• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » धान की जैविक खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

धान की जैविक खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

December 30, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान की जैविक

भारत धान की जैविक और परम्परागत पद्धति की खेती में विश्व में विशेष स्थान रखता है| धान की खेती यहां की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी गहरी छाप रखती है| आधुनिक कृषि पद्धति में सघन खेती, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं नींदानाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से भारत लगभग फसलोत्पादन में आत्मनिर्भर तो हो गया है, परन्तु उत्पाद की गुणवत्ता में लगातार गिरावट जारी है|

यहाँ की पारम्परिक किस्में अपने स्वाद एवं सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं| दुर्भाग्यवश पिछले कुछ वर्षों से उनके यह अद्भुत गुण लुप्त हो रहे हैं| इन किस्मों की खेती पूर्व में परम्परागत तरीके से जैविक रूप में पोषक तत्वों की पूर्ति कर की जाती थी| रासायनिक आदानों के प्रयोगों से यह परम्परा पिछले 25 से 30 वर्षों से लगातार टूटती जा रही है|

परन्तु धान की जैविक खेती के पुनर्प्रतिपादित और आधुनिक संकल्पना से इन सुगंधित तथा स्वादिष्ट किस्मों की खोई हुई गुणवत्ता को एक बार फिर से प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में धान की जैविक खेती कैसे करें, और उपयोगी एवं आधुनिक पद्धति का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- बाजरा की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

धान की जैविक खेती के लिए प्रचलित किस्में

धान की जैविक खेती करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली परंपरागत बासमती और अन्य सुगन्धित प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए| परम्परागत प्रजातियों में उर्वरकों प्रमुख रूप से नत्रजन की कम आवश्यकता होती है एवं विश्व बाजार में इनकी मांग अच्छी होने के कारण अधिक लाभ भी कमा सकते हैं| किसान भाई धान की जैविक खेती हेतु बीजों का चयन करते समय निम्न बातों पर ध्यान दें, जैसे-

1. बीज ऐसी किस्म का होना चाहिए, जो क्षेत्र विशेष में उगाने के लिए अनुमोदित हो और जिसकी बाजार में अच्छी मांग हो|

2. धान की जैविक खेती हेतु बीज अनुवांशिक रूप से शुद्ध होने के साथ-साथ खरपतवार तथा अन्य बीजों से मुक्त होना चाहिए|

3. धान की जैविक खेती हेतु बीज सही आयु और खराब भंडारण से मुक्त होना चाहिए|

4. धान की जैविक खेती हेतु बीजों की अंकुरण क्षमता 80 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए| किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान की उन्नत किस्में

धान की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा

भारत में धान की सीधी बुवाई एवं असिंचित दशा में 100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है| बुवाई हमेशा पंक्तियों में करनी चाहिए| पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 और पौधे से पौधे की 10 सेंटीमीटर तथा बीज की बुवाई 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए| सिंचित दशा में रोपाई हेतु नर्सरी तैयार करने के लिए 35 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर धान के बीज की आवश्यकता होती है|

धान की जैविक फसल की बुवाई और रोपाई का समय

धान की जैविक खेती हेतु धान की नर्सरी विभिन्न प्रजातियों या किस्मों के पकने की अवधि पर निर्भर करती है| सुगन्धित किस्मों और बासमती के लिए नर्सरी की बुवाई का समय 15 जून के आसपास सर्वोत्तम होता है एवं 20 से 25 दिन की पौध होने पर रोपाई प्रारम्भ कर देनी चाहिए| आमतौर पर पौध (नर्सरी) की तैयारी जून के प्रथम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जाती है|

यह भी पढ़ें- कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

धान की जैविक खेती के लिए बीजोपचार

धान के बीजों को भिगोने से पहले लगभग 17 प्रतिशत नमक (1.70 किलोग्राम प्रति 10 लीटर पानी की दर से) के घोल में डुबा देवें| इस घोल में कमजोर और रोगजनित बीज तैरते है, उन्हें पानी से छानकर बाहर निकाल दें| शेष बीजों को शुद्ध पानी से धोकर 24 घंटे तक पानी में भिगोये रखें|

तत्पश्चात स्यूडोमोनास फ्लोरेसन्स और ट्राइकोडर्मा प्रत्येक 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें| बीजोपचार के बाद बीजों को मोटी तह बनाकर नम स्थान पर 36 से 48 घंटे तक बोरियों से ढककर रख दें| बीजों की नमी बनाये रखने के लिए दिन में दो बार पानी का छिड़काव करें|

