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Home » फूलगोभी की उन्नत खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

फूलगोभी की उन्नत खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

April 8, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

फूलगोभी की उन्नत खेती

गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है| इसकी खेती मुख्य रूप से श्वेत, अविकसित व गठे हुए पुष्प पुंज के उत्पादन हेतु की जाती है| इसका उपयोग सब्जी, सूप, अचार, सलाद, बिरियानी, पकौड़ा आदि बनाने में किया जाता है| फूलगोभी साथ ही यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में अत्यन्त लाभदायक है| यह प्रोटीन, कैल्शियम व विटामिन ए तथा सी का भी अच्छा स्त्रोत है|

किसान बन्धु यदि इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में फूलगोभी की उन्नत खेती कैसे करें, उन्नत किस्मों तथा देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| फूलगोभी की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती

फूलगोभी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

इसकी सफल खेती के लिए ठंडी तथा आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होती है| अधिक ठंढा और पाले का प्रकोप होने से फूलों को अधिक नुकसान होता है| शाकीय वृद्धि के समय तापमान अनुकूल से कम रहने पर फूलों का आकार छोटा हो जाता है| अच्छी फसल के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान सर्वोत्तम होता है|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की खेती कैसे करें

फूलगोभी की खेती के लिए उन्नत किस्में

उगाये जाने के समय के आधार पर फूलगोभी को विभिन्न वर्गों में बाँटा गया है| इसकी स्थानीय और उन्नत दोनों प्रकार की किस्में उगायी जाती है| इन किस्मों पर तापमान तथा प्रकाश अवधि का बहुत प्रभाव पड़ता है| इसलिए इसकी उचित किस्मों का चुनाव और समय पर बुवाई करना अत्यन्त आवश्यक है| यदि अगेती किस्म को देर से और पिछेती किस्म को जल्दी उगाया जायेगा तो दोनों में शाकीय वृद्धि अधिक होगी फलस्वरूप फूल छोटा हो जायेगा तथा फूल देर से लगेंगे| इस आधार पर फूलगोभी को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है, जैसे- अगेती, मध्यम और पिछेती|

अगेती किस्में- अर्ली कुंआरी, पूसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस और इम्पूब्ड जापानी आदि प्रमुख है|

मध्यम किस्में- पन्त शुभ्रा, पूसा शुभ्रा, पूसा सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाल, के- 1, पूसा अगहनी, सैगनी और हिसार न- 1 आदि प्रमुख है|

पिछेती किस्में- पूसा स्नोबाल- 1, पूसा स्नोबाल- 2 और स्नोबाल- 16 आदि प्रमुख है| किस्मों की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फूलगोभी की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

फूलगोभी की खेती के लिए भूमि और तैयारी

फूलगोभी की खेती वैसे तो सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती, परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो, सबसे उपयुक्त है| इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से खेत को तैयार करना चाहिए| इसके लिए खेत को 3 से 4 जुताई करके पाटा लगाकर समतल कर देना चाहिए|

फूलगोभी की खेती के लिए खाद और उर्वरक

फूलगोभी की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्र में जीवांश का होना अत्यन्त आवश्यक है| खेत में 20 से 25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट रोपाई के 3 से 4 सप्ताह पूर्व अच्छी तरह मिला देना चाहिए| इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर की दर से देना चाहिये| नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्र और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई या प्रतिरोपण से पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए तथा शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर खड़ी फसल में 30 एवं 45 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- पत्ता गोभी की उन्नत खेती कैसे करें

फूलगोभी की खेती के लिए बीज और बुवाई

बीज दर- अगेती किस्मों की बीज दर 600 से 700 ग्राम तथा मध्यम एवं पिछेती किस्मों की बीज दर 350 से 450 ग्राम प्रति हेक्टेयर है|

ग्रीष्मकालीन- ग्रीष्मकालीन फसल के लिए फरवरी से मार्च में पौधशाल में बीज की बुवाई की जाती है और मार्च से अप्रैल में पौध का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है|

