बिना जल मानव-सभ्यता की कल्पना कर पाना भी कठिन है| भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जुलाई-अगस्त माह वर्षा ऋतु में बरसने वाला जल कृषि की अधिकतर जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण करता है| बरसात के दिनों में जल के सभी प्राकृतिक स्रोत जैसे नदियां, तालाब, गड्ढे आदि पानी से भर जाते हैं| जुलाई-अगस्त (सावन-भादो) में होने वाली वर्षा पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों से लेकर मनुष्य तक में उल्लास और उत्साह का संचरण कर देती है| इस ऋतु में वानस्पतिक वृद्धि अधिक होने के कारण चारों तरफ हरियाली ही हरियाली देखने को मिलती है| अतः बागों में खरपतवार भी बहुतायत में हो जाते हैं| अनुकूल तापमान और आर्द्रता के कारण, इस ऋतु में कीटों और व्याधियों का प्रकोप अधिक हो जाता है|
अधिक आर्द्रता के कारण, यह द्विमाही फलों के कायिक प्रवर्धन के लिए सर्वोपयुक्त है| इसी प्रकार वर्षा के जल का बागों में ठहराव होने के कारण, जड़ गलन की समस्या भी बढ़ जाती है| इसकी समय पर जल निकासी भी आवश्यक है| अतः इस ऋतु में बागों से जलनिकासी, सदाबहार फलों के नए बागों को लगाने पर जोर देना चाहिए| इनके प्रवर्धन, कीट व व्याधि से बचाव एवं खरपतवारों को निकालने जैसे कृषि कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए| इसके अतिरिक्त इस द्विमाही में आम, खजूर, नीबू, अंगूर, सेब इत्यादि फलों को बाजार भेजने की व्यवस्था भी करनी होती है| विभिन्न फल – वृक्षों के बागों में इस समय में किए जाने वाले कृषि कार्यों का समुचित विवरण इस प्रकार से प्रस्तुत है|
आम में तुड़ाई का समुचित प्रबंध
जुलाई मध्य में पकने वाली किस्मों के फलों को तोड़कर अगस्त माह में बाजार भेजने की समुचित व्यवस्था करें| फलों को 10 मिमी डंठल के साथ प्रात:काल या संध्याकाल में तोड़ना चाहिए| तुड़ाई के तुरंत पश्चात डिसैपिंग (डंठल से निकलने वाले स्राव) को पृथक करना करना चाहिए, इससे फलों की गुणवत्ता बनी रहती है| तुड़ाई के उपरांत फलों को छायादार स्थान पर रखकर अथवा पानी में डुबोकर पूर्व – शीतन करें| इनकी निधानी आयु बढ़ायी जा सकती| इसके बाद फलों का श्रेणीकरण एवं कटे-फटे खराब फलों को अलग कर लेना चाहिए|
तीन सौ ग्राम से अधिक वजनी फलों को ‘ए प्लस’ श्रेणी में रखें| 250-299 ग्राम के फलों को ‘ए’ श्रेणी, 200-249 ग्राम को ‘बी’ श्रेणी, 150-199 ग्राम को ‘सी’ श्रेणी तथा 150 ग्राम से छोटे फलों को ‘डी’ श्रेणी में वर्गीकृत करें| फलों के परिपक्वन में एकरूपता लाने के लिए इन्हें ईथरेल 700 पीपीएम + कार्बेन्डाजिम 500 पीपीएम के 52 = 1 डिग्री सेल्सियस गुनगुने पानी के घोल में 5 मिनट के लिए उपचारित करना चाहिए| बौनी किस्मों में फसल की तुड़ाई सिकेटियर द्वारा तथा ओजस्वी किस्मों में ‘मैंगो हार्वेस्टर’ से करनी चाहिए| फलों को बांस की टोकरियों, प्लास्टिक क्रेट्स या कार्टन बक्सों में पैक करके बाजार भेजा जा सकता है|
बांस की टोकरियों में फल डालने से पूर्व उनमें कागज, जूट के बोरे या अन्य किसी उपयुक्त पैकिंग वस्तु से तह लगा दें ताकि फलों की घर्षण से क्षति ना हो| कार्टन बक्सों में ऊर्ध्वाधर विभाजकों एवं पार्श्व संवातन छिद्रों की व्यवस्था होनी चाहिए| तनाछेदक और पत्तियों को हानि पहुंचाने वाले कीटों से रोकथाम के लिए डेल्टामेथ्रिन (0.2 प्रतिशत) अथवा मोनोक्रोटोफॉस (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें| जुलाई के दूसरे पखवाड़े में फलों की तुड़ाई के बाद प्रति वृक्ष 500 ग्राम की दर से नाइट्रोजन देनी चाहिए|
