आम की अच्छे गुणों और नियमित फल देने वाली सामान्य या संकर किस्में विकसित करने के लिए मुख्य रूप से कोडुडूर (आन्ध्र प्रदेश), सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) और सबौर (बिहार) में छठे दशक के प्रारम्भ में अनुसंधान कार्य प्रारंभ किया गया| इसके बाद आम संकरण का योजनाबद्ध कार्यक्रम कई अनुसंधान संस्थानों, जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली; भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर; केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ; फल शोध केन्द्र, संगारेड्डी; फल शोध केन्द्र, बेंर्गुले; कृषि अनुसंधान केन्द्र, परिया और कई संस्थानों में प्रारम्भ किया गया है|
परिणाम स्वरूप आम की कई संकर किस्में विकसित की गई, जिसमें मल्लिका तथा आम्रपाली को सर्व अधिक लोकप्रियता मिली| इस लेख में आम उत्पादक बन्धुओं के लिए कुछ प्रमुख संकर किस्मों की जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| आम की सामान्य किस्मों की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की सामान्य किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में संकरण का उद्देश्य नियमित फलन के साथ-साथ अच्छे गुण वाली आभा से युक्त अच्छी भण्डारण क्षमता और फल प्रसंस्करण के लिये उपयुक्त किस्म को विकसित करना है| अब तक इस संस्थान में संकरण के फलस्वरूप कई किस्में विकसित की गयीं, परन्तु मल्लिका तथा आम्रपाली अच्छे गुणों के कारण काफी लोकप्रिय हैं|
आम्रपाली
इस आम की संकर किस्म का विमोचन वर्ष 1979 में किया गया| आम की यह किस्म दो प्रसिद्ध किस्मों दशहरी तथा नीलम के संकरण से विकसित की गई है| इसके वृक्ष बौने होते हैं और नियमित रूप से फलन में आते हैं, परन्तु इसके फल देर में पकते हैं| इसके फल मध्यम आकार (130 ग्राम) के दशहरी से छोटे, छिलका मोटा तथा गूदा करीब (74.8 प्रतिशत) पीला लाल, मीठा (22.8 ब्रिक्स) एवं स्वादिष्ट होता है| इस किस्म के फलों में अधिक कैरोटीन पाया जाता है|
फलों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है| यह किस्म सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है| एक हेक्टेयर भूमि में इस किस्म के 1600 पौधे समायोजित किए जा सकते हैं, जो पांच साल की आयु के बाद 16 टन प्रति हेक्टेयर फल देने की क्षमता रखते हैं| इसके फल ताजे खाने के अलावा, प्रसंस्करण उद्योग हेतु भी उपयुक्त हैं| इस किस्म को व्यावसायिक स्तर पर प्रोत्साहित किये जाने की असीम सम्भावनायें हैं|
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मल्लिका
आम की यह संकर किस्म नीलम और दशहरी के संकरण से विकसित की गयी है| इसके वृक्ष बड़े, नियमित और अधिक फलन देने वाले होते हैं| इसके फल मध्यम बड़े, आयताकार, दशहरी से बड़े (300 से 500 ग्राम) के होते हैं| फलों में गूदे की मात्रा काफी होती है (74.9 प्रतिशत) एवं गुठली पतली होती है| गूदा रेशारहित व कड़ा होता है, जिससे इसे काट कर खाया जा सकता है| खाने में फल स्वादिष्ट होते हैं और गूदे में विलेय शर्करा 24.26 प्रतिशत तक होती है|
पके फलों का रंग पीला होता है| इसके फलों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता अच्छी है| यह देर से तैयार होने वाली किस्म है तएवं संरक्षित पदार्थ बनाने के लिए उपयुक्त है| आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती बढ़ रही है| यह किस्म प्रसंस्करण (स्लाइस) के लिए उपयुक्त है| इसके अलावा इसके फलों के निर्यात की भी अच्छी सम्भावनायें हैं|
