• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » चने की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद तत्व, देखभाल और उत्पादन

चने की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद तत्व, देखभाल और उत्पादन

November 15, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

चने की जैविक खेती

चने की जैविक खेती में भारत प्रमुख चना उत्पादक देश है| क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश का महत्वपूर्ण योगदान है| चने की खेती शुष्क और कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिक की जाती है| इसलिए जैविक चना उत्पादन भी सरलता से किया जा सकता है| चना भारत की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है| देश में देशी, काबुली एवं गुलाबी चना की फसल सफलतापूर्वक ली जाती है|

मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, बिहार के आलावा अन्य राज्य भी चना उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान रखते है| चने की जैविक खेती के लिए सबसे उपयुक्त मध्यम से भारी भूमि होती है| भूमि का पी एच मान 5.6 से 8.6 के बीच होना चाहिए| हल्की भूमि में चने की जैविक खेती लेने की बाध्यता होने पर उसमें गोबर की खाद या हरी खाद का आवश्यक रूप से उपयोग करना चाहिए, जिससे भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ सके|

चने की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि

चने की जैविक खेती हेतु अच्छे जल निकास वाली दोमट एवं रेतीली भूमि खेती के लिए उत्तम है|

यह भी पढ़ें- मसूर की जैविक खेती कैसे करें

चने की जैविक खेती के लिए भूमि की तैयारी

चने की जैविक खेती हेतु खेत की 1 से 2 बार जुताई की जानी चाहिए तथा जमीन थोड़ी भुरभुरी वाली होनी चाहिए, ताकि जड़ों में हवा का अच्छी तरह प्रवेश हो सके|

चने की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में 

समय पर बुआई की किस्में- पूसा- 256, गुजरात चना- 4 हरियाणा चना 2, 3 व 4, अवरोधी, के डब्लू आर- 108, राधे, जे जी- 16, के- 850, डी सी पी- 92-3, आधार (आर एस जी- 963), डब्लू सी जी-2 इत्यादि प्रमुख है|

देर से बुआई- पन्त जी- 186, पूसा- 372 और उदय

काबुली चना- पूसा- 1003, एच के- 94-134, चमत्कार (वी जी- 1053), जे जी के- 1, शुभ्रा, उज्ज्वल और जी एन जी- 1985 इत्यादि| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- चने की उन्नत किस्में

चने की जैविक खेती के लिए बुआई का समय

चने की जैविक खेती की बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर अंतिम सप्ताह से लेकर नवम्बर प्रथम सप्ताह तक होता है, क्योंकि बिजाई के समय यदि तापमान काफी अधिक हो तो पौधे की असाधारण वृद्धि हो जाती है जिससे उपज में काफी कमी आती है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें

चने की जैविक खेती के लिए बुआई का तरीका

चने की जैविक खेती हेतु बीज को 10 से 12 सेंटीमीटर गहरा डालना चाहिए, क्योंकि कम गहरी बुआई करने पर बीज में रोग लग जाते है| कतारों से कतारों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए|

बीज की मात्रा- चने की जैविक खेती के लिए 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर|

चने की जैविक खेती के लिए खाद प्रबंधन

चने की जैविक खेती के लिए केंचुआ खाद 7.5 टन या देसी खाद 10 टन या कम्पोस्ट 5 टन प्रति हेक्टेयर बुआई के समय डालें और तरल जैविक खाद या वर्मीवाश के तीन छिड़काव बुआई के 15, 30 और 45 दिन के बाद खड़ी फसल में 1:10 खाद पानी की मात्रा में करें, जीवाणु खाद (राइजोबियम + पी.एस.बी. कल्चर) से बीज उपचार भी फसल उत्पादन में लाभदायक पाया गया है|

चने की जैविक खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

चने की जैविक खेती हेतु बुआई के समय भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी है, तो खेती को सिंचाई की अवश्यकता नहीं होती| फली वाली फसलों को आरम्भ में पानी नहीं देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से जड़ों में गांठे बनने में रूकावट आती है एवं जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती| यदि सिंचाई की जरूरत हो तो एक सिंचाई फूल पड़ने पर और दूसरी फलियाँ बनने पर करनी चाहिए|

चने की जैविक फसल में खरपतवार रोकथाम

चने की जैविक खेती के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे कि खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सके|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती कैसे करें

चने की जैविक फसल में कीट रोकथाम

चना फली भेदक

लक्षण- सूड़ी के लक्षण फली में छेद करके अपना मुंह अंदर घुसाकर सारा का सारा दाना चट कर जाती है|

रोकथाम-

प्रपंच- “प्रकाश प्रपंच’ लगावें, यौन आकर्षण जाल (सेक्स फेरोमोन ट्रेप) (10 से 12 प्रति हेक्टेयर) के मान से लगावें| जब नर कीटों की संख्या प्रति रात्रि प्रति ट्रेप 4 से 5 तक पहुँचने लगे तो कीट नियंत्रण जरूरी है|

