• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

दैनिक जाग्रति

ऑनलाइन हिंदी में जानकारी

  • ब्लॉग
  • करियर
  • स्वास्थ्य
  • खेती-बाड़ी
    • जैविक खेती
    • सब्जियों की खेती
    • बागवानी
  • पैसा कैसे कमाए
  • सरकारी योजनाएं
  • अनमोल विचार
    • जीवनी
Home » नीम का कृषि में महत्व: उर्वरक, कीटनाशक और उपयोग

नीम का कृषि में महत्व: उर्वरक, कीटनाशक और उपयोग

April 29, 2023 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

नीम का कृषि में महत्व, जानिए उर्वरक, कीटनाशी एवं रोगनाशी में इसका उपयोग

भारत देश की मिट्टी में पैदा होने वाला लोक मंगलकारी तथा सर्व व्याधि निवारक बहुउपयोगी वृक्ष नीम भारत की ग्रामीण सभ्यता और संस्कति की पहचान बन चुका है| नीम ग्रामीण समाज में इस कदर रच बस गया है, कि इसके बगैर हमारे नित्य प्रतिदिन के कार्य कल्पना के बाहर हैं| इस लेख में नीम का कृषि में महत्व,  उर्वरक, कीटनाशी एवं रोगनाशी में इसका उपयोग पर विवरण प्रस्तुत है|

नीम की सामान्य जानकारी

नीम 30 से 50 फीट ऊँचा शीतल छायादार वृक्ष है| इसकी छाल स्थूल, खुदरी एवं तिरछी लम्बी धारियों से युक्त होती है| नीम की छाल बाहर से भूरी परन्तु अन्दर से लाल रंग की होती है| इसमें बसन्त ऋतु में सफेद छोटे-छोटे फूल मंजरी गुच्छों के रूप में खिलते हैं| इसके फल 1.5 से 1.7 सेंटीमीटर लम्बे गोल अंडाकार होते हैं| पतझड़ में पत्तियाँ गिर जाती हैं, बसन्त में ताम्रलोहित पल्लव निकलते हैं|

इसके फल ग्रीष्म ऋतु के अन्त में वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पकते हैं| आमतौर पर एक पूर्ण विकसित नीम से 37 से 100 किलोग्राम बीज प्राप्त होता है| एक किलोग्राम बीज में लगभग 2000 से 3000 तक के बीच की संख्या पाई जाती हैं, नीम के 100 किलोग्राम पके फल में छिलका लगभग 23.8 प्रतिशत गूदा 47.5 प्रतिशत प्राप्त होता है| एवं गिरी से 45 प्रतिशत तेल और 55 प्रतिशत खली प्राप्त होती है|

यह भी पढ़ें- गोमूत्र का कृषि में महत्व, जानिए कीटनाशक लाभ और उपयोग

नीम का कृषि में रासायनिक प्रयोग 

नीम में एजाडिरैक्टीन नामक रसायन पाया जाता है| इस रसायन में कीटनाशक एवं कवकनाशक गुण होता है| इसी का प्रयोग करके बाजार में अनेक कीटनाशी दवाइयां उपलब्ध हैं| नीम वृक्ष के उत्पाद का रासायनिक संगठन इस प्रकार है, जैसे- निम्बान- 0.04 प्रतिशत, निम्बीनीन- 0.001 प्रतिशत, एजोडिरेक्टीन- 0.4 प्रतिशत, निम्बोसिटेरोल- 0.03 प्रतिशत, उड़नशील तेल- 0.02 प्रतिशत, टैनिन- 6.00 प्रतिशत|

नीम का कृषि में उपयोग

हमारा स्वदेशी कृषि तकनीक नीम पर ही आधारित है| फसलों को हानिकारक कीटों से बचाना हो या अनाज को भंडारित करना हो इन सब में नीम ही सहायक होता है| कृषि के दृष्टिकोण से देखा जाए तो खेती-बाड़ी, भंडारण, पशुपालन इत्यादि में नीम का व्यापक उपयोग है| फसल सुरक्षा की दृष्टिकोण से कीटों में वृद्धि नियंत्रकों को नियंत्रित करने के लिए नीम का प्रयोग किया जाता है|

जैसे खाद्य अवरोधक के रूप में और अण्ड अवरोधक के रूप में इसके कारण हानिकारक कीटों में प्रजनन क्षमता अवरूद्ध हो जाती है| नीम के प्रभाव से कीटों के लार्वा तथा वयस्क प्रतिकर्षित होकर भाग जाते हैं| इसके प्रभाव से वयस्क कीट बन्ध्य यानि नपुंसक हो जाते हैं| इसलिए उनमें वंशवृद्धि की क्षमता में कमी आ जाती है|

