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Home » Blog » मेटाराइजियम एनिसोप्ली का कृषि में उपयोग कैसे करें; जाने विधि

मेटाराइजियम एनिसोप्ली का कृषि में उपयोग कैसे करें; जाने विधि

December 22, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मेटाराइजियम एनिसोप्ली का कृषि में उपयोग कैसे करें

मेटाराइजियम एनीसोप्ली फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1 प्रतिशत डब्लू पी और 1.15 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली, को पहले एंटोमोफ्थोरा एनीसोप्ली कहा जाता था| यह मिट्टी में स्वतंत्र रूप से पाया जाता है एवं यह सामान्यतयः कीटों में परजीवी के रूप में पाया जाता है|

इसके कीट परजीविता लक्षण के कारण यह विभिन्न कीटों का रोग जनक है| एलीया मेकनिकोव ने मेटाराइजियम एनीसोप्ली पर पहला प्रयोग सन 1879 में गेहूं के बीटल, एनिसोप्लिया अस्ट्रिएका की रोकथाम के लिए किया था| यह प्रायः खपरा वर्ग (कोलिओप्टेरा–गण) के कीटों तथा टिड्डा, सफेद लट, सुन्डियों, दीमक, थ्रिप्स, मॉहूं आदि को रोगग्रस्त करता है|

यह पाया गया है, कि मेटाराइजियम एनीसोप्ली, अन्य आथ्रोपोडस के अतिरिक्त लगभग 200 कीटों (इन्सेक्टस) को रोगग्रस्त करता है| इसके बीजाणुओं का रंग गहरा हरा होता है और इससे संक्रमित बीमारी को मसकरडीन बीमारी कहा जाता है| क्योंकि इसके बीजाणुओं का रंग हरा होता है, इसलिए इस रोग को कीटों की हरी मसकरकीन बीमारी कहा जाता है|

मेटाराइजियम एनीसोप्ली मनुष्य या अन्य जानवरों को संक्रमित या विषाक्त नहीं करता है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता और अधिक तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग से 15 दिन पहले तथा बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए| मेटाराइजियम एनिसोप्ली की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए उपयोगी तकनीक

मेटाराइजियम एनीसोप्ली की क्रिया विधि

जब मेटाराइजियम एनीसोप्ली के बीजाणु लक्ष्य कीट के संपर्क में आते हैं, तो उनके आवरण से चिपक जाते हैं एवं उचित तापमान और आर्द्धता होने पर बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं| इनकी अंकुरण नलिका कीटों के श्वसन छिद्रों (स्पायरेक्लिस), संवेदी अंगों और अन्य कोमल भागों से कीटों के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं|

यह कवक कीटों के सम्पूर्ण शरीर में कवक जाल बनाकर कीट के शारीरिक भोजन पदार्थों को अवशोषित करके स्वतः वृद्धि कर लेता है| मेटाराइजियम एनीसोप्ली 50 प्रतिशत से कम नमी पर भी बीजाणु उत्पन्न कर लेते हैं| जिससे इनका जीवन चक्र विषम परिस्थितियों में भी चलता रहता है|

यह फफूंद द्वितीयक उपापचयी पदार्थ जैसे डेस्ट्रक्सन आदि जो विभिन्न सुन्डियों के लिए नाशक पदार्थ होते हैं, का श्राव करता है| जिससे संक्रमित कीड़े मर जाते हैं|

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मेटाराइजियम एनीसोप्ली के उपयोग की विधि

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग सफेद लट (बीटल), ग्रब्स, दीमक, सुन्डियों, सेमीलूपर, कटवर्म, पाइरिल्ला, मिलीबग और मॉहूं इत्यादि की रोकथाम के लिए मुख्यतयः गन्ना, कपास, मूंगफली, मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, आलू, सोयाबीन, नीबू वर्गीय फलों एवं विभिन्न सब्जियों में किया जाता है|

मिटटी उपचार- इसका प्रयोग मिटटी उपचार में भी किया जा सकता है, इस फफूंद का पाउडर समिश्रण को पहले 1 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाकर रखें| तत्पश्चात खेत की जुताई आदि करके खेत तैयार कर लें| इसके बाद तैयार की गयी 100 किलोग्राम गोबर की खाद को एक एकड़ क्षेत्रफल में समान रूप से प्रयोग करना चाहिए|

पर्णीय छिड़काव- मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग विभिन्न उपर्युक्त कीटों की रोकथाम के लिए भी कामयाब पाया गया है| इन कीटों से बचाव के लिए मेटाराइजियम एनीसोप्ली खड़ी फसल में प्रयोग किया जाता है| इसके लिए 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का विशेष उपयोग

1. खड़ी फसल में कीट रोकथाम हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें, जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है|

2. धान में भूरे फुदके के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1.15 प्रतिशत डब्लू पी 2.50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

3. बैगन में तना और फलबेधक के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1 प्रतिशत डब्लू पी, 2.5 से 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 500 से 750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

सूक्ष्मजीवियों के प्रयोग से लाभ-

1. सुक्ष्मजीवी वातावरण एवं फसल पर कोई भी विषाक्त प्रभाव नहीं छोड़ते हैं|

2. इनमें लक्षित कीट के विनाश की विशिष्टता होती है|

3. इनके प्रयोग से कीटों में प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है|

4. इनके प्रयोग से उन कीटों को भी नियंत्रित किया जा सकता है, जो सामान्य कीटनाशकों से नष्ट नहीं होते या फिर प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर चुके हों|

5. ये खेत में पाये जाने वाले मित्र कीटों के लिए सुरक्षित होते हैं|

6. यदि पारिस्थितिक तंत्र में अधिक छेड़-छाड़ या रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से विष प्रवाह न की जाय, अपितु सूक्ष्मजीवों को प्रयोग किया जाए तो लाभकारी कीटों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि होती है|

7. इस प्रकार के सूक्ष्मजीव खेतों की मिटटी में बने रहते हैं एवं अगली फसल के लिए भी लाभदायक होते है|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए पूरी प्रक्रिया

मेटाराइजियम एनीसोप्ली के प्रयोग में सावधानियाँ

1. सूक्ष्मजीवियों पर आधारित पेस्टीसाइड्स पर सूर्य की पराबैगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों का विपरीत प्रभाव पड़ता है, अतः इनका प्रयोग संध्या काल में करना चाहिए|

2. सूक्ष्म-जैविकों के बहुगुणन के लिए (विशेषकर कीटनाशक फफूदी के लिए) प्रयाप्त नमी और तापमान होना आवश्यक होता है|

3. सूक्ष्म-जैविक रोकथाम में आवश्यक कीड़ों की संख्या एक सीमा से ऊपर होनी चाहिए|

4. इनका आयु काल (सेल्फ लाइफ) कम होता है, यानि इनको खरीदने एवं प्रयोग करने से पूर्व इनके बनाने की तिथि पर अवश्य ध्यान देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की जैविक खेती, जानिए प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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