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धान बोने की प्रचलित पद्धतियां: बुवाई और विशेषताएं

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान बोने

धान बोने की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित हैं| प्रत्येक पद्धति के अपने-अपने लाभ और हानियाँ हैं| किसान अपने धान उपलब्धता, साधन और सुविधा को देखते हुये धान बोने की पद्धतियों का चुनाव करते हैं या करना चाहिए| इस लेख में धान बोने की प्रचलित पद्धतियों की उपयोगी जानकारीयों का उल्लेख है, जो इस प्रकार है| धान की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- धान में पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन कैसे करें

धान बोने की पद्धतियाँ

सीधे बीज बोने की पद्धतियाँ

1. छिटकवां बुआई|

2. हल या दुफन सीड ड्रिल से कतारों में बुआई|

3. बियासी पद्धति (छिटकवां विधि से बीज बोकर लगभग एक माह की फसल अवस्था में पानी भरे खेत में हल्की जोताई)|

4. लेही पद्धति (धान के बीज को अंकुरित करके मचाये हुये खेत में सीधे छिटकवां विधि से बोआई)|

रोपाई पद्धति- नर्सरी में पौध तैयार करके लगभग एक माह बाद खेत मचाने के बाद कतार में पौधे रोपे जाते है|

धान बोने की उन्नत खुर्रा बोनी विधि

उन्नत खुर्रा बोनी में अक्सर जुताई, देशी हल या ट्रेक्टर द्वारा की जाती है| जून के प्रथम सप्ताह में बैल चलित हल या ट्रेक्टर चलित सीड ड्रील द्वारा 20 सेंटीमीटर कतार से कतार की दूरी पर धान बोया जाता है| नींदा नियंत्रण के लिये अंकुरण के पूर्व नींदानाशक दवा का छिड़काव किया जाता है|

यह भी पढ़ें- धान के कीटों का समेकित प्रबंधन कैसे करें

धान बोने की बियासी विधि

भारत में धान की अधिकांश खेती पूर्णतया वर्षा पर निर्भर है तथा यही वजह है कि लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र में धान की बुआई बियासी विधि से की जाती है| इसमें वर्षा आरंभ होने पर जुताई कर खेत में धान के बीज को छिड़क कर देशी हल या हल्का पाटा चलाया जाता है|

जब फसल करीब 30 से 40 दिन की हो जाती है और खेतों में 8 से 10 सेंटीमीटर पानी भर जाता है, तब खड़ी फसल में देशी हल चलाकर बियासी करते हैं| इस विधि से भरपूर उपज लेने के लिए निम्न बातें ध्यान में रखना चाहिए, जैसे-

1. खेत में जुताई के बाद उपचारित बीज की बोनी करें और दतारी हल चलाकर मिट्टी में हल्के से मिला दें, जिससे बीज अधिक गहराई पर न जावें और अंकुरण भी अच्छा तथा एक साथ हो सके|

2. स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की 20 से 30 प्रतिशत मात्रा धान बोने के समय डालें|

3. नत्रजन की बाकी मात्रा 40 प्रतिशत धान बोने के समय, 20 प्रतिशत धान बोने के 20 से 25 दिन और बाकि 20 प्रतिशत मात्रा धान बोने के 40 से 50 दिन बाद डालें|

4. पानी उपलब्ध होने पर धान बोने के 30 से 40 दिनों के अंदर बियासी करना चाहिए और चलाई बियासी के बाद 3 दिन के अंदर संपन्न करें|

5. बियासी करने के लिए सँकरे फल वाले देशी हल या लोहिया हल का उपयोग करें, ताकि बियासी करते समय धान के पौधों को कम से कम क्षति पहुंचे|

सघन चलाई- धान की खड़ी फसल में बियासी करने से धान के बहुत से पौधे मर जाते हैं| जिससे प्रति इकाई पौधों की संख्या कम रह जाती है| जबकि विपुल उत्पादन के लिए बियासी के बाद खेत में पौधों की संख्या 50 से 100 प्रति वर्गमीटर रहना चाहिए| इसके लिए बोए जाने वाले रकबे के 1/20 वें भाग में तिगुना बीज बोयें|

चलाई करते समय यहां से अतिरिक्त पौधों को उखाड़कर खेत के रिक्त स्थानों में रोपे जिससे प्रति वर्गमीटर क्षेत्र में कम से कम 50 से 100 पौधे स्थापित हो सकें| ऐसा करने से प्रति वर्गमीटर में कम से कम 350 से 400 कसे प्राप्त हो सकते हैं|