धान की जैविक खेती के लिए पौध तैयार करने की विधि

धान की जैविक खेती से उत्पादन के लिए किसी भी रासायनिक या कृत्रिम पदार्थों का प्रयोग वर्जित है| इसलिए पौध क्षेत्र सभी प्रकार के रसायनों की पहुँच से दूर होना चाहिए| एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 1000 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र पर्याप्त होता है| धान की पौध गीली एवं शुष्क विधि दोनों से तैयार की जा सकती है|

पौध क्षेत्र में 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से यानि 2 से 2.5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या 10 टन प्रति हेक्टेयर (1 टन 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र हेतु) की दर से केंचुआ खाद का प्रयोग करना चाहिए| फास्फोरस व जिंक की पूर्ति के प्रति 10 वर्गमीटर पौध क्षेत्र हेतु रॉक फास्फेट 1 किलोग्राम की दर से और जिंक सल्फेट 100 ग्राम की दर से डालना चाहिए|

ये दोनों यौगिक धान की जैविक खेती के लिये मान्य होते हैं| पौध डालने के लिए शुष्क अवस्था में ही 1.25 मीटर चौड़ी एवं सुविधानुसार लम्बी व 15 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियाँ बना लें| प्रत्येक क्यारी के चारों ओर या दोनों तरफ 30 से 40 सेंटीमीटर की सिंचाई व जल निकास की नालियाँ बना लें तत्पश्चात पानी भरकर हल्का कीचड़ बना लें| अंकुरित बीजों को समान रूप से बुवाई कर दें|

बुवाई शुष्क विधि द्वारा भी की जा सकती है| एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए शुष्क अवस्था में उपरोक्त आकार की 70 से 80 क्यारियाँ बना लें तथा 5 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बुवाई कर दें|कम वर्षा या अपर्याप्त सिंचाई के साधन वाले क्षेत्रों में यह विधि अधिक उपयुक्त है| मृदाजनित कीट और रोग आदि से की सुरक्षा के लिए गर्मी के दिनों में रबी की फसल कटाई के बाद जहाँ पौध डालनी है उस क्षेत्र में प्लास्टिक की पलवार करके मिटटी का सोलरीकरण (सोलराइजेशन) कर लेना चाहिए|

यह भी पढ़ें- मक्का की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

धान की जैविक खेती फसल में पोषक तत्व प्रबंधन

धान की जैविक खेती में सभी पोषक तत्वों की पूर्ति जैविक स्त्रोतों से की जाती है, जिसके लिए निम्न स्त्रोत प्रमुख है, जैसे-

हरी खाद- धान की जैविक खेती हेतु सिंचित अवस्था में और अन्य जैविक खादों के अभाव में, हरी खाद का प्रयोग सर्वोत्तम विकल्प है, इसके लिए ढेंचा (सेसबेनिया एक्यूलियाटा) तथा सनई (क्रोटोलेरिया जंसिया) की फसलें उपयुक्त रहती है| हरी खाद की अच्छी फसल लेने के लिए मई माह में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की बीज दर से बुवाई करनी चाहिए| ढेंचा व सनई के बीजों को मिलाकर बोने से और अच्छा परिणाम आता है|

वर्षा न हो तो 2 से 3 सिंचाई आवश्यकतानुसार खाद को अच्छी तरह से सड़ाने के लिए ट्राइकोडर्मा कल्चर (1 किलोग्राम प्रति टन) का प्रयोग करें, जिससे गोबर की खाद की गुणवत्ता बढ़ जाती है| गोबर या कम्पोस्ट की अच्छी खाद तैयार करने के लिए समय-समय पर गड्ढों में थोड़ा-थोड़ा रॉक फास्फेट मिलाते रहना चाहिए|

वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)- धान की जैविक खेती के लिए केंचुआ खाद सर्वोत्तम पायी गयी है| धान की रोपाई से पहले खेतों में वर्मी कम्पोस्ट 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए| वर्मी कम्पोस्ट की गुणवत्ता को बढाने के लिए वर्मी कम्पोस्ट बनाते समय स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 200 ग्राम प्रति 100 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट की दर से प्रयोग करनी चाहिए| वर्मी कम्पोस्ट खरीदने के बजाय किसानों द्वारा खुद ही तैयार करना चाहिए| वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग खड़ी फसल में भी किया जा सकता है|

एजोला- एजोला पानी के तालाबों में तैरने वाला फर्न है, जिनकी पत्तियों में नत्रजन स्थिरीकरण करने वाले नील हरित शैवाल (साइनोबैक्टेरिया) रहते हैं| रोपाई के आठ-दस दिन बाद धान की फसल में पानी लगाकर 2 से 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से एजोला डालना चाहिए| एजोला की अच्छी बढ़वार के लिए गोबर या केंचुआ खाद और समय-समय पर रॉक फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैविक विधि से कीट एवं रोग और खरपतवार प्रबंधन कैसे करें

