आम के उत्पादन में हमारा देश अग्रणी राष्ट्र है, परन्तु विश्व व्यापार संगठन के दौर में देश एवं विदेश के बाजारों में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने तथा लाभप्रद व्यवसाय के लिए गुणवत्तायुक्त प्रति इकाई उत्पादन में वृद्धि लाना एक चुनौती है| ऐसे में 30 से 35 प्रतिशत पुराने एवं अनुत्पादक बागों की बाहुल्यता एक गंभीर चिंता का विषय है| व्यापक स्तर पर अनुत्पादक पुराने बागों को समूल निकाल कर नये बाग स्थापित करना दीर्घकालीन तथा खर्चीला विकल्प होगा|
जीर्णोद्धार तकनीक अपनाकर आम के पुराने बागों का पुनर्युवन प्रदान किया जा सकता है और उनकी गुणवत्ता युक्त उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है| आर्थिक एवं परिस्थितिकीय दृष्टिकोण से यह तकनीक नि:संदेह बागवानों के लिए प्रभावी एवं लाभकारी साबित हो सकती है| आमतौर पर देखा गया है, कि 35 से 50 वर्ष बाद आम के वृक्षों की शाखायें बढ़कर दूसरे वृक्षों को छूने लगती हैं| फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश वृक्षों के पर्णीय भागों में पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता है|
जिसके अभाव में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया क्षीण हो जाती है, फलस्वरूप कल्ले पतले तथा अस्वस्थ हो जाते हैं| यही नहीं ऐसे आम के बागों में कीट एवं बिमारियों का प्रकोप भी अधिक होता है| जिनका नियंत्रण कर पाना कठिन हो जाता है तथा बाग उत्पादन की दृष्टि से अनुपयुक्त हो जाते हैं| ऐसे वृक्षों की सामयिक और वांछित कटाई-छंटाई (कृन्तक) करके बागों को पुनः उत्पादक बनाया जा सकता है|
आम के बागों की आवश्यक कटाई-छंटाई करने से नए कल्लों का सृजन होकर कृन्तित वृक्ष का आकार दो वर्षों में छतरीनुमा बन जाता है| जिससे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सुदृढ़ हो जाती है और पुष्पन व फलन क्षमता बढ़ जाती हैं| आम की उन्नत बागवानी की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की खेती कैसे करें
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कटाई-छंटाई विधि
आम के पूराने, घने एवं आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी वृक्षों की सभी अवांछित शाखाओं को पहले चिन्हित कर लेते है| फिर दिसम्बर माह में चिन्हित शाखाओं की भूमि सतह से लगभग 4 से 5 मीटर की ऊंचाई पर आरी से कटाई करते हैं| कटाई के लिए शक्ति चालित आरी अधिक उपयुक्त रहती है| सूखी, रोग ग्रसित एवं पेड़ के बीच की घनी शाखाओं को काटकर निकाल देते हैं| पर्णीय क्षेत्र के विकास के लिये पेड़ पर मात्र 3 से 4 कान्तित शाखाये ही रखते हैं| कृन्तन करते समय यह सावधानी अवश्य रखनी चाहिए, कि अनावश्यक रूप से शाखाओं का निचला भाग फट न जाये|
इसलिए पहले आरी से नीचे की तरफ लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर कृन्तन (कटाई) कर, फिर टहनी के ऊपरी भाग से कटाई करते हैं| कृन्तन के तुरन्त बाद एक किलोग्राम फफूंदी नाशक (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड) 250 ग्राम अरंडी का तेल एवं उचित मात्रा में पानी मिलाकर तैयार किया गया लेप शाखाओं के कटे हुए भाग पर लगाते हैं, ताकि सूक्ष्म जीवाणुओं तथा रोगों का संक्रमण न हो सके|
बायोडायनिमक ट्री पेस्ट (40:40:40) किलोग्राम के अनुपात में बाग की मिट्टी, बालू तथा दुधारू गाय के गोबर के साथ 25 ग्राम बी डी 500 (गाय सीघ खाद का मिश्रण) या गोबर और चिकनी मिटटी बराबर मात्रा में मिलाकर तैयार किया गया लेप भी प्रभावी होते हैं| इसके बाद फरवरी माह के मध्य में वृक्षों के तनों के पास थाले एवं सिंचाई की नालियां अवश्य बना देनी चाहिए|
जीर्णोद्धार के लिए आम वृक्षों की कटाई बाग की एकान्तर पंक्तियों में करनी चाहिए जिससे बागवानों पर आर्थिक प्रभाव कम पड़ता है| एकान्तर पंक्तियों में कृन्तन के फलस्वरूप बाग में सूर्य का प्रकाश पर्याप्त रूप से उपलब्ध हो जाता है| जिससे शेष एकान्तर पंक्तियों के वृक्षों में, जिनकी कटाई-छंटाई नहीं कि गई है, समुचित प्रकाश मिलने से स्वस्थ कल्ले निकालते हैं तथा पहले की अपेक्षा उत्पादन में लगभग 3 से 4 गुना तक वृद्धि हो जाती है|
उपज में वृद्धि तथा काटी गई लकड़ियों की बिक्री व बाग में अन्तः फसल से अर्जित आमदनी कटाई से हुई क्षति की प्रतिपूर्ति कर देते हैं|