पूसा लालिमा (एच- 1-12)
यह आम की संकर प्रजाति दशहरी तथा सेंसेशन के संकरण से तैयार की गई है| यह प्रति वर्ष फलन देने वाली एक किस्म है| इसके फल सुन्दर आकार के लाल छिलके वाले तथा नारंगी गूदे वाले होते हैं| लाल छिलके पीले हरे रंग के साथ मिल कर अत्यन्त आकर्षक लगते हैं| इसके फलों का आकार थोड़ा लम्बा होता है और सभी फल करीब समान होते हैं| यह देश और विदेश के बाजार के लिए एक उपयुक्त किस्म है|
इसे पकने के उपरान्त 5 से 6 दिनों तक कमरे के तापक्रम पर रखा जा सकता है| इसके पौधे साधारण बड़े होते हैं एवं इन्हे 6 x 6 मीटर की दूरी पर लगा कर करीब 278 पौधे प्रति हेक्टेयर की दर से लगाये जा सकते है| इस दूरी पर लगाने से इसके पौधों से अधिक उपज ली जा सकती है| दशहरी प्रजाति से इसकी उपज करीब चार गुनी होती है| इसमें शर्करा एवं अम्ल का अनुपात अच्छा होता है|
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पूसा पीताम्बर (एच- 2-6)
यह आम की संकर प्रजाति आम्रपाली तथा लाल सुन्दरी के संकरण से विकसित की गई है| यह प्रति वर्ष फल देने वाली एक खास किस्म है| इसके फल देखने में आर्कषक तथा लंबाई लिए होने के कारण पेटी में सजाने के लिए उपयुक्त हैं| इसके छिलके का रंग आकर्षक होने के कारण ग्राहक इसे बहुत पसन्द करते हैं| घरेलू और अन्तराष्ट्रीय बाजार के लिए यह एक उपयुक्त किस्म है| पकने के बाद 5 से 6 दिनों तक इसे कमरे के तापमान पर भण्डारित किया जा सकता है|
इसके पौधे अधिक वृद्धि वाले नहीं होते हैं| इसलिए अच्छी उपज के लिए 278 पौधे प्रति हेक्टेयर की दर से 6 x 6 मीटर की दूरी पर लगाने की इसकी संस्तुति की जाती है| इसकी उपज दशहरी से दो गुनी होती है| इस किस्म में शर्करा और अम्ल का अच्छा अनुपात होता है तथा सभी फलों का एक ही आकार एवं साइज होने के कारण यह किस्म ग्राहकों द्वारा अधिक पसन्द की जाती है|
पूसा श्रेष्ठ (एस- 1-6)
यह आम की संकर किस्म आम्रपाली तथा सेंसेशन के संकरण से विकसित की गई है| यह प्रति वर्ष फल देने वाली एक अच्छी किस्म है| इसके फल आकर्षक के होते हैं| इसका छिलका और गूदा नारंगी लाल रंग का होता है| फलों का आकार लम्बाई लिये होने के कारण यह पैंकिग के लिए अति उत्तम किस्म है तथा यह किस्म घरेलू और अन्र्तराष्ट्रीय बाजार के लिए भी एक उपयुक्त किस्म है| पकने के उपरान्त 7 से 8 दिनों तक इसे कमरे के तापमान पर रखा जा सकता है|
इसके पौधे भी साधारण बढ़त वाले होते हैं| अतः 278 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 6 X 6 मीटर की दूरी पर इसे लगाया जा सकता है, जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक उपज प्राप्त होती है| इसकी उपज प्रति पौधा दशहरी से अधिक है| इस किस्म के विकास में आम्रपाली प्रजाति का उपयोग मात्र दत्तक और सेंसेशन किस्म का उपयोग पितृ दत्तक के रूप में किया गया है।|अतः सभी वांछित गुण इस प्रजाति में हैं, जैसे, छिलके का लाल रंग, मध्यम शर्करा एवं अम्ल का अनुपात तथा सभी फलों का एक आकार होना|
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पूसा प्रतिभा (एच- 1-1)
यह आम की संकर प्रजाति आम्रपाली और सेंसेशन के संकरण से विकसित की गई है| यह किस्म प्रति वर्ष फल देने वाली किस्म है| इसके फल आकर्षक, चमकदार, लाल छिलके वाले, सुनहरे पीले बैक ग्राउन्ड के कारण ग्राहकों को लुभाते हैं| फलों का आकार थोड़ा लम्बा होता है और सभी फल एक ही आकार के होते हैं| पकने के बाद भण्डारण की क्षमता 7 से 8 दिनों तक कमरे के तापमान पर होती है|
इसके पौधे साधारण लम्बाई के होते हैं और 278 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 6 x 6 मीटर की दूरी पर लगाये जा सकते हैं, जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक उपज प्राप्त होती है| आमतौर पर इसमे दशहरी प्रजाति से तीगुनी उपज होती है| इसके फलों में शर्करा एवं अम्ल का अच्छा मिश्रण होता है और फल एक आकार एवं एक साइज होने के कारण, अधिक उपयोगी होते हैं|
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान
अम्बिका
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ से यह आम की संकर किस्म आम्रपाली तथा जनार्दन पसन्द के संकरण से विकसित की गई है| फल आकार में मध्यम एवं अण्डाकार होते हैं| फलों का रंग पीला, आकर्षक तथा आभायुक्त होता है| यह नियमित फलन वाली और देर से पकने वाली किस्म है|
अरूनिका
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से आम्रपाली एवं वनराज के संकरण से विकसित अत्यन्त आकर्षक लाली लिए फल वाली किस्म है| इसके वृक्ष छोटे होते है और यह प्रतिवर्ष फलन देती है| इसके फल काट कर खाने के लिए उपयुक्त हैं| इसका गूदा कड़ा और अधिक कैरेटोनाइडयुक्त होता है| यह निर्यात के लिए अच्छी किस्म है|
हाईब्रिड-108
यह आम की संकर किस्म आम्रपाली और जनार्दन पसन्द के संकरण से विकसित प्रजाति के फल आकर्षक होते हैं और इसका छिलका गहरे लाल रंग का होता है| यह किस्म प्रति वर्ष फलने वाली है एवं इसके पौधे आकार में छोटे और अधिक फलन देने वाले तथा नियमित होते हैं|
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बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर
सबौर से कई संकर किस्में विकसित की गई है, जैसे-
सुन्दर लंगड़ा
सुन्दर लंगड़ा किस्म वर्ष 1981 में सबौर से विमोचित की गई| यह आम की संकर किस्म लंगड़ा व सुन्दर पसंद के संकरण से तैयार की गई है| यह मध्य मौसम में तैयार होती हैं| पेड़ मध्यम आकार के फैले हुए होते हैं| सुन्दर लंगड़ा किस्म के फल आकार में लंगड़ा के फल से मिलते-जुलते लाली लिए होते हैं और यह नियमित फलन देने वाली किस्म है|
अलफजरी
यह आम की संकर किस्म अल्फॉन्सो एवं फजरी के संकरण से तैयार की गई है| अलफजरी किस्म का आकार फजली से मिलता जुलता है, लेकिन इसका छिलका चिकना होता है| यह किस्म 1981 में विमोचित की गई| यह देर से तैयार होने वाली किस्म है| इसके पेड़ लम्बे तथा नियमित फलन देने वाले होते हैं| फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और गूदा 79 प्रतिशत होता है| इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी है| यह फजली से मिलती है, लेकिन फजली से पहले पक कर तैयार होती है| इसमें मॉलफारमेशन तथा फल मक्खी का प्रकोप नहीं देखा गया है|
जवाहर
यह आम की संकर किस्म गुलाबखास तथा महमूदबहार के संकरण से तैयार की गई है| यह किस्म वर्ष 1989 में बी एस सी सबौर से जारी की गई| इसके पेड़ मध्यम छोटे तथा नियमित फलन देने वाले होते हैं| फल मध्य मौसम में तैयार होते हैं और मध्यम आकार के (करीब 215 ग्राम) होते हैं|
