सतावर का वानस्पतिक नाम एसपैरागस रेसमोसस विभिन्न औषधीय पौधों में सतावर एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है| जिसका उपयोग प्राचीन समय से ही पारम्परिक औषधि के रूप में किया जा रहा है| सतावर एक बहुवर्षीय कन्दयुक्त झाड़ीनुमा औषधीय पौधा है, जिसको शतमूली, सतावरी एवं शतवीर्य भी कहते है| सतावर लिलियसी कुल का पौधा है| सतावर का पौधा एशिया का देशज है, जिसकी बेलें सम्पूर्ण भारत वर्ष में पायी जाती हैं|
सतावर का क्षुप 3 से 5 फीट ऊँचा होता है, जो कंटक युक्त झाड़ीनुमा आरोही लता के समान बढ़ता है| इसलिए पौधे को सहारे की आवश्यकता होती है, जो बांस या अन्य किसी शाखा द्वारा सहारा देना चाहिए| पत्तियां बारीक सुई के समान होती है, जो 1.0 से 2.5 सेंटीमीटर तक लम्बी होती हैं| इसके फल मटर के आकार वाले कठोर गुठली के रूप में होते हैं|
जो पकने पर लाल हो जाते हैं| इसके बीज काले और जड़े कन्दयुक्त लम्बी गुच्छों में होती है| इस लेख में सतावर की खेती कैसे करें और इसकी औषधि उपयोगिता, खेती प्रक्रिया एवं पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है|
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सतावर का औषधीय उपयोग
इसकी कन्दिल जड़े मधुर और रसयुक्त होती है| इसकी औषधीय गुणवत्ता बुद्धिवर्धक, दुग्धवर्धक, शुक्रवर्धक, बलकारक, कामोद्दीपक, मूत्रावरोध, मानसिक रोग, अतिसार, वात, पित्त विकार दूर करने वाली के रूप में जानी जाती है| सतावर की जड़ों का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में दुधारू पशुओं में होने वाले थनैला रोग के उपचार के लिए व्यापक रूप से किया जाता है|
सतावर की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु
इसकी खेती के उष्ण, समशीतोष्ण और शीतोष्ण नम जलवायु सर्वोत्तम रहती हैं| इसकी खेती के लिए बलुई, बलुई दोमट, लाल मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त होती है|
सतावर की खेती के लिए बीज की मात्रा
सतावर की खेती 2.0 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
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सतावर की खेती के लिए पौध नर्सरी
इसकी नर्सरी तैयार करने के लिए नर्सरी बेड़ जिसकी लम्बाई और चौड़ाई 2.0 x 1.0 मीटर रखते है, मई के अन्तिम सप्ताह में बुवाई कर देते है| बीज की बुवाई नर्सरी बेड पर कतार से कतार और पौध से पौध की दूरी 5 सेंटीमीटर रखते हुए करते हैं| लगभग एक माह बाद बीजों से अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है| नर्सरी तैयार होने में 2.5 से 3.0 माह का समय लगता है|
सतावर की खेती के लिए रोपण का समय
नर्सरी में मई के अन्तिम सप्ताह में बोये गये बीज अंकुरण पश्चात् मध्य जुलाई से अगस्त तक लगभग 75 से 80 दिन में रोपण हेतु तैयार हो जाते है|
सतावर की खेती के लिए रोपण विधि
पौध रोपण का कार्य अगस्त माह में करना सर्वोत्तम रहता है| पौध रोपण करने से पूर्व खेत में 1 x 1 मीटर पर 30 x 30 x 30 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदकर मिट्टी, खाद और बालू का 1 : 1 : 1 के मिश्रण से गड्ढे भर देते है| पौध रोपण 60 x 60 सेंटीमीटर करने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है| लेकिन 60 x 90 सेंटीमीटर एवं 90 x 90 सेंटीमीटर की दूरी पर भी कर सकते हैं| बागों में दो पौधों के बीच की जमीन में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है, जो कि अतिरिक्त आय का अच्छा स्रोत है|
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सतावर की खेती के लिए किस्में
सतावर की किस्मों के विकास के लिए प्रयास जारी है| आशा है, जल्दी ही उन्नत प्रजातियों का मानकीकरण हो जायेगा|
सतावर की खेती में खाद और उर्वरक
खेत की तैयारी के समय 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुयी खाद की आवश्यकता पड़ती है और जहां तक सम्भव हो सके तो रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न करें|
सतावर की खेती में निराई-गुड़ाई
इसकी अच्छी पैदावर के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक होती है| पौध रोपण के लगभग 3 माह बाद पहली निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए| इसके पश्चात् वर्ष में दो बार निराई-गुड़ाई करके खेत से खरपतवार निकाल देना चाहिए|
सतावर की खेती में सिंचाई प्रबंधन
ग्रीष्म ऋतु में एक माह के अन्तराल पर दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है|
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सतावर की फसल के कंदों की खुदाई
रोपाई के 24 से 30 माह बाद पौधे खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| खुदाई का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से नवम्बर माह का होता है| खुदाई के उपरान्त जड़ों को 10 मिन्ट के लिए पानी में उबाल कर छील लेते है| जड़ के मध्य में एक धागा होता है| जिसे खींचकर निकाल देने के उपरान्त ही जड़े ठीक प्रकार से सूखती हैं| इसके बाद धूप में अच्छी तरह सुखा लेते हैं, तत्पश्चात् पॉलीथीन की बोरियों में भरकर सूखे स्थान पर भण्डारित कर लेते हैं|
सतावर के शोधोपरान्त संस्तुति
पौध रोपण 60 x 60 सेंटीमीटर एवं कंदों की खुदाई 24 से 27 माह बाद करने से सतावर की सबसे अच्छी पैदावार को प्राप्त की गई है|
सतावर की फसल से पैदावर और लाभ
इसकी 60 से 80 क्विंटल सूखी जड़े प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है| सतावर की खेती करके 2.0 से 2.5 वर्ष में अच्छा शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है|
सतावर की खेती की संभावनाएं
उपरोक्त तकनीकी द्वारा सतावर की अच्छी उपज प्राप्त करके बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है| चूंकि हमारे देश में जलवायु और मिटटी औषधीय पौधों की खेती के लिए उपयुक्त है, नई कृषि तकनीक भी विकसित की गई है और आगे किया जा रहा हैं| केवल समस्या इसके विपणन की हो सकती है|
यदि यह समस्या आपके सामने है, तो इसके लिए आप किसी भी आयुर्वेदिक दवा संस्था से सीधे सम्पर्क कर के अनुबन्धं कर सकते है| इस प्रकार औषधीय पौधों सतावर की खेती सफलता पूर्वक करके किसान बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते है|
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