कद्दूवर्गीय सब्जियाँ बहुत महत्वपूर्ण और सब्जियों का एक बड़ा समूह है, जिसमें लौकी, कद्दु, तुरई, करेला, टिण्डा, खीरा, ककडी, तरबूज, खरबूजा आदि सब्जियों शामिल हैं| जिसकी बड़े पैमाने पर पूरे भारत में खेती की जाती है| यह बहुत ही लोकप्रिय और अत्यधिक लाभकारी सब्जियाँ हैं| जिनकी खेती ज्यादातर गर्मियों तथा खरीफ मौसम के दौरान की जाती है| भारत में कद्दूवर्गीय सब्जियों का हिस्सा कुल सब्जी उत्पादन का 5.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता लगभग 10 टन प्रति हेक्टेयर है, जो दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है|
कीटों व रोगों तथा सूत्रकृमीयों का बढ़ता प्रभाव संभावित उत्पादन के लिए प्रमुख अवरोधक है| जिसके कारण अक्सर उपज में काफी नुकसान होता है और फलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है| मौसम या बेमौसम की गई खेती के कारण, विभिन्न नाशीजीवों से 20 से 25 फीसदी तक आर्थिक नुकसान होता है| सालभर के विभिन्न मौसम के दौरान की गयी कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती के कारण, कीटों, रोगों और सूत्रकृमीयों को स्थायीकरण तथा गुणन के लिए सतत् और प्रचुर मात्रा में भोजन की आपूर्ति हो जाती है|
नाशीजीवों के कारण हुए नुकसान को कम करने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर अत्यधिक निर्भर हो रहे हैं एवं सब्जी उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा एक फसल मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जियों में 10 से 15 छिड़काव करना आम प्रचलन है| इस परिदृश्य में, कद्दूवर्गीय सब्जियों में कीटनाशक अवशेषों की मात्रा उच्च स्तर पर पाई जा रही है|
जो केवल उपभोक्ताओं के लिए ही नहीं खतरनाक साबित हो रही है, बल्कि निर्यात की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है| रसायनों पर अत्यधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप प्रतिरोधकता, पुनरुत्थान, पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के अतिरिक्त, किसानों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव देखे जा रहें हैं| जो नाशीजीवों तथा मित्र कीटों के बीच नाजुक संतुलन को प्रभावित करता है|
इन सभी समस्याओं को कम करने और किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा प्रमुख कद्दूवर्गीय फसलों के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन रणनीति विकसित एंव प्रमाणीत की गयी है|जो कीट एवं रोग रोकथाम हेतु काफी प्रभावी है| इस लेख में कद्दूवर्गीय सब्जियों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है|
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कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों के कीट
लाल पम्पकिन बीटल- यह लौकी का प्रमुख कीट है और कद्दू, ककड़ी तथा तरबूज को भी प्रभावित करता है| यह पत्ते, फूलों की कलियों और फूलों को लगातार खाती है| अंकुर चरण में इसके द्वारा हुआ नुकसान 75 प्रतिशत तक पहुँच सकता है| मृदा में उपस्थित भृंग, जडों तथा भूमिगत तनों को खाते हैं, जबकि वयस्क बीजपत्र व पत्तों को खाते हैं| जिससे पौधों का विकास रूक जाता है तथा अंतत पौधे मर जाते हैं| भृंग मलाईदार सफेद, जबकि वयस्क चमकीले नारंगी लाल होते हैं|
पर्ण सुरंगक- वयस्क पीले रंग के होते हैं, जबकि लार्वे सूक्ष्म, बिना पैर के व नारंगी पीले रंग के होते हैं, ये पत्ति की सुरंगों में प्यूपा बनाते हैं| लार्वे पत्तियों में सांप के आकार की सुरंगे बनाकर अंदर से खाते हैं| इनका अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं|