अगेती किस्म- अगेती किस्मों की फसल के लिए जून से जुलाई में पौधशाल में बीज की बुवाई की जाती है और जुलाई से अगस्त में पौध का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है|

मध्यम किस्म- मध्यम किस्मों की फसल के लिए जुलाई से अगस्त में पौधशाल में बीज की बुवाई की जाती है और अगस्त से सितम्बर में पौध का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है|

पिछेती किस्म- पछेती किस्मों की फसल के लिए सितम्बर से अक्टूबर में पौधशाल में बीज की बुवाई की जाती है और अक्टूबर से नवम्बर में पौध का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है|

फूलगोभी की खेती के लिए बुवाई की विधि

फूलगोभी के बीज सीधे खेत में नहीं बोये जाते हैं| इसलिए बीज को पहले पौधशाला में बुवाई करके पौधा तैयार किया जाता है| एक हेक्टर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए लगभग 75 से 100 वर्ग मीटर में पौधा उगाना पर्याप्त होता है| पौधों को खेत में प्रतिरोपण करने के पहले एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन को 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर लें| फिर उपचारित पौधो को खेत में लगाना चाहिए|

अगेती फूलगोभी की खेती के समय के वर्षा अधिक नहीं होती है| इसलिए इसका रोपण कतार से कतार 40 सेंटीमीटर तथा पौधो से पौधो 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करना चाहिए| परन्तु मध्यम तथा पिछेती किस्मों में कतार से कतार 45 से 60 सेंटीमीटर एवं पौधो से पौधो की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए और ग्रीष्मकालीन के लिए कतार से कतार की दुरी 45 सेंटीमीटर और कतार में पौधे से पौधे की 30 सेंटीमीटर दुरी रखनी चाहिए|

यह भी पढ़ें- ब्रोकली की उन्नत खेती कैसे करें

फूलगोभी की खेती के लिए सिंचाई प्रबन्धन

पौधों की अच्छी बढवार के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है| सितम्बर के बाद 10 या 15 दिनों के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करें|

फूलगोभी की फसल में खरपतवार नियंत्रण

फूलगोभी में फूल तैयार होने तक दो से तीन निराई-गुड़ाई से खरपतवार पर नियंत्रण हो जाता है, परन्तु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवारनाशी दवा पेंडीमेथिलीन 3.0 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है|

फूलगोभी की उन्नत फसल में निराई-गुड़ाई

फूलगोभी के पौधों की जड़ों के समुचित विकास के लिए निराई-गुड़ाई अत्यन्त आवश्यक है| इस क्रिया से जड़ों के आसपास की मिट्टी ढीली हो जाती है तथा हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है, जिसका अनुकूल प्रभाव उपज पर पड़ता है| वर्षा ऋतु में यदि जड़ों के पास से मिट्टी हट गयी हो तो चारों तरफ से पौधों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए|

फूलगोभी की खेती में सूक्ष्म तत्वों का महत्व

बोरन- बोरन की कमी से फूलगोभी का खाने वाला भाग छोटा रह जाता है| इसकी कमी से शुरू में तो फूलगोभी पर छोटे-छोटे दाग या धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं एवं बाद में पूरा का पूरा फूल हल्का गुलाबी पीला या भूरे रंग का हो जाता है, जो खाने में कडुवा लगता है| फूलगोभी और फूल का तना खोखला हो जाता है तथा फट जाता हैं| इससे फूलगोभी की पैदावार और गुणवता दोनों में कमी आ जाती है| इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से अन्य उर्वरक के साथ खेत में डालना चाहिए|

मॉलीब्डेनम- इस सूक्ष्म तत्व की कमी से फूलगोभी का रंग गहरा हरा हो जाता है तथा किनारे से सफेद होने लगती है, जो बाद में मुरझाकर गिर जाती है| इससे बचाव के लिए 1. 0 से 1.50 किलोग्राम मॉलीब्डेनम प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए| इससे फूलगोभी का खाने वाला भाग अर्थात फल पूर्ण आकृति को ग्रहण कर ले और रंग श्वेत अर्थात उजला तथा चमकदार हो जाय तो पौधों की कटाई कर लेना चाहिए| देर से कटाई करने पर रंग पीला पड़ने लगता है और फूल फटने लगते हैं| जिससे बाजार मूल्य घट जाता है|

यह भी पढ़ें- गांठ गोभी की उन्नत खेती कैसे करें

फूलगोभी की फसल में कीट नियंत्रण

फूलगोभी में मुख्य रूप से लाही, गोभी मक्खी, हीरक पृष्ठ कीट, तम्बाकू की सूड़ी आदि कीड़ों का प्रकोप होता है| लाही कोमल पत्तियों का रस चूसती है| खासकर सर्दी के समय कुहासा या बदली लगी रहे तो इसका आक्रमण अधिक होता है| गोभी मक्खी पत्तियों में छेदकर अधिक मात्रा में खा जाती है| हीरक पृष्ठ कीट की सूड़ी पत्तियों की निचली सतह पर खाते हैं तथा छोटे छिद्र बना लेते हैं|

जब इसका प्रकोप अधिक होता है, तो छोटे पौधों की पत्तियाँ बिल्कुल समाप्त हो जाती है, जिससे पौधे मर जाते हैं| तम्बाकू की सूड़ी के वयस्क मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर झुण्ड में अण्डे देती है| 4 से 5 दिनों के बाद अण्डों से सूड़ी निकलती है और पत्तियों को खा जाती है| सितम्बर से नवम्बर तक इसका प्रकोप अधिक होता है|

उपरोक्त सभी कीटों का जैसे ही आक्रमण शुरू हो तो नुवाक्रान, रोगर, थायोडान किसी भी कीटनाशी दवा का 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए|

फूलगोभी की फसल में रोग नियंत्रण

फूलगोभी में मुख्य रूप से गलन रोग, काला विगलन, पर्णचित्ती, अंगमारी, पत्ती का धब्बा रोग और मृदु रोमिल आसिता रोग लगते हैं| यह फफूंदी के कारण होता है| यह रोग पौधा से फूल बनने तक कभी भी लग सकते है| पत्तियों की निचली सतह पर जहाँ फफूंद दिखते हैं उन्हीं के ऊपर पत्तियों के ऊपरी सतह पर भूरे धब्बे बनते हैं|

जो कि रोग के तीव्र हो जाने पर आपस में मिलकर बड़े धब्बे बन जाते हैं| काला गलन नामक रोग भी काफी नुकसानदायक होता है| रोग का प्रारंभिक लक्षण ‘ट’ आकार में पीलापन लिये होता है| रोग का लक्षण पत्ती के किसी किनारे या केन्द्रीय भाग से शुरू हो सकता है, यह बैक्टीरिया के कारण होता है|

उपरोक्त रोगों से बचाव के लिए रोपाई के समय पौधों को स्ट्रेप्टोमाइसीन या प्लेन्टोमाइसीन के घोल से उपचारित कर ही खेत में लगाना चाहिए| दवा की मात्रा आधा ग्राम दवा + 1 लीटर पानी बाकी सभी रोगों से बचाव के लिए फफूदीनाशक दवा इन्डोफिल एम- 45 की 2 ग्राम या ब्लाइटाक्स की 3 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी में दर से घोल कर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए| कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

फूलगोभी की उन्नत फसल से फल कटाई 

फूलगोभी कि कटाई तब करें जब उसके फल पूर्ण रूप से विक़सित हो जाएँ, फल ठोस तथा आकर्षक होने चाहिए| फूलगोभी कि किस्मों के अनुसार रोपाई के बाद अगेती 60 से 70 दिन, मध्यम 90 से 100 दिन और पछेती 110 से 180 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है|

फूलगोभी की उन्नत खेती से पैदावार

उपरोक्त तकनीक द्वारा फूलगोभी की खेती करने से प्रति हेक्टेयर 150 से 250 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है|

भण्डारण- फलों के साथ पत्तियां लगे रहने पर 85 से 90 प्रतिशत की आद्रता के साथ और 14 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इन्हें एक महीने तक रखा जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों का बीजोत्पादन कैसे करें

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