा सके|

4. नर्सरी के चारों ओर नाली बना दे जिससे पानी का निकासी हो सके|

5. नर्सरी में ज्यादा से ज्यादा अच्छी गोबर खाद का इस्तेमाल करें, जिससे बाद में पौधों को आसानी से निकाला जा सकें| मिट्टी के मुलायम रहने से पौधों को बिना नुकसान पहुचाए खेत तक ले जाया जाता है|

6. रासायनिक खाद का इस्तेमाल श्री विधि की नर्सरी में न करें|

7. अगर नर्सरी डालने के बाद पानी गिरना बंद हो जाए तो बाद में स्थिति देख कर दूसरा नर्सरी डाल दें|

8. नर्सरी में पौधा ज्यादा दिन रहने से उसमें कंसी निकलने की क्षमता कम हो जाती है एवं ऐसे पौधों को निकालने के समय उनके जड़ टूट जाते हैं, कोशिश करें कि ऐसे पौधों को श्री पद्धति में इस्तेमाल न करें|

9. आम तौर पर श्री विधि में 14 दिन से ज्यादा का पौधे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें

पौधों को नर्सरी से खेत तक ले जाना

परम्परागत विधि-

1. आमतौर पर 25 से 30 दिन के पौधों को नर्सरी से उखाड़ा जाता है, तब तक उसमें कंसा निकलने की क्षमता कम हो जाती है, इस अवस्था में जड़े भी बहुत बढ़कर आपस में उलझ जाती है|

2. पौधों को खींच कर निकाला जाता है, जिसमें उनके जड़े टूट जाती है तथा पोधों को फिर से हरा होने में काफी समय लगता है|

3. कई बार तो पौधों को निकालकर एक-दो दिन तक बिना रोपे छोड़ देते हैं, जिसके कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं एवं कुछ मर भी जाते हैं|

श्री विधि-

1. श्री विधि में 7 से 14 दिन या कम से कम दो पत्तों के पौधों को लगाया जाता है, इसलिए काफी सावधानी से खेत तक ले जाया जाता है|

2. श्री विधि में 7 से 14 दिन या कम से कम दो पत्तों के पौधों को इसलिए लगाया जाता है, क्यों इसी समय उनमें कंसा निकलने की अधिकतम क्षमता होती है|

3. पौधों को मिट्टी समेत सावधानी से उठाना चाहिए ताकि जड़ो को कोई नुकसान न पहुंचे|

4. पौधों को नर्सरी से निकालते समय परम्परागत विधि जैसे खींचकर न निकाले, कोशिश करें कि पौधों को चौड़े बर्तन में रखकर ले जाए अगर टोकरी का इस्तेमाल कर रहे तो उसमें ज्यादा न भरें|

5. पौधों को नर्सरी से उठाते समय नर्सरी में पानी लगा होना चाहिए, जिससे मिट्टी नरम होती है तथा पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है|

यह भी पढ़ें- असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें

फसक की रोपाई

परम्परागत विधि-

1. रोपाई के समय खेत मे 3 से 4 इंच पानी रहता है|

2. 2 से 3 पौधों को एक जग लगाया जाता है|

3. रोपाई कतार में न होकर इधर उधर लगा दिया जाता है, जिससे पौधे घने हो जाते हैं एवं जिसके कारण पौधों को पर्याप्त मात्रा में रोशनी और भोजन नहीं मिल पाता है|

4. जड़ टूटे पौधों को लगाने से उसमें बढ़ने कि क्षमता कम हो जाती है, जिससे कम कंसा फूटते हैं तथा कम उपज होती है|

5. पौधों की जड़ को नुकसान के कारण पौधे बहुत दिनों तक पीले पड़े रहते तथा हरा होने में समय लगता है|

श्री विधि से रोपाई-

1. खेत की तैयारी करते समय 60 से 80 क्विंटल कम्पोस्ट या गोबर खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए, कोशिश करें कि रासायनिक खाद न डाली जाए या कम से कम डालना चाहिए|

2. खेत के चारों ओर छह से आठ इंच एवं डेढ़ फुट चौड़ी नाली बना दें, जिससे खेत का फालतू पानी नाली में जमा हो जाता है, ज्यादा बारिश के स्थिति में खेत में हर दो मीटर पर नाली बना दें, जिससे पानी को निकाला जा सके या बारिश बंद होने के स्थिति में नाली में पानी जमा रखा जा सकें|

3. श्री विधि में रोपाई के समय खेत गीला होना चाहिए या एक इंच से कम पानी होना चाहिए|

4. पौधों को नर्सरी से उठाने के आधे घंटे के अंदर रोपाई कर देना चाहिए, देरी करने से पौधे के सूख जाने का डर रहता है| रोपाई करते वक्त पौधों को मिट्टी समेत हल्के से बैठा दें|

5. पौधों को कतार से लगाएं- श्री विधि में पौधों से पौधों की दूरी 10 इंच एवं कतार से कतार की दूरी भी 10 इंच होनी चाहिए|

6. कतर में लगाने के लिए मार्कर उपलब्ध है, जिसे रोपाई के पहले खेत में चलाया जाता है| कुछ किसानों ने मार्कर के जगह दतारी का इस्तेमाल भी करते है, सबसे आसन तरीका है कि नायलोन की रस्सी ले तथा उसमें रंगीन कपड़े के टुकड़े से 10 इंच की दूरी में निशाना बना लें, फिर रस्सी को खेत में पकड़कर पौधों को बैठाते जाते हैं|

7. पौधों को कतार में लगाना इसलिए जरूरी है, ताकि उसमें वीडर चल सकें|

8. श्री विधि में एक बार में एक जगह में केवल एक पौधे को लगाना है|

9. बारिश बंद होने के स्थिति में अगर मिट्टी में दरारें दिखने लगे तो पानी देने का इंतजाम करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें

श्री विधि से धान की खेती की निंदाई

1. रोपाई के दस से पंदह दिन के बीच में पहली निंदाई करना चाहिए| निंदाई करते समय खेत में पानी का भराव 1 इंच से 2 इंच के बीच होना चाहिए| निंदाई के लिए कोनो या अम्बिका वीडर का इस्तेमाल करना चाहिए| इस समय खरपतवार छोटे होते हैं एवं उन्हें नष्ट करना आसान होता है| श्री विधि में पौधों को दूर-दूर लगाने तथा कम पानी होने के कारण खरपतवार ज्यादा निकलता है|

2. चूंकि 14 दिन की अवस्था में ज्यादा कंसा फूटने शुरू हो जाते हैं, इसलिए पौधों को ज्यादा मात्रा में पोषण की आवश्यकता होती है| खरपतवार रहने से पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल नहीं पाता है, जिससे पैदावार में कमी हो सकती है|

3. श्री विधि धान फसल की दूसरी निंदाई पहली निंदाई के दस से पंद्रह दिन बाद करें|

4. वीडर को चलाने के लिए लाइन के बीच में आगे पीछे चालाया जाता है, इससे खेत की मिट्टी पलट जाती है| जिससे जड़ों को हवा मिलती है तथा खरपतवार मिट्टी में दब जाते है जिससे सड़कर खाद बन जाती हैं|

5. वीडर चलाने से पौधे तेजी से बढ़ते हैं|

6. वीडर चलाते समय खेत में ज्यादा से ज्यादा एक इंच पानी होना चाहिए|

7. वीडर मशीन पौधों के दोनों तरफ से निकालना चाहिए|

8. अगर यूरिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो वीडर मशीन चलाने के बाद प्रयोग करें|

9. तीसरी निंदाई दूसरी निंदाई से 10 से 15 दिन के बाद करना चाहिए|

10. कम से कम तीन बार वीडर और जीवामृत अवश्य उपयोग करें|

यह भी पढ़ें- बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

फसल की देखभाल

परम्परागत विधि-

1. खेत में 3 से 4 इंच पानी हमेशा भरा रहता है|

2. हमेशा पानी भरे रहने के कारण जड़ों को हवा नहीं मिल पाता एवं ये मरने लगते हैं|

3. इसके चलते नए जड़े निकलती है, जिसके कारण कंसा कम फूटते हैं|

4. खरपतवार आमतौर पर किसान एक बार ही निकालता है क्योंकि इसमें ज्यादा मजदूर लगते हैं|

5. निकाले गए खरपतवार को खेत के मेंड़ में फेंक दिया जाता है, जिससे उसकी सड़कर खाद नहीं बन पति है|

श्री विधि-

1. श्री विधि की फसल के खेत में एक इंच पानी की परत रखते हैं|

2. बरसात आधारित क्षेत्र में खेत में नाली बनाएं, जिससे ज्यादा पानी को निकाला जा सकें या बारिश बंद होने की स्थिति में नाली में जमा पानी से खेत की नमी को बनाएं रख सकें|

3. बारिश नहीं गिरने की स्थिति में अगर खेत में दरारें दिखे तो पानी डालने की व्यवस्था करनी चाहिए|

4. कोनो या अम्बिका वीडर के चलाने से खेत की मिट्टी पलटती है तथा जड़ो को हवा मिलती है|

5. हवा मिलने से जड़े मरती नहीं है एवं स्वस्थ्य रहती है जिससे कंसे ज्यादा फूटती है|

6. वीडर कम से कम दो बार अवश्य चलाएं|

7. अगर यूरिया खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं तो पूरी मात्रा 2 से 3 बार वीडर चलाने के बाद दें|

8. श्री विधि फसल में बीच-बीच में हांडी दवा और जीवामृत का प्रयोग अवश्य करें|

यह भी पढ़ें- सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती कैसे करें

श्री विधि से धान की पैदावार

1. श्री विधि के एक पौधे से कम से कम 40 से 60 कंसे निकलते हैं, कभी-कभी 80 से 90 कंसे तक निकलते हैं, जबकि पारम्परिक विधि में 5 से 8 कंसे निकलते हैं|

2. इन 50 से 60 कंसो से 25 से 30 कंसे ऐसे होते है जिनमें अच्छी बालियां होती है|

3. हर बाली में 160 से 220 तक भरे दाने रहते हैं|

4. श्री विधि द्वारा खेती करने से एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल तक उपज मिल सकती है|

5. श्री विधि में किसी भी धान की किस्म का इस्तेमाल किया जा सकता है|

विशेष- उपरोक्त जानकारी से संबंधित धान की फसल के कीट व रोग रोकथाम, हांडी दवा और जीवामृत के लिए निचे दिए लिंक पर क्लिक कर के पूर्ण जानकारी प्राप्त करें|

धान में कीट व् रोग नियंत्रण के लिए यहाँ पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

श्री विधि में हांडी जैविक कीटनाशक उपयोग हेतु यहाँ पढ़ें- हांडी जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए उपयोग की जानकारी

जीवामृत के लिए यहाँ पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव

यह भी पढ़ें- सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती कैसे करें

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