गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों का सब्जियों की फसलों में मुख्य स्थान प्राप्त है| गोभी वर्गीय सब्जी की फसलें भारत में पश्चिम बंगाल उडीसा, असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में मुख्य रुप से उगाई जाती हैं| आजकल गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों की खेती सर्दियों के मौसम में ही नहीं अपितु गर्मी तथा बरसात के मौसम में भी सफलता पूर्वक की जा रही है|
सघन खेती, बेमौसमी उत्पादन एवं वर्ष भर पैदावार लेने से गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में कीट एवं रोगों का प्रकोप भी तेजी से बढ़ा है, जिसके कारण किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है| सर्वेक्षणों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करने पर पता चला है कि बरसाती गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों पर कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप अत्याधिक होता है|
एक अनुमान के अनुसार 25 से 30 प्रतिशत गोभी वर्गीय सब्जी की फसल कीड़ों तथा बीमारियों के प्रकोप से बरबाद हो जाती है| इन कीट एवं रोग के नियंत्रण के लिए किसान बरसाती गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों मे जहरीले रसायनों के 10 से 12 तक छिड़काव कर देते हैं| एक अनुमान के अनुसार, देश के कुल खेती योग्य क्षेत्रफल में सब्जियों का क्षेत्रफल लगभग 3 प्रतिशत है|
जबकि कुल नाशीजीव रसायनों का 15 प्रतिशत प्रयोग सब्जियों पर ही हो रहा है| इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है, कि सब्जियों में रसायन का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है| जिसकी वजह से अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा हो रही हैं| इन जहरीले रसायनों के अवशेष सब्जियों की फसलों में पाए गए हैं|
अति सूक्ष्म होने के कारण रोगों से लड़ने वाले तंत्र इनकी पहचान नहीं कर पाते जिसके कारण ये मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं, साथ ही रासायनिक कीटनाशकों का प्रभाव पर्यावरण, भूमिगत जल स्रोतों, मृदा इत्यादि पर भी पड़ता है| कीटों में अवरोधी क्षमता का विकास, नये-नये कीटों एवं रोगों का बढ़ना, फसलों में उपस्थित प्राकृतिक शत्रुओं एवं लाभकारी कीड़ों का नष्ट होना भी इनके विपरीत प्रभावों में शामिल है| जिनके कारण इन सब्जियों के निर्यात और गुणवत्ता पर भी बुरा असर पड़ रहा है|
इसलिए उपरोक्त बताई गई समस्याओं के निराकरण, किसानों में जागरुकता लाने के लिये तथा रसायन रहित सब्जियों की बढ़ती मांग की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यह परम आवश्यक हो गया है, कि जहरीले रसायनों का प्रयोग कम करते हुए कीट तथा बीमारियों के प्रभावी नियंत्रण हेतु एक समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) कार्यक्रम व्यापक स्तर पर अपनाया जाए|
जिससे कि गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में लगने वाले कीट-रोग के सफल प्रबंधन के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त उत्पाद प्राप्त किया जा सके| इस लेख द्वारा इसी दिशा में बढ़ते हुए गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है| गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती के लिए यहाँ पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती कैसे करें
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गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में कीट नाशीजीव
हीरक पृष्ठ शलभ-
मादाएं पत्तियों पर हल्के पीले रंग के एकल अण्डे देती हैं| इल्लियां हल्के पीले हरे रंग की होती हैं, वयस्क छोटा व हल्के भूसर रंग का पतंगा होता है| अग्रिम पंखों के दोनों जोड़ों पर हीरे के आकार के तीन हल्के पीले सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, इसीलिए इसको ‘हीरक पृष्ठ कहते है|
नवजात लार्वे पत्ती के ऊतकों को खुरच कर उसका भोजन करते हैं, परन्तु विकसित लार्वे पत्तियों को काटकर उनमें छेद बना देते हैं| बंदगोभी इस कीट का सबसे पसंदीदा पोषक है| फूलगोभी पर होने वाली क्षति परोक्ष होती है फसल को होने वाली क्षति मुख्यतः पछेती शरद ऋतु में, अधिक होती है|
तम्बाकू की इल्ली-
उत्तरी क्षेत्र में यह कीट बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली गोभी वर्गीय सब्जियों की फसल को सर्वाधिक क्षति पहुंचाता है| वयस्क भंग गठीला व भूरे रंग का होता है, जिसके अग्र पंखों पर सफेद लहरदार धारियां होती हैं| यह कीट पत्तियों पर समूहों में अण्डे देता है, जो भूरे रंग के रोमों से ढके होते हैं| शिशु लार्वे झुंड में रहते हैं, ये पत्तियों का हरा पदार्थ खुरच डालते हैं|
इस प्रकार पत्ती पर केवल बाह्य पर्त रह जाती है और पत्ती जालीदार दिखाई देती है| विकसित लार्वे मुलायम पत्तियों एवं पौधों के नए भागों को बहुत तेजी से खाते हैं| लार्वा कालापन लिए हुए धूसर से लेकर गहरे हरे रंग का होता है तथा इसके शरीर के दोनों ओर गहरी लम्बवत् पट्टियां होती हैं|
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गोभी वर्गीय सब्जी में तना वेधक-
पतंगा हल्का धूसरपन लिए हुए भूरे रंग के होते हैं, वयस्क मादाएं पुरानी पत्तियों पर या पौधों के बढ़ने वाले भागों पर अण्डे देती हैं| इल्लियां भूरे रंग की होती हैं तथा इनके शरीर पर 4 या 5 हल्की गुलाबी-भूरी लम्बवत् धारियां होती हैं| इल्लियां आरंभ में पत्तियों को छेद देती हैं और उन्हें सफेद कागज के समान बना देती हैं|
जिन पर कीट का मल भर जाता है, बाद में ये इल्लियां तने में छेद करती हैं, जिससे अनेक प्ररोह बन जाते हैं| परिणामस्वरूप संक्रमित पौधे पाश्र्व प्ररोह बनाते हुए मर जाते हैं तथा उनमें गोभी का फूल नहीं बनता हैं| कीट जिस छेद से पौधे में प्रवेश करता है, वह रेशों और कीट के मल से ढका होता है|
बंदगोभी का चेपा-
चेपे का प्रकोप पछेती शरद ऋतु में गंभीर होता है| अच्छी बरसात होने पर यह गायब हो जाता है| इसकी कालोनियां अक्सर मुलायम प्ररोहों पर पाई जाती हैं और ऊतकों से रस चूस लेने के कारण पौधों की बढ़वार रुक जाती है| जिसके परिणामस्वरूप गोभियां घटिया गुणवत्ता वाली होती हैं|
गहन संक्रमण होने पर पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं| चेपा शहद जैसा एक पदार्थ उत्पन्न करते हैं, इसके कारण फंफूद विकसित होते हैं| जिससे संक्रमित पौधों पर एक काली परत जम जाती है| परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण और पौधे की वृद्धि में बाधा पहुंचती है|
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गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में रोग नाशीजीव
डैम्पिंग आफ (पौधगलन)-
इस शब्द का उपयोग नर्सरी अवस्था में विभिन्न फफूंदीयों द्वारा बीज तथा उभरती हुई पौधों को होने वाली क्षति का वर्णन करने के लिए किया जाता है| क्षति के परिणामस्वरूप फसल में पौधों की संख्या कम हो जाती है और कभी-कभी क्षति इतनी गंभीर होती है, कि फसल की पुनः बुवाई अपरिहार्य हो जाती है|
इसके प्रमुख लक्षण हैं, पौध का न उभरना जिसके परिणामस्वरूप बीज या पौधे सड़ जाते हैं या नई उगी हुई पौध अचानक मर जाती हैं| नई उभरने वाली पौधों की जड़ें एवं निचले तने मुलायम तथा जल युक्त हो जाते हैं और इनका रंग हल्की लालिमा लिए हुए भूरा होता है|
गोभी वर्गीय सब्जी में मृदुरोमिल फंफूद-
यह कीट बंदगोभी और फूलगोभी में अधिक पाया जाता है| वर्षा जितनी अधिक होगी या ओस जितनी अधिक पड़ेगी, फसल को उतनी ही अधिक गंभीर क्षति होगी| यह रोग सामान्यतः फसल की नर्सरी अवस्था में होता है, जबकि मुख्य खेत में अपेक्षाकृत इसका प्रकोप कम होता है|
इस रोग का प्रमुख लक्षण है, पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनीपन लिए हुए भूरे रंग के धब्बे, पत्ती की निचली सतह पर सामान्यतः सफेद-धूसर, मृदुरोमिल बढ़वार दिखाई देती है| आगे चलकर पत्ती कागज के समान होकर सूख जाती है| परिपक्व बंदगोभी पर मृदुरोमिल फंफूद गोभियों पर गहरे धब्बों के रूप में दिखाई देती है|
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आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग-
यह बरसात के मौसम में गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों का सर्वाधिक सामान्य कवकीय रोग है| पत्तियों पर छोटे व पीले रंग के धब्बेदार क्षेत्र दिखाई देते हैं| इन क्षेत्रों के बढ़ने पर गहरे रंग के धब्बों के साथ वलयाकार वृत्त भी बन जाते हैं| नम मौसम में इस फंफूद के कारण हल्के नीले रंग की बढ़वार होती है| जो उपरोक्त धब्बों के बीचोंबीच बन जाती है|
पुरानी पत्तियां इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं| कवकीय संक्रमण के परिणामस्वरूप फूलगोभी के शीर्ष पर भूरे रंग की विरंजकता उत्पन्न होती है| जब तापमान 25 से 30 डिग्री सैल्सियस के बीच होता है| तो ऐसे गर्म मौसम में रोग का प्रकोप बढ़ जाता है|
जीवाण्विक काला सड़न रोग-
यह रोग अन्य गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों की तुलना में फूलगोभी में अधिक गंभीर होता है| फसल बढ़वार की किसी भी अवस्था में पौधे इस रोग से संक्रमित हो सकते हैं| संक्रमण होने पर पौधों की निचली पत्तियां गिर जाती हैं तथा सूख भी सकती हैं| विकसित पौधों में संक्रमण कोरों पर जल बिजाणुओं के माध्यम से होता है| ऊतक पीले पड़ जाते हैं और हरिमाहीनता (क्लोरोसिस) केन्द्र की ओर बढ़ती है|
जिससे पत्ती पर अंग्रेजी के V की आकृति का एक मुरझाया हुआ गड्ढ़ा बन जाता है| गहन रूप से संक्रमित पत्तियां झड़ जाती हैं| रोग के प्रकोप से फल का बनना प्रभावित होता है और संक्रमित पौधों के फलों का आकार छोटा रह जाता है तथा गुणवत्ता घट जाती है| यदि रोग फसल की पछेती अवस्था में लगता है, तो फल सड़ भी जाते हैं|
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गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
बीज एवं नर्सरी अवस्था-
1. अच्छी जल निकासी के लिए और डैम्पिंग आफ (पौधगलन) आदि से बचने के लिए जमीन की सतह से लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी हुई क्यारी तैयार करें|
2. नर्सरी की बुवाई से पहले मिट्टी को 0.45 मिलीमीटर मोटी पालीथीन शीट से 2 से 3 सप्ताह तक ढ़ककर मिट्टी का सौरियकरण करें, इसके लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए|
3. क्यारी की मिट्टी को 50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर नीम की खली से उपचारित करें|
4. सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा के प्रभावी स्ट्रेन से 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारीत करें|
5. ट्राइकोडर्मा 1 प्रतिशत डब्ल्यू पी में 10 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी मिलाकर इस घोल में पौध को 30 मिनट डुबायें ताकि सड़न रोग से बचाव किया जा सके|
6. नर्सरी के दौरान रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा की 250 ग्राम मात्रा को 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई बारीक खाद में अच्छी प्रकार मिलाकर एक सप्ताह के लिए छोड़ दें, बाद में 3 वर्ग मीटर क्यारी में मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें|
7. गोभी वर्गीय सब्जी में डैम्पिंग आफ के नियंत्रण के लिए कैप्टान 75 डब्ल्यू पी 0.25 प्रतिशत या कैप्टान 75 डब्ल्यू एस 0.2 से 0.3 प्रतिशत की दर से प्रयोग करें|
8. बरसाती मौसम में पेंटिड बग और पछेती रबी मौसम में चेपा से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें|
9. यदि गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में 1 लार्वा प्रति पत्ती की दर से हीरक पृष्ठ शलभ उपस्थित हो तो 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से बैसिलस थुरिंजिनिसिस का छिड़काव करें|
10. मृदुरोमिल फंफूद के लिए 2.5 ग्राम प्रति लीटर जल की दर से मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू पी या मेटालेक्सिल, मेन्कोजेब 35 एससी का छिड़काव करें|
11. कभी-कभी बरसात के मौसम में नर्सरी में दिखाई देने वाले तना छेदक की रोकथाम के लिए एन एस के ई 5 प्रतिशत या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी का 1600 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
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मुख्य फसल-
1. गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में रोगो के फैलाव को कम करने के लिए पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 60 x 45 सेंटीमीटर रखें|
2. हीरक पृष्ठ शलभ और चेपा के लिए गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों की प्रत्येक 25 कतारों के बाद सरसों की एक कतार उगाएं (गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों की रोपाई के 15 दिन पूर्व सरसों की एक कतार बोई जाती है और गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों की रोपाई के 25 दिन बाद दूसरी कतार बोई जाती है) खेत में पहली और आखिरी कतार सरसों की होनी चाहिए| सरसों की फसल जैसे ही अंकुरित हो उस पर 0.1 प्रतिशत की दर से डाइक्लोरोवास 76 ई सी या क्यूनालफास 25 ई सी का 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
3. हीरक पृष्ठ शलभ के लिए रोपाई के 10 दिन बाद 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बैसिलस थुरिंजिनिसिस का छिड़काव करें और 3 प्रकाश पाश प्रति एकड़ की दर से लगाएं| जिससे कीट के वयस्क प्रकाश की ओर आकृषित होते हैं तथा पानी से भरी बाल्टी में गिर जाते हैं| इस प्रकार से 3 से 4 दिनों में अधिकांश कीट मर जाते हैं|
4. गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में हीरक पृष्ठ शलभ की निगरानी के लिए 2 फेरोमों प्रपंच प्रति एकड़ की दर से लगायें| प्रत्येक 20 से 25 दिन के अंतराल पर फेरोमों ल्युर को बदलें|
5. एक सप्ताह के अन्तराल पर 1.0 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से 3 से 4 बार अण्ड परजीव्याभ (पैरासिटायड) ट्राइकोग्रामाटोडी बैक्ट्री फसल में छोड़ें|
6. आल्टर्नेरिया पत्ती धब्बा के लिए मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू पी या जिनेब 75 डब्ल्यू पी की 1.5 से 2.0 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से 750 से 1000 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें| संक्रमित पत्तियों को पौधों से तोड़कर हटा देना प्रभावी होता है|
7. तना बेधक के लिए एन एस के ई 5 प्रतिशत या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी, 1000 ग्राम या मेलाथियान 50 ई सी, 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
8. हीरक पृष्ठ शलभ के नियंत्रण के लिए आरंभिक अवस्था (रोपाई के 15 से 25 दिन बाद) में एन एस के ई 5 प्रतिशत का छिड़काव करें, 10 से 15 दिन के अन्तराल पर प्रति पौधा कीट की एक से अधिक संख्या होने पर यह छिड़काव दोहराएं| एक फसल मौसम में अधिक से अधिक 3 से 4 एन एस के ई छिड़कावों की आवश्यकता होती है| जब एन एस ई का छिड़काव किया जाना हो तो पूरे पौधे की सतह पर भली प्रकार छिड़काव किया जाना आवश्यक है| छिड़काव के साथ किसी स्टिकर का प्रयोग करें, इससे चेपा का भी नियंत्रण होगा| इसके लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एन एस के ई पाउडर की आवश्यकता होगी|
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9. हीरक पृष्ठ शलभ के नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार साइपरमेथ्रिन 10 ई सी 650 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या स्पिनोसेड 2.5 एस सी, 10 ग्राम प्रति हेक्टेयर या इमेमेक्टिन बेन्जोएट 5 एस जी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरएन्ट्रानीलीप्रोल 18.5 एस सी 50 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या नोवेल्यूरान 10 ई सी 750 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इंडोक्साकार्ब 15.8 एस सी 266 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
10. फूलगोभी की पछेती फसल में चेपा के नियंत्रण के लिए 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एसिटामाईप्रिड 20 ई सी या डायमिथयोएट 30 ई सी 650 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 1000 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
11. गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों के पंखदार चेपा को फसाने के लिए पीले चिपचिपे ट्रैप लगाएं|
12. गोभी वर्गीय सब्जी में तम्बाकू की इल्ली के अण्ड समूहों और लार्वा को एकत्रित करें क्योंकि ये झुंड में रहने वाली प्रकृति के होते हैं|
13. वयस्क भूगों की क्रिया की निगरानी और इनके झुंडों को फंसाने के लिए 5 प्रति हेक्टेयर की दर से फिरोमान ट्रेप लगाएं|
14. जब सुडियाँ युवा हो तो एस एल एन पी वी (2 x 10\9 पी ओ बी) 250 एल ई प्रति हेक्टेयर की दर से 2 प्रतिशत गुड़ के साथ 2 से 3 बार छिड़काव करें|
15. तम्बाकू की इल्ली के नियंत्रण के लिए साईएन्ट्रानीलीप्रोल 10.26 ओ डी 600 ग्राम प्रति हेक्टेयर या ट्राईक्लोरफोन 50 ई सी 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवशयकतानुसार छिड़काव करें|
16. गोभी वर्गीय सब्जी में पेंटिड बग के नियंत्रण के लिए आवश्यकतानुसार डाईमिथोएट 30 ई सी का 660 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
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