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Home » ब्लॉग » बाजरा की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

बाजरा की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

बाजरा की जैविक खेती

बाजरा की जैविक खेती गर्म जलवायु और 50 से 60 सेन्टीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से की जा सकती है| बाजरे की फसल अधिक वर्षा वाले उन क्षेत्रों में अच्छी तरह से की जा सकती है जहां पर उचित जल निकास हो|

बाजरा की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

बाजरा फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 37 डिग्री सेल्शियस माना जाता है, इसलिए इसकी बुवाई जुलाई माह में कर देनी चाहिए|

बाजरा की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि

बाजरा की फसल उचित जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाई जा सकती है| इसके लिए बलुई दोमट मिटटी अति उपयुक्त होती है|

यह भी पढ़ें- जैविक खेती कैसे करें पूरी जानकारी

बाजरा की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

मानसून की पहली वर्षा होते ही खेत की एक अच्छी जुताई करके बुवाई करे| अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए| भारी मिट्टी एवं खरपतवार से ग्रस्त खेतों में दो अच्छी जुताइयों की आवश्यकता होती है| बुवाई के दो तीन सप्ताह पहले मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को ध्यान में रखते हुए प्रति हेक्टेयर 9 से 10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें और भूमि में अच्छी तरह से मिला दें|

बाजरा की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में

आर एच बी- 121, एच एच बी- 67 (उन्नत), एच एच बी- 60, जी एच बी- 538, पूसा- 605, आर एच बी- 177, एम पी एम एच- 17 आदि| बाजरा की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बाजरा की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं एवं पैदावार की जानकारी

ध्यान दें- जहां तक संभव हो बाजरा की जैविक खेती के लिए जैविक प्रमाणित बीज ही काम में लें|

बाजरा की जैविक खेती और फसल क्रम

बाजरा ग्वार फसल क्रम अपनाने से अधिक लाभ मिलता है और भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं पूरी जानकारी

बाजरा की जैविक खेती के लिए भूमि उपचार

बाजरा की जैविक खेती हेतु दीमक के प्रकोप से बचाव के लिए नीम की खली या करंज की खली 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें|

बाजरा की जैविक खेती के लिए बीज उपचार

बाजरा की जैविक खेती के लिए बीजों को ऐजेटोबेक्टर और पी एस बी कल्चर से उपचारित करके छाया में सुखाने के बाद शीघ्र ही बुवाई करें|

बाजरा की जैविक खेती के लिए बीज दर और बुवाई

सामान्यतः 4 किलोग्राम बाजरे का प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर की दर से बोना चाहिए| बाजरा की जैविक खेती हेतु कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेन्टीमीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखें|

बाजरा की जैविक फसल में पोषक तत्व प्रबन्धन

बाजरा की जैविक खेती के लिए देसी सड़ी हुई गोबर की खाद 9 टन + फसलों के अपघटित अवशेष 4 टन प्रति हैक्टेयर बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाएं, खड़ी फसल में वर्मीवास या मटका खाद का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन

बाजरा की जैविक फसल में सिंचाई और निराई-गुड़ाई

सिंचाई- सिंचित क्षेत्र फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें, पौधों में फुटान होते समय सिट्टे निकलते समय और दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए|

निराई-गुड़ाई- बाजरा की जैविक खेती में बुवाई के तीसरे से चौथे सप्ताह तक खेत से खरपतवार अवश्य निकाल देनी चाहिए, इसके पश्चात् आवश्यकतानुसार खेत से खरपतवार निकालते रहे| बाजरे की खड़ी फसल में 30 दिन बाद कतारों के बीच 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से वानस्पतिक पलवार बीछाने पर मिटटी में नमी का कम से कम ह्रास होता है और शुष्क क्षेत्रों में बाजरे की अधिकतम पैदावार तथा फायदा प्राप्त किया जा सकता है|

बाजरा की जैविक फसल में कीट और रोग रोकथाम

दीमक- दीमक का प्रकोप लगभग सभी फसलों में होता है| यह फसलों को बुवाई से लेकर कटाई तक नुकसान पहुंचाती है| इसका प्रकोप मिटटी में कम नमी एवं अधिक तापमान की स्थिति में तीव्र गति से होता है| दीमक पौधों की जड़ों और भूमि से सटे हुए तने के भाग को खाकर खोखला कर देती है, जिससे पौधे पीले पड़कर सुख जाते है|

रोकथाम-

1. फसल की समय पर सिंचाई करें, क्योंकि पानी की कमी होने पर पौधे सूख जाते है तथा दीमक के आक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है|

2. नीम की खली का प्रयोग लाभदायक रहता है, क्योंकि इसकी गंध से दीमक दूर भागती है|

3. खेत में अच्छी तरह सड़ी गली गोबर की खाद का ही प्रयोग करें, क्योंकि गोबर की कच्ची खाद का उपयोग करने से दीमक का प्रकोप बढ़ता है|

4. सफेदा की लकड़ी का प्रयोग करें, सफेदा की लकड़ी खेत में जगह जगह गाढ़ देने से दीमक लकड़ी की ओर आकर्षित होगी जिसे आसानी से खत्म किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी पद्धति की प्रक्रिया

सफेद लट- यह लट पौधों की जड़ों को काटकर फसल की विभिन्न अवस्थाओं में बाजरे को नुकसान पहुंचाती है|

रोकथाम- सफेद लट के भंग प्रकाश के प्रति आकर्षित होते हैं| अतः इन्हें प्रकाशपाश पर आकर्षित कर एकत्रित कर मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर नष्ट कर देवें|

मृदु रोमिल आसिता- यह रोग हरी बाली रोग या डाउनी मिल्ड्यू के नाम से भी जाना जाता है| यह फफूदी जनक रोग है| यह रोग अंकुरण के समय व पौधों की बढ़तवार के समय शुरू होता है| इससे प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बढ़तवार रूक जाती है|

रोकथाम-

1. रोग ग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दे|

2. रोग रोधी किस्मों की बुवाई करे, जैसे राज 171, एच एच बी 67 आदि किस्में बोयें|

अरगट- यह रोग बाली बनते समय बाजरे को नुकसान पहुंचाता है|

रोकथाम-

1. बाजरे के खेत में तथा उसके आस-पास अन्जन घास को निराई कर नष्ट करें, क्योंकि बाजरे का यह रोग अन्जन घास द्वारा फैलता है|

2. बाजरे की बुवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में किये जाने पर अरगट के प्रकोप में स्वतः ही कमी होना पाया गया है|

3. अरगट के बचाव हेतु बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग 5 मिनट तक डुबोकर हिलायें, तैरते हुए हल्के बीज व कचरे को निकालकर जला दीजिए, शेष बचे हुए बीजों को साफ पानी में धोकर अच्छी प्रकार सुखाकर बुवाई के काम में लेवें|

बाजरा की जैविक खेती से पैदावार

जैविक फसल लेने वाले खेत में शुरूआती दो से तीन वर्षों तक पैदावार में कमी पाई गई| इसके बाद उपज में धीरे – धीरे बढ़ोतरी पाई गई एवं इसके बाद बाजरा की पैदावार 15 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|

यह भी पढ़ें- हांडी जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए विधि एवं उपयोग

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