कई वर्षों तक निरन्तर हरी खाद उगाने या उचित मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग किये जाने पर जैविक धान के लिए आवश्यक फास्फोरस और पोटाश की मात्रा की पूर्ति हो जाती है| पोषक तत्वों की कमी की दशा में रॉक फॉस्फेट 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से 3 वर्षों में एक बार अवश्य प्रयोग करना चाहिए|

जिंक की कमी होने पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट एवं 0.25 प्रतिशत चूने का घोल बनाकर छिड़काव करने पर जिंक की कमी की पूर्ति हो जाती है| जिंक सल्फेट की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर बुवाई या रोपाई पूर्व दिया जा सकता है| प्रयोगों के आधार पर ऐसा पाया गया है, कि धान में पोषक तत्व प्रबंधन हेतु एकीकृत जैविक स्त्रोतों जैसे कि ढेंचा (हरी खाद) के बाद शेष नत्रजन की मात्रा केंचुआ खाद द्वारा 20 से 25 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देना लाभप्रद होता है|

अखिल भारतीय समन्वित कृषि प्रणाली परियोजना एवं नेटवर्क प्रोजेक्ट आन आर्गेनिक फार्मिंग के अंतर्गत किये गये प्रयोगों से ज्ञात होता है, कि नत्रजन की कुल मात्रा का 1/3 कम्पोस्ट, 1/3 वर्मी कम्पोस्ट एवं 1/3 नीम की खली द्वारा देने पर न केवल धान की उत्पादकता बढ़ती है|

बल्कि मिटटी स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है, तीन से चार वर्षों पश्चात जैविक खेती से उत्पन्न धान का उत्पादन रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की तुलना में अधिक प्राप्त होने लगता है| मिटटी स्वास्थ्य के साथ ही साथ दीमक आदि की समस्या का भी निवारण हो जाता है|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक

धान की जैविक खेती के लिए पौधों की रोपाई

धान की जैविक खेती हेतु हरी खाद वाली फसलों को खेत में मिलाने के 2 से 3 दिन बाद धान की रोपाई करनी चाहिए| ट्रैक्टर चलित पडलर की सहायता से हरी खाद वाली फसलों को सरलता से मिट्टी में मिलाया जा सकता है या हरी खाद वाली फसलों को सूखे में ही जोत कर भी मिट्टी में मिलाया जा सकता है| शुष्क अवस्था में फसल को खेत में पलटने से पहले दराती द्वारा छोटे-छोटे टुकड़े कर लेने चाहिए|

तत्पश्चात् बैलों द्वारा चलित हल की सहायता से खेतों में मिला देना चाहिए| रोपाई से पूर्व धान की पौध की जड़ों को स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स का घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) बनाकर उपचारित करना चाहिए| लेव लगाने के पश्चात् 20 सेंटीमीटर दूरी पर कतारों में व 10 सेंटीमीटर पौध से पौध की दूरी रखते हुए एक स्थान पर दो पौधों की उथली रोपाई करनी चाहिए|

धान की जैविक खेती हेतु पंक्तियों में रोपाई न करने की दशा में रोपाई इस तरह से करनी चाहिए कि प्रति वर्ग मीटर में 45 से 50 रोपे (हिल) समा सके| वर्गाकार पौध विन्यास खरपतवार नियंत्रण में सहायक होता है| अधिक बढ़वार वाली सुगंधित किस्मों की रोपाई 15 x 15 या 20 x 20 सेंटीमीटर वर्गाकार आकृति में करनी चाहिए|

धान की जैविक फसल में खरपतवार प्रबंधन

धान की जैविक खेती हेतु हरी खाद का उगाना तथा उचित जल प्रबंधन खरपतवारों को नियंत्रित करता है| इसके उपरान्त सिंचित धान की रोपाई के बाद समय से (20 दिन एवं 40 दिन पर) अवश्य करें| रोपाई के 20 दिन बाद पहली निंदाई की जाती है या कोनोवीडर या अंबिका ताऊची या ताऊची गुरमा चलाते हैं|

धान की जैविक खेती में उसके बाद 35 से 40 दिन बाद दूसरी निंदाई कर लेनी चाहिए| असिंचित क्षेत्र में कम से कम दो बार द्वारा निंदाई करनी चाहिए| धान के जमाव के बाद 20 से 25 दिनों के अन्दर पहली निंदाई करना आवश्यक है| तत्पश्चात् आवश्यकतानुसार एक-दो निंदाई और करनी चाहिए|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे एवं उपयोगी पद्धति