सस्य क्रियाओं द्वारा-

1. चने की जैविक खेती हेतु या किसी भी तरह की खेती के लिए गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करें|

2. चने की जैविक खेती के लिए आवश्यक फसल की समय से बुआई करनी चाहिए|

3. अंतवर्ती फसल- चना फसल के साथ धनियाँ व सरसों और अलसी को हर 10 कतार चने के बाद 1 से 2 कतार लगाना चाहिए|

4. प्रपंची फसल- चना फसल के चारों ओर पीला गेंदा फूल लगाने से चने की इल्ली का प्रकोप कम किया जा सकता है| प्रौढ़ मादा कीट पहले गेंदा फूल पर अंडे देती है| इसलिए तोड़ने योग्य फूलों को समय-समय पर तोड़कर उपयोग करने से अण्डे और इल्लियों की संख्या कम करने में मदद मिलती है|

जैविक रोकथाम-

1. जैविक कीटनाशी, एच एन पी वी- 250 एल ई प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|

2. कीटभक्षी चिड़ियों के बैठने के लिए स्थान- खेत में जगह-जगह पर तीन फुट लंबी डंडियॉ टी एन्टीना (टी आकार में ) लगा दें|

3. प्राकृतिक शत्रु- ट्राइकोग्रामा माइन्युटम और ट्राइफ्लेप्स इन्सीडियस कीट इसके अंडों पर परोपजीवी है| प्राकृतिक शत्रु – ब्रेकोन, एपेनटीलीस और चेलोनस कीट इस सुंडी पर परजीवी है|

4. नीम आधारित- नीम की निम्बोली का अर्क 5 से 10 प्रतिशत सुंडियों के नियंत्रण में लाभकारी है|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

दीमक

लक्षण- दीमक जड़ व तने में घुसकर खोखला कर पौधे खत्म कर देती है|

रोकथाम-

1. टर्मिटेरिया को खोदकर रानी को मारना दीमक रोकथाम में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|

2. चने की जैविक खेती के लिए अच्छा सड़ा जैविक खाद डालें|

3. चने की जैविक खेती हेतु स्वच्छ खेती करें|

4. फसल की सिंचाई करें|

5. अच्छी जुताई व बहुधा गुड़ाई करें|

6. खेत में अवशेष नही छोड़ना चाहिए, क्योंकि दीमक उसको खाकर जीवित बनी रहती है| इसलिए जुताई करके इन्हे इक्ट्ठा करके जला दें|

7. फसल बीजाई के समय जमीन में नीम के पत्तों से तैयार की गई खाद या नीम के बीजों से तैयार खाद का प्रयोग करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है|

8. गौमूत्र को पानी के साथ 1:6 में मिलाकर बार-बार दीमक के घरों में डालने से इनके प्रसार को रोका जा सकता है|

9. प्राकृतिक शत्रु- कुछ चिड़ियाँ जैसे तीतर, बटेर, कौआ तथा गिद्ध आदि को प्रश्रय दें|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे एवं उपयोगी पद्धति

कटुआ इल्ली

लक्षण- इस कीट की केवल सूड़ी ही नुकसान पहुँचाती है| सूंडी अधिकतर दिन में भूमि के अंदर दरारों में अथवा ढेलों के नीचे छिपी रहती है| वे केवल रात्रि के समय ही निकलकर पौधों पर चढ़कर पत्तियों पर कोमल शाखाओं को काटकर खाती है| अंडों से निकलने के बाद सुंडी प्रारंभ में जमीन से छूती हुयी पत्तियों की इपीडरमिस को खाती है और बाद में बड़े पौधों पर आक्रमण करती है|

छोटे उग रहे पौधों को आमतौर पर जमीन की सतह से ही काट देती है, जिससे कि पूरा पौधा ही सूख जाता है| परन्तु बड़े पौधों की केवल शाखायें ही काटती है| वास्तव में यह खाती कम है और नुकसान ज्यादा करती है| गिरी हुयी पत्तियों एवं छोटी-छोटी शाखाओं को खींचकर जमीन के अंदर ले जाती है और दिन में वहीं खाती है|

शाखाओं और पत्तियों के काटे जाने से चने की बढ़वार मारी जाती है एवं फल व फलियां भी कम लगती है| इस प्रकार उपज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, चने की फसल पर इसका प्रकोप नवम्बर से फरवरी के महिने तक रहता है| क्योंकि सुंडी शीत निष्क्रियता में नहीं जाती है|

रोकथाम-

1. खेतों के पास प्रकाश प्रपंच लगाकर प्रौढ़ कीटों को आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता है, जिसकी वजह से इसकी संतति को कम किया जा सकता है|

