बैंगन सब्जी वर्ग की एक प्रमुख फसल है| इसकी खेती अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र को छोड़कर लगभग सभी स्थानों पर की जाती है| बैंगन की खेती वर्ष में तीन बार वर्षा,शरद और ग्रीष्म ऋतु की फसल के रूप में की जाती है| बैंगन की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए आज अनेकों उन्नतशील किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन फसल में रोग और कीटों का प्रकोप फलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता को प्रभावित करता है| जिससे किसानों को बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलती|
बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) द्वारा, रासायनिक कीटनाशकों का कम से कम इस्तेमाल कर, रोग और कीटों की सफलतापूर्वक रोकथाम कर बेहतर पैदावार ली जा सकती है| इस लेख में बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें की तकनीक का उल्लेख किया गया है| बैंगन की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की उन्नत खेती कैसे करें
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बैंगन की फसल में कीट नाशीजीव
हद्दा भृंग- वयस्क भृंग गोल, पीलापन लिए हुए भूरे रंग के होते हैं, जिन पर अनेक काले धब्बे पाए जाते हैं| इसके गिडार हल्के पीले रंग के होते हैं और इनके पूरे शरीर पर कांटे होते हैं| इनके अण्डे सिगार के आकार के, हल्के पीले रंग के होते हैं तथा आमतौर पर अंडे समूहों में देते हैं, गिडार तथा वयस्क पत्तियों का पर्णहरिम (क्लोरोफिल) खुरच डालते हैं, हरे पदार्थ को खाते हैं और पत्तियों को बिल्कुल जालीदार बना देते हैं, जिससे उनकी आकृति सीढ़ी के समान दिखाई देती है, बाद में प्रभावित पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं|
बैंगन की फसल में चेपा- बैंगन की फसल में इसके शिशु और वयस्क पत्तियों का रस चूस लेते हैं तथा प्रभावित पौधे पीले पड़ते हुए विरुपित होकर सूख जाते हैं| चेपा अत्यधिक मात्रा में शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ स्रवित करते हैं, जिस पर फंफूद उग जाते हैं एवं इस प्रकार पौधे के प्रभावित भागों पर एक मोटी काली पर्त जम जाती है| जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है|
पत्ती मोड़क- लार्वे पत्तियों को मोड़ देते हैं और उनके हरे भाग को खा जाते हैं तथा पत्तियों की भीतरी पर्तों में बने रहते हैं और इस प्रकार छुपकर जीवन व्यतीत करते हैं| अन्ततः मुड़ी हुई पत्तियां मुरझा कर सूख जाती हैं|
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पत्ती फुदका- शिशु वयस्क पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं| इनकी विशेषता यह है, कि ये अपने शरीर के संदर्भ में तिरछे चलते हैं| ये पत्तियों की निचली सतह में पत्तियों का रस चूसते हैं| संक्रमित पत्तियां ऊपर की ओर ऐंठ जाती हैं तथा बाद में पीली पड़कर मुरझाने लगती हैं| कीट के प्रकोप से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, फुदका छोटी पत्ती जैसे माइकोप्लाज्मा एवं विषाणु रोगों के वाहक भी हैं|
प्ररोह व फल वेधक- यह बैंगन की फसल का सर्वाधिक विध्वंसकारी नाशीजीव है| इसके शलभ के शरीर पर विशेष प्रकार के काले भूरे धब्बे होते हैं, जबकि अग्र पंखों पर सफेद बिन्दिया होती हैं| लार्वे हल्के गुलाबी रंग के होते हैं, आरंभिक अवस्थाओं में लार्वा प्ररोहों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे प्ररोहों के बढ़वार स्थल नष्ट हो जाते हैं|
प्ररोहों का मुरझा कर झुक जाना इस नाशीजीव के प्रकोप का विशिष्ट लक्षण है| लार्वे फलों में उनकी अंखुड़ी के माध्यम से प्रवेश करते हैं| इस प्रकार फलों पर कीट के आक्रमण का कोई बाहरी लक्षण नहीं दिखाई देता है| बाद में ये लार्वे फलों में छेद कर देते हैं, जो निकास छिद्र के रूप में दिखाई देते हैं| ऐसे फल खाने योग्य नहीं रह जाते हैं और उनका बाजार में कोई मूल्य नहीं मिलता है|
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बैंगन की फसल में रोग नाशीजीव
बैंगन की फसल में डैम्पिंग ऑफ- बैंगन की फसल में यह रोग पौधे की अविकसित व विकसित दोनों अवस्थाओं में होता है| अविकसित अवस्था में बीज निकलने से पहले ही सड़ जाता है| जबकि विकसित अवस्था में पौध मिटटी की सतह पर ही गिर जाता है|
फोमाप्सिस झुलसा व फल सड़न- यह बैंगन की फसल का गंभीर रोग है, जो इसके पौधों की पत्तियों और फलों को संक्रमित करता है| पौध पर संक्रमण होने की अवस्था में यह ‘डैम्पिंग आफ’ के लक्षण दर्शाता है| पत्तियों पर यह रोग छोटे गोल धूसर से भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देता है| संक्रमित फलों पर छोटे धसे हुए धब्बों के रूप में लक्षण प्रकट होते हैं|
छोटी पत्ती रोग- इसका प्रमुख लक्षण पौधों की पत्तियों का छोटा हो जाना है| पत्तियों का डंठल इतना छोटा होता है, कि पत्तियां तने से चिपकी हुई दिखाई देती हैं| संक्रमित पौधों की पत्तियां संकरी, मुलायम, चिकनी और पीले रंग की हो जाती हैं| नव विकसित पत्तियां ओर भी छोटी होती हैं| तने की अन्तरगांठे भी छोटी पड़ जाती हैं| अग्रस्थ कलिकाएं बड़ी हो जाती हैं, लेकिन पौधों के पर्णवृन्त और पत्तियां छोटी ही बनी रहती हैं, जिससे पौधा झाड़ीनुमा दिखाई देता है| ऐसे पौधों पर फलन बहुत कम होता है|
लाल मकड़ी कुटकी- शिशुओं और वयस्कों की कालोनियां पत्तियों की निचली सतह पर रहती हुईं उनका भरण करती हैं| जैसे-जैसे कुटकियों की संख्या बढ़ती है, सफेद शूकियों की संख्या भी बढ़ जाती है| अंततः पत्ती विरंजित होकर सूख जाती है| कुटकियां पत्तियों की निचली सतह पर बड़ी संख्या में बनी रहती हैं, संक्रमित पत्तियां धीरे-धीरे ऐंठने लगती हैं तथा अंततः सिकुड़ती हुई भंगुर हो जाती हैं| भारी संक्रमण होने पर फल भी प्रभावित होते हैं| ये कुटकियां महीन जाल भी बनाती हैं|
सूत्रकृमि जड़गांठ सूत्रकृमि- सर्वाधिक विशेष लक्षण पौधों की जड़ प्रणाली में गांठों या पुटियों का बनना है| ये पुटियां एकल या अनेक होती हैं, सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियों का हरापन गायब हो जाता है तथा मुरझाने के लक्षण दिखाई देते हैं| फलन भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है| प्रभावित खेत पर पौधों के धब्बे जैसे दिखाई देते हैं|
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बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव नियंत्रण
नर्सरी अवस्था-
1. जुलाई से अगस्त के दौरान ढेंचा का हरी खाद के रूप में प्रयोग करें|
2. आर्द्र गलन आदि को रोकने, और अच्छी जल निकासी के लिए जमीन से 10 सेंटीमीटर ऊंची क्यारी बनाकर ही नर्सरी तैयार करें|
3. जून के महीने में मिटटी सौर्गीकरण के लिए 3 सप्ताह तक 0.45 मिलीमीटर मोटी पालीथीन की चादर बिछाएं, जिससे मृदावाहित कीटों, जीवाणु मुरझान जैसे रोगों और सूत्रकृमियों को कम करने में सहायता मिलती है| लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि सौर्गीकरण के लिए मिटटी में पर्याप्त नमी मौजूद हो|
4. 3 किलोग्राम अच्छी गली-सड़ी गोबर की खाद में 250 ग्राम कवकीय विरोधी ट्राइकोडर्मा को मिलाएं और कल्चर को समृद्ध बनाने के लिए तीन सप्ताह तक ऐसे ही रखा रहने दें, 21 दिनों के पश्चात् इस सामग्री को 3 वर्ग मीटर की क्यारी में मिलाएं|
5. बैंगन की फल वेधक प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें|
6. डैपिंग आफैं और जड़ गलन के नियंत्रण हेतू ट्राइकोडर्मा 1 प्रतिशत के साथ बीजोपचार (5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से), नर्सरी उपचार (400 वर्ग मीटर क्षेत्र का 250 ग्राम प्रति 50 लीटर पानी की दर से), पौध जड़ उपचार (1 प्रतिशत 15 मिनट तक) करें तथा आवशयकतानुसार कैप्टान 75 डब्लयु पी से 0.25 प्रतिशत की दर से मिटटी का उपचार करें|
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मुख्य फसल-
1. बैंगन की फसल में सफेद मक्खी आदि के लिए पीले चिपचिपे फंदे या डेल्टा फंदे 2 से 3 प्रति एकड़ की दर से लगाए|
2. चूसक नाशीजीवों और पत्ती मोड़क कीट को नियंत्रित करने के लिए एक-एक सप्ताह के अन्तराल पर एन एस के ई 5 प्रतिशत के 2 से 3 छिड़काव करें|
3. यदि सफेद मक्खी और अन्य चूसक कीट नाशीजीवों का प्रकोप अब भी आर्थिक हानि सीमा से अधिक हो तो 250 से 340 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में फेनप्रोपेथ्रिन 30 ई सी या डाइफेनथाओयूरान 50 डब्ल्यू पी 600 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या क्युनाल्फोस 25 ई सी का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या फोस्फामिडोन 40 एस एल 750 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 750 लीटर पानी के साथ या स्पाईरोमेसिफेन 22.9 एस सी 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर (कुटकी) को 500 लीटर पानी के घोल में छिड़काव करें|
4. बैंगन की फसल में छोटी पत्ती रोग से प्रभावित पौधों की छंटाई की जानी चाहिए|
5. वेधक शलभों को बड़े पैमाने पर पाश में फंसाने के लिए 100 प्रति हेक्टेयर की दर से गंधपाश लगाए जाने चाहिए, प्रत्येक 15 से 20 दिन के अन्तराल पर पुराने लासे के स्थान पर ताजा लासा लगाए|
6. बैंगन की फसल में आरंभिक अवस्थाओं में समय-समय पर क्षतिग्रस्त प्ररोहों को काट देना चाहिए|
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7. बैंगन की फसल में 10 प्रति एकड़ की दर से पक्षियों को आकर्षित करने के लिए पक्षी ठिकाने बना देने चाहिए|
8. एन एस के ई के छिड़कावों से भी बेधक कीटों का प्रकोप बहुत कम हो जाता है| नीम के तेल (1 प्रतिशत) का प्रयोग करना भी वेधकों के संक्रमण को कम करने में सहायक सिद्ध होता है, यद्यपि यह बहुत कम प्रभावी पाया गया है|
9. प्ररोह और फल बेधक के लिए एक-एक सप्ताह के अन्तराल पर 4 से 5 बार 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से टी. ब्रेसीलियेन्सिस के अण्ड परजीव्याभ को छोड़ें|
10. सूत्रकृमियों तथा वेधकों से होने वाली क्षति को कम करने के लिए रोपाई के 25 तथा 60 दिन बाद पौधों की कतारों के साथ-साथ मिट्टी में 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली का उपयोग करें| यदि हवा की गति तेज हो और तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो तो नीम की खली का उपयोग न करे|
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11. प्ररोह और फल वेधक के प्रभावी नियंत्रण के लिए 15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार क्लोरएंट्रानीलीप्रोल 18.5 एस सी का 200 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या ईमेमेकटिन बेन्जोएट 5 एस सी का 200 ग्राम या ट्राईकलोरफोन 50 ई सी का 1.0 किलोग्राम या फोसेलोन 35 ई सी का 1500 मिलीलीटर या लेम्बडा सायहेलोथ्रिन 5 ई सी का 300 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में 15 दिन के नियमित अंतराल पर छिड़काव करें|
12. बैंगन की फसल में फोमाप्सिस और छोटी पत्ती रोग से संक्रमित पौधों को एकत्रित करके नष्ट करें और खेत को साफ-सुथरा रखें|
13. फोमाप्सिस प्रभावित फल तथा पर्ण धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए खेत में 1.5 से 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिनेब 75 डब्ल्यू पी 750 से 1000 लीटर पानी के घोल में या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी के घोल के साथ छिड़काव करें|
14. बैंगन की फसल लगातार उगाने से बेधकों और मुझन रोग का संक्रमण अधिक होता है| अतः गैर सोलेनेसी किस्मों की फसलों को अपनाते हुए उचित फसल क्रम का पालन करना चाहिए|
बैंगन की फसल में मित्र कीटों का संरक्षण
बैंगन में फसल प्रणाली में सामान्य रूप से दिखाई देने वाले प्राकृतिक शत्रुओं की रक्षा की जानी चाहिए और इसके लिए रासायनिक दवाइयों का अवांछित और अतिरिक्त छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए|
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