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अन्तः फसलें
आम के बागों में एकान्तर पंक्ति की कटाई-छंटाई के बाद वृक्ष के दोनों तरफ काफी खुली जगह हो जाती है| जिसमें अन्तः फसलें लेकर अतिरिक्त आमदनी अर्जित की जा सकती है| जायद में तरोई, लौकी, खीरा, लोबिया तथा रबी के मौसम में आलू की फसल लेना लाभदायक रहता है|
पोषण एवं जल प्रबंधन
आम के बागों में कटाई के बाद वृक्षों में, 2.5 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1.5 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष की दर से थाले में प्रयोग करते हैं| इन खादों में सिंगल सुपर फास्फेट व म्युरेट आप पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा फरवरी के अन्त में थालों में डालते हैं और शेष यूरिया की आधी मात्रा जुन के अन्त में देते हैं| इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद (प्रति वृक्ष) जुलाई के प्रथम सप्ताह में डालना लाभप्रद होता है|
उर्वरक डालने के पूर्व थालों की अच्छी प्रकार से निराई-गुड़ाई अवश्य कर देनी चाहिए| वृक्षों की सिंचाई मध्य मार्च से मानसून आने तक 10 से 12 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए, ताकि शाखा की वृद्धि अच्छी हो सके तथा नव सृजित कल्ले नमी के अभाव में सूखने न पाये| अप्रैल से जून माह तक नमी को संचित रखने के लिए काली पालीथीन या आम की पत्तियां या सूखी घास अथवा पुवाल थालों में बिछाना (मलचिंग) चाहिए|
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कल्लों का विरलीकरण
आम के बागों में दिसम्बर महीने में हुए कृन्तन के लगभग तीन से चार माह उपरान्त (मार्च से अप्रैल) से इन छटाई की गई शाखाओं पर बाहुल्यता में नये कल्ले निकलते हैं| जिनका वांछित विरलीकरण आवश्यक है| स्वस्थ कल्लों युक्त खुले पर्णीय क्षेत्र के विकास के लिए शाखाओं के बाहरी तथा 8 से 10 स्वस्थ कल्ले प्रति शाख रखकर, शेष अवांछित कल्लों को हटा दिया जाता है|
जून व अगस्त में वांछित विरलीकरण के उपरांत कॉपर आक्सीक्लोराइड फफूंद नाशक (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना आवश्यक है| इससे पत्तियों पर लगने वाले रोगों से बचाव होता है| अक्टूबर माह में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव प्ररोहों के उचित विकास के लिए लाभप्रद होता है|
कीट एवं रोगों की रोकथाम
आम के बागों की सामयिक निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए| समुचित देख-रेख के अभाव में कृन्तित वृक्ष तना भेदक कीट से ग्रसित हो जाते हैं| कीट द्वारा बनाए सुराख में लोहे की पतली तीली डालकर कीड़ों को निकाल कर नष्ट कर देते हैं या नुआन कीटनाशी में भीगे रूई के फोहों को छेद में रखकर छेद को गीली मिट्टी से बन्द कर देते हैं| इस प्रकार इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है|
नव सृजित कल्लों को पत्ती खाने वाले कीट अधिक क्षति पहुंचा सकते है| इसके लिए कार्बरिल कीटनाशी (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का 10 से 12 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करके इस कीट का प्रबंधन किया जा सकता है| पर्ण धब्बों (एन्थ्रैक्नोज रोग) की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिडकाव लाभदायक होता है|
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पुष्पन एवं फलन
आम के छटाई किये गये वृक्षों की सघन एवं सामयिक देखभाल करने से कृन्तित शाखाओं पर सृजित कल्ले लगभग दो वर्ष उपरान्त पुष्पन एवं फलन में आने लगते हैं| प्रयोगों के आधार पर यह पाया गया कि कृन्तित वृक्षों से गुणवत्तायुक्त आम की औसतन 65 किलोग्राम उपज प्रति वृक्ष प्रतिवर्ष प्राप्त हो जाती है और प्रति वर्ष उत्पादन में बढ़ोत्तरी होकर पुराने एवं अनुत्पादक आम के बाग पुनः आर्थिक रूप से लाभप्रद सिद्ध होते हैं|
जीर्णोद्धार खर्च
आम के बागों की उपरोक्त जीर्णोद्धार तकनीक से सम्बन्धित सभी कार्य जैसे- मेहनत, खाद एवं उर्वरक, सिंचाई, निराई-गुड़ाई, कीट एवं फफूंदी नाशक दवाओं आदि पर किए गये व्यय का आंकलन कर यह पाया गया है, कि प्रारम्भिक तीन वर्षों में औसतन 150 से 250 रुपये, प्रति वृक्ष खर्च आता है|
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