एन्थ्रेक्नोज (श्याम व्रण) से बचाव के लिए 0.125 प्रतिशत (125 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) ब्लिटॉक्स के घोल का छिड़काव करें| यदि बरसात पर्याप्त हो, तो मई-जून में खोदे गए गड्ढों में रोपाई का कार्य भी इसी माह शुरू किया जा सकता है| ध्यान रहे कि रोपाई का कार्य सायंकाल अथवा जिस दिन हल्की-हल्की बरसात हो रही हो, उसी दिन करना चाहिए| आम के पौधों को प्राय: 10 × 10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है| सघन बागवानी में इसे 2.5 x 2.5 अथवा 5 x 5 मीटर (आम्रपाली) या 3 x 2.5 मीटर ( दशहरी) की दूरी पर लगाते हैं|
पूर्व में ही रोपण हेतु खुदे गड्ढे के केंद्र में कलमी पौधों को रोपित करें| रोपाई के बाद पौधों के चारों तरफ की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा दें| ध्यान रखें कि पौधों की जड़ से लगी मिट्टी को क्षति न हो और कलम बंधन संधि भूमि के ऊपर रहे| रोपण के तुरंत पश्चात हल्की सिंचाई करें| नया बाग लगाते समय दो या तीन किस्मों को साथ लगाया जाए क्योंकि उत्तरी भारत की प्रमुख किस्मों जैसे दशहरी, लंगड़ा, चौसा और बाम्बे ग्रीन आदि में स्व-अनिषेच्यता की समस्या पाई जाती है|
जिन किस्मों में यह समस्या होती है उनके फूल के पुंकेसर द्वारा पैदा किए हुए परागकण अपने ही स्त्रीकेसर को निषेचित नहीं कर सकते, जिससे उनमें फल नहीं लगते| परंतु दूसरी किस्म के परागकण निषेचित कर देते हैं| अतः ऐसी स्थिति में एक ही किस्म का बाग लगाया जाए तो वे बाग फलरहित रह जाते हैं| इस समस्या के निवारण हेतु दशहरी के बाग में बाम्बे ग्रीन व लंगड़ा और चौसा के बाग में दशहरी, सफेदा और मलीहाबादी किस्मों का लगाना ही लाभदायक रहता है| यह माह विनियर कलम द्वारा पौधों को तैयार करने के लिए सबसे उपयुक्त समय है|
अगस्त माह में पछेती पकने वाली किस्मों के फलों की तुड़ाई करें| श्यामव्रण (एन्थ्रेक्नोज) से बचाव के लिए ब्लिटॉक्स का दूसरा छिड़काव करें| वृक्षों में गोंदार्ति की समस्या हो तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.2 प्रतिशत) + बुझा हुआ चूना (0.1 प्रतिशत) + बोरेक्स (0.4 प्रतिशत) मिश्रण के घोल का ऊपर से छिड़काव करें| तराई क्षेत्रों में गांठ बनाने वाले कीटों (शूट गाल मेकर) से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफॉस (0.05 प्रतिशत) अथवा डाइमेथोएट (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव करें| अगले वर्ष में नए पौधे तैयार करने के लिए मूलवृंत हेतु फलों की गुठलियों को एकत्रित करके पौधशाला में बो दें| यदि जुलाई में किसी कारणवश विनियर कलम न की जा सकी हो तो अगस्त माह में कलम करना न भूलें| आम उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
अमरूद में करें विशेष जतन
जुलाई माह में बाग में रोपण, रिक्त स्थानों की पूर्ति एवं पौधे तैयार करें| गूटी या कलम से तैयार अमरूद के पौधों को मृदा गेंद के साथ 45 x 45 x 45 सेंमी के पहले से खुदे गड्ढों के बीचों-बीच रोपित करना चाहिए| रोपित पौधों को तुरंत सिंचित करना चाहिए| इसके बाद तीसरे दिन और फिर प्रत्येक 10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए| श्यामव्रण रोग को नियंत्रित करने के लिए, कार्बेण्डाजम (2 ग्राम प्रति लीटर) का फलों पर और बोर्डो मिश्रण ( 3: 3:50 ) अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड ( 3 ग्राम प्रति लीटर) का तनों तथा पत्तियों पर छिड़काव करें|