ककड़ी कीट- सुंडी पत्तियों के क्लोरोफिल भाग को कुतर के इकट्ठी करके उन्हें जालबद्ध कर अंदर से खाती है| यह फूलों को भी खाती है तथा विकासशील फल में छेद कर देती है| लार्वे गहरे हरे रंग के होते हैं एवं इनके शरीर के दोनों तरफ सफेद धारी होती है| वयस्क के पंख सफेद रंग के होते हैं तथा किनारों पर गहरे रंग के चौड़े धब्बे होते हैं| यह अंडे ज्यादातर पत्तियों की निचली सतह पर अकेले या छोटे समूहों में देते हैं|
फल मक्खी- यह हर जगह पाई जाती है एवं जुलाई से सितंबर माह के दौरान अधिक सक्रिय होती है| यह सभी कद्दूवर्गीय फसलों विशेषकर करेला तथा तरबूज को हानि पहुंचाती है| सगर्भा मादा सफेद, सिगार के आकार के अंडे कोमल, नरम फलों में 2 से 4 मिलीमीटर अंदर घूसाती है| नवजात शिशु फलों को अन्दर से खा जाते हैं एवं गैलरी बनाते हैं, जिस कारण फल सड़ जाते हैं तथा टेढ़े-मेढे हो जाते हैं| छेद कवक बैक्टीरिया के लिये प्रवेश बिंदु का काम करता है| प्यूपीकरण मृदा में सतह से 0.5 से 15 सेंटीमीटर निचे होता है|
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हड्डा बीटल- यह मामूली कीट है| जो अगस्त से अक्टूबर माह के दौरान सक्रिय होता है| लार्वा तथा वयस्क पत्तियों की ऊपरी सतह को खाते हैं| यह पत्ती को शिराओं के बीच में से खाते हैं तथा कभी-कभी शीरा मध्य भाग से पूर्णतया खाली हो जाती है| पत्ते, फीते की तरह दिखते हैं और भूरे रंग के होकर सूख कर गिर जाते हैं| इस प्रकार, पौधा पूरी तरह से कंकाल के रूप में आ जाता है|
सफेद मक्खी- यह करेला तथा लौकी का प्रमुख कीट है| अभ्रक व वयस्क दोनों, पौधों का रस मुख्य रूप से पत्तियों के नीचले भाग से चूसते हैं तथा मधुरस स्रावित करते हैं| जिससे पत्तियों के ऊपर काली फफूंद विकसित हो जाती है, जिसके कारण पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है| उनके भक्षण द्वारा हुए प्रत्यक्ष नुकसान के अलावा ये वायरल रोगों के वाहक के रूप में भी काम करते हैं|
मिरिड बग- लौकी में वयस्क तथा निम्फ, कोमल पत्तियों, प्ररोह, बढ़ रही फूल कलियों तथा नर्म फल में शूकिका से छेद करके रस चूसते हैं| खाने की वजह से, क्षतिग्रस्त फल छेद्रित दिखाई देते हैं तथा लाल भूरे रंग का द्रव्य बाहर आता है| इससे फल की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिसके कारण बाजार मूल्य कम हो जाता है|
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कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों के रोग
जड़ सड़न- जो कि राईजोक्टोनिया सोलेनाई की वजह से होता है, जमीन के ऊपर तथा निचे थोड़ा धंसा घाव होता है, भूमि के स्तर से ऊपर कम शक्ति, छोटे और विल्ट वाले पौधे होते है|
मृदुल आसिता- यह गंभीर रोगों में से एक है, जिसकी शुरूआत में पत्ती पर पानी से भीगे कोणीय धब्बे, उच्च आर्द्रता तथा मध्यम तापमान की अवस्था में बनते हैं और जल्दी ही पत्ती हरिमाहीन हो जाती हैं व अंतत पत्ती की निचली सतह बैंगनी रंग में बदल जाती है|
चूर्णिल आसिता- पत्तियों, तनों तथा लताओं पर सफेद पाऊडर जैसी विकसित फफूंद पाया जाना इसका मुख्य लक्षण है| यह रोग लगभग सभी कद्दूवर्गीय सब्जियों में पाया जाता है और जिसके कारण काफी हानि होती है| प्रभावित पत्तियां मुरझा कर सूख जाती हैं| चूर्णिल आसिता फलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है तथा फल का आकार और संख्या कम होने से पैदावार में कमी आ जाती है|