यह भी पढ़ें- धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें

धान बोने की उन्नत कतार बोनी विधि

रोपा विधि में पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध न होने और बियासी विधि में पौधों के अधिक मर जाने से उत्पादन में कमी होती है, इसलिए धान की कतार में बुवाई करें| इस धान बोने की विधि में बुवाई यंत्रों या देशी हल के पीछे बनी कतारों में सिफारिश के अनुसार उर्वरकों तथा बीज की बुआई करें| खेतों में अच्छी बतर की स्थिति में यंत्रों द्वारा कतार बुआई आसानी से की जा सकती है| कतार बुआई हेतु निम्न तरीके अपनाएं, जैसे-

1. अकरस जुताई करें, वर्षा होने के बाद 2 से 3 बार जुताई कर खेत तैयार करें|

2. तैयार समतल खेत में ट्रेक्टर चलित सीड ड्रिल, या देशी हल के पीछे 20 से 22 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बीज बोयें, बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर से अधिक न हो|

3. बुआई के समय सुझाई गई उर्वरकों की मात्रा डालें और सीड ड्रिल में दानेदार उर्वरकों का ही उपयोग करें|

4. नत्रजन की 20 से 30 प्रतिशत धान बोने के समय और 30 प्रतिशत मात्रा कसे आते समय (बोने के 30 से 40 दिन बाद) तथा शेष 40 प्रतिशत मात्रा गभोट के 20 दिन पहले (बुआई के 60 से 70 दिनों बाद) डालना चाहिए| स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा धान बोने के समय कतारों में डालें|

5. कतार धान बोने विधि में नींदा नियंत्रण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए| बुआई के 3 से 5 दिनों के अंदर अंकुरण पूर्व नींदानाशी (प्री-इमरजेंस हरबीसाइड) का प्रयोग करें| बुआई के 20 से 25 दिनों बाद कतारों के बीच निंदाई यंत्र से या मजदूरों द्वारा की जानी चाहिए| रासायनिक नींदा नियंत्रण हेतु बुआई के 30 से 35 दिनों के अंदर 2,4- डी नींदा नाशक दवा का सोडियम साल्ट 80 डब्ल्यू पी 0.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व का छिड़काव कतारों के मध्य करें|

चौड़ी पत्ती वाले नींदा के नियंत्रण के लिए इथाक्सी सल्फुरान 15 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर प्रयोग करें| यदि खेत में सांवा का प्रकोप अधिक हो तो बोनी के 15 से 20 दिन में साहलोफाफ बुटाईल 100 से120 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर या फेनाक्सीप्राप-पी इथाइल 90 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें

धान बोने की रोपण विधि

इस धान बोने की विधि में धान बोने वाले कुल क्षेत्र के लगभग 1/10 भाग में नर्सरी तैयार की जाती है और 20 से 30 दिनों की आयु होने पर खेतों को मचाकर रोपाई की जाती है| सिंचाई की निश्चित व्यवस्था अथवा ऐसे खेतों में जहां पर्याप्त रोपाई की जाती है|

रोपणी (नर्सरी) की तैयारी-

1. खेत की 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी कर लें और अन्तिम जुताई के पूर्व 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिला दें|

2. खेत को समतल कर करीब एक से डेढ़ मीटर चौड़ी, दस से पंद्रह सेंटीमीटर ऊंची और आवश्यकता अनुसार लम्बी क्यारियां बनावें| एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 1000 वर्ग मीटर की रोपणी पर्याप्त होती है|

3. खेत की हढाल के अनुसार रोपणी में सिंचाई और जल निकास नालियां बनावें|

4. बनाई गयी क्यारियों में प्रति मीटर 40 ग्राम बारीक धान या 50 ग्राम मोटे धान का बीज बाजोपचार के बाद 10 सेंटीमीटर दूरी की कतारों में 2 से 3 सेंटीमीटर गहरा बोंए| एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 30 से 40 किलो ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है| यदि अंकुरण 80 प्रतिशत से कम हो तो उसी अनुपात, में बीज दर बढ़ावें| क्यारियों में धान बोने के बाद बीज को मिट्टी की हल्की परत से ढंक दें|

5. प्रति वर्ग मीटर पानी नर्सरी में 10 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 5 ग्राम यूरिया अच्छी तरह मिला दें|

