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Home » Blog » गन्ना की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

गन्ना की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

December 20, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गन्ना की खेती

गन्ना (Sugarcane) एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है, विषम परिस्थितियां भी इसकी फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती इन्ही विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने आप में सुरक्षित और लाभ की खेती मानी जाती है| इसकी अधिक पैदावार वैज्ञानिक तकनीक व कुशल सस्य प्रबंधन के माध्यम से ही संभव है| इस लेख में किसान बन्धु गन्ना की आधुनिक खेती कैसे करें| जिससे उनको अधिकतम पैदावार प्राप्त हो का विस्तृत उल्लेख है|

गन्ना फसल उत्पादन की प्रमुख समस्याएं

1. कृषकों द्वारा अनुशंसित किस्मों का उपयोग न करना तथा पुरानी किस्मों पर निर्भर रहना|

2. रोगरोधी उपयुक्त किस्मों की उन्नत बीजों की उपलब्धता न होना|

3. बीज उत्पादन कार्यक्रम का अभाव|

4. बीज उपचार न करने से बीज जनित रोगों व कीड़ों का प्रकोप अधिक और एकीकृत पौध संरक्षण उपायों को न अपनाना|

5. कतार से कतार की कम दूरी और अंतरवर्तीय फसलें न लेने से प्रति हेक्टेयर पैदावार तथा आय में कमी|

6. पोषक तत्वों का संतुलित और एकीकृत प्रबंधन न किया जाना|

7. उचित जल निकास और सिंचाई प्रबंधन का अभाव|

8. उचित जड़ी प्रबंधन का अभाव|

9. गन्ना फसल के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों का अभाव जिसके कारण श्रम लागत अधिक होना|

यह भी पढ़ें- गन्ने की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

गन्ना फसल ही क्यों चुने?

1. गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है, अच्छे प्रबंधन से साल दर साल 1.5 से 2 लाख रूपये या इससे अधिक प्रति हेक्टेयर लाभ कमाया जा सकता है|

2. प्रचलित फसल चक्रों जैसे, मक्का-गेंहू या धान-गेंहू, सोयाबीन-गेंहू की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है|

3. यह निम्नतम जोखिम भरी फसल है जिस पर रोग, कीट ग्रस्तता एवं विपरीत परिस्थितियों का अपेक्षाकृत कम असर होता है|

4. गन्ना के साथ अन्तवर्तीय फसल लगाकर 3 से 4 माह में ही प्रारंभिक लागत मूल्य प्राप्त किया जा सकता है|

5. गन्ना की किसी भी अन्य फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं है, वर्ष भर उपलब्ध साधनों और श्रमिकों का सद्उपयोग होता है|

गन्ना की खेती के लिए भूमि का चुनाव

गन्ना की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है| दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था और जल का निकास अच्छा हो, एवं पी एच मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है|

गन्ना की फसल के लिए उपयुक्त मौसम

गन्ने की बुआई वर्ष में दो बार कि जाती है, जैसे-

शरदकालीन बुवाई- इसमें अक्टूबर से नवम्बर में फसल की बुवाई करते हैं एवं फसल 10 से 14 माह में तैयार होता है|

बसंत कालीन बुवाई- इसमें फरवरी से मार्च तक फसल की बुवाई करते है| इसमें फसल 10 से 12 माह में तैयार हो जाती है|

शरदकालीन गन्ने की बसंत में बोये गये गन्ने से 25 से 30 प्रतिशत व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30 से 40 प्रतिशत अधिक पैदावार होती है|

यह भी पढ़ें- ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई कैसे करें: अधिक उत्पादन हेतु

गन्ना की खेती के लिए खेत की तैयारी

खेत की गीष्मकाल में अप्रेल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें| इसके पश्चात 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर और रोटावेटर या पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, समतल तथा खरपतवार रहित कर लें, अब रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20 से 30 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाये|

गन्ना की खेती के लिए बीज का चयन

गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है| गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लायें| गन्ने के ऊपरी भाग में अंकुरण 100 प्रतिशत, बीच में 40 प्रतिशत तथा निचले भाग में केवल 19 प्रतिशत ही होता है| दो आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है|

गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां-

1. उन्नत किस्म के स्वस्थ निरोग बीज का ही चयन करें|

2. गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह या कम हो तो अंकुरण अच्छा होता है| बीज ऐसे खेत से लें जिसमें रोग और कीट का प्रकोप न हो और जिसमें खाद पानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो|

3. जहां तक हो नर्म गर्म पानी उपचारित 54 सेंटीग्रेट और 85 प्रतिशत आर्द्रता पर 4 घंटे या टिश्यूकल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें|

4. हर 4 से 5 साल बाद बीज बदल दें, क्योंकि समय के साथ रोग और कीट ग्रसित में वृद्धि होती जाती है|

5. बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें|

यह भी पढ़ें- गन्ने के साथ अंतरवर्ती खेती कैसे करें: बढ़ाएं आमदनी

गन्ना की खेती के लिए उन्नत किस्में

गन्ने की फसल से भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करना आवश्यक है| उन्नत किस्मों से 15 से 25 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है| कुछ उन्नतशील किस्में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए इस प्रकार है, जैसे-

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों हेतु- को- 0218, को- 0403, को- 06027, को- 06030, को- 2000-13, को- 2000-15, को- 91010, को- 92005, को- 94008, को- 94012, को- 99004, सीओए- 03081 (97 अ 85), सीओए- 88081 (84 अ 125), सीओए- 99082 (93 अ 145), सीओसी (एस सी)- 22, सीओसी (एस सी)- 23, सीओसी (एस सी)- 24, सीओसी- 01061, सीओसी- 08336, सीओएम- 0265, सीओएम- 7714, सीओएम- 88121, सीओएन- 85134, सीओ एसएनके- 05104, सीओवी- 94101 (86 वी 96), सीओवी- 95101 (91 वी 83), सीओवीसी- 2003-165, सीओवीसी- 94463, वीसीएफ- 05171 और को- 0212 आदि प्रमुख है|

उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों हेतु- बीओ- 145, 146, 147, 153, को- 0118, 0124, 0232, 0233, 0237, 0238, 05009, 05011, 98014, सी ओ बी एल एन- 02173, 90006, 9101, 9102, 9103, 9104, 9105, 94063, सीओ एच- 110, सीओ एच- 119, सीओ एच- 128, कोजा- 89, कोलख- 94184, सीओ पी- 2061, सीओ पी- 9702, कोपंत- 03220, कोपंत- 90222, कोपंत- 94211, कोपंत- 96219, कोपंत- 97222, कोपंत- 99214, सीओ पीबी- 09181 (कोपंजाब 91), कोपीके- 05191, कोशा- 03251, कोशा- 07250, कोशा- 08277, कोशा- 96269, कोशा- 96275, कोशा- 97261, कोशा- 98259, कोशा- 99259, कोशे- 00235, 01235, 01424, 01434, 03234, 96234, यूपी- 0097 और यूपी- 05125 और को- 06034 आदि प्रमुख है|

उपरोक्त किस्मों पर अनेको परीक्षणों ने दर्शाया की नवीनतम विकसित किस्मों में मौजूदा मानको पर 10.31 से 12.5 प्रतिशत तक गन्ना पैदावार में और अपने समूह में स्थानीय मानकों की तुलना में 1.56 से 1.82 प्रतिशत का शर्करा में सुधार हुआ है| इसलिए इन किस्मों को अपने अपने क्षेत्र में व्यावसायिक खेती के लिए बढ़ावा देने की आवश्यकता है| गन्ना की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ने की क्षेत्रवार उन्नत किस्में

यह भी पढ़ें- टिश्यू कल्चर एवं पॉलीबैग द्वारा गन्ने की खेती कैसे करें

बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर ही क्यों चुनें-

1. फसल में अग्रवेधक कीट का प्रकोप नहीं होता है|

2. फसल वृद्धि के लिए अधिक समय मिलने के साथ ही अंतरवर्तीय फसलों की भरपूर संभावना|

3. अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है और कल्ले अधिक फूटते है|

4. अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवार कम होते है|

5. सिंचाई जल की कमी की दशा में, देर से बोयी गई फसल की तुलना में नुकसान कम होता है|

6. फसल के जल्दी पकाव पर आने से कारखाने जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं|

7. जड़ फसल भी काफी अच्छी होती है|

गन्ना की खेती के लिए बीज की मात्रा

गन्ने की मोटाई के अनुसार बीज की मात्रा कम-ज्यादा होती है, लेकिन आमतौर पर गन्ने की बीज दर इस प्रकार है, जैसे-

1. 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बिजाई के लिए 35 से 45 क्विंटल बीज गन्ना प्रति एकड़ (12 आँख प्रति मीटर की दर से)|

2. एक आँख बीज के टुकडे 53,000 से 53,500 प्रति एकड़|

3. एक आँख के बीज टुकड़ों को एक दूसरे के सिरे मिलाकर 31,000 से 31,500 प्रति एकड़ (40 से 50 प्रतिशत बीज की बचत)|

4. दो आँख बीज के टुकड़े 26,500 से 27,000 प्रति एकड़|

5. तीन आँख बीज के टुकड़े 17,500 से 18,000 प्रति एकड़ उचित होते है|

गन्ना की खेती के लिए बुवाई पद्धति

कतार से कतार की दूरी और गन्ने की मोटाई के आधार पर निर्भर करता है, जिसका विवरण इस प्रकार है| आमतौर पर मेड़ नाली पद्धति से बनी 20 से 35 सेंटीमीटर बनी गहरी नालियों में सिरा से सिरा या आंख से आंख मिलाकर सिंगल या डबल गन्ना टुकड़े की बुवाई की जाती है| बिछे हुए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2 से 3 सेंटीमीटर से अधिक मिट्टी की परत न हो अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है|

बीजोपचार- बीज जनित रोग और कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनिट तक उपचार करें|

मिटटी उपचार- ट्राईकोडर्मा विरडी 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 150 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिश्रित कर एक या दो दिन नम रखकर बुवाई पूर्व कूड़ों में या प्रथम गुड़ाई के समय भुरकाव करने से कवक जनित रोगों से राहत मिलती है|

यह भी पढ़ें- अधिक गन्ना पैदावार के लिए स्वच्छ बीज उत्पादन का महत्व

गन्ना फसल में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन

खाद और उर्वरक-

1. फसल के पकने की अवधि लम्बी होने कारण खाद और उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है| इसलिए खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए|

2. इसके अतिरिक्त 300 किलोग्राम नत्रजन (650 किलोग्राम यूरिया ), 85 किलोग्राम स्फुर, ( 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) और 60 किलोग्राम पोटाश (100 किलोग्राम म्यूरेट आपपोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

3. स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें और नत्रजन की मात्रा को इस प्रकार करें-

शरदकालीन गन्ना- शरदकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को चार समान भागों में विभक्त कर बोनी के कमशः 30, 90, 120एवं 150 दिन में प्रयोग करें|

बसन्तकालीन गन्ना- बसन्तकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमशः 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें|

नाइट्रोजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नाइट्रोजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है| 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्म तत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें|

विशेष सुझाव-

1. मिटटी परीक्षण के आधार पर ही आवश्यक तत्वों की अपूर्ति करें|

2. स्फुर तत्व की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक के द्वारा करने पर 12 प्रतिशत गंधक तत्व 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अपने आप उपलब्ध हो जाता है|

3. जैव उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा को 150 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट या गोबर खाद के साथ मिश्रित कर 1 से 2 दिन नम कर बुवाई पूर्व कुड़ों में या प्रथम मिट्टी चढ़ाने के पूर्व उपयोग करें| जैव उर्वरकों के उपयोग से 20 प्रतिशत नाइट्रोजन और 25 प्रतिशत स्फुर तत्व की आपूर्ति होने के कारण रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में तदनुसार कटौती करें|

4. जैविक खादों की अनुशंसित मात्रा उपयोग करने पर नाइट्रोजन की 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रसायनिक तत्व के रूप में कटौती करें|

यह भी पढ़ें- ट्रैक्टर चलित गन्ना पौध रोपण यंत्र: जानिए उपयोगी तकनीक

गन्ना फसल में जल प्रबंधन और निकासी

गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8 से 10 दिन के अंतर पर और ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें| हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5 से 7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिये|

सिंचाई की मात्रा कम करने के लिये खाली जगह में गन्ने की सुखी पत्तियों की पलवार की 10 से 15 सेंटीमीटर की तह बिछाएं गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक नाली छोड़कर सिंचाई देकर फसल बचाएं| कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है|

गर्मी के मौसम तक जब फसल 5 से 6 महीने तक की होती है, स्प्रींकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है| वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें| खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार और रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है|

गन्ना की खेती में विरलीकरण

कभी-कभी पंक्तियों में कई जगहों पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए खेत में गन्ने की बुआई के साथ-साथ अलग से सिंचाई स्त्रोत के नजदीक एक नर्सरी तैयार कर लें| इसमें बहुत ही कम अंतराल पर एक आंख के टुकड़ों व बुवाई करें| खेत में बुवाई के एक महीने बाद खाली स्थानों पर नर्सरी में तैयार पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर रोपाई कर दें|

यह भी पढ़ें- गन्ना नर्सरी की उन्नत विधियां: जानिए अधिक उत्पादन हेतु

गन्ना की फसल में खरपतवार प्रबंधन

अंकुरण से पहले गुड़ाई- गन्ना का अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है| जिसके नियंत्रण के लिए एक गुड़ाई करना आवश्यक होता है, जिसे अंकुरण से पहले की गुड़ाई कहते है|

निराई-गुड़ाई- आमतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुड़ाई आवश्यक होगी, इस बात का विशेष ध्यान रखें कि व्यांत अवस्था 90 से 100 दिन तक|

निराई-गुड़ाई का कार्य-

मिट्टी चढ़ाना- वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें 120 और  150 दिन बाद मिटटी चढ़ाने का कार्य अवश्य करें|

रासायनिक नियंत्रण-

1. बुवाई पश्चात अंकुरण पूर्व खरपतवारों के नियंत्रण के लिए एट्राजीन 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के एक सप्ताह के अन्दर खेत में समान रूप से छिड़काव करें|

2. खड़ी फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2 4- डी सोडियम साल्ट 2.8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें|

3. खड़ी फसल में चौड़ी -सकरी मिश्रित खरपतवार के लिए 2 4- डी सोडियम साल्ट 2.8 किलोग्राम मेटीब्यूजन 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें|

4. उपरोक्त शाकनाशी के उपयोग के समय खेत में नमी आवश्यक है| खरपतवार रोकथाम की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना फसल में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें

यह भी पढ़ें- रिंग-पिट विधि से गन्ने की खेती: अधिकतम उत्पादन हेतु

गन्ना की खेती के साथ अन्तरवर्ती खेती

गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2 से 3 माह तक धीमी गति से होती है| गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है| इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाये तो निश्चित रूप से गन्ने के फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है|

इसके लिये जो फसलें अन्तरवर्ती खेती के रूप में ऊगाई जा सकती है, वो इस प्रकार है, जैसे-

शरदकालीन खेती- गन्ना +आलू (1:2), गन्ना + प्याज (1:2), गन्ना + मटर(1:1), गन्ना + धनिया (1:2) गन्ना + चना (1:2), गन्ना + गेंहू (1:2) आदि|

बसंतकालीन खेती- गन्ना + मूंग(1:1), गन्ना +उड़द (1:1), गन्ना + धनिया (1:3), गन्ना + मेथी (1:3) आदि|

गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय-

1. गन्ना के कतारों की दिशा पूर्व-पश्चिम रखें|

2. गन्ना की उथली बोनी न करें|

3. गन्ना के कतार के दोनों तरफ 15 से 30 सेंटीमीटर मिट्टी दो बार (जब पौधा 1.5 से 2 मीटर का (120 दिन बाद) हो और इससे अधिक बढ़वार होने पर चढ़ायें(150दिन बाद)|

4. गन्ना की बंधाई करें, इसमें तनों को एक साथ मिलाकर पत्तियों के सहारे बांध दें| यह कार्य दो बार आवश्यकतानुसार करें| पहली बंधाई अगस्त में और दूसरी इसके एक माह बाद जब पौधा 2 से 2.5 मीटर का हो जाए, बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाश संलेशण किया प्रभावित होगी|

यह भी पढ़ें- गन्ना के बीज का उत्पादन कैसे करें: जानिए उपयोगी तकनीक

गन्ना की फसल में कीट नियंत्रण

अग्रतना छेदक- इस कीट की 15 से 100 दिनों तक क्षति संभव, एक लार्वी कई तनों को भूमिगत होकर क्षति पहुंचाती है| इससे डेड हार्ट बनता और प्रकोपित पौधा नहीं बचाया जा सकता तथा बगल से कई कल्ले निकलते है|

नियंत्रण-

1. शीतकालीन बुवाई अक्टूबर से नवम्बर में करें|

2. गन्ना बीज को बुवाई के पूर्व 0.1 प्रतिशत क्लोरोपाइीफास 25 ई सी के घोल में 20 मिनिट तक उपचारित करे|

3. प्रकोप बढ़ने पर फोरेट 10 जी 15 से 20 किलोग्राम या कार्बोफ्यूरान 3 जी 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें|

पाईरिल्ला- निम्फ और प्रौढ़ पत्ती रस चूसकर शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ स्त्राव करते है, जिसमें काले रंग की परत विकसित हो जाती है, पत्ती पीली तथा पौधों बढ़वार जाती है, पैदावार में 28 प्रतिशत और शक्कर में 2.5 प्रतिशत गिरावट पाई गई है|

नियंत्रण-

1. एपीरीकीनिया जैविक कीट के परजीवी 5000 प्रति हेक्टेयर उपयोग करें|

2. कीटनाशकों का उपयोग और पत्ती जलाने से जहां तक हो सके बचे|

3. आवश्यकता पड़ने पर क्विनालफास 25 ई सी, 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर घोल का छिड़काव या मैलाथियान 50 ई सी 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|

शीर्ष तना छेदक- लावा पत्ती के मिडरिप में से होते हुये पत्ती के आधार से तने में प्रवेश करते है और 2 से 3 गांठो तक छेद करते हुये नुकसान पहुंचाते है| डेड हार्ट बनता है, जिसे आसानी से खीचा जा सकता है, बाद में प्रभावित गन्ने से वंचीटाप का निर्माण होता हैं| पैदावार में 53 प्रतिशत तक और शक्कर में 3.6 प्रतिशत तक नुकसान होता है|

नियंत्रण-

1. शीतकालीन बुआई अक्टूबर से नवम्बर में करें|

2. आवश्यकतानुसार जल निकास करें|

3. प्रकोप बढ़ने पर फोरेट 10 जी 15 से 20 या कार्बोफ्यूरान 3 जी 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें|

यह भी पढ़ें- गन्ना बुवाई की उपयोगी विधियां: जानें अधिक उत्पादन हेतु

सफेद मक्खी- निम्फ और प्रौढ़ पत्ती की निचली सतह से रस चूसते है, पत्ती पीली पड़कर सूखती है और पत्तियों पर काले मटमैले रंग की आकृति विकसित होती है, पैदावार में 15 से 85 प्रतिशत तक नुकसान होता है|

नियंत्रण-

1. शीतकालीन बुवाई अक्टूबर से नवम्बर में करें|

2. संतुलित मात्रा मं उर्वरकों का उपयोग करें|

3. उचित जल निकास प्रबंधन अपनाएं|

4. एसिटामेप्रिड या एमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस ए एल 350 मिलीलीटर, 600 से 700 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी के साथ उपयोग करें|

पपड़ी कीट- गन्ने की पोरियो पर निम्फ या प्रौढ़ पौधे का रस चूसते है| जिससे गन्ने की अंकुरण क्षमता में 40 प्रतिशत व पैदावार में 15 प्रतिशत कमी आती है|

नियंत्रण-

1. कीट अवरोधी किस्म का उपयोग करें|

2. एम एच ए टी 54 डिग्री सेंटीग्रेट 80 प्रतिशत आर्द्रता पर 4 घंटे बीज उपचारित करके बुवाई करें|

3. गन्ना बीज को बुवाई के पूर्व 0.1 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफास 25 ई सी घोल में 20 मिनिट तक उपचारित करे| कीट नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना के प्रमुख कीट एवं उनका प्रबंधन

गन्ना की फसल में रोग नियंत्रण

कंडवा रोग- पौधा सामान्य से लम्बा व पतला होता है, पौधे के सिरे से काले रंग की चाबुक जैसी संरचना बनती है| जिससे बाद में काले रंग चूर्ण निकलकर अन्य फसलों को भी प्रकोपित करता है|

नियंत्रण-

1. कंडवा रोग अवरोधी किस्मों का चयन करें|

2. बुवाई पूर्व कार्बडाजिम या कार्बाक्सिन पावर 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर बीज उपचार करें|

3. रोगग्रसित पौधों को सावधानी से निकालकर नश्ट करें|

यह भी पढ़ें- गन्ना की उत्तर पश्चिम क्षेत्र की किस्में: विशेषताएं व पैदावार

लाल सड़न- रोगी पौधों की ऊपरी दो-तीन पत्तियों के नीचे की पत्तियां किनारे से पीली पड़कर सूखने लगती हैं तथा झुक जाती है| पत्तियां का मध्य सिरा लाल कथई धब्बो का दिखना और बाद में राख के रंग का होना| तना फाड़कर देखने से ऊतक चमकीला लाल व सफेद रंग की आड़ी तिरछी पट्टी दिखती है और रोगी पौधे से भाराब या सिरका जैसी गंध आती है|

