फ्लाई ऐश (राख) का खेती में महत्व, हमारा देश खेती प्रधान देश है| जिसमें अधिकांश 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है| हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए खेती में उपज में वृद्धि बहुत ही आवश्यक है| खेती में लगातार विकास और उपज में वृद्धि सिर्फ वैज्ञानिक प्रबंधन के द्वारा ही संभव है| भूमि की उर्वरता को बनाये रखने के लिए विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों का समय पर एवं एक निश्चित मात्रा में होना आवश्यक है| सघन खेती में बहुत अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा की उर्वरता तथा कृषि उपज पर कुप्रभाव पड़ रहा है|
जिससे मनुष्य और पशुओं में भी विभिन्न प्रकार के रोगों का प्रकोप हो रहा है| अनेक प्रयोगों से पता चला है, कि फ्लाई ऐश जो कि एक औद्योगिक अपशिष्ट और प्रदूषणकारी मानी जाती है| यह भूमि की उर्वरता तथा खेती उपज को बढाने में उपयोगी सिद्ध हुई है, जिससे अनुपयोगी मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को सुधारा जा सकता है|
फ्लाई ऐश (राख) मुख्यत: थर्मल विद्युत केन्द्रों से कोयले के दहन से निकला हुआ राख के समान अपशिष्ट तथा प्रदूषणकारी पदार्थ है| हमारे देश में लगभग 230 से 270 लाख मिट्रिक टन कोयला हर साल पैदा किया जाता है और कुल बिजली उत्पादन का 75 प्रतिशत से अधिक उत्पादन कोयले पर आधारित है|
जिससे करीब करीब 112 मिलियन टन फ्लाई ऐश (राख) का निष्कासन होता है| जिसमें से केवल 38 प्रतिशत भाग का ही उपयोग होता है| पहले फ्लाई ऐश को एक अपशिष्ट और प्रदूषणकारी पदार्थ माना जाता था, लेकिन अब यह एक मिट्टी की उर्वरता और कृषि उपज को बढाने के साथ-साथ सस्ता पदार्थ साबित हो गया है|
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फ्लाई ऐश की आवश्यकता क्यों?
आजकल खेती उपज में वृद्धि के लिए अनेक प्रकार के उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों और कई प्रकार के रसायनों का प्रयोग हो रहा है, जोकि बहुत मंहगे पडते हैं एवं जिससे प्रति हैक्टयेर लागत ज्यादा आती है| इसी के साथ-साथ इससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता हैं और मिट्टी की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा भी खराब होती जा रही है|
फ्लाई ऐश (राख) के प्रयोग से अनाजों, सब्जियों और फलों की गुणवत्ता भी खराब होती जा रही है| जिससे मनुष्य व जीव जन्तुओं के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है| इसी को ध्यान में रखते हुए हमें खेती क्षेत्र में रासायनिक पदार्थों का प्रयोग कम से कम करके ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए, जो कि अधिक समय तक बिना किसी कुप्रभाव के अपना प्रभाव बनाये रखें|
फ्लाई ऐश एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें सभी प्रकार के दीर्घ और सूक्ष्म पोषक तत्व पाये जाते हैं एवं यह मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को सुधारने में सक्षम हैं| फ्लाई ऐश (राख) में पोषक तत्वों के साथ-साथ कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशकों के गुण भी पाये जाते हैं| जिससे फसल उत्पादन में प्रति हेक्टेयर लागत कम और उत्पादन अधिक होता है| फ्लाई ऐश एक सस्ता और आसानी से प्राप्त होने वाला पदार्थ है| इस प्रकार यह टिकाऊ खेती में अहम् भूमिका निभा सकता है|
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फ्लाई ऐश का मिट्टी में उपयोग
फ्लाई ऐश में विभिन्न प्रकार के दीर्घ एवं सूक्ष्म पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो कोयले की किस्म, बॉयलर के प्रकार पर निर्भर करते हैं| इसका पी एच मान 4.5 से 12, स्थूल घनत्व 1.01 से 1.43 ग्राम प्रति सेंटीमीटर, आपेक्षिक घनत्व 1.6 से 2.5 होता हैं| यह रेतीली दोमट प्रकृति की होती है| जिसमें बालू 1 से 10, सिल्ट 8 से 85 क्ले 7 से 90 प्रतिशत पायी जाती है|
खेती उपज में वृद्धि के लिए मिट्टी में विभिन्न प्रकार की खादों का बार-बार प्रयोग करना पड़ता है| एक ही खेत में बार-बार एक ही प्रकार की फसलें बोने से मिट्टी में दीर्घ और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है| फ्लाई एश में उपलब्ध दीर्घ तथा सूक्ष्म पोषक तत्व मिट्टी को उपजाऊ बनाने की क्षमता रखते हैं|
फ्लाई ऐश (राख) मिट्टी में अनुकूलक का कार्य भी करती है, जिससे अनाज, दलहनी, तिलहनी फसलों और सब्जियों की उपज बढ़ती है| फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्युमिना की मात्रा अधिक और साथ ही आयरन, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, आर्सेनिक, बोरॉन, सेलेनियम इत्यादि तत्व भी पाये जाते हैं|
पौधे के सूक्ष्म तत्व जैसे कि, तांबा, लोहा-जिंक एवं स्थूल तत्व पोटेशियम फास्फोरस, कैल्सियम इत्यादि आसानी से प्राप्त हो जाते हैं| चिकनी और रेतीली मिट्टी में इसको मिलाने से उसकी प्लास्टिकता, सघनता आदि गुणों में वृद्वि के साथ-साथ यह दूषित औद्योगिक पदार्थ के लिये अवशोषक का कार्य भी करती है|
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फ्लाई ऐश (राख) विभिन्न प्रकार के धातु तत्वों जैसे कैडमियम, क्रोमियम, मर्करी, तांबा इत्यादि का निष्कासन भी इससे किया जा सकता है| यह अनेक प्रकार के खरपतवार नाशकों जैसे- डाई क्लोरोफिनॉल इत्यादि रसायनों के अवशोषण में सहायक होती है| इसके मिट्टी में मिलाने से उसमें वायु संचारण, स्थूल घनत्व, जल धारण क्षमता आदि को बढ़ाती है|
रेतीली एवं चिकनी मिट्टी में 50 से 60 टन प्रति हेक्टेयर फ्लाई ऐश (राख) को मिलाने पर वह मिट्टी दोमट गुणों वाली हो जाती है| यह मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ उसमें लाभदायक जीवाणुओं उदाहरण राइजोबियम स्पीसिज की संख्या को बढ़ाती है और रोगजनक सूक्ष्मजीवों के विकास को कम कर फसल उत्पादन को बढाती है|
खेती क्षेत्र में फ्लाई ऐश (राख) का प्रयोग कम्पोस्ट खाद बनाने में भी किया जा सकता है| कम्पोस्ट खाद मुख्यतः कचरा, कागज, सीवेज, ठोस आदि पदार्थों से बनायी जाती है| जिसमें मुख्यतः सिलिका और एल्युमिनियम तत्वों की कमी पायी जाती है| यदि इस कम्पोस्ट में इसको मिला दिया जाये तो यह इन तत्वों की पूर्ति कर उच्च गुणवत्ता वाला कम्पोस्ट बना सकती है|
फ्लाई ऐश मिलायी गई कम्पोस्ट खाद गोभी, भिन्डी, मक्का, ज्वार और अनेक प्रकार के फूलों का उत्पादन बढ़ाने में उपयोगी है एवं अनेक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे की आयरन, मैंगनीज, जिंक, कोबाल्ट इत्यादि की मात्रा में बढ़ोत्तरी भी मिली है| इसका प्रभाव केवल उपज पर ही नहीं पड़ता बल्कि यह धान, गेहूं आदि में प्रोटीन, कैल्सियम, मैग्निशियम और लौह तत्व की भी वृद्धि करता है, जिससे अनाजों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है|
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फ्लाई ऐश (राख) मे कैल्सियम तथा फास्फोरस तत्व पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जो, कि दोनों ही तत्व मूंगफली की फसल के लिए अति आवश्यक हैं एवं प्रयोग करके मूंगफली की पैदावार बढ़ा सकते हैं| इस प्रकार इसका प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की फसलों के उत्पादन में वृद्धि जा सकती है, जैसे- गेहूं, सरसों, धान, मक्का में 10 से 20 प्रतिशत, कपास, ज्वार, गेहूं, चना, सोयाबीन में 10 से 45 प्रतिशत, आलू में 30 से 35 प्रतिशत वृद्धि की जा सकती है|
फ्लाई ऐश अन्य पदार्थों की तुलना में जीवाणु खाद के वाहक रूप में प्रयोग सस्ता, प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ ही यह पोषक तत्वों को धीमी गति से पौधों को प्रदान करने में सहायक होती हैं| इसमें 60 प्रतिशत तक सिलिका होने से इसमें जल स्नेही गुण पाया जाता है, जोकि कीटों के शरीर पर चिपक कर अधिक समय तक असरकारी होती है|
फ्लाई ऐश में लगभग 30 प्रतिशत हर्बल तत्व मिलाने पर यह एक उत्तम किस्म का कीटनाशक बनकर मिट्टी में हानिकारक कीटों की संख्या को कम करता है| इसलिए इससे मिट्टी में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को बढाने के साथ-साथ यह मृदा जीवों के लिए लाभदायक और पर्यावरण प्रदूषण तथा मिट्टी प्रदूषण को कम करने में सहायक हैं| जिससे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता अच्छी बनी रहे तथा मनुष्य और जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े|
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