यह भी पढ़ें- नीम आधारित जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

नीम का कृषि में अन्य उपयोग

बक्से में रखे कपड़ो को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए भी नीम के पत्तों का प्रयोग होता है| इसी वजह से हमारे आदि ग्रन्थों में नीम को लोक मंगलकारी और सर्व व्याधि निवारक की संज्ञा दी गई है| नीम एक जीवनोपयोगी वृक्ष है| ग्रामीण समाज में इसका वृक्ष लगाने की परंपरा है| इसका कारण यह है, कि इसका वृक्ष वायु को शुद्ध रखता है| हानिकारक कीटों, मच्छरों को दूर भगाता है| नीम का गोंद, छाल एवं पत्ते सभी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं|

इसके सूखे पत्तों को जलाकर पशुशाला को मच्छर एवं कीटरोधी बनाया जाता है| घरों से मच्छर भगाने के लिए इसके पत्तों को जलाया जाता है| नीम के विभिन्न भागों से चर्म रोग, परजीवी रोग, गर्भ निरोधक, मलेरिया, चेचक, दमा इत्यादि की दवा और सर्प बिच्छू आदि के विषैले प्रभाव को कम करने की दवा भी बनायी जाती है| नीम के तेल और खली का प्रयोग कीटनाशी और मिट्टी शोधक जैविक खाद के रूप में किया जाता है|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए आधुनिक तकनीक

नीम का कृषि में प्रबधंन और उपयोग

आई पी एम यानि एकीकृतनाशी जीव प्रबन्धन में नीम का बहुत योगदान है| एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन में यह एक वरदान है, क्योंकि इसमें इसका प्रयोग सर्वथा निरापद और अत्यन्त प्रभावी है|

नीम का पोषक तत्व के रूप में उपयोग

इसकी खली में ये 5 से 8 प्रतिशत तक नाइट्रोजन और अधिक मात्रा में पोटेशियम मिलता है| जिसका उपयोग मिट्टी सुधारक के रूप में किया जाता है| इससे नाइट्रोजन का सूक्ष्मीकरण होता है, फलस्वरूप नाइट्रोजन गैस के रूप में नष्ट नहीं होता हैं| नीम की खली का प्रयोग करने से मिट्टी में उपस्थित रोगजनित कीटाणु, जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बनिक तत्वों की बढ़ोत्तरी के कारण मिट्टी शोधक सूक्ष्म जीवाणुओं में सक्रियता आ जाती है|

आलू में उपयोग- आलू की फसल में नीम खली के प्रयोग से ब्लैक स्कार्फ रोग का नियन्त्रण होता है|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

नीम का कृषि में विभिन्न उपयोग

1. इसका उर्वरक के रूप में खली का प्रयोग करने से भूमि के अन्दर पाये जाने वाले सभी प्रकार के कीट जैसे- दीमक, कटुआ, सफेद गिडार, आम की गुजिया, टिड्डे आदि खत्म हो जाते हैं| इससे फसल स्वस्थ रहती है, कीटों से फसलों की सुरक्षा भी होती है| इस प्रकार हम देखते हैं, कि इसकी खली का प्रयोग अनेक फसलों के रोग-नियन्त्रण में भी प्रभावी पाया गया है|

2. इसकी पत्ती 5 किलोग्राम 10 लीटर पानी में तब तक उबाले जब तक यह ढाई लीटर ना रह जाए| अब इस ढाई लीटर नीमयुक्त पानी में 100 लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ धान की फसल पर छिड़काव करें| इस छिड़काव से धान का गंधी कीट, हरा फदका, भूरा फुदका, रस चूसने वाले कीटों से धान की फसल को बचाया जा सकता है|

नीम के इसी घोल से बैगन के तना छेदक और फलछेदक कीट से बचाया जा सकता है| इसके अतिरिक्त टमाटर में फलीछेदक कीट का भी नियंत्रण किया जाता है| नीम की पत्तियों के अर्क से कपास, सब्जी और दलहनी बीजों का उपचार करने से बीज जनति रोगों का नियंत्रण होता है|

3. इसका तेल दुर्गन्धयुक्त और उसमें कडुवापन होने के कारण सभी फसलों तथा पौधों के पत्ती, फूल या फल पर कीड़ों को विकर्सित करता है| नीम का तेल 1 से 2 लीटर की मात्रा प्रति एकड़ छिड़काव करने से काटने, चबाने और रस चूसने वाले कीड़े नष्ट हो जाते हैं व कीटों के अंडों से बच्चे भी नहीं निकल पाते|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग

4. नीम तेल के 2 प्रतिशत घोल का प्रयोग कर चुर्णित आसिता यानि पाउडरी मिल्ड्यू रोग का नियंत्रण कुछ हद तक किया जा सकता है| नीम के 0.5 प्रतिशत घोल का प्रयोग कद्दूवर्गीय फसलों में 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें| इससे कद्दूवर्गीय फसलों में रोग-नियन्त्रण के साथ ही साथ 50 से 70 प्रतिशत तक फसल वृद्धि भी होती है|

5. ढाई किलोग्राम इसका बुरादा ढाई से तीन किलोग्राम लहसुन और 250 से 300 ग्राम खाने वाला तम्बाकू, इन तीनों का पेस्ट बना लें, इस पेस्ट में दो लीटर गोमूत्र या मिट्टी का तेल मिलाकर धान या गेहूं की फसल पर छिड़काव करें| इस छिड़काव से सभी हानिकारक कीट एवं रोगों का प्रभावी ढंग से नियंत्रण होता है|

6. पांच किलोग्राम निम्बौली रातभर के लिए शाम को भिगो दें, इस निम्बौली को सुबह उबाल लें तथा गाढ़ा पेस्ट बना लें| इस पेस्ट में 100 लीटर पानी मिलाकर घोल बना लें व प्रति एकड़ की दर से फसलों पर छिड़काव करें, सभी फसल, सब्जी और बागों में कीट-नियन्त्रण के लिए यह एक उपयुक्त कीटनाशी है|

7. 5 किलोग्राम इसके सूखे बीजों को साफ करके उसके छिलके को हटाकर नीम की गिरी निकाल लें| इस नीम की गिरी को पीस कर पाउडर बना लें, इस पाउडर को दस लीटर पानी में डालकर रात भर रखें| इस घोल को सुबह किसी लकड़ी के डंडे से हिलाकर मिलायें और महीन कपड़े से छान लें, इस घाल में 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर फिर 150 से 200 लीटर पानी में मिलायें| यह एक उपयुक्त कीटनाशी है, जो कि एक एकड़ की फसल के छिड़काव हेतु पर्याप्त है|

यह भी पढ़ें- बायो फ़र्टिलाइज़र (जैव उर्वरक) क्या है- प्रकार, प्रयोग व लाभ

8. 25 से 30 किलोग्राम इसकी ताजी पत्तियाँ ले लें, इन पत्तियों को रातभर पानी में भिगो दें| सुबह इन्हें पीसकर पत्तियों का सत बना लें, अब इसमें 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर 150 लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें| यह भी एक उपयुक्त कीटनाशी है|

9. 10 किलोग्राम नीम की खली ले लें, इसे रात भर पानी में भिगो दें| सुबह इसके घाले में 100 लीटर पानी एवं 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर फसलों पर छिड़काव करें| एक एकड़ क्षेत्रफल की फसल के लिए यह एक उपयुक्त कीटनाशी है|

10. एक लीटर नीम का तेल ले लें, इसमें 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाएं और 100 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिडकाव करें, एक एकड़ क्षेत्रफल की फसल के लिए यह पर्याप्त कीटनाशी है|

11. अनाज भंडारण के लिए प्रयोग किए जाने वाले जूट के बोरों को 10 प्रतिशत इसकी गिरी के घोल में 15 मिनट तक बोरों को डुबाये व इन्हें छाया में अच्छी तरह सुखाकर अन्न भंडारण करें और बचे घोल को अनाज भंडारण वाले स्थान पर छिड़काव करें, इससे भंडारित अनाज कीटों से सुरक्षित रहेगा|

12. पादप विषाणु सूत्रकृमि तथा कवक के दुष्प्रभाव से फसल को बचाया जा सकता है| इसके प्रयोग से गन्धी, तनाछेदक, जैसिडस, फुदके, हेलियोथिस, सफेद मक्खी, माहूं, फलोवेधक, तम्बाकू सूड़ी इत्यादि कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- वर्टिसिलियम लेकानी का उपयोग खेती में कैसे करें

नीम के उपयोग में सावधानियाँ

नीमयुक्त कीटनाशी के छिड़काव में सावधानी बरतनी चाहिए| छिड़काव प्रातः काल या देर शाम को करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं| सर्दियों में 10 दिन बाद और वर्षा ऋतु में दो तीन दिनों में छिड़काव की सलाह दी जाती है| छिड़काव इस प्रकार करें, कि पत्तियों के निचले सिरों पर भी नीमकीटनाशी पहुंचे| अधिक गाढ़े घोल की अपेक्षा हल्के घोल का कम दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें| नीमयुक्त कीटनाशी का प्रयोग यथाशीघ्र कर लेना चाहिए|

इस प्रकार देखा जाए तो नीम वास्तव में औषधीय दृष्टिकोण से, व्यापारिक दृष्टिकोण से, वातावरण के परिष्करण के लिए, फसलों को रोग कीटों से बचाने के लिए आदि हर प्रकार से मानव जीवन के हितार्थ सर्वथा लाभकारी है| आज आवश्यकता इस बात की है, कि अधिक से अधिक नीम के वृक्षों का रोपण करके नीम के गुणों का अधिक से अधिक फायदा उठाकर, पर्यावरण सुरक्षित रखकर पौधों को रोगों कीटों से बचाया जाये और इसके विविध उपयोग का लाभ उठाया जाये|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

अपने विचार खोजें

हाल के पोस्ट:-

आईटीआई इलेक्ट्रीशियन: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई फिटर कोर्स: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई डीजल मैकेनिक कोर्स: पात्रता और करियर

आईटीआई मशीनिस्ट कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

आईटीआई टर्नर कोर्स: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई कोपा कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

आईटीआई स्टेनोग्राफर कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

[email protected] Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • संपर्क करें