• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

दैनिक जाग्रति

ऑनलाइन हिंदी में जानकारी

  • ब्लॉग
  • करियर
  • स्वास्थ्य
  • खेती-बाड़ी
    • जैविक खेती
    • सब्जियों की खेती
    • बागवानी
    • पशुपालन
  • पैसा कैसे कमाए
  • सरकारी योजनाएं
  • अनमोल विचार
    • जीवनी
Home » ब्लॉग » सर्पगंधा की उन्नत खेती: किस्में, देखभाल और उपज

सर्पगंधा की उन्नत खेती: किस्में, देखभाल और उपज

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सर्पगंधा की उन्नत खेती कैसे करें, जानिए

सर्पगंधा (Sarpagandha) एपोसाइनेसी कुल का पौधा है| सर्पगंधा की कई प्रजातियाँ होती हैं| जिसमें राउभोलफिया सरपेनटिना एवं राउभोलफिया टेट्राफाइलस प्रजाति के पौधों को औषधीय पौधों के रूप में उगाया जाता है| सर्पगंधा की जड़ औषधि के रूप में प्रयोग में लाये जाती हैं| इसके पौधे की ऊँचाई 30 से 75 सेंटीमीटर तक की होती है|

इसमें 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बाई के हरे चमकीले रंग के पत्ते होते हैं| पत्ते 3 से 4 के गुच्छे में औवलौंग आकार के तथा अग्रभाग नूकीले होते हैं| इसमें उजले अथवा गुलाबी रंग के गुच्छे में फूल निकलते हैं| इसमें गोलाकार छोटे-छोटे गहरे बैंगनी अथवा काले रंग के फल लगते हैं, जिसे डूप कहा जाता है| इस पौधे के नर्म जड़ से सर्पेन्टीन नामक दवा निकाली जाती है|

इसके अलावा जड़ में रेसरपीन, सरपेजीन, रौलवेनीन, टेटराफीलँन इत्यादि अल्कलाइड भी होते हैं| किसानों को इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए, ताकि इसकी फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके| इस लेख में सर्पगंधा की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- सतावर की खेती कैसे करें

सर्पगंधा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सर्पगंधा विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है, किन्तु इसकी अधिक उपज गर्म तथा अधिक आर्दता वाली परिस्थितियों में मिलती है| प्राकृतिक रूप से सर्पगंधा पौधों के नीचे छाया में उगता है| लेकिन खुली जमीन तथा हल्की छाया में भी इसकी खेती की जा सकती है| जहाँ का तापक्रम 10 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड के मध्य रहता है, वे स्थान इसकी खेती के लिये उपयुक्त हैं|

सर्पगंधा की खेती के लिए भूमि का चयन

इसकी खेती विभिन्न मृदा किस्मों जैसे कि बलुवर, बलुवर दोमट तथा भारी जमीनों में हो रही है| इसे बहुत हल्की बलुवर जमीन जिसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो नहीं उगाना चाहिये| यह पौधा अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है| जिस भूमि का पी एच 8.5 से ज्यादा हो वह इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है|

सर्पगंधा की खेती के लिए खेत की तैयारी

सर्पगंधा की खेती के लिए गर्मियों में एक गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ देना चाहिये| खेत से खरपतवार व पुराने पेड़ों की जड़ो या अन्य झाड़ियों आदि को खेत से निकाल देते हैं| पहली बरसात के तुरन्त बाद 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद को खेत में मिलाकर खेत की पुनः जुताई कर देनी चाहिये और फसल लगाने के पहले भी दो हल्की जुताईयाँ करके उसमें पाटा लगा देते हैं| जिससे खेत में ढेले न रहें| खेत में सुविधानुसार सिंचाई की नालियाँ भी बना लेना चाहिए|

यह भी पढ़ें- तुलसी की खेती कैसे करें

सर्पगंधा की खेती के लिए पौध तैयार करना

विभिन्न विधियों जैसे सर्पगंधा के पौध बीज, तने तथा जड़ की कटिंग व जड़ों के दूंठ लगाकर तैयार किये जा सकते हैं| जो इस प्रकार है, जैसे-

बीज द्वारा- इस विधि से सामान्यतः पौधा नहीं तैयार करते हैं, क्योंकि इसके बीजों का जमाव बहुत ही कम (20 से 25 प्रतिशत) होता है| यदि बीज के द्वारा ही तैयार करना है, तो बिल्कुल ताजे बीजों का प्रयोग करना चाहिए| तीन महीना के भीतर तैयार बीज का अंकुरण प्रतिशत ठीक रहता है|

नर्सरी तैयार करना- इस विधि में करीब 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है| बुवाई के पूर्व बीजों को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डाल देते हैं| जिससे खराब बीज ऊपर तैरने लगते हैं| इस विधि से उपचार करने पर न केवल अंकुरण अधिक होता परन्तु नर्सरी में होने वाली डैम्पिंग आफ बीमारी से भी बचाव होता है| नर्सरी में बीजों को बोने के पहले रात भर पानी भिगो देते हैं|

उत्तर भारत में मई के महीने में बीजों को नर्सरी में बोते हैं| जुलाई के पहले हफ्ते तक पौधे खेत में लगाने योग्य तैयार हो जाते हैं| दक्षिण भारत में बरसात शुरू हो जाने पर नर्सरी में बीजों को बोते हैं| करीब 6 सप्ताह बाद पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं| प्रति हेक्टेयर बीज द्वारा पौधे तैयार करने के लिये 500 वर्गमीटर भूमि नर्सरी के लिये पर्याप्त होती है|

जड़ों की कलम द्वारा- ऐसे पौध की जड़े जिसमें एल्कलायड की मात्रा अधिक हो उनका चुनाव पौध लगाने के लिये करते हैं| इससे अधिक एल्कलायड देने वाले पौधे प्राप्त होंगे| पौध तैयार करने के लिए 7.5 से 10 सेंटीमीटर लम्बी जड़े काटते हैं| इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जड़ों की मोटाई 12.5 मिलीमीटर से अधिक न हो तथा प्रत्येक टुकड़े में 2 गाँठे हों| इस प्रकार की जड़ों को करीब 5 सेंटीमीटर गहराई के नालियों में लगाकर अच्छी प्रकार से ढ़क देते हैं| इस विधि से फसल लगाने में करीब 100 किलोग्राम ताजी जड़ों के टुकड़ों की जरूरत होती है|

यह भी पढ़ें- स्टीविया की खेती कैसे करें

सर्पगंधा की खेती के लिए पौधों की रोपाई

बरसात का समय इसकी रोपाई के लिये उपयुक्त होता है| रोपाई के समय पौध की ऊंचाई 7.5 से 12 सेंटीमीटर के बीच होनी चाहिए| नर्सरी से पौध उखाड़ते समय इस बात का ध्यान रहे कि उसकी जड़ें टूटने न पाये| उखाड़ने के बाद पौधों को भीगे बोरे या हरी पत्तियों से ढ़ककर खेत में सीधे ले जाकर लगा देना चाहिये| लाइन से लाइन 60 सेंटीमीटर की दूरी तथा पौध से पौध की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिये|

सर्पगंधा की खेती में सिंचाई प्रबंधन

यद्यपि सर्पगंधा असिंचित अवस्था में पैदा किया जा सकता है| लेकिन पानी की कमी की वजह से पैदावार कम हो जाती है| यदि सिंचित अवस्था में इसकी खेती की जा रही है, तो सर्पगंधा की गर्मियों के अलावा एक माह में एक बार तथा गर्मियों में माह में दो बार सिंचाई करते हैं| यदि पौध लगाने के बाद बरसात नहीं होती है तो रोजाना हल्की सिंचाई पौध अच्छी तरह लगने तक करते हैं|

सर्पगंधा की खेती में खाद में उर्वरक

सर्पगंधा का पौधा पूरे वर्ष जमीन में रहने की वजह से काफी मात्रा में पोषक तत्व जमीन से ले लेता है| इसलिए एक निश्चित अंतराल पर गोबर की खाद का और उर्वरकों का प्रयोग करते हैं| खाद की मात्रा जमीन की किस्म तथा सिंचित अवस्था के ऊपर निर्भर करती है| प्रति हेक्टेयर 10 से 12 टन गोबर की खाद एवं नेत्रजन, फास्फोरस व पोटाश हर एक की 30 किलोग्राम की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए| इसके बाद 25 किलोग्राम नेत्रजन दो बार पौध अच्छी तरह लगने के बाद अगस्त से सितम्बर में तथा फरवरी से मार्च में देते हैं| बाद के दूसरे तथा तीसरे वर्षों में भी उपरोक्त दिये गये उर्वरकों की मात्रा प्रयोग करते हैं|

यह भी पढ़ें- बच की खेती कैसे करें

सर्पगंधा की खेती में निराई-गुड़ाई

शुरू में सर्पगंधा क्र पौधे की वृद्धि कम होने के कारण खेत में खरपतवार काफी मात्रा में हो जाते हैं| जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार और भी कम हो जाती है| यदि इस अवस्था में खरपतवार नियंत्रित नहीं किये गये तो ये सर्पगंधा के पौधे को ढक लेते हैं, जिससे पौधे मर भी जाते हैं| अतः लगाने के 15 से 20 दिन के बाद खुरपी से निराई कर देनी चाहिये तत्पश्चात साल में दो बार और निराई गुड़ाई करना चाहिए|

सर्पगंधा की फसल के फूलों की तुड़ाई

यदि सर्पगंधा की खेती इसकी जड़ों के उत्पादन के लिए की जा रही है, तो फूल निकलने पर उनकी तुड़ाई कर देनी चाहिए नहीं तो बीज बनेंगे और जड़ों की उपज कम हो जायेगी|

सर्पगंधा की के बीजों को इकट्ठा करना

यदि सर्पगंधा के बीजों की जरूरत है तो खेत के किसी एक कोने में पौधों को छोड़ देते हैं जिससे कि उसमें बीज आ जायें| पौधों में जुलाई से फरवरी के मध्य बीज आते हैं| पके बीज के ऊपर बैंगनी व काले रंग का गूदा होता है, बीजों को बीच-बीच में इकट्ठा करते रहते हैं, क्योंकि बीज एक साथ तैयार नहीं होते हैं| पके हुये बीजों के ऊपर का गुदा पानी में धोकर निकाल देते हैं| तत्पश्चात उन्हें छाँव में सुखाकर हवा बन्द डिब्बों में भरकर रख देते हैं|

सर्पगंधा की खुदाई, सुखाना एवं भंडारण

सिंचित अवस्था में जड़े 2 से 3 वर्ष की उम्र में खुदाई के लिये तैयार हो जाती है| इनकी खुदाई का उचित समय दिसम्बर माह है, क्योंकि इस समय पौधा सुसुप्ता अवस्था में रहता है तथा पत्तियाँ भी कम होती है| इसकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है, इन्हें अच्छी तरह खोदकर निकालना चाहिये| उसके बाद पानी में जड़े धोकर छाया में सुखाना चाहिये| तत्पश्चात जड़ो को जूट के बोरो में भरकर बाजार हेतु रखते हैं|

यह भी पढ़ें- पुदीना (मेंथा) की खेती, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

सर्पगंधा की फसल से पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर प्रत्येक पौधे से करीब 150 ग्राम से 450 ग्राम तक जड़ों से प्राप्त होती है| परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि 60 x 30 सेंटीमीटर में पौधे लगाये गये हैं तो करीब 1200 से 1300 किलोग्राम तक सूखी जड़ें प्राप्त होती है अर्थात औसतन 11 कुन्तल जड़ें प्राप्त होती है|

निष्कर्ष

वर्तमान में सर्पगंधा की खेती व्यवसायिक रूप से काफी अधिक लाभकारी है, जिसके प्रमुख कारण हैं, जैसे- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका बढ़ता जा रहा बाजार जिसमें अभी काफी समय तक संतृप्ता (सेचुरेशन) आने की संभावना नहीं है| दूसरे इससे प्राप्त होने वाले लाभ की मात्रा भी काफी अधिक है| तीसरा कारण यह भी है कि हालांकि स्वयं में तो यह फसल 30 माह अथवा अढ़ाई वर्ष की अवधि की है|

परन्तु इसके बीच में कई अंतर्वर्तीय फसलें लेकर फसल पर होने वाले अन्य सामान्य खर्चे की पूर्ति की जा सकती है| चौथे, इसकी खेती प्रारंभ करने में प्रारंभिक कठिनाई भी ज्यादा नहीं है| इस प्रकार सर्पगंधा एक ऐसा औषधीय पौधा है, जिसकी खेती किसानों के लिए लाभकारी है| सर्पगंधा के सूखे जड़ों की अभी बाजार दर 300 से 350/- किलोग्राम है|

यह भी पढ़ें- अश्वगंधा की खेती, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

अपने विचार खोजें

दैनिक जाग्रति से जुड़ें

  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

हाल के पोस्ट:-

सैम मानेकशॉ पर निबंध | Essay on Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ के अनमोल विचार | Quotes of Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ कौन थे? सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय

सी राजगोपालाचारी पर निबंध | Essay on Rajagopalachari

सी राजगोपालाचारी के विचार | Quotes of C Rajagopalachari

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी कौन थे? राजगोपालाचारी की जीवनी

राममनोहर लोहिया पर निबंध | Essay on Ram Manohar Lohia

ब्लॉग टॉपिक

  • अनमोल विचार
  • करियर
  • खेती-बाड़ी
  • जीवनी
  • जैविक खेती
  • धर्म-पर्व
  • निबंध
  • पशुपालन
  • पैसा कैसे कमाए
  • बागवानी
  • सब्जियों की खेती
  • सरकारी योजनाएं
  • स्वास्थ्य

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us