हमारे देश का लगभग 55 से 60 प्रतिशत कृषि क्षेत्र बारानी क्षेत्रों या असिंचित है और भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है| भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 70 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून के समय मात्र चार महीने में होती है| इस वर्षा का वितरण असमान होता है| देश के 13 राज्यों के लगभग 100 जिलों को सूखा संभावित या शुष्क क्षेत्र चिन्हित किया जा चूका है| देश का इतना बड़ा क्षेत्र सूखाग्रस्त होने के कारण, संसाधन होने के बावजूद भी हमारी खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सुरक्षा को खतरा महसूस होता है|
यदि हमारे देश के वर्षा आधारित क्षेत्रों का चहुंमुखी विकास किया जाए, एवं उन्नत कृषि तकनीकों और जल संरक्षण तकनीकों को टिकाऊ तरीके से अपनाया जाए, तो न केवल फसल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि रोजगार सृजन और पशु-पालन को बढ़ावा देकर किसानो के जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है| बारानी क्षेत्रों में फसल उत्पादकता वृद्धि हेतु आधुनिक एवं उन्नत तकनीकों का उल्लेख इस लेख द्वारा आपके सामने प्रस्तुत है|
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बारानी क्षेत्रों में वर्षा जल का संचयन और संरक्षण
बारानी क्षेत्रों में मिट्टी नमी की कमी से बचने के लिए वर्षा जल का संचय करना चाहिए जो कि निचे लिखित तकनीकें अपनाकर किया जा सकता है, जैसे-
1. ढलान वाले क्षेत्रों में पानी अधिग्रहण क्षेत्र का विकास करना, जिससे मिट्टी में वर्षा का जल संचय करने और भू-जल स्तर बढ़ाने में भी मदद मिले|
2. खेत के निचले क्षेत्रों में तालाब या टैंक निर्माण करके वर्षा के पानी को इकट्ठा करना तथा उसका फसल की संवेदनशील अवस्थाओं पर सिंचाई के लिए प्रयोग करना|
3. विभिन्न तकनीकों जैसे- भू-समतलीकरण, वृक्षारोपण, मेंड़बंदी एवं ढलान के विपरीत जुताई और बुआई करके वर्षा के पानी को बहकर नहीं जाने देना तथा साथ ही पानी से होने वाले मिट्टी कटाव को रोकना|
4. बारानी क्षेत्रों में संरक्षित कृषि अपनाना और पलवार का प्रयोग करना|
5. भूमि में अधिक जल अवशोषित करने के लिए गहरी जुताई, मेंड़ बनाना एवं ढलान के विपरीत बुआई आदि विधियों को अपनाना|
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बारानी क्षेत्रों में मिट्टी नमी संरक्षण
बारानी क्षेत्रों या असिंचित क्षेत्रों की फसल प्रणालियों और फसलों में होने वाले नमी ह्रास को कम करने के लिए एवं नमी की कमी की समस्या को कम करने में निचे लिखित आधुनिक तकनीके सहायक हो सकती हैं, जैसे-
1. खरपतवार, मिट्टी की नमी को वाष्पोत्सर्जन करके उड़ा देते हैं, इसलिए बारानी क्षेत्रों में सफल कृषि प्रबंधन के लिए, खरपतवारों से वाष्पोत्सर्जन को रोकने एवं फसलों को उचित जगह, प्रकाश तथा पोषण प्रदान करने के लिए समुचित खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है|
2. बारानी क्षेत्रों में गर्मी में गहरी जुताई करें और वर्षा उपरांत जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी की नमी संरक्षण करना चाहिए|
3. बारानी क्षेत्रों में वाष्पीकरण द्वारा होने वाले नमी ह्रास को कम करने के लिए पलवार (मल्च) का प्रयोग करें|
4. वाष्पोत्सर्जनरोधी रसायनों जैसे केओलिन 6 प्रतिशत और साइकोसेल 0.03 प्रतिशत का फसल की उचित अवस्था पर छिड़काव करें|
5. पत्तियों को मुरझाने से बचाने के लिए पोटेशियम का पर्णीय छिड़काव 0.5 प्रतिशत और पुरानी पत्तियों को निकाल दें|
6. बारानी क्षेत्रों में उचित पौधों की संख्या बनाए रखें, यदि पौधे अधिक हों, तो मिट्टी में नमी को देखते हुये कुछ पौधे उखाड़ दें|
7. मिट्टी जल धारण क्षमता, मिट्टी उर्वरता और कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए 7 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद, कम्पोस्ट 5 से 8 टन प्रति हेक्टेयर, वर्मी कम्पोस्ट 3 से 6 टन प्रति हेक्टेयर और फसल अवशेषों का प्रयोग करें|
8. बारानी क्षेत्रों में मिट्टी नमी संरक्षण के लिए पॉलीमर्स जैसे – हाइड्रोजेल 2.5 से 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें|