6. नर्सरी में पानी का जमाव न होने दें परन्तु रोपणी की मिट्टी सदैव नम रखें|

7. यदि रोपणी में पौधे नत्रजन की कमी के कारण पीले दिखाई दें, तो 15 से 30 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 7 से 15 ग्राम यूरिया प्रति वर्ग मीटर रोपणी में देखें|

8. धान बोने में विलम्ब होने की संभावना हो तो नर्सरी में नत्रजन की टाप ड्रेसिंग न करें|

9. आवश्यकता होने पर पौध संरक्षण दवाओं का छिड़काव करें, यदि नर्सरी में सल्फर या जिंक की कमी दिखाई दे, तो सिफारिश अनुसार उपचार करें|

10. रोपाई के समय रोपणी (थरहा) निकाल कर पौधों की जड़ों को पानी में डुबाकर रखें| रोपणी को क्यारियों से निकालने के दिन ही रोपाई करना उपयुक्त होता है|

11. रोपणी में खरपतवार दिखाई दें तो उन्हें निकाल कर नष्ट कर दें तत्पश्चात ही नत्रजन का प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें

धान की रोपाई-

1. यदि हरी खाद लगाई गई हो तो धान बोने के करीब 3 से 4 दिन पूर्व ही हरी खाद को मिट्टी में हल चलाकर अच्छी तरह मिला देवें|

2. रोपाई के पूर्व खेत की अच्छी तरह से मचाई करें, यदि खेत ऊँचा-नीचा हो तो पाटा चलाकर समतल कर लें, इसी समय उर्वरकों की आधार मात्रा दें|

3. सामान्य तौर पर धान की रोपणी की उम्र 20 से 30 दिन तक होनी चाहिए, जल्दी पकने वाली धान की रोपाई 20 से 25 दिन के अन्दर करें, मध्यम या देर से पकने वाली किस्मों की धान बोने या रोपणी की उम्र 25 से 30 दिन उपयुक्त होती है|

4. खेत मचाई के दूसरे दिन रोपाई करना ठीक रहता है, यदि रोपाई के समय खेतों में पानी अधिक भरा हो तो अतिरिक्त पानी निकाल दें|

5. रोपा लगाते समय एक स्थान (हिल) पर 2 से 3 पौधों की रोपाई करें, पौधे सदैव सीधे एवं 3 सेंटीमीटर गहरे लगावें, कतारों व पौधों के दूरी 15 x 10 या 15 x 15 सेंटीमीटर हरूना किस्मों के लिए तथा अन्य किस्मों हेतु 20 x 15 सेंटीमीटर की दूरी रखना उचित होगा|

6. यदि पौध की उम्र 30 दिनों से अधिक हो तो सघन रोपाई करें तथा पौधों की संख्या बढ़ा दें, नत्रजन की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ावें|

7. प्रत्येक 3 से 4 मीटर के बाद लगभग 30 सेंटीमीटर का रास्ता फसल निरीक्षण, उर्वरक व दवा आदि का छिड़काव करने के लिए रखें|

8. धान की मध्यम अवधि की किस्मों का उपयोग करने के कारण धान के बाद संचित मृदा नमी में रबी फसल भी ली जा सकती है|

यह भी पढ़ें- सिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें

धान बोने की लेही विधि

लगातार वर्षा होने या धान बोने में विलम्ब होने से बतर बोनी और रोपणी (नर्सरी) की तैयारी करने का समय न मिल सके तो लेही विधि अपनायें| इसमें रोपा विधि की तरह ही खेत की मचाई कर तैयार करें और अंकुरित बीज खेत में छिड़क कर बोयें| लेही बोनी के लिए प्रस्तावित समय से 3 से 4 दिन पहले से ही बीज अंकुरित करने का कार्य शुरू कर दें|

निर्धारित बीज की मात्रा को रात्रि में 8 से 10 घन्टे भिगोना चाहिये| फिर इन भीगे हुये बीजों का पानी निथार दें, इसके बाद इन बीजों को पक्के फर्श पर रखकर बोरे से ठीक से ढक देना चाहिये| लगभग 24 से 30 घन्टे में बीज अंकुरित हो जायेंगे| अब बोरों को हटाकर बीज को छाया में फैलाकर सुखाएं, इन अंकुरित बीजों का प्रयोग शीघ्र करें|

धान बोने के समय खेत में पानी अधिक न रखें अन्यथा बोये गये अंकुरित बीजों के सड़ने की संभावना रहती है| खेत में पानी के निकास की व्यवस्था करें और यह ध्यान रखें कि यथासंभव खेत न सूखें|

यह भी पढ़ें- बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

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