• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन | एकीकृत कीट और रोग नियंत्रण

जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन | एकीकृत कीट और रोग नियंत्रण

November 30, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव नियंत्रण, परिणाम स्वरूप सघन और एकल कृषि तथा रसायनों के अविवेक पूर्ण तथा अत्यधिक प्रयोग से जहां, एक और जैव विविधता का ह्रास हुआ है| वहीं रोग जनकों एवं कीटों में रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हुई है| यही कारण है, कि निरन्तर रसायनिक दवाओं के प्रयोग के बावजूद कीट व्याधियों की समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं|

किसानों को इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुये एक लागत विहिन और अत्यधिक प्रभावशाली, पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल तथा सर्वत्र प्रभावी तकनीक न्यूनतम साझा कार्यक्रम का विकास किया गया है| जो कि एकीकृत या समेकित नाशीजीव प्रबन्धन का एक अंग है| इस पद्धति के चार प्रमुख अवयव हैं, जैसे-

1. मिट्टी सौर्यकरण,

2. वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन एवं प्रयोग,

3. जैव अभिकर्ता का अधिक से अधिक प्रयोग,

4. वर्मीकम्पोस्ट की गुणवत्ता में वृद्धि|

यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

जैव अभिकर्ता का प्रयोग

किसी जीव द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों और प्रक्रियाओं के कारण दूसरे जीव (रोगजनक) का आंशिक या पूर्ण रुप से विनाश किया जाता है| रोगजनकों का विनाश करने वाले जीवों को जैव अभिकर्ता कहते हैं| चूंकि रासायनिक दवाओं के लगातार प्रयोग से रोगजनकों में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है|

इसी कारण रोगों को रासायनिक दवाओं से नियंत्रित कर पाना कठिन हो जाता है| इसके लिए जैव अभिकर्ता द्वारा रोगों का नियंत्रण एक उपयुक्त विकल्प है| क्योकि ये पूर्ण रुप सेजैविक प्रक्रिया है, इसलिए जैव नियंत्रण से फसलों की सुरक्षा के साथ-साथ मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है|

जैव नियंत्रण एकीकृत प्रक्रिया

पिछले दो दशकों में बहुत से जैव अभिकर्ता व्यवसायिक स्तर पर बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें रोग नियंत्रण के लिए ट्राईकोडर्मा तथा स्युडोमोनास जैव अभिकर्ता अधिक प्रचलित है| जैव अभिकर्ता ट्राइकोडर्मा हरजियेनम व स्युडोमोनास फ्लोरोसेन्स का व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता|

बीज उपचार- बड़े बीज जैसे- मटर, सोयाबीन, गेहूं एवं बीन के लिए 6 से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज और छोटे बीजों जैसे- गोभी, मिर्च, टमाटर, बैंगन इत्यादि के 4 से 6 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित किया जाता है| यदि बीज पहले से रासायनिक दवाओं द्वारा उपचारित हो तो उसे पानी से धोकर जैव अभिकर्ता द्वारा उपचारित करना चाहिये|

जैव अभिकर्ता द्वारा बीज उपचार के लिए बीज के ऊपर थोडा सा पानी छिड़क कर संस्तुत दर के आधार पर जैव अभिकर्ता पाउडर ठीक से मिला देते हैं| इसके बाद बीज को थोड़ी देर छाया में रख देते हैं, जिससे जैव अभिकर्ता की परत बीज के ऊपर लग जाये, इसके बाद बीज की बुवाई कर देते हैं|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे एवं उपयोगी पद्धति

कंद प्रकंद उपचार- अदरक, अरबी, आलू इत्यादि के उपचार के लिए 8 से 10 ग्राम जैव अभिकर्ता प्रति लीटर पानी में घोलकर कंदों को लगभग 30 मिनट तक डुबो कर निकाल देते हैं एवं उन्हें छाया में सुखाने के बाद बुवाई कर देते हैं|

पौध उपचार- रोपाई से पहले पौध की जड़ों को जैव नियंत्रक के घोल से उपचारित करते हैं| इसके लिए पौध को पौधशाला से उखाड़कर उसकी जड़ को पानी से अच्छी तरह पानी से साफ करने के बाद 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर जैव अभिकर्ता का पानी में घोल बनाकर उसमें आधा घंटे तक जड़ें डुबोने के पश्चात् पौधों की रोपाई करते हैं| पौध उपचार आमतौर पर सब्जियों जैसे- गोभी, मिर्च, टमाटर आदि में करते हैं|

स्प्रे (छिड़काव)- बीज और मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम के अतिरिक्त जैव अभिकर्ता द्वारा हवा द्वारा फैलाई जाने वाले रोगों को भी रोका जा सकता है| इसके लिए 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर जैव अभिकर्ता पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव समय-समय पर खेती में किया जाना चाहिये|

जैव अभिकर्ता के प्रयोग से जहां एक ओर उत्पादन लागत कम की जा सकती है, वहीं मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है| रोग कारक जीवों में जैव अभिकर्ता के प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की सम्भावना भी नहीं रहती है और जैव अभिकर्ता का बीज के अंकुरण एवं पौधे की वृद्धि पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है| जैव अभिकर्ता के प्रयोग में कुछ सावधानियां बरती जानी अत्यन्त आवश्यक हैं जैसे-