पुराने या स्थापित बगीचों में 0.3 प्रतिशत बोरेक्स का 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें| बाग में कीटों का प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 25 ईसी का 2 मिली प्रति लीटर या मोनोक्रोटोफॉस का 2 मिली प्रति लीटर या नीम तेल का 3 प्रतिशत की दर से 21 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें| सर्दियों के मौसम वाली फसल के लिए, फूल आने से पहले 0.4 प्रतिशत बोरिक एसिड का छिड़काव करें, इससे फलों के आकार और उपज में वृद्धि हो सकती है| फलों के वर्तिकाग्र सड़न की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर) अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड ( 3 ग्राम प्रति लीटर) का फलन से पहले छिड़काव करें, ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी छिड़काव तुड़ाई के 15 दिनों पहले नहीं किया जाए|
अगस्त माह में, फल मक्खी के प्रकोप को कम करने के लिए गिरे हुए तथा ग्रसित फलों को नष्ट कर देना चाहिए| छेदक कीटों से भी अमरूद के बागों को काफी क्षति होती है| इससे बचाव के लिए बागों में नियमित रूप से कीटों को एकत्रित कर उन्हे नष्ट कर देना चाहिए| इसके अतिरिक्त, कीटनाशकों का फलन के समय या फलों के पकने से पहले छिड़काव करें| सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, लौह, ताँबा, मैंगनीज इत्यादि मिश्रण का भी 2 मिली प्रति लीटर की दर से पौधों पर छिड़काव करें| म्लानि अथवा विल्ट से पौधों को बचाने के लिए उद्यान में निरंतर साफ-सफाई करते रहें| इसके अतिरिक्त, नीम खली, जैविक खाद इत्यादि का भरपूर प्रयोग करें एवं बाग में निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें| अमरूद उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अमरूद की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
केले में करें जल निकासी की व्यवस्था
जुलाई में पौधों से अवांछित पत्तियों नही निकाली तो अगस्त माह में निकाल दें| पौधों के तनों के चारों ओर यदि मिट्टी नहीं चढ़ाई गई हो तो प्रारंभ में यह कार्य अवश्य पूरा कर लें इससे जल निकास का उचित प्रबंधन किया जा सकता है| जिन पौधों में फल लगे हों उन्हें बांस से बांधकर सहारा देना लाभप्रद रहता है| नए बाग लगाने का कार्य भी इस माह किया जा सकता है| इसके लिए तलवार की शक्ल के अंत: भूस्तारी अच्छे समझे जाते हैं| अंतःभूस्तारियों को रोगमुक्त मातृ पौधों से ही चयनित करें| भूस्तारी 3-5 माह पुराने होने चाहिए|
आकार में एक समान एवं छोटी अवधि वाली किस्में जैसे नेन्द्रन, रसथाली, पूवन, नेय पूवन हेतु वजन में 1-1.5 किलोग्राम के हों लंबी अवधि वाली किस्में, कर्पूरवल्ली व लाल केला 1.5-2.0 किलोग्राम के होने चाहिए| यदि रोपण हेतु सूक्ष्म प्रवर्धित पौधों को लेना है तो 30 सेंमी लंबे द्वितीयक पौधों चुनाव करें| ये सुदृढ़, पांच सेंमी मोटाई लिए कम से कम 5 पूरी तरह से खुले हुये स्वस्थ पत्तों वाले पौधों होते हैं|
चयनित भूस्तारियों के किसी भी सड़े हुए भाग को हटाने के लिए सतही परतों के साथ-साथ सभी जड़ों को भी खुरच दिया जाना चाहिए| फ्यूजेरियम म्लानि रोग से बचाव हेतु रोगनिरोधी उपाय आवश्यक हैं| इसके लिए 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में छिले हुये भूस्तारियों को 15-20 मिनट तक डुबोकर रखें| उपचारित पौधों को रात भर छाया में रखें तथा अगले दिन रोपण करें| केला उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- केले की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
बेल में करें उर्वरण