नियंत्रण-

1. लाल सड़न अवरोधी किस्मों का चुनाव करे|

2. बुवाई के समय एम एच ए टी 54 डिग्री सेंटीग्रेट, 80 प्रतिशत नमी पर 4 घंटे तक बीज उपचार करें|

3. उचित जल निकास रखें|

4. बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्स पावर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल में 20 मिनिट तक उपचार करें|

उकठा- प्रभावित पौधे की बढ़वार कम, पत्तियों तथा पौधों में पीलापन व सूखना, पौधों को चीरकर देखने पर गाठों के पास लाल मटमैला दिखना और गन्ना अंदर से खोखला पड़ जाता है|

नियंत्रण-

1. उकठा अवरोधी किस्मों की बुआई करें|

2. बुवाई पूर्व बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्स पावर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 20 मिनट तक उपचारित करें|

3. उचित जल निकास करें|

ग्रासी सूट- गन्ना का तना पतला और नीचे से एक साथ घास जैसे कल्लों का निकलना, रोगी पौधा छोटा, पत्तियां हल्की पीली सफेद, गठानों की दूरी कम, खड़े गन्ने में आंखों से अंकुरण होना|

नियंत्रण-

1. बुवाई के समय एच एच ए टी से 54 डिग्री सेंटीग्रेट, 80 प्रतिशत नमी पर 4 घंटे तक बीज उपचार करें|

2. पोशक तत्वों का संतुलित उपयोग करें|

3. गन्ना काटते समय औजार स्वच्छ होने चाहिए| गन्ना में रोग नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना के रोग एवं उनका प्रबंधन

यह भी पढ़ें- शरदकालीन गन्ने के साथ आलू की खेती कैसे करें

गन्ना फसल की कटाई

फसल की कटाई उस समय करें, जब गन्ने में सुकोज की मात्रा सबसे अधिक हो| क्योंकि यह अवस्था थोड़े समय के लिये होती है तथा जैसे ही तापमान बढ़ता है सुकोज का ग्लूकोज में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और ऐसे गन्ने से शक्कर तथा गुड़ की मात्रा कम मिलती है| कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करें, इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करें| यदि माप 18 या इसके उपर है, तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है| गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें|

गन्ना की खेती से पैदावार

गन्ने उत्पादन में उपरोक्त उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक गन्ना प्राप्त किया जा सकता है|

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु-

1. अनुशंसित किस्मों (शीघ्र पकने वाली) का उपयोग करें|

2. गन्ना फसल हेतु 8 माह की आयु का ही गन्ना बीज उपयोग करे|

3. शरदकालीन गन्ना (अक्टूर से नवम्बर) की ही बुवाई करें|

4. गन्ना की बुवाई कतार से कतार 120 से 150 सेंटीमीटर दूरी पर नाली या आधुनिक पद्धति से करें|

5. बीजोपचार (फफूदनाशक कार्बेन्डाजेम 2 ग्राम प्रति लीटर व कीटनाशक क्लोरोपायरीफास 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में 15 से 20 मिनट तक डुबोकर ) ही बुवाई करें|

6. जड़ी प्रबंधन के तहत ठूंठ जमीन की सतह से काटना, गरेड़ तोड़ना, फफूदनाशक व कीटनाशक से ठूंठ का उपचार, गेप फिलिंग, संतुलित उर्वरक (एन पी के- 300:85:60) का उपयोग करें|

7. गन्ने की फसल के कतारों के मध्य कम समय में तैयार होने वाली फसलों चना, मटर, धनिया, आलू, प्याज आदि फसलें लें|

8. खरपतवार नियंत्रण हेतु ऐटाजिन 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व की दर से बुवाई के 3 से 5 दिन के अंदर और 2-4-डी, 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व 35 दिन के अंदर छिडकाव करे|

9. गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में टपक सिंचाई पद्धति को प्रोत्साहन दिया जाए|

10. गन्ना पैदावार हेतु गन्ना उत्पादक किसानों को शुगर केन हारवेस्टर, पावर बडचिपर एवं अन्य उन्नत कृषियंत्रों की जानकारी होनी चाहिए|

यह भी पढ़ें- गन्ने की फसल में समन्वित कीट और रोग प्रबंधन

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