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Home » नैक्ट्रिन की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

नैक्ट्रिन की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

August 25, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

नैक्ट्रिन की खेती कैसे करें

नैक्ट्रिन (Nectarine) विदेशी प्रजाति का एक फल है| सेब सा दिखने वाला स्वाद में आडू व प्लम जैसा एक लाजवाब फल है| शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण कटिबंधीय फलों में नैक्ट्रिन का महत्वपूर्ण स्थान है| नैक्ट्रिन आडू एवं प्लम की प्रजाति से तैयार एक फल है, यह आडू के ही समूह का फल है और इसके अधिकतर ताजे फल खाने के उपयोग में लाये जाते हैं|

तत्वों की मात्रा- नैक्ट्रिन का फल दिखने में सेब व स्वाद में आडू व प्लम जैसा रसीला होता है| लेकिन इसके प्रति 100 ग्राम फलो की मात्रा में 44 ग्राम कैलारी ऊर्जा, 1055 ग्राम प्रोटीन, 32 ग्राम वसा, रेशे 1.78 ग्राम, पोटेशियम 190 मिलीग्राम विटामिन ए व विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है| यह स्वास्थ्य के लिए आडू व पूलम से कहीं अधिक लाभदायक होता है|

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नैक्ट्रिन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

नैक्ट्रिन की खेती आडू की तरह ही सम जलवायु में की जा सकती है| इसको सर्दी में अधिक ठंडक की आवश्यकता होती है| परन्तु अधिक पाला और ओले से विशेषकर फूलने तथा फल लगने के समय इसको क्षति भी पहुँचते है| समुद्रतल से 800 से 1600 मीटर की ऊँचाई तक आसानी से पनपने वाला यह पौधा तीन साल बाद फल देना शुरू करता है| इसमे जनवरी व फरवरी में फूल आते है|

मई अन्त व जून में फल तैयार हो जाते है अर्थात इसके फल आम एवं सेब से पहले ही पककर तैयार हो जाते है| यह निचले तथा मैदानी इलाको के साथ ही ऊँचे इलाको के किसानो के लिए समान रूप से लाभकारी है| इसकी किस्मों का चुनाव करते समय क्षेत्र विशेष की जलवायु और सिंचाई प्रबंधन का ध्यान रखना आवश्यक होता है वर्ना उत्पादन अच्छा नही मिलता है|

नैक्ट्रिन की खेती के लिए भूमि का चुनाव

नेक्ट्रिन को विभिन्न प्रकार की मिटटी में सफलतापुर्वक उगाया जा सकता है| लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिटटी इसके लिए सर्वोत्तम होती है| इसकी खेती उपजाऊ कंकरीली और चिकनी दोमट मिटटी में भी सफलता पूर्वक की जा सकती है| परन्तु ऐसे क्षेत्रों में भी जल निकास का समुचित प्रबंधन होना चाहिए|

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नैक्ट्रिन की खेती के लिए खेत की तैयारी

सबसे पहले खेत की खुदाई या जुताई कर के उसको अच्छी तरह पौधे लगाने के योग्य बना लेना चाहिए| जहाँ पर नैक्ट्रिन के पौधे लगाने हो वहाँ से खरपतवार या एनी वृक्षों की जड़ो  को निकाल देना चाहिए, इस बात को ध्यान में रखते हुए खेत को तैयार करना चाहिए की वह एक तरफ से ढालू हो ताकि पानी आसानी से निकल जाए|

नैक्ट्रिन की खेती के लिए उन्नत किस्में

हमारे देश में नेक्ट्रिन की नेक्टारेड, स्नोक्वीन, चरोकी, अन्नाक्वीन, लेट ले ग्रांड,  सनग्रांड, सनलाइट, सनराइज व सनराइप प्रमुख किस्में है|

नैक्ट्रिन की खेती के लिए प्रवर्धन या प्रसारण

नेक्ट्रिन पौधों का प्रवर्धन या प्रसारण साधारणतया: कलिकायन (चश्मा) व कलम बाँधकर किया जाता है| इसके लिए खुबानी, अलूचा व आडू के बीजू पौधे स्कंध रूप में प्रयोग किये जाते हैं| किन्तु आडू का स्कंध सर्वोत्तम सिद्ध हुआ है तथा अधिकतर व्यावसायिक किस्में आडू के ही स्कंध पर चश्मा द्वारा तैयार की जाती है|

बीजू पौधे सरलता पूर्वक तैयार किया जाते हैं, बीजों को रोपणी में 6.0 से 10 सेंटीमीटर की दूरी किसी मशीन या फावड़े से 5.0 से 7.5 सेंटीमीटर की गहरी नाली बनाकर 7.5 से 10.0 सेंटीमीटर की दूरी पर (बीज से बीज की दूरी) बो दिया जाता है एवं लगभग 3 से 5 सेंटीमीटर मिटटी की तह से ढक दिया जाता है|

बीजों को अच्छी तरह से तैयार खाद में मिलाकर बोना चाहिए, जिससे अगस्त तक बीजू पौधे लगभग 65 से 75 सेंटीमीटर की ऊँचाई तक हो जाये जिससे उनमें कलिकायन (चश्मा या बडिंग) सफलता पूर्वक की जा सके|

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नैक्ट्रिन की खेती के लिए गड्ढे बनाना