यदि जून माह में उर्वरण का कार्य पूर्ण हुआ हो, तो शुष्क क्षेत्रों में खाद एवं उर्वरकों की पूरी मात्रा जुलाई-अगस्त माह में डालनी चाहिए| प्रत्येक पौधे में 5 किग्रा गोबर की सड़ी खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फॉस्फोरस एवं 50 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रतिवर्ष डालनी चाहिए| खाद एवं उर्वरक की यह मात्रा दस वर्षों तक गुणित अनुपात में बढाते रहना चाहिए| इस प्रकार 10 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले वृक्ष को 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटाश के अतिरिक्त 50 किग्रा गोबर की सड़ी खाद डालना उत्तम होता है|
ऊसर भूमि में लगाये गये पौधों में प्राय: जस्ते की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं| अतः इनमें 250 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति पौधे की दर से उर्वरकों के साथ डालना चाहिये या 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का पहला पर्णीय छिड़काव जुलाई माह में करना चाहिए| जिन बागों में फलों के फटने की समस्या हो, उनमें खाद एवं उर्वरक के साथ 100-150 ग्राम / वृक्ष बोरेक्स ( सुहागा ) का प्रयोग करना चाहिये| रोपण हेतु जुलाई-अगस्त माह अच्छा पाया गया है|
पौधे लगाने के एक माह पूर्व 6-8 मीटर के अन्तर पर 75 से 100 घन सेंमी के गड्ढे तैयार कर लेते हैं| यदि जमीन में कंकड़ की तह हो तो उसे निकाल देना चाहिए| इन गड्ढों को 20-30 दिनों तक खुला छोड़कर 3-4 टोकरी गोबर की सड़ी खाद को गड्ढे की ऊपरी आधी मिट्टी में मिलाना चाहिए| ऊसर भूमि में 20-25 किग्रा बालू तथा पीएच मान के अनुसार 5-8 किग्रा जिप्सम/ पाइराइट भी मिलाकर 6-8 इंच ऊँचा करना उपयुक्त होता है| बेल उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बेल की खेती: किस्में, देखभाल, प्रबंधन, पैदावार
आँवले में करें कीट व्याधि प्रबंधन
अगस्त माह में आँवले का रस्ट रोग एक महत्वपूर्ण समस्या बन जाता है| इसके नियंत्रण के लिए, घुलनशील गंधक (0.4 प्रतिशत) या क्लोरथैलोनिल (0.2 प्रतिशत) के तीन छिड़काव एक माह के अंतराल पर जुताई करने से रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है| श्यामव्रण, आँवले की पत्तियों व फलों पर अगस्त माह से दिखाई देना प्रारम्भ हो जाता है| इसके प्रबंधन हेतु, कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का तुड़ाई से 15 दिनों पूर्व छिड़काव करें|
जुलाई-अगस्त माह में गुठली छेदक का प्रकोप भी देखा जा सकता है| इसके नियंत्रण के लिए क्विनालफॉस या सेविन का 2 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें| जुलाई-अगस्त माह में आंवला के बीजों की बुआई कर सकते हैं अंकुरित पौधों को एक महीने बाद क्यारियों में स्थानांतरित किया जा सकता है| अगले वर्ष जुलाई तक प्रवर्धन लिए तैयार हो जाते हैं| जुलाई-अगस्त माह में ही आंवला में पैबंदी कलिकायन या तथा विरूपित छल्ला विधि द्वारा प्रवर्धन किया जा सकता है|
साँकुर शाखा का चुनाव ऐसे मातृवृक्ष से करना चाहिए जो अधिक फल देने वाला हो और कीटों एवं व्याधियों के प्रकोप से मुक्त हो| जुलाई-अगस्त के माह में ही कलिकायन द्वारा तैयार पौधों को 8-10 मीटर (किस्म के अनुसार) की दूरी पर उद्यान में रोपित कर सकते हैं| नाइट्रोजन की आधी मात्रा जुलाई-अगस्त के महीने में आंवला में डालनी चाहिए| आवला उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आंवला की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
खजूर में प्रवर्धन और रोपण