9. बारानी क्षेत्रों में मध्यकालीन सुधार करें, जैसे अन्त:सस्य क्रियाएं, पौधों की संख्या कम करना, जीवन रक्षक सिंचाई करना इत्यादि|
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बारानी क्षेत्रों में उपलब्ध मिट्टी नमी का दक्ष उपयोग
निचे लिखित सस्य तकनीकें अपनाकर उपलब्ध मिट्टी नमी का समुचित प्रयोग किया जा सकता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
1. सूखारोधी फसलों और किस्मों का चयन करें, जिनका वर्णन हम इस पेराग्राफ के निचे करेंगे, इन लिखित फसलों एवं किस्मों का चयन कर बारानी क्षेत्रों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है|
2. बारानी क्षेत्रों में उपयुक्त बुआई विधियों जैसे सही समय पर फसल की बुआई एवं सही गहराई पर बीज को डालना|
3. बारानी क्षेत्रों में एक्वा बुवाई को अपनाना या पोरा या केरा द्वारा कूड़ों में बुआई|
4. बारानी क्षेत्रों में उर्वरकों का सही समय, सही मात्रा और उपयुक्त गहराई पर प्रयोग|
5. शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों की वर्षा आधारित कृषि प्रणालियों में अन्तः फसलीकरण अधिक प्रणाली उत्पादकता व लाभप्रदता देने में सहायक है|
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बारानी क्षेत्रों के लिए उन्नत किस्में
बाजरा- एच एच बी- 67, डब्लू सी सी- 75, पूसा- 383, पूसा- 443, पूसा- 23, पूसा- 612 और आर एच डी- 30 आदि किस्में प्रमुख है|
ज्वार- सी एस एच- 14, सी एस एच- 13, सी एस एच- 6, एम- 35 1, जे एस- 20 और सी एस बी- 15 आदि किस्में प्रमुख है|
अरहर- पूसा अगेती, शारदा, आई सी पी एल- 87, सी- 11, पूसा- 2001, पूसा- 992 और पी पी एच- 4 आदि किस्में प्रमुख है|
मूंग- पूसा बैशाखी, आर एस- 4, आशा, के- 851, पूसा विशाल, पूसा- 672 और पूसा रतना आदि किस्में प्रमुख है|
मोठ- जड़िया, ज्वाला, मरू मोठ- 1, मरू बहार, आर एम ओ- 40 और एके एम ओ- 35 आदि किस्में प्रमुख है|
उड़द- कृष्णा, टी- 9, बसंत बहार और पंत उड़द- 40 आदि किस्में प्रमुख है|
ग्वार- दुर्गापुरा सफेद, एफ एस- 277, आर जी सी- 1002, आर जी सी- 1003, आर जी सी- 935, नवीन और मरू ग्वार आदि किस्में प्रमुख है|
तिल- टी- 13, आर टी- 124, आर टी- 125, प्रताप और पूर्वा- 1 आदि किस्में प्रमुख है|
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अरंडी- अरूणा, ज्योति, जी सी एच- 4, पी सी एच- 1, भाग्य और टी एम वी- 5 आदि किस्में प्रमुख है|
जौ- रत्ना, आजाद, आर डी- 2052, आर डी- 2035, कैलाश, आर डी- 2592, आर डी- 2508, पी एल- 419, आर डी- 2624, के- 560 और वी एल बी- 56 आदि किस्में प्रमुख है|
गेहूं- सी- 306, डब्लू एच- 410, पी बी डब्लू- 396, अमर, एच आई- 1500, एच डी आर- 77, एच डी- 2888, एच आई- 1531 और एच डब्ल्यू- 2004 आदि किस्में प्रमुख है|
सरसों- पूसा बारानी, पूसा बहार, रजत, आर बी- 50, गीता, अरावली, पी बी आर- 97 और पूसा आदित आदि किस्में प्रमुख है|
तारामीरा- करण तारा, टी- 27, आर एम टी- 1, आर एम टी- 2 और आर एम टी- 314 आदि किस्में प्रमुख है|
चना- पूसा- 1053, पूसा- 256, पूसा- 362, पूसा- 1108 और पूसा- 2024 आदि किस्में प्रमुख है|
बारानी क्षेत्रों में उपयुक्त फसल पद्धति
एक फसल वाली फसल पद्धति | अंत फसलीकरण के लिए उपयुक्त फसल पद्धति | द्विफसलीय पद्धति |
बाजरा/ज्वार/मक्का अरहर/मूंग/उड़द/लोबिया मूंगफली/सोयाबीन ग्वार तोरिया/सरसों/तारामीरा चना/मसूर गेहूं/जौ | बाजरा + मूंग अरहर + मूंग/उड़द/ सोयाबीन गेहूं + सरसों सरसों + चना सरसों + मसूर चना + अलसी
| मूंग/उड़द-सरसों मक्का-गेहूं/जौ मक्का-सरसों/चना बाजरा-सरसों/चना ग्वार-सरसों मूंग/उड़द-गेहूं/जौ
|
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बारानी क्षेत्रों में एक्वा (पानी के साथ) बुवाई
1. रबी में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में जहाँ बुवाई के समय नमी कम पाई जाती है, वहाँ बुवाई के समय एक्वा हल से 15,000 से 20,000 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पानी के साथ बुवाई करने से सही अंकुरण एवं फसल स्थापन आता है और फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है|
2. बारानी क्षेत्रों में बीज के अच्छे अंकुरण के लिए पानी या पोटेशियम नाइट्रेट के द्वारा बीज उपचार करके बुआई करें|
3. बारानी क्षेत्रों में खड़ी फसल में यूरिया का छिड़काव 1 से 2 प्रतिशत या थायो-यूरिया 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें|
बारानी क्षेत्रों में संगठित खरपतवार प्रबंधन
असिंचित बारानी क्षेत्रों में सफल कृषि प्रबंधन के लिए खरपतवारों का नियंत्रण अति आवश्यक है| खरपतवार न केवल फसल से वृद्धि एवं स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, बल्कि फसल के हिस्से के जल और पोषक तत्वों का भी अवशोषण करते हैं तथा मिट्टी नमी को वाष्पोत्सर्जन करके उड़ा देते हैं| खरपतवारों का प्रकोप कम हो इसके लिए बुआई से पूर्व खेत की तैयारी अच्छी प्रकार से करें|
बारानी क्षेत्रों में यदि शून्य जुताई विधि द्वारा बुवाई की हो तो फसल में फसल अवशेशों का आवरण (मल्च/पलवार) बनाकर रखें| फसल अवशेषों का आवरण खेत में बनाए रखने से खरपतवारों का अंकुरण कम होता है और मिट्टी की नमी का ह्रास भी कम होता है| जब फसल 20 से 40 दिन की हो जाए तब आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए|
निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के अतिरिक्त भूमि की ऊपरी परत टूट जाने से नमी का वाष्पीकरण कम होता है और मिट्टी में वायुसंचार भी बढ़ता है| विभिन्न फसलों के लिए आवश्यकतानुसार उपयुक्त समय पर शाकनाशियों का प्रयोग करके भी खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है|
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बारानी क्षेत्रों में संगठित पोषक तत्व प्रबंधन
बारानी क्षेत्रों की भूमि प्यासी ही नहीं परन्तु भूखी भी रहती हैं| क्योंकि इन क्षेत्रों में भूमि और जल अपरदन के कारण और कम पोषक तत्वों के प्रयोग से मिट्टी उर्वरता कमजोर रहती है| मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिऐ रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ पोषक तत्वों के कार्बनिक स्रोतों का भी प्रयोग करना चाहिये|
कार्बनिक खादें जैसे गोबर की खाद 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर, कम्पोस्ट 5 से 8 टन प्रति हेक्टेयर, वर्मीकम्पोस्ट 3 से 6 टन प्रति हेक्टेयर, हरी खाद जैसे टैंचा, ग्वार आदि, फसल अवशेष, जैव-उर्वरक इत्यादि का प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा-शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है| इसके अतिरिक्त कार्बनिक खादों के प्रयोग से भूमि में निम्नलिखित लाभ हैं, जैसे-
1. कार्बनिक खादों में पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में रहते हैं और इस खाद में मृदा की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति को फिर से जीवित करने की समर्थता मौजूद होती है| इसलिए इस खाद को प्रयोग करने के बाद इसका असर लम्बे समय तक बना रहता है|
2. अपनी दानेदार प्रकृति के कारण कार्बनिक खाद और वर्मी कम्पोस्ट भूमि के वायु परिसंचरण, जलधारण क्षमता को न केवल सुधारता है अपितु जड़ बढाव में वृद्धि भी करता है, कार्बनिक खाद और वर्मी कम्पोस्ट से जल मिट्टी की धारण क्षमता में वृद्धि होती है|
3. कार्बनिक खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट में बहुत से युमिक एसिड्स रहते हैं, जिनका कार्य पौधों की बढ़वार में वृद्धि के साथ ही केटायन एक्सचेंज कैपेसिटी और भूमि की भौतिक दशा सुधारना होता है|
4. बारानी क्षेत्रों में कार्बनिक खाद और वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से सिंचाई में बचत होती है|
5. बारानी क्षेत्रों में कार्बनिक खाद और वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से फल, सब्जियों और अनाज की गुणवत्ता में सुधार कर कृषक की उपज का बेहतर मूल्य दिलवाता है|
निष्कर्ष
बरानी क्षेत्रों या असिंचित में अगर वर्षा जल संचय एवं संरक्षण किया जाए, उन्नत सस्य तकनीके अपनाई जाएं, पादप सुरक्षा की समन्वित प्रौद्योगिकी अपनाएं और फसल प्रबंधन के लिए समय पर सही कदम उठाए जाएं तो बारानी क्षेत्रों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है| इसके अतिरिक्त उपलब्ध मिट्टी नमी का दक्ष उपयोग करके बारानी क्षेत्रों का टिकाऊ विकास एवं खाद्य तथा पोषण सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है|
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