नैक्ट्रिन की बागवानी के लिए 5 x 5 मीटर की दूरी पर 0.9 x 0.9 x 0.9 मीटर के गड्ढे खोदने चाहिए| वर्षा से पहले इन गडढों को मिटटी, कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद से (समान मात्रा में प्रति गड्ढे के हिसाब से) भर देना चाहिए एवं इन्हें खेत की मिटटी की सतह से 30 सेंटीमीटर ऊपर तक भरना चाहिए|

नैक्ट्रिन की खेती के लिए पौध रोपण

नैक्ट्रिन के पौंधो की रोपाई सर्दी में मध्य दिसम्बर से मध्य फरवरी तक सुप्तावस्था में किसी समय कर सकते हैं| परन्तु बसंत ऋतु के आरंभ में पौधा लगाना सर्वोत्तम होता है| पौधे लगाने के बाद 0.80 से 0.90 मीटर की ऊँचाई पर छटाई कर देनी चाहिए| इसकी जड़ों का फैलाव पौधे के ऊपर सिरे की बढ़वार से करीब दुगुना होता है| इसलिए इसकी जड़ो के अच्छे फैलाव के लिए यह आवश्यक है, कि वहाँ पर ऐसे पौधे न हों, जिनसे जड़ों के फैलने में बाधा हो|

नैक्ट्रिन की खेती के लिए खाद तथा उर्वरक

नैक्ट्रिन की बागवानी से उत्पादन पर पौधे की बढ़वार का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है| पौधे का विकास एवं प्रकृति का प्रभाव फलों के आकार रंग व गुणों पर भी पड़ता है| अच्छी बढवार व पैदावार के लिए काफी मात्रा में उर्वरकों या जैविक खादों की आवश्यकता होती है| पहले वर्ष में खाद देने की आवश्यकता नहीं होती है| जबकि दूसरे वर्ष में 15 से 20 क्विंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ तथा पौधे के प्रति वर्ष आयु के हिसाब से प्रति पौधा 20 ग्राम नाईट्रोजन 15 ग्राम फास्फोरस तथा 15 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष आयु के हिसाब से दी जा सकती है|

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नैक्ट्रिन की खेती की देखभाल

खरपतवार को रोकने के लिए बसंत ऋतु में जुताई व गुड़ाई करते रहना चाहिए| जुताई व गुड़ाई करते समय नैक्ट्रिन की जड़ो का ध्यान रखना चाहिए| क्योंकि इसकी जड़ें ज्यादा गहराई तक नहीं जाती है| वर्षा के समय में भूमि सुधारने वाली फसलें लगनी चाहिए| जहाँ पर सिंचाई के साधन हो फल लगने से पकने के समय तक आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए|  इससे अच्छे व बड़े फल प्राप्त होते हैं|

नैक्ट्रिन के फलों को कम करना

नैक्ट्रिन के उत्पादन में अनावश्यक फलों को कम करने का महत्वपूर्ण स्थान है| इससे अच्छी गुणवत्ता और बड़े फल मिलते है तथा द्विवार्षिक फल आने की प्रवृत्ति भी लगभग समाप्त हो जाती है| इसलिए फल कम करने की क्रिया, नैक्ट्रिन में (अपने आप ही टूट कर गिर जाने वाले फलों के पश्चात तथा फलों के कड़े होने के पूर्व ) अप्रैल के अन्त में एवं मई के प्रथम सप्ताह में कर लेना चाहिए| इससे वृक्ष सुदृढ़ एवं लगातार फलने वाले हो जाते हैं| शाखाओं के टूटने की संभावना कम हो जाती है|

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नैक्ट्रिन के फलों का रख-रखाव

नैक्ट्रिन की फसल से प्राप्त फलो में डंठल नहीं होता है| इसलिए तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि फलों में कोई खरोंच न आये व पके फलों को तुरंन्त तोड़ लेना चाहिए, जिससे हानि न हो| जहाँ पर बाजार पास हो वहाँ फलो को वृक्ष पर पकने पर भी तोड़ा जाता है| जहाँ पर दूर हो वहाँ पर फलों का पूरी तरह से पकने के पहले तोड़ लेना चाहिए जिससे अच्छी अवस्था में बाजार ले जाया जा सके परंन्तु कच्चे फल नहीं तोड़ने चाहिए|

नैक्ट्रिन के फलों का उपयोग

अधिकतर नैक्ट्रिन के ताजे फलों को ही खाने के उपयोग में लाया जाता है| नैक्ट्रिन की जिन किस्मों में गुठली गुदे से चिपकी नहीं होती उन फलों को सुखा भी खाया जाता है तथा उन्हें ही डिब्बा बन्दी के उपयोग में भी लाते है| निचले इलकों से मध्यम या मैदानी इलाके तक समान रूप से पनपने के कारण यह फल किसानो के लिए आजीविका के लिहाज से मुनाफे वाला साबित हो सकता है|

इसकी खेती पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है| जिससे इसको उपर्युक्त स्थानो में इसका व्यावसायिक रूप से विस्तार किया जा सके| व्यापारिक दृष्टि से नैक्ट्रिन की डिब्बा बन्दी बहुत महत्वपूर्ण है, परंन्तु यह अधिकतर अभी उन व्यापारियो द्वारा ही किया जाता है|

जिनके पास आधुनिक यंत्र उपलब्ध रहते हैं| नैक्ट्रिन फल प्रसंस्करण के लिए बेहत्तर माना जाता है| इससे मुख्य रूप से जैम जैली व जूस तैयार किया जा सकता है| अधिक उत्पादन की स्थिति में इसके खराब होने से बचाने के लिए प्रसंस्करण का विकल्प मौजूद है|

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