एंथ्राक्नोज- कद्दूवर्गीय सब्जियों में पीले रंग के पानी से भीगे धब्बे प्रकट होते है| जो बढ़कर काले भूरे रंग के सूखे धब्बे बन जाते है| जिसका केंद्र चौड़े छेद जैसे दिखाई देता है| फल पर धब्बे गोलाकार संकुचित तथा गहरे रंग के किनारों वाले होते हैं| जिसमे बहुतायात नुकीले आकार के फल निकाय होते हैं|
सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा- यह रोग सभी कद्दूवर्गीय सब्जियों में आता है| पत्तियों पे स्लेटी या पीले-भूरे रंग के छोटे धब्बे पिली आभा के साथ प्रकट होते हैं| यह धब्बे बडे होकर पुरी पती को घेर लेते है| धब्बों के केंद्र भंगुर हो जाते हैं तथा दरारें पड़ जाती हैं| सफेद केंद्र एवं भूरे रंग के धब्बों के साथ लक्षण डंठल तथा मुख्य तने पर भी देखे जाते हैं|
फ्यूजेरियम म्लानि- पीली, लटकी हुई पत्तियां, शिथिल तथा पूरा सूखा हुआ पौधा इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| कॉलर या जड़ क्षेत्र में संवहनी ऊतक भूरे रंग के हो जाते हैं|
विषाणु- यह बेगोमो विषाणु सफेद मक्खी द्वारा प्रेषित होता है| जो कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए प्रबल अवरोध है| जिसके कारण पत्ती मोड़क, पीला मोजेक तथा स्टनटिंग जैसे रोग विकसित होते हैं| ककडी मोजेक का प्ररूपी लक्षण मोजेक कोमल पत्तियों पर प्रकट होता है| जिसमे पत्तियों पर एकांतर में गहरे हरे रंग के साथ हल्के हरे रंग के धब्बे होते हैं|
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कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों के सूत्रकृमि
मूल ग्रन्थि सूत्रकृमि- कद्दूवर्गीय सब्जियों में सूत्रकृमि ग्रसित पौधों की जड़ों में ग्रन्थियाँ बन जाती हैं| जो की जड़ गांठ या गाल के नाम से जानी जाती हैं| जिसके कारण पत्तियों में पीलापन, पत्तों का झड़ना, अपरिपक्वता, मुझन तथा पौधों का बौनापन इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं| सूत्रकृमि संक्रमित पौधों की पत्तियां छोटी रह जाती हैं और फूल कम होते हैं|
कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में पोषक तत्वों की कमी
बोरोन या सल्फर की कमी- बोरोन या पोटाशियम की कमी के लक्षण करेला व ककड़ी में आम हैं| पोटाशियम की कमी के कारण ककड़ी के फल के स्तंभ अंत का फैलाव नहीं हो पाता है| बोरोन की कमी से बीज बनने तथा फल विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है और करेले में फल शुन्डाकार और मुड़ जाते हैं|
कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
कद्दूवर्गीय सब्जियों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
1. ट्राईकोडर्मा के सक्षम स्ट्रेन से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें तथा मृदा उपचार के लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 2.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं|
2. फसल की प्रारम्भिक अवस्था में हड्डा बीटल, लौकी के लाल पम्किन बीटल के लिए नीम 300 पी पी एम का 10 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करेले पर 2 से 3 छिड़काव करें|
3. लौकी तथा ककड़ी की प्रारम्भिक अवस्था में लाल पम्किन बीटल के प्रबंधन के लिए डी डी वि पी- 76 ई सी का 500 ग्राम सतत प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार अछिड़काव करे|
4. करेले के ककड़ी मोथ से सुरक्षा के लिए बेसिलस थुजान्सेस वर कुस्ताकी 2 डब्ल्यू पी का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 2 छिड़काव करें|
5. करेले में ककड़ी मोथ से सुरक्षा के लिए कलोरएनट्रानिलिप्रोल 18.5 एस सी का 20 से 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें|
6. फल मक्खी के बृहत् क्षेत्र में नियंत्रण के लिए ल्योर टैप 10 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें| प्लाईवुड के छोटे टुकड़े को इथनोल + क्यूल्योर + कीटनाशी (डी डी वि पी) 8:2:1 के अनुपात के घोल में 48 घंटे तक डूबोयें|
7. कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी के प्युपे को धूप के संपर्क में लाने के लिए मिट्टी की निराई-गुड़ाई करें|
8. कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी के प्रबंधन के लिए पीले रंग के चिपचिपे ट्रैप को 10 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें|
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9. कद्दूवर्गीय सब्जियों में समय-समय पर फल मक्खी से संक्रमित फलों को एकत्रित कर के नष्ट करें|
10. चूर्णिल असिता, पत्ती धब्बा तथा एन्थाक्नोज के नियंत्रण के लिए मन्कोजेब 75 डब्ल्यू पी या जिनेब 75 डब्ल्यू पी का 0.2 प्रतिशत की दर से सुरक्षात्मक छिड़काव करें|
11. मृदुल आसिता तथा नमी में कमी लाने और हवा के आसान आवागमन के लिए ककड़ी को बांस के सहारे या ग्रीन हाऊस में लगाएं|
12. सफेद मक्खी तथा थ्रिप्स के लिए क्रमशः डेल्टा और नीले रंग के टैप 5 प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें| इसके बाद नीम का छिड़काव किया जा सकता है|
13. कद्दूवर्गीय सब्जियों में किसी भी रासायनिक कीटनाशक का छीड़काव करने से पहले, सभी परिपक्व फल काट लेने चाहिए|
14. सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए नीम खली का 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार प्रयोग करें|
15. ककड़ी में मृदुल आसिता की रोकथाम के लिए साइमोक्सनिल 8 प्रतिशत + मेनकोजेब 64 प्रतिशत का 0.3 प्रतिशत और घेरकीन में फेनामिदोने 10 प्रतिशत +मेनकोजेब 50 डब्ल्यू जी 0.3 प्रतिशत या फमोक्सादोने 16.6 प्रतिशत साइमोक्सनिल 22.1 प्रतिशत का 0.1 प्रतिशत की दर से आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें|
16. चूर्णिल असिता के प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत तथा एन्थ्राक्नोज के नियंत्रण के लिए थायोफिनेट मीथाईल 70 डब्ल्यू पी का 1430 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी की दर से आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें|
17. मिट्टी में बोरोन की कमी दूर करने के लिए 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स का प्रयोग करें या बोरेक्स का 100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी की दर से पर्ण छिड़काव भी किया जा सकता है|
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कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में मित्र कीट संरक्षण
कद्दूवर्गीय सब्जियों में नाशीजीवों के मित्र कीटों को रासायनिक कीटनाशकों के अवांछित तथा अत्यधिक छिडकाव से संरक्षित किये जाने चाहिए|
कद्दूवर्गीय फसलों में नाशीजीव प्रतिरोधी किस्में
कद्दूवर्गीय सब्जियों की सहिष्णु तथा मध्यम प्रतिरोधी संकर किस्में इस प्रकार है, जैसे-
तरबूज- तरबूज की अरका मानिक किस्में एन्थ्राक्नोज, मृदुल आसिता और चूर्णिल आसिता नाशीजीव प्रतिरोधी है|
खरबूजा- खरबूजा की अरका राजहंस, पंजाब रसीला और डी वि रा म- 1 चूर्णिल आसिता, मृदुल आसिता, ककड़ी हरा चितकबरा मोजेक विषाणु नाशीजीव प्रतिरोधी है|
लौकी- लौकी की नरेंदर रश्मि चूर्णिल आसिता और मृदुल आसिता नाशीजीव प्रतिरोधी है|
ककड़ी- ककड़ी की पि सी यु सी एच- 3 चूर्णिल आसिता और मृदुल आसिता नाशीजीव प्रतिरोधी है|
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