• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

दैनिक जाग्रति

ऑनलाइन हिंदी में जानकारी

  • ब्लॉग
  • करियर
  • स्वास्थ्य
  • खेती-बाड़ी
    • जैविक खेती
    • सब्जियों की खेती
    • बागवानी
    • पशुपालन
  • पैसा कैसे कमाए
  • सरकारी योजनाएं
  • अनमोल विचार
    • जीवनी
Home » ब्लॉग » प्याज के बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक

प्याज के बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

प्याज के बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक

प्याज की खेती से अधिक उत्पादन के लिए गुणवत्तापूर्ण प्याज के बीज का होना अत्यंत आवश्यक है| इसके बीज लघु-कालिक होते हैं, जिन्हें अधिकतम 2 वर्षों तक ही उपयोग में लिया जा सकता है| इसके बाद बीज की अंकुरण क्षमता काफी कम हो जाती है या होती ही नही है| शुद्ध बीज नही मिलना भी प्याज के सफल उत्पादन में एक प्रमुख समस्या है| हमारे देश में प्याज की खेती काफी अच्छे पैमाने पर होती है| जबकि हमारे किसान भाई अपने या पड़ोसी किसान द्वारा उगाये गए प्याज के बीजों का इस्तेमाल करते हैं| इसलिए किसानों को प्याज के बीज उत्पादन संबंधी तकनीकी की जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है|

जिसे अपनाकर उन्नत गुणवत्ता वाले बीज का उत्पादन सफलतापूर्वक कर सकते हैं| इस तरह उन्नत बीज के इस्तेमाल से प्याज का भरपूर उत्पादन लेकर अच्छा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं| प्याज के उन्नत गुणवत्ता वाले बीज पैदा करने हेतु उपयुक्त अन्तः कृषि क्रियाएं, किस्मों का चुनाव, शल्ककंदों की छंटाई, कीड़ों और बीमारियों पर नियंत्रण, परागण संबंधी जानकारी, बीज-गुच्छों की तुडाई, बीज को अलग करना व उसकी सफाई और उचित भंडारण का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है| यदि आप प्याज की उन्नत खेती की जानकारी चाहते है, तो यहाँ पढ़ें- प्याज की उन्नत खेती कैसे करें

प्याज के बीज उत्पादन की तकनीक

उत्तम गुणवत्ता वाले प्याज का बीज उत्पादन सामान्यत: दो चरणों में किया जाता है| पहले बीजों द्वारा प्याज के शल्ककंदों का उत्पादन तथा फिर शल्ककंदों से बीज उत्पादन, जैसे-

रबी ऋतु में बोई जाने वाली प्याज की किस्मों जैसे- पूसा रेड, नासिक रेड, एग्रीफाउंड लाइट रेड, एग्रीफाउंड डार्क रेडे, अर्का कल्याण, आर ओ- 59 या अन्य के शल्ककंद उत्पादन हेतु बीजों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर में नर्सरी में करते हैं और तैयार पौध की रोपाई मध्य दिसंबर से जनवरी के प्रथम पखवाड़े तक करते हैं| इस तरह शल्ककंद मई में तैयार हो जाते हैं| शल्ककंदों की छंटाई करके अच्छी तरह से भंडारित करते हैं| नवंबर माह में भंडारित किए गए शल्ककंदों की पुनः अच्छी तरह से छंटाई करके तैयार खेत में बुवाई कर देते हैं एवं फिर मई के अंत तक बीज तैयार हो जाते हैं| इस विधि द्वारा बीज डेढ़ वर्ष में तैयार होता है|

जबकि खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली किस्मों जैसे- एन- 53, एग्रीफाउंड डार्क रेड या अन्य का बीज उत्पादन एक वर्ष में संभव है| इसके लिए मई से जून में बीजों की बुवाई व जुलाई से अगस्त में पौध की रोपाई करते हैं जिससे शल्ककंद नवंबर में तैयार हो जाते हैं| इन तैयार शल्ककंदों की खुदाई कर 10 से 15 दिनों बाद छंटाई करने के बाद स्वस्थ शल्ककंदों की पुनः बुवाई कर देते हैं| इस तरह बीज मई तक पककर तैयार हो जाते हैं|

यह भी पढ़ें- प्याज की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

प्याज के शल्ककंदों का उत्पादन

शल्ककंदों का उत्पादन के लिए पौध तैयार करने के लिए बीज को 15 से 20 सेंटीमीटर उंची उठी हुई क्यारियों में बोना चाहिए| सामान्यत: क्यारियों की लंबाई 3 मीटर और चौडाई 60 से 70 सेंटीमीटर रखते हैं, इस तरह एक हैक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए लगभग 80 से 100 क्यारियाँ पौध उत्पादन के लिए पर्याप्त होती हैं| एक हेक्टेयर बुवाई हेतु 8 से 10 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है| बीज को 5 से 6 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोना चाहिए| बुवाई के बाद बीज को आधा सेंटीमीटर तक अच्छी तरह सड़ी और छनी हुई गोबर की खाद से ढक देना चाहिए| पौध 6 से 8 सप्ताह में रोपाई हेतु तैयार हो जाती है|

खरीफ फसल की बुवाई मई से जून में और इसकी पौध की रोपाई जुलाई से अगस्त में करनी चाहिए| रबी फसल के लिए बीज की बुवाई अक्टूबर से नवंबर में और पौध की रोपाई मध्य दिसंबर से जनवरी के प्रथम पखवाड़े तक करते हैं| पौधों की रोपाई 8 से 10 सेंटीमीटर के अंतराल पर 15 सेंटीमीटर दूरी पर कतारों में करते हैं| रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करते हैं|

पौध रोपाई के लिए खेत तैयार करते समय 40 से 50 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट व 10 से 12 किलोग्राम पी एस बी कल्चर प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए| इसके अतिरिक्त खेत की अंतिम जुताई के साथ 130 किलोग्राम यूरिया, 300 से 330 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश मिट्टी में मिला देना चाहिए| 65 किलोग्राम यूरिया पौध रोपाई के 30 दिन और 65 किलोग्राम यूरिया पौध रोपाई के 45 से 50 दिन बाद छिड़काव द्वारा देना चाहिए|

प्याज की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती हैं, इसलिए 2 से 3 बार उथली निराई-गुड़ाई करने के साथ खुरपी द्वारा खरपतवार भी निकाल देना चाहिए| समय-समय पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहते हैं, आमतौर पर सर्दियों के मौसम में 10 से 15 दिन जबकि गर्मियों में 7 से 8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए| जिस समय शल्ककंद बन रहें हों मिट्टी में प्रायप्त नमी बनाए रखना चाहिए| रबी ऋतु वाली प्याज के शल्ककंद मई में और खरीफ के नवंबर में तैयार हो जाते हैं|

यह भी पढ़ें- समेकित पोषक तत्व (आईएनएम) प्रबंधन कैसे करें

प्याज की खुदाई और भंडारण

पौधों की 50 प्रतिशत पत्तियां जब जमीन पर लेट जाये तो उसके 8 से 10 दिन पश्चात् शल्ककंदों की खुदाई करनी चाहिए, इससे भंडारण में होने वाली हानि कम हो जाती है| पत्तियों सहित खुदाई करके शल्ककंदों को कतारों में रखकर 5 से 7 दिन, प्याज शल्ककंदों को छाया में सुखाते हैं| पत्तियों को गर्दन से 2 से 2.25 सेंटीमीटर छोड़कर काट देते हैं| भंडारण में होने वाली हानि से बचने के लिए शल्ककंदो को सीधा धूप में नहीं सुखाना चाहिए और भीगने से बचाना चाहिए|

मई में शल्ककंदों को निकालने के बाद अक्टूबर तक अच्छे हवादार भण्डार गृह में रखते हैं| भंडारण बोई गई किस्म से मेल खाती अच्छी, एक रंग की, पतली गर्दन वाली, दोफाड़े रहित शल्ककंदों का करते हैं| भंडारित किये गए शल्ककंदों की 15 से 20 दिन के अंतराल पर छंटाई करते रहना चाहिए और सड़े-गले व रोग ग्रस्त शल्ककंदों को निकालते रहना चाहिए|

यह भी पढ़ें- बीज प्रबंधन एवं बीज उपचार के तरीके, जानिए उपयोगी जानकारी

प्याज के शल्ककंदों से बीज उत्पादन

शल्ककंदों का चयन एवं बुवाई- प्याज के बीज उत्पादन के लिए स्वयं या किसी विश्वसनीय श्रोत द्वारा तैयार व अच्छी तरह से भंडारित किए हुए शल्ककंदों को ही उपयोग में लेना चाहिए| बुवाई के लिए चुनी गई किस्म के गुणों से मेल खाते उनके रंग, आकार व रूप, पतली गर्दन चयनित प्याज शल्ककंद वाले, दोफाड़े रहित शल्ककंद, जिनका व्यास 4.5 से 6.5 सेंटीमीटर के मध्य और वजन 60 से 70 ग्राम हो, उनका चुनाव करना चाहिए| रबी-प्याज की किस्मों को नवम्बर के मध्य तक जबकि खरीफ वाली प्याज की किस्मों की बुवाई दिसंबर मध्य तक करनी चाहिए| एक तिहाई हिस्से को काटकर निकालने के बाद या पुरे शल्ककंद की बुवाई कर सकते हैं|

बुवाई से पूर्व शल्ककंदों को 0.1 प्रतिशत कार्बण्डाजिम के घोल में डुबोकर उपचारित कर लेना चाहिए| शल्ककंदों को अच्छी तरह से तैयार समतल खेतों में 30 से 30 सेंटीमीटर के अंतराल पर 45 सेंटीमीटर दूरी पर बनी कतारों में लगभग 1.5 सेंटीमीटर गहराई पर लगाना चाहिए| खरीफ किस्मों के प्याज को लगाने से पहले पौटाशियम नाइट्रेट के 1.0 प्रतिशत के धोल में शल्ककंदों को 5 मिनट डुबोकर लगाने से अंकुरण अच्छा होता है| एक हेक्टेयर क्षेत्र की बुवाई के लिए लगभग 25 से 30 क्विंटल शल्ककंद पर्याप्त होता है|

फसल प्रबंधन- बीज की अच्छी उपज के लिए शल्ककंद लगाने के 20 से 25 दिन पूर्व लगभग 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद को जुताई के साथ मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए| इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 100 से 120 किलोग्राम यूरिया, 300 से 320 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 से 120 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश शल्ककंदों को लगाने के पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए| कंदों की बुवाई के लगभग एक माह बाद पुनः 50 से 60 किलोग्राम यूरिया पौधों की जड़ों के पास देना चाहिए|

लगभग दो से ढाई माह की अवस्था में पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे पौधों को सहारा मिलता है और फूल आते समय गिरने से बच जाते हैं| मौसम और मिट्टी के अनुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए| ड्रिप या टपक सिंचाई पद्धति से प्याज बीज उत्पादन करें, तो पानी की बचत के साथ-साथ बीज की उत्पादकता और गुणवक्ता में वृद्धि होती है एवं खरपतवार की समस्या से भी काफी हद तक निजात मिलता है|

अलगाव दूरी और परागण- प्याज में पर-परागण होता है, इसलिए उत्तम गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए उस क्षेत्र में हो रहे किसी अन्य किस्म के बीज उत्पादन क्षेत्र से कम से कम 500 मीटर की अलगाव दूरी आवश्यक है| पर-परागण में मधुमक्खियों की प्रमुख भूमिका है, अतः उन्नत बीज उत्पादन के लिए इनकी अधिक संख्या सुनश्चित करने के लिए मधुमक्खियों की कॉलोनी खेत के बीचों-बीच रखनी चाहिए| फूल बनते समय मधुमक्खियों को हानि पहुंचाने वाली किसी दवा के छिड़काव से बचना चाहिए| तेज हवा से बचाव के लिए खेत के चारों ओर ऊँचे पौधों की बाड़ लगानी चाहिए|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों का बीजोत्पादन कैसे करें

प्याज बीज उत्पादन फसल की सुरक्षा

अवांछनीय पौधों और खरपतवारों को खेत से निकालना- ऐसा कोई भी पौधा, भले ही प्याज की ही कोई अन्य किस्म, जो लगायी गई किस्म के अनुरूप लक्षण नहीं रखता है, वह अवांछनीय पौधा माना जाता है| जिन पौधों में बीमारी, खासकर बीज से उत्पन्न होने वाली बीमारी हो तो उन्हें भी खेत से निकालना जरूरी है| इसके अलावा अन्य खरपतवारों को भी खेत से दूर रखना चाहिए| खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई से एक दिन पूर्व पेंडीमेथिलीन का 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए| इसके साथ ही समय-समय पर निराई-गुड़ाई द्वारा खेत को साफ रखना चाहिए|

कीट नियंत्रण- प्याज बीज वाली फसल में मुख्य रूप से थ्रिप्स और शीर्ष छेदक कीटों का प्रकोप होता है| थ्रिप्स कीट के प्रकोप से पत्तियों पर हल्के हरे रंग के लंबे-लंबे दाग दिखाई देते हैं, जो बाद मे सफेद हो जाते हैं| जबकि शीर्ष छेदक कीट का लार्वा पत्तियों को काटकर फसल को हानि पहुँचाता है| थ्रिप्स और शीर्ष छेदक कीटों के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट या मिथाइल डेमेटोन या साइपरमेथ्रिन 0.5 से 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए|

रोग नियंत्रण- बैंगनी धब्बा और स्टेमफिलियम झुलसा रोग इस फसल के मुख्य रोग हैं| बैंगनी धब्बा रोग से प्रभावित पत्तियों तथा तनों पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के सिकुड़े हुए धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में बैंगनी रंग के हो जाते है| इससे प्याज के शल्ककंद भण्डार गृह में सड़ने लगते हैं| इस रोग से बचाव के लिए क्लोरोथेलोनील या मैन्कोजेब की 2.0 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए| स्टेमफिलियम झुलसा रोग में पत्तों के मध्य में छोटी पीली-नारंगी धारियां उत्पन्न होती है जो बाद में अंडाकार होती हुई फैल जाती हैं और अन्त में पत्तियां सूख जाती हैं|

इस रोग की रोकथाम हेतु मैन्कोजेब 0.25 प्रतिशत के साथ डेल्टामेथ्रिन 0.10 प्रतिशत का सम्मिलित छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर काफी प्रभावी पाया गया है| शुरुआत में ही इन रोगों से ग्रसित पौधा दिखाई देते ही उसे तुरंत खेत से निकालकर जला दें या फिर मिट्टी मे दबाकर नष्ट कर देना चाहिए| खड़ी फसल में प्रत्येक रासायनिक छिड़काव के लिए घोल बनाते समय 0.1 प्रतिशत ट्राइटोन या सैन्डोविट नामक चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिला लेना चाहिए|

यह भी पढ़ें- प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक

प्याज के बीज फसल की कटाई और प्रबंधन

आमतौर पर फूल के गुच्छों के बनने के 6 सप्ताह के भीतर बीज पक जाते हैं| गुच्छों का रंग जब मटमैला और 2 प्रतिशत कैप्स्यूल के काले बीज दिखाई देने लगें तो समझना चाहिए कि गुच्छे कटाई के लिए तैयार हो गए हैं| फूलों के गुच्छे एक साथ नहीं पकते इसलिए जैसे-जैसे गुच्छे तैयार होते जाएँ उनकी तुड़ाई करते जाना चाहिए और उन्हें अच्छे छायादार स्थान पर बने पक्के फर्श या तिरपाल पर फैलाकर अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए| बीज की औसत उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

बीज को डंडों द्वारा पीटकर गुच्छों से अलग कर लेना चाहिए इसके बाद बीजों को मशीन से अच्छी तरह से सफाई कर लेनी चाहिए| साफ किए गए बीजों को 5 प्रतिशत नमी तक सुखाकर, थाइरम 2 से 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद उन्हें टिन के डिब्बों, एल्युमिनियम के फ्वायल या मोटे प्लास्टिक के लिफाफों में भरकर सील कर देना चाहिए| पैक किए हुये बीजों को 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम और 30 से 40 प्रतिशत आर्द्रता पर 2 वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है|

यह भी पढ़ें- बीज उत्पादन की विधियां, जानिए अपने खेत में बीज कैसे तैयार करें

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

अपने विचार खोजें

दैनिक जाग्रति से जुड़ें

  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

हाल के पोस्ट:-

सैम मानेकशॉ पर निबंध | Essay on Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ के अनमोल विचार | Quotes of Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ कौन थे? सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय

सी राजगोपालाचारी पर निबंध | Essay on Rajagopalachari

सी राजगोपालाचारी के विचार | Quotes of C Rajagopalachari

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी कौन थे? राजगोपालाचारी की जीवनी

राममनोहर लोहिया पर निबंध | Essay on Ram Manohar Lohia

ब्लॉग टॉपिक

  • अनमोल विचार
  • करियर
  • खेती-बाड़ी
  • जीवनी
  • जैविक खेती
  • धर्म-पर्व
  • निबंध
  • पशुपालन
  • पैसा कैसे कमाए
  • बागवानी
  • सब्जियों की खेती
  • सरकारी योजनाएं
  • स्वास्थ्य

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us