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कृषि अनुसंधान केन्द्र, पैरिया
पैरिया, गुजरात से तीन संकर किस्में नीलफान्सों, नीलेशान गुजरात और नीलेश्वरी, विकसित की गयी हैं| यह तीनों संकर किस्में जुलाई के दूसरे सप्ताह में पकती हैं, जब अन्य अच्छी किस्में गुजरात के बाजारों में उपलब्ध नहीं रहती हैं| इन किस्मों में देर से पकने की प्रवृत्ति है, लेकिन यह बरसात में खराब नहीं होती हैं एवं इनकी भण्डारण क्षमता भी अच्छी है|
नीलफॉन्सो
यह आम की किस्म नीलम एवं अल्फॉन्सो के संकरण से कृषि अनुसंधान केन्द्र पैरिया गुजरात में विकसित की गई और इसे वर्ष 1986 में जारी किया गया| इसके पेड़ मध्यम बड़े तथा नियमित फलन देने वाले होते हैं| इसके फल देर से पकने वाले (जुलाई में), मध्यम आकार (200 ग्राम) तथा मोटे चिकने छिलके वाले होते हैं| फल का गूदा कड़ा, रेशा रहित, गुणवत्तायुक्त होता है| यह किस्म काट कर खाने और रस के लिए उपयुक्त है|
नीलेश्वरी
यह आम की संकर किस्म नीलम और दशहरी के संकरण से पैरिया से विकसित की गई तथा 1986 में जारी की गई| इसके वृक्ष छोटे कद के मध्यम उपज देने वाले और फल देर से तैयार होने वाले होते हैं| फल मध्यम आकार के (करीब 228 ग्राम) तथा लम्बे होते हैं तथा छिलका चिकना होता है| इसका गूदा मध्यम कड़ा, रेशा रहित होता है| यह काट कर खाने के लिए उपयुक्त है| इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती है|
नीलेशान गुजरात
यह किस्म भी पैरिया गुजरात में नीलम तथा बानेशान के संकरण से विकसित की गई तथा वर्ष 1986 में जारी की गई| इसके वृक्ष मध्यम, गुम्बदाकार होते हैं| यह देर से पककर तैयार होने वाली किस्म है| इसके फल मध्यम (करीब 320 ग्राम) और अन्डाकार होते हैं| यह काट कर खाने के लिए उपयुक्त किस्म है| पकने पर इसका छिलका पीला चिकना होता है| इसका गूदा कड़ा, रेशारहित एवं स्वादिष्ट होता है| इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती है|
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सोनपरी
इस आम की संकर किस्म को अलफॉन्जो और बानेशान के संकरण से विकसित किया गया है| इसके पौधे साधारण बढ़त वाले होते हैं और यह किस्म साधारणत: प्रति वर्ष फलन देती है| इसके फल शीघ्र पक कर जून के प्रथम सप्ताह में तैयार हो जाते हैं और फल बड़े आकार (350 से 550ग्राम) के होते है| इसके फल गोलाकर से थोडे लम्बे होते हैं और इसके छिलके का रंग सुनहरा पीला होता है तथा सतह चिकनी होती है| इसका गूदा, रेशा रहित, अति उत्तम गुणवाला होता है| इसके फल काट कर खाने के लिए अति उत्तम होते हैं|
क्षेत्रीय फल अनुसंधान केंद्र, वेंगुर्ला
रत्ना
नीलम और अल्फॉन्सो के संकरण से रत्ना किस्म विकसित की गई, जिसके गुण अपने पैत्रिक किस्मों से अच्छे हैं| इस आम की संकर किस्म को वर्ष 1981 में जारी किया गया| यह ‘स्पॉन्जी’ ऊत्तक की समस्या से मुक्त है| इसके फल आकार में नीलम और अलफॉन्सो से बड़े (315 ग्राम) होते हैं| फल का रंग गहरा पीला व आकर्षक और गूदा नारंगी रंग का होता है|
यह किस्म देर से पकती है एवं गूदे में रेशे नहीं होते| फल की गुणवत्ता अच्छी मिठास लिए हुए (24) ब्रिक्स) सुगंधित होती है| इस किस्म में नियमित फलन की प्रवृत्ति है और स्पॉन्जी ऊत्तक की समस्या न होने के कारण कोंकण क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है| इसके पेड़ आकार में मध्यम छोटे फैले हुए होते हैं|
