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Home » Blog » बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें; जाने उपाय

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें; जाने उपाय

December 31, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

बासमती धान की फसल जो कि मुख्य रूप से हरियाण, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं उत्तरांखण्ड राज्यों में उगाई जाती है| बासमती धान अनेक कीड़ों और रोगों के प्रकोप से प्रभावित होती है| किसान इनके नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों और फफूदीनाशकों का अविवेकपूर्ण प्रयोग करते हैं| जिससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है, बल्कि चावल के दानों में कीटनाशी रसायनों के अवयव भी शेष रह जाते हैं|

जो कि मानव स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालते हैं| इसके अतिरिक्त फसल में उपस्थित लाभकारी या मित्र कीटों का भी रसायनों के इस्तेमाल से विनाश हो जाता है| समेकित नाशीजीव प्रबन्धन (आई पी एम) एक ऐसी तकनीकी है| जिससे न केवल वातावरण प्रदूषित होने से बचता है| बल्कि खेत में उपस्थित लाभदायक परजीवी व परभक्षी कीटों के संरक्षण में भी सहायता मिलती है|

इस लेख में बासमती धान में अपनायी जाने वाली उन्नत कृषि विधियाँ और कीट-रोगों के समेकित नाशीजीव प्रबन्धन (आई पी एम.) पर उल्लेख किया गया है| बासमती धान की प्रमुख किस्मों की जानकारी हेतु यहाँ पढ़ें- सुगंधित एवं बासमती धान की किस्में, जानिए, क्षेत्रवार, विशेषताएं और पैदावार

यह भी पढ़ें- धान की जैविक खेती कैसे करें

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन नर्सरी हेतु क्या करें

1. नर्सरी लगाते समय सिर्फ विश्वशनीय एवं प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें, एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 15 से 18 किलो बीज लगायें|

2. गोबर की सड़ी हुई खाद का एक क्विंटल प्रति 100 वर्ग मीटर के हिसाब से प्रयोग करें|

3. बासमती धान नर्सरी में बीज बुवाई के लिए खेत को अच्छी प्रकार तैयार करें|

4. पक्षियों द्वारा होने वाले नुकसान से बचाव के लिए नर्सरी को पुआल से ढक दें|

5. एक मीटर चौड़ी और थोड़ी ऊँची क्यारियां तैयार करें|

6. कार्बेन्डाजिम फंफूदीनाशक द्वारा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर या जैविक फफूदीनाशक ‘ट्राइकोडरमा का 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें|

7. रासायनिक उर्वरक एन पी के 0.75 से 1.0 किलोग्राम : 0.5 किलोग्राम : 0.5 किलोग्राम का प्रयोग प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के अनुसार करें|

8. खरपतवारनाशक के रूप में ब्यूटाक्लोर 50 ई सी 20 से 30 मिलीलीटर या एनिलोफास 50 ई सी 10 मिलीलीटर या पेंडामेथिलीन 30 ई सी 33 मिलीलीटर प्रति 100 वर्ग मीटर का बुवाई के 2 से 3 दिन के अन्दर प्रयोग करें|

रोपाई से पहले-

1. बासमती धान की रोपाई वाले खेतों में हरी खाद ढेचा या मूंग की फसल लें|

2. रोपाई से एक सप्ताह पहले खेत में खड़ी हरी खाद की फसल जो लगभग 50 से 55 दिन की हो गई हो, की जुताई कर खेत में मिला दें|

3. बासमती धान के लिए रोपाई से एकदम पहले पडलिंग करें|

यह भी पढ़ें- मेडागास्कर विधि द्वारा धान की जैविक खेती कैसे करें

रोपाई के समय-

1. रोपाई के समय रासायनिक खाद एन पी के 40-50-40 किलोग्राम (पूसा बासमती-1, पूसा-1509 तथा पूसा-1121), और जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें (तरावड़ी एवं देहरादून बासमती में 30 किलोग्राम नत्रजन का प्रयोग करें)|

2. रोपाई से पहले पौध की जड़ों को स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 5 से 10 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल में 30 से 45 मिनट तक डुबोकर रखें|

3. बासमती धान में एक स्थान पर दो से तीन पौधों की रोपाई करें|

4. बासमती धान के लिए रोपाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर रखें|

5. अगर जरुरत हो तों खरपतवारनाशक के रूप में ब्यूटाक्लोर 50 ई सी 2 से 3 लीटर या एनिलोफॉस 50 ई सी एक लीटर प्रति हेक्टेयर का प्रयोग रोपाई के 3 से 5 दिन के अन्दर करें|

यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

रोपाई के बाद-

1. बासमती धान में पीला तना बेधक कीट की निगरानी के लिए गन्धपाश (फेरोमोन ट्रेप) 5 ट्रेप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|

2. तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट के लिए परजीवी कीट ट्राइकोग्रामा जेपोनिकम या ट्राइकोग्रामा काइलोनिस 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों में छोड़ें|

3. ब्लास्ट रोग का प्रकोप होने पर ट्राईसायक्लाजोल 75 ई सी 0.6 ग्राम या आईसोप्रोथिओलेन 40 ई सी 1.5 मिलीलीटर या आईप्रोबेनफॉस 48 ई सी 2.0 मिलीलीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी अनुसार घोल कर छिडकाव करें|

4. पर्णच्छद विगलन (शीथ ब्लाइट) रोग के प्रकोप के लक्षण प्रकट होने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी, 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या वेलेडिमाइसिन 3 एल, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या हेक्साकोनाजोल 5 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या प्रोपीकोनाजोल 25 ई सी 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में फफूदीनाशक का प्रयोग करें और प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए खेतों से पानी निकाल दें|

5. जीवाणु जनित अंगमारी (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट) रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 15 ग्राम प्रति हेक्टेयर का छिडकाव सिर्फ प्रभावित फसल क्षेत्र में करें|

6. बासमती धान पूसा- 1121 में ‘बकाने’ रोग का प्रकोप होने पर ‘स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स’ नामक जैविक फफूदीनाशक का छिडकाव करें|

यह भी पढ़ें- अलसी की जैविक खेती कैसे करें

7. भूरे और सफेद पीठ वाले फुदके का प्रकोप 10 प्रति पौधा से अधिक होने पर डाइनोंटफ्यूरान 25 एस जी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या ब्युप्रोफेजिन 25 एस सी 800 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इथोफेनप्राक्स 10 ई सी 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू जी 30 से 35 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या एसिफेट 75 एस पी 750 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें| इन कीटों के नियंत्रण में परभक्षी मकडियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं इसलिए इनकी संख्या बढ़ाने का प्रयास करें और अत्यधिक जहरीले कीटनाशी का प्रयोग कम से कम करें|

8. तना बेधक कीट का प्रकोप 10 प्रतिशत (मृत गोभ) से अधिक होने पर क्लोरएन्ट्रालीप्रोल 0.4 जी 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कारटाप दानेदार कीटनाशी 4 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का बुरकाव करें|

9. गन्धी बग का प्रकोप (प्रति पौधा 2 से 3 कीट) दूधिया दाने बनने की अवस्था में होने पर कार्बारिल 5 प्रतिशत डस्ट या मेलाथियन 5 प्रतिशत डस्ट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें|

10. नाइट्रोजन 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (पूसा बासमती-1, पूसा-1121) को दो भागों में क्रमशः रोपाई के 25 से 30 दिन और 50 से 55 दिन पश्चात डाले (तरावड़ी बासमती एवं देहरादून बासमती में 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर)|

11. कीटनाशी और अन्य रसायनों का प्रयोग केवल प्रभावित फसल क्षेत्र पर ही करें, जिससे मित्र कीट जैसे मकड़ी एवं अन्य लाभदायक परभक्षी और परजीवी कीटों की संख्या बढ़ सके|

यह भी पढ़ें- मसूर की जैविक खेती कैसे करें

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के लिए बुआई कैसे करें

नर्सरी के दौरान-

1. अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद को फावड़े और टोकरी द्वारा ठीक से खेत में फैला दें|

2. बासमती धान हेतु चौड़ी मेढ़ बनाने वाले यंत्र (रिजर) को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर ऊंची तथा चौड़ी मेढ़ बनाएँ|

3. बीज को 24 घंटे तक पानी में भिगोंए तत्पश्चात पानी निकाल कर छाया में फैलाकर कार्बेन्डाजिम नामक फफूदीनाशक 2 ग्राम प्रति किलोग्राम को बीजों में अच्छी प्रकार मिला दें|

4. बासमती धान हेतु रासायनिक उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा को बुवाई से पहले अच्छी प्रकार खेत में मिला दें, तत्पश्चात बीज की बुवाई करें|

रोपाई के दौरान-

1. मिट्टी पलटने वाले हल या हेरो द्वारा रोपाई से एक सप्ताह पहले हरी खाद को खेत में जुताई कर अच्छी प्रकार मिला दें|

2. ट्रैक्टर के पीछे हेरो एवं पाटा लगाकर पानी भरे खेत में अच्छी प्रकार जुताई कर पडलिंग करें|3. पडलिंग के पश्चात संस्तुति मात्रा अनुसार रासायनिक उर्वरकों को खेत में छिडक दें|4. प्रत्येक स्थान पर दो से तीन पौधों की ही रोपाई करें|

3. खरपतवारनाशी रासायन की आवश्यक मात्रा को 60 किलोग्राम सूखी रेत या पानी में अच्छी तरह से मिलाकर 3 से 5 सेंटीमीटर खड़े पानी में समान रूप से बिखेर दें|

यह भी पढ़ें- चने की जैविक खेती कैसे करें

रोपाई के पश्चात-

1. ‘फेरोमोन ट्रेप’ (गन्ध पाश) को डंडों में बांधकर इस प्रकार खड़ा कर खेत में गाढ़ दें, कि ट्रेप का निचला हिस्सा फसल से ऊपर रहे|

2. ‘ट्राइको कार्ड’ को केवल सायंकाल के समय निशान लगे स्थान से काटकर स्टेपलर द्वारा फसल की पत्ती में इस प्रकार लगाएं, कि अण्डों वाली सतह नीचे की ओर रहे|

3. परभक्षी मकड़ियों की संख्या फसल में बढ़ाने हेतु पुआल से तैयार बंडलों को रोपाई से 20 दिन बाद 20 बण्डल प्रति हेक्टेयर की दर से लगायें और लगाने से पहले बंडलों को लगभग 10 से 15 दिनों तक मक्का या ज्वार की फसल में लगाकर रखें, ताकि इनमें मकड़िया स्थापित हो सके|

4. रसायनों का छिडकाव पावर स्प्रेयर या डस्टर द्वारा या हस्तचालित स्प्रेयर द्वारा करें, दानेदार कीटनाशी को हाथ में दस्ताने पहनकर समान रूप से बुरक दें|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के लिए अब क्या करें

1. अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ा देती है|

2. ऊंची क्यारियों या मेढ़ पर बुवाई करने से नर्सरी में पौधों में गलन रोग कम हो जाता है और अनावश्यक जल जमाव के कारण मरने वाले पौधों की संख्या काफी कम हो जाती है|

3. रसायन द्वारा शोधित बीज बोने पर नर्सरी में लगने वाले रोगों से पौधों को बचाया जा सकता है|

4. हरी खाद के प्रयोग से भूमि की उर्वराशक्ति बढने के साथ-साथ भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि हो जाती है और भूमि की संरचना में भी सुधार होता है|

5. स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स के घोल मे पौध की जड़ों को 30 से 45 मिनट तक डुबोकर रोपाई करने से बकाने रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है|

6. एक ही स्थान पर दो-तीन पौधे रोपित करने से किसी पौधे के मरने की स्थिति में अन्य पौधों द्वारा भरपाई हो जाती है|

7. बासमती धान में खरपतवार नाशी रसायन के प्रयोग से खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है|

8. ‘फेरोमोन ट्रैप’ में तना बेधक कीट के नर वयस्क आकर्षित होकर फंस जाते हैं, जिस से इस कीट की उपस्थिति और भविष्य में आक्रमण के बारे में पता चल जाता है|

9. अंडों के परजीवी ट्राइकोग्रामा द्वारा तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण में मदद मिलती है|

10. रसायनों का छिडकाव आवश्यकतानुसार (आर्थिक हानि स्तर से अधिक होने पर) कीट और रोग से प्रभावित फसल क्षेत्र पर ही करने से मित्र कीटों परजीवी एवं परभक्षी को पनपने व बढ़ने का अवसर मिलता है|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के लिए क्या न करें

1. बासमती धान का अप्रमाणित और अनुपचारित बीज न बोंएँ|

2. जिस भूमि में जल निकास की सुविधा न हो उसमें बासमती धान न लगाएं|

3. सिंचाई की सुविधा के बिना बासमती धान न लगाएं|

4. बासमती धान की खेती के लिए एक स्थान पर केवल एक पौधे की रोपाई न करें|

5. बासमती धान के लिए नत्रजन का प्रयोग अनुमोदित मात्रा से अधिक न करें|

6. पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप 20 प्रतिशत से कम रहने पर किसी भी रसायन का प्रयोग न करें|

बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के लिए क्यों न करें

1. बासमती धान में अप्रमाणित और अशोधित बीज के प्रयोग से कीट और बीमारियां अधिक लगती हैं|

2. जल निकास का उचित प्रबन्ध न होने से बरसात में जल भराव के कारण शीथ ब्लाइट और ‘बैक्टीरियल ब्लाइट’ नामक रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है|

3. बासमती धान के पौधों की अच्छी बढ़वार और फुटाव के लिए बार-बार पानी की आवश्यकता होती है|

4. बासमती धान में पत्ती लपेटक कीट के 15 से 20 प्रतिशत से कम प्रकोप से उत्पादकता में नगण्य कमी आती है|

5. एक स्थान पर एक ही पौधे की रोपाई करने से कुछ पौधों के मरने के कारण बीच-बीच में जगह खाली रह जाती है और प्रति एकड़ पौधों की संख्या कम हो जाने के काण पैदावार में कमी हो जाती है|

6. अनावश्यक रूप से रसायनों का छिडकाव करने से मित्र कीट भी समाप्त हो जाएगें, इसलिए जब तक अत्यन्त आवश्यक न हो, छिडकाव न करें|

7. बासमती धान में नत्रजन के अनुमोदित मात्रा से अधिक प्रयोग से कीड़ों व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, साथ ही फसल पकने के दौरान उसके गिरने की संभावना बढ़ जाती है|

यह भी पढ़ें- परजीवी एवं परभक्षी (जैविक एजेंट) द्वारा खेती में कीट प्रबंधन

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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