बीज उत्पादन की विधियां, जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि किसान को खेती करने के लिए बहुत से सामग्री की आवश्यकता होती है| उन सामग्री में एक बहुत ही अहम सामग्री है, बीज क्योंकि जब हमारा बीज ठीक रहेगा तभी फसल उत्पादन दर अच्छी होगी|
आमतौर पर यह देखा जा रहा है, कि किसान बन्धु अपने पहले वर्ष की फसल से ही कुछ बीज बचाकर अगले साल की बुवाई के लिए रख लेते हैं| जिसकी गुणवत्ता दर प्रति वर्ष कम होती जाती है, जिससे उनको फसल में उचित लाभ भी नहीं मिलता है| आमतौर पर यह देखा गया है, कि किसान के खेती में उपज दर और खेती शोध संस्थान की उपज दर में लगभग 5 प्रतिशत का अन्तर हो जाता है|
इस अन्तर को कम करने के लिए उन्नत गुणवत्ता के बीज की प्रमुख भूमिका है| अत: इसके लिए बहुत जरूरी है, कि किसान भाईयों और बहनों को वैज्ञानिक पद्धति से बीज उत्पादन की विधि की जानकारी हो| अच्छे बीज उत्पादन के लिए बीज स्रोत बुवाई का अनुकूल समय, बुवाई की निश्चित मात्रा, पृथक्करण दूरी इत्यादि प्रमुख बातों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है|
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बीज उत्पादन के स्रोत
खेती के लिए बीज उत्पादन के दौरान आनुवंशिक शुद्धता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है, कि मूल (बीज) किसी प्रमाणीकरण संस्था द्वारा मान्य स्रोत से लिया जाये, जिससे शुद्धता के साथ-साथ उसकी वंशावली एवं वर्ग भी ज्ञात रहे| आधार बीज उत्पादन के लिये प्रजनक बीज एवं प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए आधार बीज का प्रयोग करना चाहिए|
बीज उत्पादन के लिए खेत का चुनाव
बीज उत्पादन फसल के लिये खेत का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि पिछले वर्ष वह फसल न बोयी गयी हो, जो इस वर्तमान वर्ष में बोना चाहते हैं| खेत में स्वयं उगे अन्य पौधों और खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए, साथ ही साथ पृथक्करण दूरी, मिट्टी की किस्म और उर्वरता आदि की भी जांच करा लें|
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बीज उत्पादन के लिए पृथक्करण दूरी
बीज फसल को पर परागण द्वारा होने वाले संदूषण कटाई एवं गहाई के समय अन्य बीजों के मिश्रण और रोगों के फैलाव की रोकथाम के लिए निश्चित दूरी पर रखना चाहिए, जो बीज फसल की परागण विधि एवं बीज वर्ग (आधार या प्रमाणित बीज) के आधार पर रखना चाहिए| यानि की पर स्वयं परागित फसलों में 3 मीटर तथा अर्ध पर-परागित फसलों में 30 मीटर और परपरागित फसलों में 200 मीटर रखा जाता है| उदाहरण के लिए निचे सारणी देखें-
फसल | आधार बीज (मीटर) | प्रमाणित बीज (मीटर) |
गेहूं, जौ, धान | 3 | 3 |
मूंग, अरहर, मटर, मसूर, चना | 10 | 5 |
सोयाबीन, मूंगफली | 3 | 3 |
सरसों | 100 | 50 |
टमाटर | 50 | 25 |
गाजर | 1000 | 800 |
पर परागण फसल मक्का, बाजरा, सूरजमुखी और मिर्च | 400 | 200 |
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बीज उत्पादन के लिए खेत की तैयारी
बीज उत्पादन हेतु खेत की तैयारी अच्छी होनी चाहिए, जिससे फसल के बीजों का अंकुरण अच्छा होता है| इसके लिए खेत की भली-भांति जुताई करनी और जल प्रबंधन सुचारू रूप से होना चाहिए|
बीज उत्पादन के लिए बीज बुआई
बीज उत्पादन हेतु फसल की बुवाई उपयुक्त समय पर उचित नमी अवस्था में की जानी चाहिए| बीज फसल में बीज दर (वाणिज्य फसल) की अपेक्षा कम रखी जाती है तथा पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी भी अधिक रखी जाती है| जिससे अवांछनीय पौधे के निकालने में सुविधा रहे| कभी-कभी बीजों की प्रसुप्ति समाप्त करने के लिए जीवाणु निवेशन एवं बीज जन्य कीड़ों और बीमारियों की रोकथाम के लिए उपचारित करने की आवश्यकता होती है|
बीज उत्पादन के लिए बीज की मात्रा
बीज उत्पादन हेतु मुख्य फसलों की बीज मात्रा प्रति हेक्टेयर इस प्रकार है, जैसे-
फसल | बीज की मात्र (किलोग्राम) |
गेहूं | 100 |
मक्का | 20 |
धान | 16 से 20 |
काला चना | 60 |
मूंग | 15 से 20 |
अरहर | 10 से 15 |
मसूर | 25 से 30 |
सूरजमुखी, मूंगफली | 70 से 75 |
सोयाबीन | 75 |
टमाटर | 400 से 500 ग्राम केवल |
गाजर | 400 ग्राम केवल |
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बीज उत्पादन के लिए खाद और उर्वरक
बीज उत्पादन फसल में पौधों एवं दानों के उचित विकास के लिए नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्व यथा समय पर्याप्त मात्रा में देने की आवश्यकता होती है| जो जैविक खादों और उर्वरकों द्वारा पूरी की जा सकती है| कभी-कभी कुछ अन्य पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्निशियम, लोहा, तांबा, जस्ता, गंधक, बोरॉन, मैंगनीज तथा मोलिब्डनम की प्रति भी भूमि परीक्षण में इनकी कमी मिलने पर की जाती है|
जैविक खाद (गोबर की खाद, कम्पोस्ट आदि) बुवाई से एक माह पहले खेत में मिला देनी चाहिए| नत्रजन वाले उर्वरक 2 से 3 बार बुआई के समय 30 से 40 दिन बाद और पुष्पन से पूर्व देनी चाहिए, लेकिन फास्फोरस और पोटाश बुवाई से पूर्व या बुआई के समय दिये जाने चाहिए|
बीज उत्पादन के लिए सिंचाई और जल निकास
बीज फसल से अच्छी उपज होने के लिए कई सिंचाइयां करनी पड़ती हैं, जो फसल के अनुसार निर्धारित होती हैं| खेत में अनावश्यक पानी के निकास की भी व्यवस्था करनी चाहिए|
बीज उत्पादन के लिए फसल सुरक्षा
बीज उत्पादन के लिए फसल को खरपतवारों, कीटों, बीमारियों से मुक्त रखने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए और आवश्यकतानुसार खरपतवारनाशकों, कीटनाशकों का भी छिड़काव करना चाहिए|
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बीज फसल से अवांछनीय पौधों को निकालना
बीज फसल से समय-समय पर अन्य किस्मों के पौधों, खरपतवारों, रोगी पौधों को निकालते रहना चाहिए, जिससे पर-परागण और रोगों के प्रसार (द्वितीयक संक्रमण) से बीज खराब न होने पायें| पौधों को पूरे जड़ सहित उखाड़कर थैली या लिफाफों में बंद करके खेत से बाहर लें जाकर गड्ढे में दबा देना चाहिए, जिससे रोग आदि न फैलावें| भिन्न-भिन्न पौधों की उंचाई तने, पत्ती के रंग, आकार और स्वरूप आदि के आधार पर पहचाना जा सकता है|
बीज उत्पादन के लिए कटाई एवं गहाई
बीजें को पूर्णतः परिपक्व हो जाने पर उचित नमी अवस्था में कटाई करनी चाहिए| अधिक नमी अवस्था में कटाई करने पर गहाई और सफाई करने में बीज की क्षति होती है| कवकों तथा कीड़ों का आक्रमण शीघ्र होता है एवं अंकुरण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है| साथ ही कटाई में देरी से धूप वर्षा आदि से बीज गुणवत्ता में भी ह्रास होता है तथा कुछ फसलों में दाने खेत में बिखरने की समस्या होती है| कटाई-गहाई मौसम और फसल के अनुसार करनी चाहिए| बीजों की गहाई पक्के फर्श या तिरपाल पर करनी चाहिए|
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बीज उत्पादन के लिए बीज संसाधन
आमतौर पर कटाई के समय बीज फसल में नमी की मात्रा अधिक होती है| इसलिए उसे सुरक्षित आर्द्रता मात्रा के स्तर तक लाने के लिए धूप या कृत्रिम सुखाई द्वारा सुखाया जाता है| विभिन्न फसलों में सुरक्षित आर्द्रता मात्रा भिन्न-भिन्न होती है| उदाहरण के लिए खाद्यान्न फसलों में सोयाबीन एवं कपास में 10 प्रतिशत दालों में 9 प्रतिशत तिलहनों में 8 प्रतिशत और सब्जियों में 7 से 8 प्रतिशत से अधिक आर्द्रता नहीं होनी चाहिए|
उत्पादित बीज का भण्डारण
बीज को निम्न ताप और निम्न नमी की दशाओं में भण्डारित किया जाता है, जिससे भण्डारण के समय कीड़ों के फैलने का भय न रहे| इसके लिए बीज को बोरों या साइलोविन में रखा जाता है, बोरों को प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह साफ एवं उपचारित कर लेना चाहिए, क्योंकि उनमें पहले से अन्य फसल के बीज या कीड़े आदि हो सकते हैं|
उत्पादित बीज का परीक्षण
भण्डारण के तत्पश्चात बीज में आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता, अंकुरण प्रतिशत और नमी प्रतिशत इत्यादि के लिए परीक्षण भी कर लेना चाहिए, ताकि बीज की सभी (आनुवंशिक भौतिक अंकुरण और नमी) अवस्थाओं का सही पता लग सके|
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