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Home » ब्लॉग » काजू की खेती: किस्में, देखभाल, प्रबंधन और उपज

काजू की खेती: किस्में, देखभाल, प्रबंधन और उपज

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

काजू की खेती कैसे करें

काजू एक प्रमुख बागवानी फसल है| जिसकी मुख्य रूप से केरळा, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटका, तमिळनाडु, आंद्रप्रदेश और ओडिशा में खेती की जा रही है| पश्चिम बंगाल, छत्तीसगड़, गुजरात तथा उत्तर-पूर्वी प्रदेशों में इसे कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है| लोकप्रिय नाश्तावों में उपयोग के साथ साथ काजू को आईसक्री, पेस्ट्री तथा मिठाईयो में भी इस्तमाल किया जाता है| इसमे अधिक प्रोटीन और कम शक्कर होने के कारण आरोग्यवर्धक खाद्यों में एक अंश के रूप में अधिक प्रमुखता पा रहा है|

मौजूदा काजू बागों का अधिकतर विस्तार बीजों से किया गया है, जो परसंसेचन प्रक्रिया के कारण पुष्पण, फलन तथा अन्य गुणो में विजातीयता दिखाता है| इसलिए बागानों को इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए| ताकि इसकी बागवानी से गुणवत्ता युक्त अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके| इस लेख में काजू की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है|

काजू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

काजू एक उष्ण कटिबन्धीय फसल है| जो गर्म एवं उष्ण जलवायु में अच्छी पैदावार देती है| जिन क्षेत्रों में पाला पड़ने की सम्भावना होती है या लम्बे समय तक सर्दी पड़ती है, वहाँ पर इसकी खेती प्रभावित होती है| 700 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्र जहाँ पर तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर रहता है, काजू की अच्छी उपज होती है| 600 से 4500 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त माने गये हैं|

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काजू की खेती के लिए भूमि का चयन

काजू को अनेक प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है| परन्तु समुद्र तटीय प्रभाव वाले लाल एवं लेटराइट मिट्टी वाले भू-भाग इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं| उत्तर भारत के भी कुछ क्षेत्र काजू की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त पाये गये हैं| क्योंकी कुछ उत्तर क्षेत्रों की मिट्टी एवं जलवायु काजू की खेती के लिए उपयुक्त है|

काजू की खेती के लिए उन्नत किस्में

विभिन्न राज्यों के लिए काजू की उन्नत किस्मों की संस्तुति राष्ट्रीय काजू अनुसंधान केन्द्र (पुत्तूर) द्वारा की गई है| इसके अनुसार वैसे तो उत्तरी राज्यों के लिए किस्मों की संस्तुति नहीं है| परन्तु जो किस्में उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल एवं कर्नाटक के लिए उपयुक्त है| उनकी खेती उत्तरी- पूर्वी राज्यों में भी की जा सकती है| काजू की प्रमुख किस्में वेगुरला- 4, उल्लाल- 2, उल्लाल- 4, बी पी पी- 1, बी पी पी- 2, टी- 40 आदि है|

काजू की खेती के लिए खेत की तैयारी

काजू की बागवानी के लिए सर्वप्रथम खेत की खरपतवार, झाड़ियों तथा घासों को साफ करके खेत की 2 से 3 बार जुताई कर दें| अनचाहे वृक्षों की जड़ों को निकाल कर खेत को बराबर कर दें| जिससे नये पौधों को प्रारम्भिक अवस्था में पनपने में कोई कठिनाई न हो| काजू के पौधों को 7 से 8 मीटर की दूरी पर वर्गाकार विधि में लगाते हैं| अतः खेत की तैयारी के बाद अप्रैल से मई के महीने में निश्चित दूरी पर 60 X 60 x 60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे तैयार कर लेते हैं|

अगर जमीन में कड़ी परत है, तो गड्ढे के आकार को आवश्यकतानुसार बढ़ाया जा सकता है| गड्ढों को 15 से 20 दिन तक खुला छोड़ने के बाद 15 किलोग्राम गोबर की खाद या कम्पोस्ट, 2 किलोग्राम राक फॉस्फेट या डी ए पी के मिश्रण को गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में मिलाकर भर देते हैं| गड्ढों के आसपास ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वहाँ पानी न रूके| अधिक सघनता से बाग लगाने के लिए पौधों की दूरी 5 x 5 या 4 X 4 मीटर रखते हैं| शेष प्रक्रियाएँ सामान्य ही रहती है|

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काजू की खेती के लिए पौधे तैयार करना

काजू के पौधों को साफ्ट वुड ग्राफ्टिंग विधि से तैयार किया जा सकता है| भेट कलम द्वारा भी पौधों को तैयार कर सकते हैं| पौधा तैयार करने का उपयुक्त समय मई से जुलाई का महीना होता है|

काजू की खेती के लिए पौध रोपण

काजू के पौधों को वर्षा काल में ही लगाने से अच्छी सफलता मिलती है| तैयार गड्ढों में पौधा रोपने के बाद थाले बना देते हैं तथा थालों में खरपतवार की समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करते रहते हैं| जल संरक्षण के लिए थालों में सूखी घास का पलवार भी बिछाते हैं|

काजू की खेती के लिए खाद और उर्वरक

प्रत्येक वर्ष पौधों को 10 से 15 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों की भी उपयुक्त मात्रा देनी चाहिए| प्रथम वर्ष में 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम रॉक फास्फेट, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा की दर से दें| दूसरे वर्ष इसकी मात्रा दुगुनी कर दें और तीन वर्ष के बाद पौधों को 1 किग्रा यूरिया, 600 ग्राम रॉक फॉस्फेट एवं 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति वर्ष मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर के महीनों में आधा-आधा बांटकर देते रहें|

काजू की बागवानी में काट-छांट

काजू के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में अच्छा ढांचा देने की जरूरत होती है| अतः उपयुक्त काट-छाँट के द्वारा पौधों को अच्छा ढांचा देने के साथ-साथ फसल तोड़ाई के बाद सूखी, रोग एवं कीट ग्रसित तथा कैंची शाखाओं को काटते रहें|

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काजू की बागवानी में पौध देखभाल

काजू में ‘टी मास्कीटो बग’ की प्रमुख समस्या होती है| इसके वयस्क तथा नवजात नई कोपलों, मंजरों, फलों से रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं| कभी-कभी इसकी समस्या इतनी गम्भीर हो जाती है, कि इसके नियंत्रण के लिए पूरे क्षेत्र में एक साथ स्पेशल छिड़काव का प्रबन्ध करना पड़ता है| इसके नियंत्रण के लिए एक स्प्रे सिड्यूल बनाया गया है जो इस प्रकार है, जैसे-

पहला छिडकाव- कल्ले आते समय मोनोक्रोटोफॉस (0.05 प्रतिशत) का करें|

दूसरा छिडकाव- फूल आते समय कार्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का करें|

तीसरा छिडकाव- फल लगते समय कार्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का करने की सलाह दी जाती है|

काजू के फलों की तोड़ाई एवं उपज

काजू में पूरे फल की तोड़ाई नहीं की जाती है| केवल गिरे हुए नट को इकट्ठा किया जाता है और इसे धूप में सुखाकर तथा जूट के बोरों में भरकर ऊँचे स्थान पर रख दिया जाता है| प्रत्येक पौधे से लगभग 8 से 10 किलोग्राम नट प्रतिवर्ष प्राप्त होते है| इस प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 10 से 17 क्विंटल काजू के नट प्राप्त होते हैं| जिनसे प्रसंस्करण के बाद खाने योग्य काजू प्राप्त होते है|

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