धान की जैविक फसल में जल प्रबंधन

धान की जैविक खेती से अच्छी उपज के लिए उचित जल प्रबंधन जरूरी है| साधारणतः अच्छी पैदावार के लिए खेतों में 2 से 5 सेंटीमीटर पानी बनाये रखना चाहिए| यद्यपि कम पानी में भी धान की अच्छी फसल हो जाती है, परन्तु यह पानी खेत में खरपतवार के नियंत्रण में सहायक होता है| धान के खेतों में दरारे नहीं पड़ने देनी चाहिए| धान की फसल को खाद्यान्न फसलों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है|

फसल की कुछ विशेष अवस्थाओं में जैसे- रोपाई के बाद एक सप्ताह तक, कल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने और दाना भरते समय खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए| फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए अति संवेदनशील है| परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है, कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है|

इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक से दो दिन बाद 5 से 7 सेंटीमीटर सिंचाई करना उपयुक्त होता है| यदि वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे, तो सिंचाई अवश्य करें| कल्ले निकलते समय खेत में पानी कम से कम रखना चाहिए| इसलिए जिन क्षेत्रों में पानी भरा रहता हो वहां जल निकासी का प्रबंध करना चाहिए, अन्यथा कल्लों की संख्या कम हो जाती है, जिसका असर उत्पादन पर पड़ता है|

यह भी पढ़ें- परजीवी एवं परभक्षी (जैविक एजेंट) द्वारा खेती में कीट प्रबंधन

धान की जैविक खेती की देखभाल 

सामान्य सावधानियां-

1. धान की जैविक खेती हेतु विशिष्ट क्षेत्रों के लिए प्रतिरोधी एवं अनुकूलित किस्मों का चुनाव करें|

2. धान की जैविक खेती हेतु स्वच्छ और रोग मुक्त बीजों का चुनाव करें|

3. समुचित सस्यीय क्रियाएं, जैसे समय पर बुवाई या रोपाई, रोपाई ज्यामिति, रोपाई की गहराई और खरपतवार नियंत्रण आदि का ध्यान रखें|

4. उंचित जल प्रबंधन, उदाहरणार्थ कीटों और रोगों के आक्रमण के समय पर खेत से जल निकासी पर ध्यान दें|

खेतों की तैयारी के समय- धान की जैविक खेती हेतु ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स उपचारित गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए| इसके लिए गोबर की खाद बनाते समय 1 किलोग्राम प्रति गड्ढ़ा (3 X 1 X 1 मीटर आकार) ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स डालना चाहिए|

गोबर की खाद में समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए| गोबर की खाद प्रयोग करने के 15 तथा 7 दिन पूर्व पानी का छिड़काव करें, जिससे नमी बनी रहे| हरी खाद बोने के लिए भी जुताई के समय ट्राइकोडर्मा की 5 ग्राम मात्रा एक लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की जैविक खेती, जानिए प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ

नर्सरी की बुवाई के समय- धान की जैविक खेती हेतु बीज को 5 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स और ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर बोयें| एक फीरोमोन ट्रैप प्रति 100 वर्ग मीटर में लगायें| ट्राइकोग्रामा किलोनिस प्रति हेक्टेयर में 1,50,000 परजीवी छोड़ें|

पौध रोपण के समय- नर्सरी उखाड़ने के एक दिन पूर्व स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स की 1 ग्राम मात्रा प्रति वर्ग मीटर नर्सरी में पानी भरने के बाद डालें या पौध की जड़ों को पी एस एफ से उपचारित करें| पौध रोपण छाया में करें ताकि जीवाणु पर्ण अंगमारी से बचाव हो सके| धान की जैविक खेती में कीट एवं रोगों का एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन हेतु यहाँ पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

धान की जैविक फसल की कटाई

धान की कटाई का समय इसकी किस्म और रोपाई के समय पर निर्भर करती है| जब धान की बालियां 80 प्रतिशत तक सुनहरी पीली हो जाये तो हँसिया या कम्बाइन हार्वेस्टर के द्वारा इसकी कटाई प्रारंभ कर देनी चाहिए|

धान की जैविक खेती से उत्पादन

धान की जैविक खेती अपनाकर उपयुक्त परिस्थिति में परम्परागत किस्मों से 35 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ली जा सकती है| इस प्रकार से उत्पन्न की गई धान की पैदावार का जैविक प्रमाणीकरण किये जाने की स्थिति में सामान्य उपज की तुलना में 25 से 30 प्रतिशत अधिक बाजार मूल्य प्राप्त हो सकता है|

यह भी पढ़ें- अरहर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap