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ब्रोकली की उन्नत खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

April 5, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

स्प्राउटिंग ब्रोकली (हरी गोभी) एक गोभी वर्गीय सब्जी है| ब्रोकली की खेती ठीक फूलगोभी के समान ही की जाती है| इसके बीज व पौधे देखने में लगभग फूलगोभी की तरह ही होते हैं| इसके पौधों में गोभी के समान फूल लगते हैं, इस फूल को हम सब्जी के रुप में इस्तेमाल करते हैं| ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी-छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओं का गुच्छा होता है| फूल गोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है, वहीं ब्रोकली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी, पौधे से कुछ शाखाएं निकलती हैं और इन शाखाओं से बाद में ब्रोकली के छोटे फूल प्राप्त किए जाते है| ब्रोकली फूलगोभी की तरह ही होती है, लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी कहा जाता है|

हमारे देश में ब्रोकली की खेती विगत कुछ वर्षों से ही शुरू की गई है| अभी इसकी खेती आमतौर पर महानगरों और पर्यटक स्थलों तक ही सीमित है| पांच सितारा होटलों तथा पर्यटक स्थलों पर इस सब्जी की मांग बहुत है और शहरों के समीप किसान इसकी खेती करके बहुत अधिक लाभ कमा रहे हैं| ब्रोकली का बाजार भाव 60 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाता है| ब्रोकली अन्य गोभी वर्ग की सब्जियों की अपेक्षा अधिक मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स व खनिज पदार्थ होते हैं| इसमें फूलगोभी से 130 गुणा और गांठगोभी से 22 गुणा विटामिन ‘ए’ होता है|

ब्रोकली में सल्फोराफेन नामक यौगिक बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो कैंसर रोगियों के लिए लाभदायक होता है और स्वस्थ लोगों में कैंसर होने की संभावना कम करता है| ब्रोकली हृदय रोगियों के लिए भी फायदेमंद होती है| क्योंकि इसके खाने से रक्त में सीरम कालेस्ट्रोल का स्तर घट जाता है| ब्रोकली की पौष्टिकता को देखते हुए आम लोगों में इसकी मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है तथा आने वाले समय में इसकी खेती महानगरों के समीप व पर्यटक स्थलों तक ही सीमित न रहकर पूरे देश में होने लगेगी एवं किसानों के लिए इसकी खेती बहुत लाभकारी सिद्ध होगी| अन्य गोभी वर्गीय सब्जियों की वैज्ञानिक तकनीक से खेती की पूरी जानकारी यहाँ पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

ब्रोकली के लिए ठन्डी जलवायु की आवश्यकता होती है| देश के अधिकतर भागों में इसकी खेती रबी मौसम में की जाती है, जबकि अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती गर्मी के मौसम में भी की जा सकती है| ब्रोकली की अच्छी वृद्धि के लिए 10 से 18 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है|

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए भूमि का चयन

ब्रोकली की सफल खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट व बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है| भूमि का पी एच मान 6.0 से 6.8 के बीच होना चाहिए| भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि खेत में पानी खड़ा रहने से पौधों की जड़ों को हानि पहुंच सकती है|

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी

ब्रोकली की फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करें, इसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टी वेटर से करनी चाहिए| अन्तिम जुताई करने से पहले खेत में 10 से 15 टन प्रति हैक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी-गली खाद डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें और पाटा लगाकर खेत को ढेले रहित व समतल बना लें|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में बेमौसमी सब्जियों की खेती, जानिए आधुनिक तकनीक

ब्रोकली की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव

ब्रोकली की अच्छी उपज लेने के लिए बुवाई का समय व उगाये जाने वाले क्षेत्र के अनुसार सही किस्मों का चुनाव अति आवश्यक है| बीज हमेशा किसी विश्वसनीय संस्था जैसे- राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालय आदि से ही खरीदें| इसकी किस्मे तीन प्रकार की श्वेत, हरी और बैंगनी होती है, इनमें से हरे रंग की गठे हुए शीर्ष वाली किस्में अधिक पसंद की जाती है| ब्रोकली की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार हैं, जैसे-

के टी एस- 1 (पूसा ब्रोकली)- इस किस्म का सिरा हल्के हरे रंग का, फल गुंथा हुआ तथा 250 से 400 ग्राम वजन का होता है| यह किस्म रोपाई के उपरान्त 80 से 90 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 120 से 140 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

के टी एस 59- इस किस्म का सिरा गुंथा हुआ, फल हरे रंग का होता है और इसकी औसत पैदावर 90 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

पालम समृद्धि- इस किस्म का सिरा हरा, गुंथा हुआ, पीले धब्बों और पत्तियों से युक्त होता है| फूल का वजन 300 से 400 ग्राम होता है| यह किस्म 85 से 95 दिन में तैयार हो जाती है और पैदावार 150 से 180 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक मिल जाती है|

ग्रीन स्प्राउटिंग ब्रोकली- इस किस्म का सिरा गहरे हरे रंग का गुंथा हुआ होता है| जिसका वजन 200 से 250 ग्राम होता है| इसके पौधे शाखायुक्त होते हैं, यह किस्म रोपाई के उपरान्त 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी पैदावार 120 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

पंजाब ब्रोकली- इसके पौधे शाखायुक्त, चिकनी पत्तियां और अत्यधिक फुटाव वाले होते हैं| सिरा मध्यम आकार, हल्की गुथी हुई हरी कलियां युक्त और फल 150 से 200 ग्राम वजन के होते हैं| यह किस्म रोपाई के 60 से 70 दिन उपरान्त तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 60 से 75 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

इन किस्मों के अतिरिक्त कुछ विदेशी कम्पनियां भारत में अब ब्रोकली की संकर किस्मों का बीज भी बेच रही हैं| जिनमें से कुछ संकर किस्में इस प्रकार हैं, जैसे- पैकमैन, कैप ओवन, बैकलस, ग्रीन लोफी, लैण्ड स्टार, ग्रीन मेल, ग्रीन डोम, शिगमरी आदि है|

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ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए बीज और बुवाई

ब्रोकली की एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए लगभग 350 से 450 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है| नर्सरी में बीज की बुवाई उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर से अक्टूबर में की जाती है| पहाड़ी क्षेत्रों में बुवाई जुलाई से अगस्त में जबकि अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में बीज की बुवाई मार्च से अप्रैल में की जाती है|

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

ब्रोकली की सफल खेती के लिए स्वस्थ बीज और स्वस्थ निरोग नर्सरी का होना अत्यन्त आवश्यक है| नर्सरी तैयार करने के लिए स्थान का चुनाव करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे- नर्सरी खेत के किनारे पर लगानी चाहिए जहां धूप लगती हो, पेड़ों की छाया न हो, सिंचाई की उचित व्यवस्था हो, मिट्टी में कंकड़-पत्थर न हों| नर्सरी ऊंचे स्थान पर हो जहां पर पानी का जमाव बिल्कुल न हो| प्रत्येक वर्ष नर्सरी नई जगह पर उगानी चाहिए, जिससे कीटाणु एवं रोगजनक की संख्या अधिक न होने पाये|

नर्सरी वाले खेत की अच्छी प्रकार से जुताई करके 3 मीटर लम्बी, 0.75 मीटर चौडी तथा 15 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई क्यारियां बना ली जाती हैं| क्यारियों की लम्बाई आवश्यकतानुसार व भूमि की उपलब्धतानुसार बढ़ाई जा सकती है, किन्तु चौड़ाई तथा ऊंचाई इतनी ही रखनी चाहिए| दो क्यारियों के बीच में 30 से 45 सेंटीमीटर का अन्तर रखें ताकि फालतू पानी का निकास हो सके और क्यारियों की निराई-गुड़ाई करने में सुविधा हो|

प्रत्येक क्यारी में 20 से 25 किलोग्राम भली भांति सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर, उसे मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें, इसके अतिरिक्त 200 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम यूरिया और 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति क्यारी की दर से मिट्टी में मिला दें| क्यारियों में बीज की बुवाई करने से पहले क्यारियों की भूमि का रोगाणु रहित करना अति आवश्यक है, इसके लिए थीरम या कैप्टान नामक कवकनाशी की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बुवाई से 1 से 2 दिन पूर्व भूमि को उपचारित करना चाहिए|

उपचारित क्यारियों में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर 1 से 1.5 सेंटीमीटर गहरी लाइनें बना लेते हैं| इन लाइनों में बीज की बुवाई लगभग 5 सेंटीमीटर की दूरी पर की जाती है| बुवाई के पश्चात् इन लाइनों को सड़ी हुई बारीक गोबर की खाद से ढक कर सूखी घास या सूखी पत्तियों को क्यारियों के ऊपर बिछा देना चाहिए| ढकने के पश्चात् क्यारियों की फव्वारे से हल्की सिंचाई कर दें|

अंकुरण होने पर घास या पत्तियों को हटा दें| नर्सरी में जैसे ही खरपतवार दिखाई दें उन्हें हाथ या अन्य यंत्र से निकाल दें और समय-समय पर आवश्यकतानुसार हल्की, सिंचाई करते रहें| इस प्रकार बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में ब्रोकली की पौध खेत में रोपाई करने योग्य हो जाती है|

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ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए पौध की रोपाई

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ब्रोकली पौध की रोपाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह, पहाड़ी क्षेत्रों में अगस्त के अन्तिम सप्ताह से मध्य अक्टूबर और अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मई में की जाती है| नर्सरी में जब पौधे 10 से 12 सेंटीमीटर या 4 से 5 सप्ताह के हो जाएं तो उनकी खेत में रोपाई कर देनी चाहिए| ब्रोकली की रोपाई पंक्तियों में की जाती है, किस्मों के अनुसार पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पंक्ति में पौधे से पौधे के बीच का अंतर 40 सेंटीमीटर रखते हैं| पौध 3 से 4 सेंटीमीटर से अधिक गहरी नहीं लगानी चाहिए| खेत में नमी होनी चाहिए और पौध की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई अवश्य कर दें| पौध की रोपाई दोपहर बाद या शाम के समय ही करें|

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए खाद और उर्वरक

आमतौर पर ब्रोकली की खेत से अच्छी पैदावार लेने के लिए 10 से 15 टन गोबर की सड़ी गली खाद रोपाई से 20 से 25 दिन पहले खेत में समान रूप से बिखेर कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए| इसके साथ-साथ 100 से 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस और 50 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से देने की सिफारिश की जाती है|

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा रोपाई करने से पहले खेत में समान रूप से डालकर मिट्टी में मिला देनी चाहिए| नाइट्रोजन की बाकी बची हुई दो-तिहाई मात्रा पौध रोपाई के 25 तथा 50 दिन बाद बराबर हिस्सों में बांटकर खड़ी फसल में समान रूप से छिड़क दें| नाइट्रोजन डालने के बाद खेत में सिंचाई अवश्य कर दें|

ब्रोकली में मुख्य पोषक तत्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश) के अतिरिक्त कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे बोरोन व मोलिब्डिनम की कमी के लक्षण भी देखे गए हैं| इसलिए इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय 10 से 15 किलोग्राम बोरेक्स और 500 ग्राम अमोनियम मोलब्डेट का प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों का बीजोत्पादन कैसे करें

ब्रोकली की उन्नत खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

पहली हल्की सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| ब्रोकली पौध की रोपाई के 6 से 7 दिन बाद खेत में घूम कर देख लें कि पौधे सही तरह से खड़े हो गये हैं, या मर गये हैं, यदि किसी कारणवश कुछ पौधे उखड़ गये हों या मर गये हों तो उसके स्थान पर दूसरे पौधे लगाकर (गैप फिलिंग) पौधों की संख्या पूरी कर लें|

इसके बाद हल्की सिंचाई अवश्य कर दें, बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए| इस प्रकार ब्रोकली की अच्छी पैदावार लेने के लिए 5 से 6 सिंचाइयां पर्याप्त होती हैं| सिंचाई के लिए फसल की प्रारंभिक वृद्धि अवस्था और सिरा विकास अवस्था क्रान्तिक अवस्थाएं हैं| अतः इन अवस्थाओं पर खेत में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए|

ब्रोकली की फसल में खरपतवार प्रबंधन

खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्वों, नमी, प्रकाश और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, फलस्वरूप फसल की पैदावार व गुणवत्ता में कमी आ जाती है| इसके अतिरिक्त खरपतवार फसल में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं तथा कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं| इसलिए ब्रोकली की अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत को रोपाई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार मुक्त रखना चाहिए| खरपतवार नियंत्रण के लिए बेसालिन या ट्राईफ्लूरेलिन नामक खरपतवार नाशक की 1.0 लीटर सक्रिय तत्व की मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई के पहले खेत में छिड़काव करके मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें|

इसके अतिरिक्त फसल में 2 से 3 उथली निराई-गुड़ाई 15 दिन के अन्तराल पर करें| निराई-गुड़ाई करने से खरपतवारों की रोकथाम के साथ-साथ भूमि में वायु संचार भी होता है| जिससे फसल वृद्धि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है| निराई-गुड़ाई करते समय ध्यान रहे कि इससे पौधों की जड़ों को हानि न पहुंचे| अंतिम निराई-गुड़ाई के बाद पौधों पर हल्की मिट्टी चढ़ा दें जिससे पौधे न गिरें|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय फसलों के रोग एवं उनका प्रबंधन

ब्रोकली की फसल में कीट नियंत्रण

कीट डायमण्ड बैक मोथ- ब्रोकली का यह बहुत हानिकारक कीट है| इसकी मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती है| जिनसे 3 से 10 दिनों में सूडियां निकल आती हैं| ये सूड़ियां, पत्तियों के सम्पूर्ण हरे भाग को काटकर अत्यधिक क्षति पहुंचाती हैं जिससे पत्तियां छलनी की भांति दिखाई देने लगती हैं|

कटुआ कीट- पौध रोपण के कुछ समय बाद इस कीट की सुंडियां पौधों के मुलायम तनों को जमीन के पास से काट देती हैं| जिससे पौधे सूखकर नष्ट हो जाते हैं|

तंबाकू की सूड़ी- इस कीट की सूड़ियां भी पौधे की मुलायम जड़ों व पत्तियों को काटती हैं, जिससे फसल को अत्यधिक हानि होती है|

कैबेज तना छेदक- यह ब्रोकली की फसल का अत्यन्त हानिकारक कीट है| गिड़ार शुरू की अवस्था में पत्तियों को खाकर विकसित होती है, जो बाद में ब्रोकली के तने के अगले भाग में प्रवेश कर मुलायम तने को गोलाई में काट देती हैं| जिससे पौधों में विकृति उत्पन्न हो जाती है तथा पैदावार में काफी कमी आ जाती है|

नियंत्रण-

1. रोपाई से पूर्व खेती की गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए धूप में खुला छोड़ दें, जिससे कि इन कीटों की जमीन में छिपी विभिन्न अवस्थाओं जैसे- सुंडी, प्यूपा को तेज धूप व जैविक कारकों (परभक्षी एवं परजीवियों) द्वारा नष्ट किया जा सके|

2. खेत में उगे खरपतवारों व अन्य फसलों के अवशेषों को जलाकर या भूमि में दबाकर नष्ट कर दें, जिससे कि उनमें छिपे विभिन्न कीटों के अण्डों, सूड़ियों व प्यूपा अवस्थाओं को नष्ट किया जा सके|

3. कीटों के अण्डों को खड़ी फसल में पत्तियों की निचली सतह पर ध्यानपूर्वक देखें तथा दिखाई देने पर पत्तियों सहित काटकर मिट्टी में दबा दें, फसल में उपरोक्त कीटों का प्रकोप होने पर एण्डोसल्फान या क्वीनालफॉस कीटनाशी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10 दिनों के अन्तराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध तैयार कैसे करें