1. जैव अभिकर्ता को निर्धारित समय सीमा के अंदर ही प्रयोग में लाना चाहिये, आमतौर पर जैव अभिकर्ता उत्पादन के दिन से 6 महीने के अंदर प्रयोग में लाये जा सकते है|

2. जैव अभिकर्ता के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी और कार्बनिक पदार्थ होना चाहिये, रासायनिक दवाओं के साथ जैव अभिकर्ता का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिये|

3. जैव अभिकर्ता का भण्डारण 25 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर ही करना चाहिये|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव की पूरी प्रक्रिया

मिट्टी उपचार

पौधशाला में अधिकतर विभिन्न कवकीय एवं जीवाणुवीय रोगजनक, कीटों और खरपतवार की बहुतायत रहती है, जिससे बीज सड़न, जड़ व तना सड़न के कारण पौधशाला में ही पौधों की संख्या कम हो जाती है| जो पौध बचती है, वह अस्वस्थ तथा संक्रमित होती है जिससे कीट रोगों का प्रसार खेतों तक हो जाता है| पौधशाला में रोगजनकों, कीटों एवं खरपतवार के प्रभाव को कम करने के लिए एक प्रभावशाली और लागतविहिन तकनीक है|

मिट्टी उपचार, इसमें नर्सरी बीज बुवाई 5 से 8 सप्ताह पूर्व तैयार की जाती है और इसको पानी से पूरी तरह नम कर देते हैं| इसके पश्चात् पौधशाला को पारदर्शी पॉलीथीन की चादर से ढक देते हैं एवं नर्सरी के चारों ओर से पॉलीथीन की चादर को इस प्रकार दबा देते हैं, कि वायु का संचार न हो सके|

इस पॉलीथीन की चादर को बीज बुवाई से 3 से 4 दिन पूर्व ही हटाते हैं| पॉलीथीन की चादर हरित गृह प्रभाव पैदा करती है| जिससे सौर उर्जा पारदर्शी पॉलीथीन की चादर के अंदर तो आ सकती है, लेकिन बाहर नहीं जा सकती| इससे नर्सरी में मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जो कई रोगजनक सक्षम जीवों एवं कीटों के लिए घातक हो जाता है|

मिट्टी उपचार के प्रभावशाली परिणाम प्राप्त करने कि लिए ये आवश्यक है, कि उपचार पारदर्शी पॉलीथीन का ही प्रयोग कर वर्ष की सबसे गर्म अवधि के दौरान 5 से 8 सप्ताह तक किया गया हो, पॉलीथीन बिछाने से पूर्व पौधशाला की सिंचाई और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ मिला हो तथा पॉलीथीन का आवरण ठीक प्रकार लगाया गया हो|

यह भी पढ़ें- फ्लाई ऐश (राख) का खेती में महत्व, जानिए इसकी आवश्यकता एवं मिट्टी में उपयोग

कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता में वृद्धि

किसानों के स्तर पर ट्राइकोडर्मा के अधिक मात्रा में उत्पादन के लिए एक नयी पद्धति विकसित की गयी है| इसके लिए सबसे पहले लगभग 2 मीटर चौड़े और 1.5 मीटर गहरे गड्ढे बनाते हैं, फिर इन गड्ढों में गोबर डालते हैं| गोबर पर 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति गड्ढे के हिसाब से बुरकाव करके फावड़े से मिलाकर गड्ढों को बोरे या धान की पुआल से ढक देते हैं|

समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहते हैं| जिससे उचित नमी बनी रहे, 7 से 10 दिन के बाद नया गोबर मिलाकर फावड़े से अच्छी तरह मिला देते हैं, तथा फिर बोरे या पुआल से ढक कर बराबर पानी का छिड़काव करते रहते हैं|

इस प्रकार लगभग 30 से 35 दिन में ट्राइकोडर्मा से उपनिवेषित गोबर की बहुत अच्छी सड़ी खाद तैयार हो जाती है| नये गड्ढे तैयार करने के लिए गड्ढों में गोबर की खाद डालने के बाद पहले से तैयार ट्राइकोडर्मा निवेषित खाद की कुछ मात्रा मिला देते हैं, तथा पुआल से अच्छी तरह ढककर पानी का छिड़काव करते रहते हैं| इस प्रकार एक बार तैयार की गई खाद आगे भी बार-बार उपयोग में लायी जा सकती है|

इस विधि से तैयार गोबर की खाद बहुत अच्छी गुणवत्ता की होती है, इस खाद का उपयोग मिट्टी उपचारण के लिए करते हैं| खाद में उपस्थित जैव नियन्त्रक विभिन्न प्रकार के रोगकारक जैसे राइजोक्टोनिया, फ्युजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, स्केलेरोटीनिया, स्केलेरोशियम, मैक्रोफेमिना इत्यादि की रोकथाम में सहायक होते हैं|

जो फसलों में कई प्रकार की बीजोढ़ एवं मृदोढ़ बीमारियों जैसे जड़ गलन, आई गलन, उक्ठा रोग, बीज सड़न, अंगमारी इत्यादि के लिए जिम्मेदार होते हैं| इस प्रकार ट्राइकोडर्मा उपनिवेषित गोबर की खाद के प्रयोग से फसल स्वस्थ और सुरक्षित रहती है|

यह भी पढ़ें- हरी खाद उगाकर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ायें

वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन और प्रयोग

गोबर, सूखे एवं हरे पत्ते, घास-फूस, धान का पुआल, खेतों के अवशेष आदि को खाकर केंचुए लगभग 3 माह में वर्मी खाद तैयार कर देते हैं| एसीनिया फोटिडा प्रजाति के केंचुए शीघ्र और अच्छी खाद बनाते हैं| यह खाद सब्जियों, फल वृक्षों, फसलों के लिए पूर्णरुप से प्राकृतिक, लगभग सम्पूर्ण आहार प्रदान करती है| जहां वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग कर उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है|

वहीं इसके प्रयोग करने से पौधों में प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ मिट्टी की जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है, खाया गया कार्बनिक पदार्थ केंचुओं के आहार नाल से होकर निकलता है, जहां उस पर विभिन्न एन्जाइम फसलों के लिए अत्यन्त लाभदायक होते हैं| वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए घर एवं खेतों का कूड़ा, खरपतवार और गोबर को एकत्रित कर 6 फीट लम्बे, 2.5 फीट चौड़े व 1.5 फीट ऊँचे गडढे में डाल देते हैं|

यह गड्ढा कच्चा या पक्का हो सकता है| गड्ढे का आकार उपलब्ध स्थान तथा सुविधानुसार घटाया या बढ़ाया जा सकता है| तत्पश्चात गडढे में उचित प्रजाति के केचुए डाल देते हैं| ये केंचुए प्रजनन कर अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं तथा गड्ढे में डाले गये पदार्थ को खाकर मिट्टी के रुप में मल का त्यागकर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन करते हैं| इसके उत्पादन के लिए कुछ सावधानियां रखी जानी अत्यन्त आवश्यक हैं, जैसे-

1. गडढे को सूर्य के प्रकाश से बचाना चाहिये, इसलिए उसे पेड़ की छाया में बनाना चाहिये या गडढे के ऊपर घास का छप्पर बनाना चाहिये|

2. क्यारी (बेड) में नमी व हवा का आवागमन सुचारु रुप से होते रहना चाहिये|

3. ताजा या अधिक पुराना गोबर वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिये|

4. गड्ढे के ऊपर ढकने के लिए पॉलीथीन का प्रयोग नहीं करना चाहिये|

5. गडढे की मेंढक, छिपकली, चिड़ियों, दीमक व चिटियों से सुरक्षा करनी चाहिये|

6. नमी बनाये रखने के लिए गडढे के कार्बनिक पदार्थ पर सप्ताह में एक बार पानी का छिड़काव तथा दो सप्ताह में एक बार पलटाई करनी चाहिये|

7. गडढे में पानी नहीं भरने देना चाहिये|

यह भी पढ़ें- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस का उपयोग खेती में कैसे करें

वर्मी कम्पोस्ट की गुणवत्ता में वृद्धि

केचुओं द्वारा तैयार वर्मी कम्पोस्ट को गडढे से निकालने के पश्चात् उसमें 250 ग्राम प्रति कुन्तल की दर से जैव अभिकर्ता को मिला दिया जाता है, इससे एक ओर जहाँ वर्मी कम्पोस्ट की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है, वहीं जैव अभिकर्ता को कार्बनिक पदार्थ मिल जाने के कारण वह इसमें तेजी से फैल जाता है तथा कम जैव अभिकर्ता का प्रयोग कर उसे अधिक क्षेत्रफल में प्रयोग किया जाता है|

उपरोक्त बताये गये न्युनतम साझा कार्यक्रम के द्वारा मिट्टी और बीज जनित रोग व कीटों को नियन्त्रित किया जा सकता है| उद्देश्य है, स्वस्थ्य पौध तैयार करना जिसके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है, कि मिट्टी की जैव विविधता को निरन्तर बनाये रखा जाये, लाभदायक सूक्ष्म जीवों का संरक्षण और उनके संवर्धन के लिए मिट्टी में अधिक से अधिक कार्बनिक पदार्थ उपलब्ध कराया जाये|

इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति न्युनतम साझा कार्यक्रम को अपनाकर पूरी की जा सकती है| इसे अपनाने से किसानों की उत्पादन लागत कम होगी, कीट बीमारियों का प्रकोप कम होगा, किसान का लाभ लागत अनुपात बढ़ेगा और कृषक न्युनतम लागत में गुणवत्ता युक्त उत्पाद पैदा कर सकेगा|

यह भी पढ़ें- बायो फ़र्टिलाइज़र (जैव उर्वरक) क्या है- प्रकार, प्रयोग व लाभ

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap