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Home » टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

April 1, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

टमाटर की जैविक फसल को बहुत से हानिकारक कीट एवं रोग प्रभावित करते है| जिससे टमाटर फसल में उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| प्रमुख कीट- कटवा कीड़ा, फल छेदक, फल मक्खी, माईट, सफेद मक्खी, सुरंगी कीड़ा, जड़ गांठ, सूत्रकृमि आदि है, वही प्रमुख रोग-,कमर तोड़ रोग, फल सड़न रोग, पछेती झुलसा रोग, पत्तों का धब्बा रोग, पाउडरी मिल्ड्यू रोग आदि है|

जो टमाटर की पैदावार ही कम नहीं करते बल्कि इसकी गुणवत्ता पर भी प्रभाव डालते हैं| और जब बात जैविक तरीके से इनकी रोकथाम की आती है| तो जानकारी के आभाव के कारण किसान भाइयों के लिए यह समस्या उत्पन हो जाती है| इस लेख में टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है| टमाटर की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें

टमाटर की फसल में जैविक विधि से कीट रोकथाम

कटवा कीट- इस कीट का प्रकोप टमाटर के पौधे रोपने के कुछ दिनों बाद ही शुरू हो जाता है| विशेषकर मार्च से अप्रैल में इसका प्रकोप अधिक होता है| इस कीट की सुंडियां बड़े आकार तथा भूरे रंग या गहरे रंग की होती हैं| इन सुंडियों के प्रौढ़ गहरे भूरे या गेहूं रंग के होते हैं, जो कि लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर के आकार के होते हैं| इनके पंख हल्के सफेद रंग के होते हैं|

रोकथाम-

1. इस कीट की सुंडियां मिट्टी के अंदर रहती हैं, इसलिए इससे बचाव के लिए पूर्ण रूप से गली-सड़ी खाद का प्रयोग करना चाहिए|

2. खेत को तैयार करते समय मिट्टी को जीवामृत से उपचारित करें|

3. टमाटर फसल में जहां प्रकोप अधिक दिखाई दें वहां नीम, तेल का छिड़काव करें|

4. जिस खेत में प्रत्येक वर्ष टमाटर लगाए जा रहे हों वहां रोपित सब्जियों का चक्र न अपनाएं|

 यह भी पढ़ें- बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) कैसे करें

फल छेदक- यह टमाटर का मुख्य कीट है| इसके पतंगे मोटे व पीले भूरे रंग के होते हैं, जबकि पीछे के पंख हल्के भूरे सफेद रंग के होते हैं| इस कीट की सुंडियां हल्के भूरे रंग या गुलाबी रंग की होती हैं, जिनके शरीर के दोनों तरफ लंबाई की ओर दो भूरे रंग की लाइनें होती हैं| इस कीट के अंडे छोटे, गोल और हल्के पीले रंग के होते हैं|

यह कीट मार्च से अप्रैल में सक्रिय होता है तथा प्रौढ़ रात्रि में प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं| इस कीट की मादा टमाटर के ऊपर के पत्तों पर नीचे की तरफ या ऊपर की तरफ अंडे देती हैं, जिनमें से सुंडियां निकलकर पत्तों को छिलने लगती हैं| अधिक प्रकोप की अवस्था में 70 से 80 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचता है|

रोकथाम-

जब टमाटर की फसल में फूल आ रहे हों तो उस समय बेसिलस थूरिनर्जेन्सिस वार कुर्सटाकी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और 15 दिन बाद पुन: छिड़काव दोहराएँ|

फल मक्खी- फल मक्खी का नियंत्रण करना काफी मुश्किल है| यह पंख वाली व मध्यम आकार की होती है| इसका शरीर हल्के भूरे रंग का होता है और दोनों पंखों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे होते हैं| प्रौढ़ के पैर हल्के पीले रंग के होते हैं, जबकि सुंडियां हल्के सफेद रंग की तथा बिना पैर वाली होती हैं| इस मक्खी की मादा टमाटर में डंडी वाले स्थान पर या उसके आसपास अंडे देती है| इस कीट की सुंडियां ही नुकसान पहुंचाती हैं, जो कि टमाटर के अंदर घुसकर उसके गूदे को खाती हैं, जिससे फल सड़ जाता है व बाद में जमीन में गिर जाता है|

रोकथाम-

1. जून से जुलाई में वर्षा शुरू होने पर इस कीट के प्रौढ़ दिखाई देने लगते हैं|

2. रोगग्रस्त फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें और जमीन में 10 से 15 सेंटीमीटर की गहराई में दबा देना चाहिए|

3. टमाटर फसल में नीम तेल का छिड़काव भी इसके प्रकोप को कम करता है|

यह भी पढ़ें- मटर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

माईट- इस नाशी जीव के प्रौढ़ बहुत छोटे, हल्के रंग के या हल्के पीले रंग के होते हैं और शरीर के पृष्ठ भाग में दो धब्बे होते हैं| यह जीव पत्तों पर मकड़ी की तरह जाला बनाता है|

रोकथाम-

इस कीट की रोकथाम के लिए नीम के बीजों को पीसकर पाउडर बनाकर पानी में घोलकर और इस घोल को कपड़े से छानकर पांच प्रतिशत के हिसाब से पानी में घोल बनाकर हर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें|

सफेद मक्खी- यह कीट बहुत छोटा होता है, जिसके चारों पंख सफेद होते हैं| निम्फ बहुत ही छोटे और पत्तों के निचले भाग में चिपके होते हैं| प्यूपा के शरीर में विशेष प्रकार की संख्या में बाल होते हैं| इस कीट के प्रौढ़ और निम्फ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं| इसके अलावा यह कीट चीनीनुमा पदार्थ भी छोड़ता है, जिससे सारा पत्ता चिपचिपा हो जाता है और इससे बीमारियां पैदा हो जाती हैं, जो कि बाद में पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया को हानी पहुंचाती है|

रोकथाम-

1. इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम कीटनाशक (1 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें|

2. टमाटर फसल में पीले ट्रेप्स का भी इस्तेमाल किया जा सकता है|

सुरंगी कीड़ा- यह दो पंखों वाला बहुत छोटा कीट है, जिसके पृष्ठ भाग का रंग पीला होता है और पीठ के ऊपर पीला धब्बा होता है| यह पत्तों में सुरंगें बनाते हैं, जो कि कीट की विशेष पहचान है| मादा पत्ते के अंदर अंडे देती है, जिसमें से कुछ दिनों बाद सुंडियां निकलती हैं| जो पत्तों में सुरंग बनाती हैं और पत्तों के अंदर जाकर पत्तों का हरा पदार्थ चूस लेती हैं| जिससे क्लोरोफिल बनने की क्रिया कम हो जाती है और पौधा कमजोर होता रहता है, जिससे पैदावार पर बुरा असर डालता है|

रोकथाम-

इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम कीटनाशक (1 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें|

यह भी पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

जड़ गांठ सूत्रकृमि- जड़ गांठ सूत्रकृमि टमाटर की फसल में तीन प्रकार से भारी नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे- पौधों की कोशिकाओं से अपना भोजन प्राप्त करके, जड़ों की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करके सूत्रकृमि द्वारा किए गए जख्मों हानिकारक फफूंद, जीवाणु, सूक्ष्म जीव आसानी से प्रवेश कर जाते हैं| सूत्रकृमि अक्सर जड़ों पर पलते हैं|

जिससे जड़े मिट्टी से जरूरी तत्व व पानी नहीं ले पाती और पौधों के ऊपरी भागों पर कई तरह के विकार पैदा हो जाते हैं| जैसे कि पौधों की बढ़ौतरी रूकना, पत्तियों का पीला पड़ना, शाखाओं का कम निकलना, खेतों में टुकड़ों में पीले छोटै छितराए पौधे दिखना, फूल व फलों के लगने में कमी आना, पौधों का ऊपर से नीचे की ओर सूखना आदि|

रोकथाम-

1. खेतों की 2 से 3 बार जुताई करने के बाद 15 से 20 दिनों के लिए धूप में खुला छोड़ दें, जिससे सूत्रकृमि ऊपर आकर धूप की गर्मी से मर जाते हैं|

2. यदि जुताई के बाद खेतों को पॉलीथिन की चादर से 3 से 6 सप्ताह ढककर रखें तो भी बेहतर नियंत्रण होगा|

3. टमाटर की फसल के बाद खेतों में लहसुन, प्याज, तिल, बाथू, मक्की, पालक और गेंदे या गुलदाऊदी फसलें लगाएं, जिससे सूत्रकृमियों की संख्या में भारी गिरावट आती है|

यह भी पढ़ें- लौकी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

टमाटर की फसल में जैविक विधि से रोग रोकथाम

कमर तोड़ रोग- टमाटर व अन्य सब्जियों जैसे शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन, बंद गोभी, फूल गोभी, ब्रॉकली, प्याज इत्यादि का एक महत्वपूर्ण रोग है| इस रोग के लक्षण पौधों पर दो रूप में दिखाई देते हैं| बीज अंकुरण भूमि की सतह से निकलने से पहले ही रोगग्रस्त हो जाते हैं तथा मर जाते हैं, बाद में इस रोग का आक्रमण पौधों के तनों पर होता है और तने का विगलन होने पर पौधे भूमि की सतह पर लुढ़क जाते हैं तथा मर जाते हैं|

रोकथाम-

1. पौध को जालीनुमा घर में ही उगाएं|

2. पौधशाला का स्थान हर वर्ष बदलें|

3. पौधशाला की मिट्टी का उपचार सौर ऊर्जा से करें|

4. बिजाई से पूर्व बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा से करें|

5. पानी उतना ही दें जितनी जरूरत है, अधिक पानी पौधे को रोगग्राही बनाता है|

फल सड़न रोग- इस रोग के लक्षण टमाटर की फसल में फलों पर ही दिखाई देते हैं और फलों पर हल्के तथा गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, जो हिरण की आंख की तरह लगते हैं| रोगग्रस्त फल प्रायः जमीन पर गिर जाते हैं तथा सड़ जाते हैं|

रोकथाम-

1. पौधे को सहारा देकर सीधा खड़ा रखें|

2. भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर तक की पत्तियों को तोड़ दें|

3. वर्षाकाल के आरंभ होते ही उपयुक्त पानी निकास नालियां बनाएं|

4. समय-समय पर रोगग्रस्त फलों को इकट्ठा करके गड्ढे में दबा दें|

5. वर्षाकाल के आरंभ होने से पहले खेत की सतह पर घास की पत्तियों का बिछौना बिछाएं|

6. खड़ी फसल के दौरान खेतों में गौमूत्र, पंचगव्य, खट्टी लस्सी इत्यादि का छिड़काव करते रहें|

यह भी पढ़ें- लहसुन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

पछेती झुलसा रोग- इस रोग के लक्षण टमाटर की फसल में अगस्त के अंतिम व सितंबर माह के पहले सप्ताह में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे काले धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं| नमी व ठंडे मौसम में यह धब्बे फैलने लगते हैं और 3 से 4 दिनों में पौधे पूरी तरह झुलस जाते हैं| फलों पर भी गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं|

रोकथाम-

1. फसल चक्र अपनाएं, खेत में उपयुक्त पानी की निकास नालियां बनाएं और खरपतवार को नियंत्रण में रखें|

2. टमाटर फसल में से रोगग्रस्त फलों तथा पत्तियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

पत्तों का धब्बा रोग- पत्तों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार चक्रनुमा धब्बे बनते हैं, जो लक्ष्य पटल की तरह दिखाई देते हैं तथा नमी वातावरण में यह धब्बे आपस में मिल जाते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं एवं समय से पहले पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं|

रोकथाम-

1. रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

2. फसल चक्र अपनाएं तथा खेत को खरपतवार से मुक्त रखें|

3. स्वस्थ बीज उपयोग में लाएं|

4. बीज का ट्राइकोडर्मा से उपचार करें|

5. भूमि से 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक के पत्तों को तोड़ दें ताकि हवा का प्रभाव ठीक हो सके|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

पाउडरी मिल्ड्यू रोग- इस फफूंद के लक्षण टमाटर की फसल में पत्तों की निचली सतह पर चूर्णी धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जिससे पत्तों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है तथा पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं|

रोकथाम-

1. टमाटर फसल में पंचगव्य का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|

2. टमाटर फसल में जल निकास का उचित प्रबंध करें|

3. ट्राइकोडर्मा हर्जियाम (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) बेसिलस सबटिल्स (ग्राम प्रति लीटर पानी) का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|

मुझन रोग- रोगग्रस्त पौधों के पत्ते बिना पीले पड़े ही नीचे की ओर झुक जाते हैं और बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है तथा मर जाता है| फलों पर सफेद रंग से घेरे छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं|

रोकथाम-

1. टमाटर फसल में रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट करें|

2. फसल चक्र अपनाएं और रोगग्रस्त भूमि में कम से कम टमाटर की फसल तीन वर्ष तक न लगाएं|

3. रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें और बीज को ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें|

4. खेत तैयार करते समय ब्लीचिंग पाउडर (10 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर) मिट्टी में मिलाएं तथा हल्की सिंचाई करें|

5. रोगग्रस्त खेतों में रोग प्रतिरोधक संकर किस्मों का रोपण करें|

6. टमाटर फसल में से गग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट करें|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

चित्तीदार मुझन रोग- इस रोग से ग्रस्त पौधों के पत्तों का रंग ताम्बे की तरह हो जाता है, पत्ते मुड़ जाते हैं और पौधों की लंबाई भी कम हो जाती है| फलों की सतह पर लाल-पीले रंग के चक्र बनते हुए धब्बे भी दिखाई देते हैं| विषाणु की अपेक्षा टोमैटो स्पॉटिड विल्ट विषाणु की मार क्षमता बहुत अधिक है| शिमला मिर्च, लैट्यूस, मटर, तम्बाकू, आलू, टमाटर तथा बहुत से सजावटी पौधों की किस्में इस विषाणु की मुख्य परिपोषक फसलें हैं|

रोकथाम-

1. पौध को जालीनुमा घर में उगाएं ताकि थ्रिप्स पौधशाला में प्रवेश न कर पाएं|

2. यदि फसल पर रोग के लक्षण दिखाई दें तो तत्काल प्रभावित पौधों को जड़ से निकाल कर नष्ट कर दें और फसल पर नीम के तेल का छिड़काव करें|

टमाटर का मोजेक- टमाटर की फसल में रोगग्रस्त पौधों के पत्तों पर हल्के व गहरे रंग की चित्तियां दिखाई देती हैं और छोटे पत्ते कभी-कभी विकृत हो जाते हैं| पत्तों का आकार भी कम हो जाता है| इस रोग को कोई भी रोगवाहक कीट संचारित नहीं करता है| यह विषाणु रोगी बीज या भूमि में रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों में कई माह तक जीवित रहता है|

रोकथाम-

1. टमाटर की फसल में इस विषाणु को आसरा देने वाले खरपतवारों को नष्ट कर दें|

2. विषाणु मुक्त बीज के उपयोग से इस रोग की तीव्रता में काफी कमी आ जाती है|

3. फसल चक्र अपनाते रहें|

उपरोक्त तकनीक से टमाटर फसल में किसान बन्धु कीट एवं रोग रोकथान प्रभावी तरीके से कर सकते है, बस आपको थोडा सा जागरूक होना होगा और जैविक विधि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के भी अनुकूल है| जिससे आपका और आपके परिवार का जीवन भी सुरक्षित होगा| क्योंकि रासायनिक खेती का दुष्परिणाम तो आप देख ही रहें है|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक

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