ब्रोकली की फसल में रोग नियंत्रण

आद्रगलन- यह नर्सरी में उगे छोटे पौधों में होने वाला फफूंद जनित रोग है, जो अधिक नमी व उच्च तापमान के कारण उत्पन्न होता है| रोग प्रभावित पौधे भूमि की सतह से सड़कर गिर जाते हैं|

नियंत्रण-

1. नर्सरी में बीज बोने से पहले भूमि का उपचार किसी फफूंदनाशक दवा जैसे- कैप्टान या थीरम से बुवाई के दो सप्ताह पूर्व करें, बीज को कैप्टान या बाविस्टीन से 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें|

2. नर्सरी की क्यारियों को खेत की सामान्य सतह से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखें और जल निकास का उचित प्रबंध रखें|

3. पौधों में रोग के लक्षण दिखायी देने पर (बीज जमाव के 15 से 20 दिन बाद) बाविस्टीन या डायथेन एम- 45 का 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौध पर छिड़काव करें|

चेपा (माहू)- यह हरे मटमैले व छोटे आकार के कीट होते हैं| जो कि पौधों की पत्तियों का रस चूस लेते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं और प्रभावित पौधों की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है|

नियंत्रण- चेपा के प्रभावी नियंत्रण के लिए मेलाथियान, या एण्डोसल्फान दवा 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर पौधों पर अच्छी प्रकार छिड़काव करना चाहिए|

काला विगलन- मौसम में अधिक आद्रता और अधिक तापमान होने पर यह रोग तेजी से फैलता है| रोगी पौधों की पत्तियों के किनारे पर पीले रंग के धब्बे बनने लगते हैं| जो आकार में वृद्धि कर मध्यशिरा तक फैल जाते हैं| जिससे पत्तियों की शिराओं का रंग काला या भूरा हो जाता है तथा पत्तियां गिर जाती हैं| कीट एवं रोग नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

नियंत्रण-

1. ब्रोकली का प्रमाणित बीज बोयें|

2. रोग रोधी किस्में उगायें|

3. बीज बोने से पहले इसे 52 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आधे घंटे तक पानी में डालकर उपचारित करें|

4. स्ट्रेप्टोसाइक्लीन का 100 से 200 पी पी एम का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- ग्रीनहाउस में टमाटर की बेमौसमी खेती कैसे करें

ब्रोकली की फसल के फलों की कटाई

फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य सिरा (मन हैड) बनकर तैयार हो जाये तो इसे लगभग 12 से 15 सेंटीमीटर लंबे डंठल के साथ तेज चाकू या दराती से कटाई कर लें| मुख्य सिरा काटने के बाद पौधों के तनों से दूसरी छोटी-छोटी कलियां निकलती हैं तथा ये कलियां उप सिरा (सब हैड) के रूप में तैयार हो जाती हैं| इन उप सिरों को भी 8 से 10 सेंटीमीटर लंबे डंठल सहित उचित समय पर कलियां खिलने से पहले कटाई करें|

ध्यान रखें कि कटाई के समय सिरा (हैड) खूब गुंथा हुआ हो| तथा उसमें कोई कली खिलने न पाये| ब्रोकली तैयार होने के बाद कटाई में देरी करने से वह ढीली होकर बिखर जायेगी तथा कली खिलकर पीला रंग दिखाने लगेंगी| ऐसी अवस्था में कटाई करने पर ब्रोकली की गुणवत्ता कम हो जाती है और इसका सही बाजार भाव नहीं मिलता|

ब्रोकली की उन्नत खेती से पैदावार

इस प्रकार ब्रोकली की खेती यदि उपरोक्त उन्नत सस्य विधियां अपनाकर की जाये तो साधारण किस्मों से 75 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा संकर किस्मों से 120 से 180 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व, जानिए उनकी कमी के लक्षण

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