खजूर को बीज से भी तैयार किया जाता है| इसके एकलिंगी होने से बीज से तैयार किये पौधों में नर व मादा का अनुपात 50 : 50 रहने की सम्भावना रहती है| ऐसे पौधों में फल देरी से आते हैं व उपज में भी असमानता रहती है| इस कारण खजूर के पौधों का प्रवर्धन अच्छी गुणवत्ता वाले मादा मातृ वृक्षों से सकर्स (अंतः भूस्तारी ) द्वारा किया जाता है| इस द्विमाही के दौरान, मातृवृक्ष से निकले भूस्तारियों में जड़ विकसित करने के लिए उन पर मिट्टी चढ़ा सकते हैं| अगले वर्ष तक अंत: भूस्तारी मातृवृक्ष से अलग करने योग्य हो जाते हैं|
अलग करने के एक-दो दिन पहले खेत में पानी अवश्य लगाएं| अलग करने से पहले अंत: भूस्तारी की पत्तियों को उनके शीर्ष भाग से लगभग 30 सेंटीमीटर ऊपर से काट दें और पत्तियों की बची हुई शाखाओं को मिलाकर रस्सी से बांध दें| तत्पश्चात इसके पास की मिट्टी को हटाकर उनको मातृ वृक्ष से जोड़ के स्थान से काटकर अलग कर दें| पूर्व में तैयार किए गड्ढों में 8×8 मीटर की दूरी पर रोपण करें| रोपण हेतु 8-10 किलोग्राम के अंत: भूस्तारियों का चुनाव करना चाहिए|
जुलाई-अगस्त माह में खजूर के फलों की तुड़ाई का कार्य होता है, चूंकि, वर्षा प्रारम्भ होने के कारण खजूर पूरी तरह से नहीं पक पाते हैं| अत: इन्हें डोका अथवा प्रारम्भिक डांग अवस्था पर तोड लेना चाहिए| वातावरण में नमी के कारण तोड़े हुये फलों में फफूंद लगने की आशंका रहती है| अत: उन्हे शीघ्रातिशीघ्र प्रसंस्करण के लिए ले जाना चाहिए| छुहारा बनाने के लिए पूर्ण डोका फलों को अच्छी प्रकार से धोने के पश्चात 5-10 मिनट गर्म पानी में उबालकर धूप में रखें अथवा ड्रायर में 40-45 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 80-120 घंटों के लिए सुखाएं| खजूर उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें-
करें लीची की बात
जुलाई-अगस्त माह में पेड़ के नीचे की जमीन को हमेशा साफ रखें एवं जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें| नए बाग लगाने एवं गूटी द्वारा पौधे तैयार करने का कार्य भी बागवान इसी माह शुरू कर सकते हैं| पौधों में खाद व उर्वरक की समुचित व्यवस्था करें| यदि जुलाई में गूटी ना बांधी गई हो तो यह कार्य अगस्त में समाप्त कर लें तथा बाग को खरपतवारों से मुक्त रखें| पुराने बागों में तनाछेदक कीट की समस्या रहती है|
अगस्त माह में इस कीट की रोकथाम के लिए अपशिष्ट जालों को साफ करें तथा तनों के सुराखों में पेट्रोल अथवा मोनोक्रोटोफॉस से भीगे रूई के फाहों को डालकर गीली मिट्टी से बंद कर दें| यदि लीची माइट का प्रकोप हो तो 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से सल्फर (गंधक) अथवा केल्थेन 3 मिली प्रति लीटर का छिड़काव करें| इन्हीं दिनों गूटी द्वारा तैयार किए गए पौधों को पौधशाला में अवश्य लगाएं| लीची उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लीची की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
अनार की करें विशेष देखभाल
जुलाई-अगस्त माह में पौध रोपण करना चाहिए तथा रोपण के तुरंत बाद सिंचाई कर लें| मृग बहार हेतु अनार के पौधों में गोबर की खाद तथा फॉस्फोरस की पूरी एवं नाइट्रोजन और पोटाश की आधी मात्रा जुलाई माह में दे देनी चाहिए| खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग छत्रक के नीचे चारों ओर 8-10 सेंमी गहरी खाई बनाकर करना चाहिए| यदि गूटी द्वारा अनार का प्रर्वधन करना हो तो जुलाई-अगस्त माह में एक वर्ष पुरानी पेन्सिल समान मोटाई वाली स्वस्थ, ओजस्वी, परिपक्व, 45-60 सेंमी लम्बाई की शाखा का चयन कर लेना चाहिए| चुनी गई शाखा से कलिका के नीचे 3 सेंमी चौड़ी गोलाई में छाल पूर्णरूप से अलग कर देनी चाहिए|
छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आईबीए 10000 पीपीएम का लेप लगाकर नमी युक्त स्फेगनम मास को चारों ओर लगाकर पॉलीथीन शीट से ढककर सुतली से बाँधना चाहिए| इसके बाद जब पॉलीथीन से जड़ें दिखाई देने लगें उस समय शाखा को काटकर क्यारी में स्थापित कर लें| यह द्विमाही, कर्तन विधि द्वारा अनार के पौधे तैयार करने के लिए भी उपयुक्त है| तेलिया रोग से संक्रमित क्षेत्रों में मृग बहार नहीं लिया जाना चाहिए, अन्यथा जुलाई से अगस्त के दौरान रासायनिक जैवनाशियों, सलिसिलिक अम्ल, बोरॉन, कैल्शियम इत्यादि का नियमित रूप से प्रयोग करना पड़ेगा|
यदि उद्यान में माहू कीट का प्रकोप हो तो प्रोफेनाफास -50 का 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| अधिक प्रकोप होने की स्थिति में इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| अनार में फलों का फटना एक गंभीर समस्या है, जोकि शुष्क क्षेत्रों में अधिक होती है| इसके प्रबंधन हेतु, नियमित रूप से सिचाई करें एवं जिब्रेलिक अम्ल (जीए 3 ) 15 पीपीएम तथा बोरॉन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें| अगस्त माह में हस्त बहार हेतु पौधे को पानी देना रोक दें तथा इथ्रेल का उपयोग भी करें| पौधे के चारों ओर गोबर की खाद, नीम की खली, फॉस्फोरस व पोटाश की मात्रा जड़ क्षेत्र में 8-10 सेंमी की नालियाँ बनाकर दें| अनार उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
कटहल चला बाजार
जुलाई में तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजने की समुचित व्यवस्था करें| बागों में समुचित जल निकासी का प्रबंध होना चाहिए| नए बाग लगाने का कार्य भी अगस्त माह में प्रारंभ कर दें| अगस्त माह में नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों को फलों से निकालकर पौधशाला में बोएं| गूटी द्वारा पौधे तैयार करने का भी यही उत्तम समय है| कटहल उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कटहल की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
लोकाट के नए बाग लगायें
जुलाई में काट-छांट का कार्य समाप्त कर लेना चाहिए| पेड़ों के नीचे की जमीन साफ कर बाग को खरपतवार रहित रखें| अगस्त माह में गूटी बांधने का कार्य समाप्त कर लें| अगस्त माह में नए बाग लगाने का कार्य भी कर सकते हैं| लोकाट उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लोकाट फल की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
बेर में करें जतन
जून में काट-छांट के बाद यदि नाइट्रोजन किसी कारणवश न दी जा सकी हो तो उसे जुलाई में अवश्य दें| बाग में जल निकास की समुचित व्यवस्था करें| पौधशाला में बीजू पौधे तैयार करने के लिए यदि बुआई न की जा सकी हो तो इसे जुलाई में अवश्य करें| यदि पेड़ों पर चूर्णिल रोग के लक्षण दिखें तो केराथेन (0.1 प्रतिशत) के दो छिड़काव अगस्त माह में अवश्य करें| बेर उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बेर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
नीबूवर्गीय फलों में करें पोषण प्रबंधन
जुलाई में लेमन व लाइम के फल पककर तैयार हो जाते हैं| उन्हें तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें| अगस्त माह में नया बाग लगाने का कार्य भी कर सकते हैं| कैंकर रोग से छुटकारा पाने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में ) और नीम की खली ( 5 किलो / 100 लीटर पानी में) के घोल का छिड़काव करें| जल निकासी की उचित व्यवस्था करें| रोपाई का कार्य यदि जुलाई में न हो सका हो तो अगस्त में इसे पूरा करें| पर्णसुरंगी कीट बचाव के लिए पौधशाला में रोगोर या मेटासिस्टॉक्स (300 मिली/100 लीटर पानी) का छिड़काव करें|
फलों की तुड़ाई – पूर्व गिरना एक गंभीर समस्या है| अतः अगस्त में 10 पीपीएम 2, 4 डी (1 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का छिड़काव अवश्य करें| सितम्बर में नाइट्रोजन की तीसरी मात्रा पौधों को अवश्य दें| इन फल वृक्षों में लगभग सभी सूक्ष्म तत्वों की विशेष कमी पाई जाती है जिनकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट, बोरिक अम्ल, बुझा हुआ चूना (प्रति किलोग्राम / 450 लीटर पानी) आदि के संयुक्त घोल का छिड़काव करें| इस घोल में यदि 5 किग्रा यूरिया डाल लें तो यह नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है| नींबू वर्गीय फलों का उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती: लाभप्रद बागवानी
शरीफा के बागों की साफ-सफाई
जुलाई माह में अच्छी किस्म के कलमी पौधों को बागों में रोपित करें तथा सिंचाई की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें| अगस्त माह में खरपतवारों को निकालने की व्यवस्था करें| अगस्त माह में ही पलवार लगाने की भी व्यवस्था करें ताकि मृदा में नमी संरक्षित की जा सके| मूलवृंत से निकली हुई पार्श्व शाखाओं को समय-समय पर निकालते रहें तथा पौधों को उचित आकार देने के लिए निचली शाखाओं को 2-3 फीट तक छांट दें|
नाशपाती, आडू, खुबानी व आलूबुखारा
नाशपाती के बीजू पौधों पर भेंट कलम जुलाई में चढ़ानी चाहिए| इसी माह आडू, खुबानी और आलूबुखारा आदि के फलों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें| कजली धब्बों की रोकथाम के लिए नाशपाती एवं अन्य फलों में डाइथेन जेड – 78 (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें| आडू, खुबानी व आलूबुखारा में भूरा सड़न रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टिन ( 0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें| अगस्त में नाशपाती के फलों को तोड़कर भेजने की व्यवस्था करें एवं फल सड़न रोग की रोकथाम के लिए ब्लिटॉक्स (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें|
स्ट्रॉबेरी की करें रोपाई पहाड़ों में स्ट्रॉबेरी के पौधे जुलाई-अगस्त माह में लगाए जा सकते हैं| यदि समुचित बरसात न हो तो क्यारियों में पानी की उचित व्यवस्था करें एवं सितम्बर में उचित पलवार (मल्च) की व्यवस्था करें| खेत की अच्छी तरह जुताई करके और गोबर आदि खाद मिला करके 6 × 1 × 15 मी आकार की क्यारियां बना लें एवं 15 x 15 या 15 × 30 या 30 × 30 सेंमी की दूरी पर पौधों को लगाएं| नाशपाती, आडू, खुबानी व आलूबुखारा का उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें-
नाशपाती की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल, पैदावार
आड़ू की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
खुबानी की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल, पैदावार
आलूबुखारा या प्लम की खेती: किस्में, देखभाल, पैदावार
पपीते की पौध करें तैयार
जुलाई से अगस्त माह में मैदानी क्षेत्रों के बागवान पपीते की पौध तैयार कर सकते हैं| अच्छी किस्म का बीज चयन करके उन्हें कवकनाशी से उपचारित करें| उपचारित बीजों को ऊंची उठी हुई क्यारियों में बोना चाहिए| पौधशाला में बीजों / पौधों को आर्द्रपतन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को बुआई से 15 दिन पहले ही 2.5 प्रतिशत फार्मेल्डिहाइड के घोल से उपचारित करने के 48 घंटे बाद पॉलीथीन से ढककर कीटाणुरहित कर लें|
पुराने बाग खरपतवाररहित होने चाहिए तथा उनमें जल निकासी की अति उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए| सड़न रोग की रोकथाम के लिए ब्लिटॉक्स (0.3 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव पौधों के तनों एवं थालों में अवश्य करें एवं पौधों के तनों के चारों ओर मिट्टी चढ़ा दें| बीजों के अंकुरण के बाद थीरम (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें| उद्यान में जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए| पपीता उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- पपीते की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
सेब की करें तुड़ाई
जल निकासी की समुचित व्यवस्था के साथ अगेती पकने वाली किस्मों को तोड़कर बाजार में भेजने की व्यवस्था करें| कज्जली धब्बा का प्रकोप होने पर डाइथेन – जेड 78 (0.2 प्रतिशत) घोल का छिड़काव लाभप्रद रहता है| यदि तना कैंकर का प्रकोप हो तो प्रभावित शाखा को थोड़े स्वस्थ भाग सहित काटकर जला दें| खुले भाग या पूरे वृक्ष पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें| अगस्त माह में पौधे तैयार करने के लिए कलम चढ़ाएं| अगस्त माह में डिलिशियस किस्में पककर तैयार हो जाती हैं|
उन्हें अच्छी एवं सुंदर पैकिंग कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें| रूईया और सेंजोस स्केल आदि कीटों की रोकथाम के लिए सितम्बर में मेटासिस्टॉक्स (0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करें| फलों को तुड़ाई – पूर्व गिरने से रोकने हेतु 20 पीपीएम नेप्थेलीन एसिटिक अम्ल (2 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) का छिड़काव अगस्त में अवश्य करें| सेब उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सेब की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
अंगूर को बाजार भेजने की करें तैयारी
जुलाई में मध्यम या अगस्त में देर से पकने वाली किस्मों के फलों की तुड़ाई के बाद बाजार में भेजने की व्यवस्था करें| इस माह में फलों के फटने व सड़ने की समस्या आती है| अत: ब्लिटॉक्स (0.3 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव अवश्य करें| इसी दौरान फलों को चिड़ियों एवं बर्रों से बचाना चाहिए| फलों को चिड़ियों से बचाने के लिए चमकीले रिबन (पट्टियां) का उपयोग करना चाहिए या गुच्छों में हरी थैलियां लगा दें| बर्र के छत्तों को नष्ट करने का उपाय करें| फलों की तुड़ाई के बाद खाद व उर्वरक देने की व्यवस्था करें| अगस्त माह में एन्थ्रेक्नोज रोग का भय रहता है| अतः समय रहते ही इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टिन (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें| अंगूर उत्पादन की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अंगूर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
ध्यान दें
1. अगस्त माह में पपीता में रस चूसक कीटों (सफेद मक्खी) के नियंत्रण हेतु बायोएजेन्ट वर्टिसिलियम लेकेनी का 5.0 मिली प्रति लीटर के 3 पर्णीय छिडकाव 10 दिन के अन्तराल पर करें| पीले रंग के चिपचिपे ट्रेप लगावें|
2. अगस्त माह में नये बगीचे लगाने हेतु फलदार पौधों का रोपण करें|
3. संतरे में फलों को गिरने से रोकने हेतु 2, 4-डी (उद्यानिकी ग्रेड) 10 मिली ग्राम प्रति लीटर घोल के हिसाब से छिड़काव करें|
4. नींबू वर्गीय फलों में पत्तियां खाने वाली इल्ली (निंबू तितली ) नियंत्रण के लिये डायमिथोएट 1.5 मिली या क्यूनालफॉस 25 ईसी 1.5 मिलीलीटर या क्लोरपायरिफॉस 3.0 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|
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