2. खेतों के बीच-बीच में घास फूस के छोटे-छोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए, रात्रि में जब सूडियॉ खाने को निकलेगी तो बाद में इन्ही में छिपेगी जिन्हे घास हटाने पर आसानी से नष्ट किया जा सकता है|

3. कभी भी चने की जैविक खेती के लिए कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग न करें|

4. जिन क्षेत्रों में प्रकोप अधिक हो वहॉ बीज की मात्रा सामान्य से अधिक रखें|

5. बीजाई के पहले खेतो की दो बार जुताई करें और आस-पास की झाड़ियों, खरपतवारों इत्यादि को नष्ट कर दें|

6. चने की जैविक खेती के लिए अंकुरण के बाद पौधों पर एवं आस-पास राख का छिड़काव करें|

7. बीजाई के समय मैटाराइजियम या बवेरिया बेसियाना फफूद का प्रयोग करें|

8. चने की जैविक खेती हेतु फसल कटाई के बाद, अवशेषों को निकालकर जला दें|

9. प्राकृतिक शत्रु जैसे- ब्रेकोनिड, एपेनटिलिस और माइक्रोब्रेकोन कीट, सुंडियों पर परजीवी है|

यह भी पढ़ें- अलसी की जैविक खेती कैसे करें

चने की जैविक फसल में रोग रोकथाम 

झुलसा रोग

लक्षण- गहरे काले धब्बे छोटे-छोटे बिंदु, तनों शाखाओं, पत्तिों व फलियों पर प्रकट होते हैं| अधिक बीमारी होने पर पौधा सूख जाता है|

रोकथाम-

1. चने की जैविक खेती हेतु स्वस्थ बीज एवं रोग रहित किस्में लगाएं|

2. बीमारी के लक्षण दिखते ही 10 प्रतिशत पंचगव्य का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें|

उखेड़ा रोग

लक्षण- बीमारी वाले पौधे पहले पीले पड़ते हैं एवं फिर मुरझा कर अंत में सूख जाते हैं, जड़े काली हो जाती है तथा सड़ जाती है|

रोकथाम-

1. चने की जैविक खेती के लिए गहरा हल चलाकर भूमि तैयार करनी चाहिए|

2. फसल की देरी से बुआई करनी चाहिए|

3. चने की जैविक खेती हेतु बुआई से पहले बीज का जीव अमृत से उपचार करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैविक खेत यार्ड खाद कैसे बनाएं

चने की जैविक खेती के लिए विशेष 

जीवामृत प्रयोग विधि- चने की जैविक खेती हेतु 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ में सिंचाई के पानी के साथ लगा दें, पानी की नाली के ऊपर इम को रख कर धार इतनी रखें, कि खेत में पानी लाने के साथ ही ड्रम खाली हो जाये, फव्वारों में छान कर प्रयोग करें, शुरू में महिने में एक-दो बार यह प्रयोग करें, अगर पानी नहीं देना हो तो जीवामृत को मिट्टी पर भी छिड़का जा सकता है|

फायदा- इससे खेत में जीवाणु बढते हैं|

बीजामृत तैयार करने की विधि

सामग्री

देशी गाय का गोबर- 1 किलोग्राम

गौमूत्र- 1 लीटर

दूध- 100 एम.एल.

खेत के मेड़ की मिट्टी- 200 ग्राम

चूना- 50 ग्राम

विधि- उपरोक्त सभी को 5 लीटर पानी में मिलाकर मटके में 2 दिन तक रखते हैं, तत्पश्चात छानकर बुवाई के दिन बीजों का उपचार करें|
उपयोग- बीजों को रोग रहित बनाने और उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ाने हेतु|

पशुमूत्र- अच्छी खाद है, इसे व्यर्थ न जाने दें, इसे इकट्ठा करने के लिये नाली बनाकर मटका दबा दे, प्रति सिचाई पति एकड़ 50 लीटर पशुमूत्र का प्रयोग कर सकते हैं, पानी एवं मूत्र को समान मात्रा में मिला कर मिट्टी में खिडकच या 10 गुना पानी मिला फसल पर छिड़काव भी किया जा सकता है| पशु मूत्र पुराना होने पर भी फायदेमन्द रहता है| पशुओं के नीचे की मिटटी ऊठा कर हर 1 से 2 महीनों में उतनी ही मिटटी के साथ मिला कर खेत में डालने से भी फायदा होता है|

सारे कीट नहीं हमारे दुश्मन- कुछ कीट माँसाहारी होते हैं, तो कुछ शाकाहारी कीट, माँसाहारी कीट आमतौर पर खेती में लाभदायक होते हैं| ज़्यादातर पक्षी भी माँसाहारी होते हैं तथा इस लिये कीट नियंत्रण में सहायक होते हैं|

यह भी पढ़ें- बाजरा की जैविक खेती कैसे करें

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap