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Home » ब्लॉग » ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है, जानिए उपयोग की पूरी प्रक्रिया

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मिट्टी जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है| यह स्वतंत्र जीवन वाला कवक है, जो कि मिट्टी तथा जड़ पारिस्थितिक तंत्र में सामान्य है| यह जड़, मिट्टी और पत्ते के वातावरण में परस्पर प्रभाव डालता है| यह विभिन्न विधियों द्वारा जैसे पारिस्थितिक, रोग जनकों की वृद्धि संक्रमण एवं अस्तित्व को कम कर देता हैं|

फसलों में लगने वाले जड़ गलन, उखटा, तना गलन इत्यादि मिट्टी जनित फफूद रोगों की रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा नामक मित्र फफूंद बहुत उपयोगी है| बीजोपचार, जड़ोपचार और मिट्टी उपचार में इसका प्रयोग करते हैं, जिससे फसलों की जड़ों के आस-पास इस मित्र फफूंद की भारी संख्या कृत्रिम रुप से निर्मित हो जाती हैं|

ट्राईकोडर्मा मिट्टी में स्थित रोग उत्पन्न करने वाली हानिकारक फफूंद की वृद्धि रोककर उन्हें धीरे-धीरे नष्ट कर देता है| जिससे ये हानिकारक फफूंद फसल की जड़ों को संक्रमित कर रोग उत्पन्न करने में असमर्थ हो जाती हैं|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव

ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार विधि

उपचारित किये जाने वाले बीजों को किसी साफ बर्तन में रखें और बीजों पर थोड़े से पानी के छोटे डालें| अब बीजों में 4 से 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति किलोग्राम बीज दर की दर से मिलाकर अच्छी तरह से उलट-पलट दें, ताकि पाउडर की एक समान परत बीजों पर चारों ओर चिपक जाए| अब इस उपचारित बीज की बुवाई करें|

ट्राइकोडर्मा से पौधशाला उपचार

नर्सरी की बुआई से पूर्व 5 ग्राम वर्ग मीटर क्षेत्र की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर को मिट्टी में मिलाकर उपचारित करें और फिर बुआई करें|

ट्राइकोडर्मा से मिट्टी उपचार

बुआई से पहले अन्तिम जुताई से पहले 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 75 किलोग्राम कम्पोस्ट या गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हैक्टर खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें और बाद में बुआई करें|

यह भी पढ़ें- गोमूत्र का कृषि में महत्व, जानिए कीटनाशक लाभ और उपयोग

ट्राइकोडर्मा से फसल में उपचार

ट्राइकोडर्मा झुलसा एवं पत्ती धब्बा रोगों के नियंत्रण में भी उपयोगी है, ऐसे रोगों में सुरक्षा हेतु खड़ी फसल में 4 से 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा पाउडर का प्रति लीटर पानी में घोल के हिसाब से छिड़काव करें|

ट्राइकोडर्मा के लाभ

1. रोग नियंत्रण

2. पादप वृद्धिकारक

3. रोगों का जैव रासायनिक नियंत्रण

4. ट्रांसजेनिक पौधे

5. बायोरेमिडिएशन

यह भी पढ़ें- न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस एवं बीटी का खेती में उपयोग

फसलों की संस्तुति

ट्राइकोडर्मा सभी पौधे और सब्जियों जैसे फूलगोभी, कपास, सोयाबीन, राजमा, चुकन्दर, बैंगन, केला, टमाटर, मिर्च, आलू, प्याज, मूंगफली, मटर, सूरजमुखी और हल्दी आदि के लिये उपयोगी है|

सावधानियां

1. मिट्टी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग करने के 4 से 5 दिन बाद तक रासायनिक फफूदीनाशक का उपयोग न करें|

2. सूखी मिट्टी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग न करें|

3. ट्राईकोडर्मा के विकास और अस्तित्व के लिए नमी बहुत आवश्यक है|

4. ट्राईकोडर्मा उपचारित बीज को सीधा धूप की किरणों में न रखें|

5. ट्राईकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद को लंबे समय तक न रखें|

6. प्रयोग वैध तिथि के अंदर ही कर लेना चाहिए|

7. इसका प्रयोग क्षारीय भूमि में कम लाभकारी है|

यह भी पढ़ें- फ्लाई ऐश (राख) का खेती में महत्व, जानिए इसकी आवश्यकता एवं मिट्टी में उपयोग

तरीकों की अनुशंसा

1. ट्राइकोडर्मा कार्बनिक खाद के साथ उपयोग कर सकते हैं, कार्बनिक खाद को ट्राईकोडर्मा राइजोबियम, एजो स्पाई रिलियम, बेसीलस सबटीलिस, फास्फोबैक्टिरिया के साथ उपयोग कर सकते हैं|

2. ट्राइकोडर्मा बीज या मेटाक्सिल या थाइरम के साथ उपयोग कर सकते हैं|

3. टैंक मिश्रण के रूप में रासायनिक फफूदीनाशक के साथ मिलाया जा सकता है|

संक्षिप्त विवरण

1. भूमि जनित और बीज जनित रोगों से फसल बचाने में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|

2. मिट्टी के लाभदायक जीवों और मनुष्य व अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालता है|

3. मिट्टी, हवा, जल आदि में प्रदूषण नहीं फैलाता है|

4. उत्पादों का स्वाद बढ़ता है और रोगों में इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं पनपती है|

5. इसके प्रयोग से उत्पादित फसल, सब्जियाँ, फल आदि लम्बे समय तक ताजे बने रहते हैं|

6. इसका प्रयोग अनाज, दलहन, तिलहन, मसाले, औषधियाँ, फूलों, पान, सब्जियों और फलों आदि सभी प्रकार की फसलों पर किया जा सकता है|

7. इसके प्रयोग से आर्द्र गलन, बीज सड़न, जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, मूल ग्रन्थि आदि रोगों में पूर्ण या आंशिक फायदा पहुंचाता है|

यह भी पढ़ें- राइजोबैक्टीरिया का उपयोग करें, फसल उत्पादन वृद्धि एवं मृदा स्वास्थ्य सुधार हेतु

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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