सिन्धु
यह क्षेत्रीय फल शोध संस्थान बेंगुला (महाराष्ट्र) से विकसित किस्म है| यह वर्ष 1992 में यह विकसित की गई| आम की यह संकर किस्म रत्ना तथा अल्फॉन्सो के संकरण से विकसित की गयी है| यह नियमित फलन, शीध्र परिपक्व होने वाली और पतली गुठली वाली एवं स्पॉन्जी टिशु से मुक्त किस्म है| इसके फल मध्यम आकार के लाली लिए होते हैं| छिलका एवं गूदा गहरा नारंगी रंग का होता है|
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कोंकण रूचि
यह आम की संकर किस्म नीलम तथा अलफॉन्जो के संकरण से विकसित की गई है| यह प्रति वर्ष फल देने वाली आम की एक किस्म है और अचार के लिए अधिक उपयुक्त है| इसके पौधे अधिक उपज देते हैं एवं फल काफी बड़ा (430 ग्राम) होता है| इसके फल में करीब 78 प्रतिशत गूदे की मात्रा होती है| कच्ची अवस्था में इसका टी एस एस 8 ब्रिक्स होता है और अम्ल की मात्रा 32 प्रतिशत होती है| इस किस्म का बना अचार बहुत स्वादिष्ट होता है एवं रंगयुक्त, गंधयुक्त एवं आकर्षक होता है तथा इसे अधिक समय तक भण्डाारित किया जा सकता है|
सुवर्णा
इस आम की संकर प्रजाति के पौधे की बढ़वार नीलम एवं अल्फॉन्जो, जो इसकी पैतृक किस्में है, से अच्छी होती है| इस प्रजाति के पौधों की उत्पादन क्षमता अधिक (72 किलोग्राम) प्रति पौध होती है तथा फल बड़े (250 से 350 ग्राम) होते हैं| इसके फलों में गूदे की मात्रा 78 प्रतिशत होती है तथा गूदा नारंगी रंग का अच्छे स्वाद वाला होता है, जिसका टी एस एस 22 ब्रिक्स के करीब होता है|
यह संकर किस्म अपनी पैतृक किस्मों से अधिक फलन देती है| इसके फल स्पॉन्जी ऊतक से मुक्त होते है तथा गूदे में रेशे की मात्रा नहीं होती है| यह एक प्रति वर्ष फलने वाली किस्म है, जो गुच्छे में फल देती है| यह पहली किस्म है| जिसमें अल्फॉन्जो किस्म को मातृ पौधे के रूप में इस्तेमाल किया गया है|
भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान
अरका अरूणा
यह आम की संकर किस्म बंगलौर के उद्यान संस्थान से दो किस्में बैंगनपल्ली और अलफॉन्सों के संकरण से प्राप्त हुई| अरका अरूण का फल रंगीन तथा आकर्षक होता है| इसका छिलका चिकना, आकर्षक, लाल आभा युक्त होता है| गूदा पीला तथा स्पॉन्जी उत्तक तथा रेशे से मुक्त होता है| गूदे की मात्रा 73 से 78 प्रतिशत तक होती है और विलेय शर्करा 20 से 22 ब्रिक्स होती है|
फल को कई दिनों तक भण्डारित किया जा सकता है| गुठली का आकार छोटा होता है| चूंकि इस किस्म के पौधे आकार में छोटे नियमित फलन देने वाले होते हैं, इसलिये इस किस्म के पौधे सामान्य किस्म से दुगनी संख्या में लगाये जा सकते हैं| यह गृह वाटिका तथा कम भूमि वाले बागवानों के लिये उपयुक्त है|
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अरका पुनीत
यह आम संकर किस्म अलफॉन्सो एवं बैगनपल्ली के संकरण से भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बैंगलौर में विकसित की गई है| इसके पेड़ बड़े होते हैं| यह मध्य मौसम में तैयार होती है| अरका पुनीत मध्यम आकार (284 ग्राम) की नियमित फलन देने वाली किस्म है| इसका गूदा और छिलका अल्फॉन्सो से मिलता-जुलता आर्कषक होता है| फल में 75 प्रतिशत गूदा होता है| फल स्पॉन्जी ऊत्तकक्षय से मुक्त, रेशा रहित एवं पकने पर पीले-नारंगी रंग के लाल आभा वाले होते हैं|
अरका अनमोल
यह आम की संकर किस्म अल्फॉन्सों तथा जर्नादन पसंद के संकरण से तैयार की गई है| यह नियमित फलन देने वाली किस्म है और इसके फलों का आकार मध्यम (250 ग्राम) एवं छिलके का रंग पीला होता है| इसका गूदा नारंगी पीला होता है| इसकी भण्डारण क्षमता बहुत अच्छी है और यह किस्म स्पॉन्जी टिशु नामक विकार से मुक्त है| यह निर्यात के लिए अच्छी किस्म है| इसके पेड़ मध्यम बड़े होते हैं|
अरका नील किरण
इस आम की संकर किस्म को अल्फॉन्सो और नीलम के संकरण से विकसित किया गया है| यह नियमित फलन देने वाली और देर से पकने वाली किस्म है| इसके फल मध्यम आकार के (340 ग्राम), आकर्षक रंग वाले एवं स्पॉन्जी टिशु विकार से मुक्त होते हैं| इसका गूदा नारंगी तथा टी एस एस 21 ब्रिक्स होता है| इसके वृक्ष मध्यम आकार के होते हैं|
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कोड्डूर, आन्ध्र प्रदेश
कोड्डूर में संकरण का कार्य सन् 1941 में प्रारम्भ किया गया तथा इसमें ए यू रूमानी, नीलेशान, नीलगोवा, नीलुद्दीन और स्वर्ण जहांगीर नामक किस्में विकसित की गयीं है|
ए यू रूमानी
यह आम की संकर किस्म रूमानी एवं मलगोवा के संकरण से तैयार की गयी है| यह नियमित व अधिक फल देने वाली किस्म है| इसके फलों का रंग पीला, छिलका चिकना और आकार बड़ा होता है| इसका गूदा कड़ा, रेशा रहित एवं सुगंधित होता है| यह काट कर खाने वाली किस्म है|
फल अनुसंधान केन्द्र, संगारेड्डी, आंध्र प्रदेश
मंजीरा
आम की यह संकर किस्म रूमानी तथा नीलम के संकरण से विकसित की गई है| यह किस्म आकार में छोटी तथा नियमित रूप से अधिक फल देने वाली है और सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है| इसके फलों का गूदा रेशा रहित तथा कड़ा होता है| फल आकर्षक, बड़े (300 से 350 ग्राम) रूमानी की तरह होते हैं| छिलका हल्का पीला होता है| इस किस्म के फल जून के प्रथम पक्ष में तैयार होते हैं|
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फल अनुसंधान केन्द्र, पेरियाकुलम
पी के एम- 1
इस आम की संकर किस्म को चिन्न सुवर्णरेखा तथा नीलम के संकरण से विकसित किया गया है| इसे वर्ष 1980 में फल अनुसंधान केन्द्र, पैरियाकुलम से जारी किया गया है| यह नियमित फसल, गुच्छों में फलन और अधिक उपज देने वाली किस्म है| यह किस्म मध्य मौसम में तैयार होती है| इसकी उपज करीब 102 किलोग्राम प्रति वृक्ष प्रतिवर्ष होती है|
प्रत्येक फल करीब 250 से 300 ग्राम के होते हैं| फल आकार में लम्बे-पतले होते है और फल के निचले सिरे में चोंच निकली होती है| फल में रस की प्रचुर मात्रा होती है एवं यह किस्म गूदे उद्योग के लिए उपयुक्त है तथा इसे दूर तक भेजा जा सकता है|
पी के एम-2
यह किस्म नीलम और मलगोवा के संकरण से विकसित की गई तथा वर्ष 1990 में जारी की गई| इसके फल बड़े (करीब 680 ग्राम) लम्बे तथा अण्डाकार होते है| निचला हिस्सा बड़ा टेढ़ा व चपटा होता है और चोंच निकली होती है| रंग चमकता पीला गुलाबी आभा लिए होता है| इसके फल अधिक मीठे, गूदा कड़ा तथा अच्छी गुणवत्ता एवं भण्डारण क्षमता का होता है| इसके फल में काफी मात्रा में रस होता है और अच्छी खुशबू होती है| इसकी उपज 16 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है|
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Kheti kisani wala says
Fantastic brother,bahut sahi aam hai mallika jiske swad kharboojey jaisi hoti hai