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ट्राइकोडर्मा विरिडी और हारजिएनम से जैविक कीट और रोग नियंत्रण

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

ट्राइकोडर्मा विरिडी और हारजिएनम से जैविक कीट और रोग नियंत्रण

ट्राइकोडर्मा फफूंद पर आधारित घुलनशील जैविक फफूंदनाशक है| ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी, 1.5 प्रतिशत डब्लू पी, 5 प्रतिशत डब्लू पी एवं ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 0.5 प्रतिशत डब्लू एस, 1 प्रतिशत डब्लू पी, 2 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है| ट्राइकोडर्मा विरिडी विभिन्न प्रकार की फसलों फलों और सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग आफ, उकठा, झुलसा आदि फफंदजनित रोगों में लाभप्रद पाया गया है|

धान, गेहूं, दलहनी फसलों, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों इत्यादि के फफूंद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है| ट्राइकोडर्मा विरिडी के कवक तंतु हानिकारक फफूंदी के कवक तंतुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं| इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते है, जो सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंद से सुरक्षा देते है।

ट्राइकोडर्मा विरिडी के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है एवं फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती है| नर्सरी में ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने पर जमाव और वृद्धि अच्छी होती है| ट्राइकोडर्मा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष होती है|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है

ट्राइकोडर्मा विरिडी और ट्राइकोडर्मा हारजिएनम प्रयोग की विधि

1. बीज शोधन हेतु 4 से 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलो ग्राम बीज की दर से प्रयोग कर बुआई करना चाहिए|

2. कन्द एवं नर्सरी पौध उपचार हेतु 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर उसमें कन्द और नर्सरी के पौधों की जड़ को शोधित कर बुवाई या रोपाई करना चाहिए|

3. भूमि शोधन के लिए 2.5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 65 से 70 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए|

4. बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारों तरफ 1 से 2 फीट चौड़ा और 2 से 3 फीट गहरा गड्ढा पौधे के आकार के अनुसार खोदकर प्रति पौधा 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी को 8 से 10 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर 8 से 10 दिन बाद तैयार ट्राइकोडर्मा युक्त गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्ढों की भराई करनी चाहिए|

5. खड़ी फसल में फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- जीवामृत बनाने की विधि, जानिए सामग्री, प्रयोग एवं प्रभाव

6. चना में उकठा रोग के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजशोधन एवं जड़ सड़न के नियंत्रण के लिए 5 किलो ग्राम लगभग 100 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि शोधन करना चाहिए|

7. अरहर में जड़ सड़न और उकठा के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी 4 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीज शोधन एवं 5 किलो ग्राम लगभग 100 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि शोधन करना चाहिए|

8. मूग व उर्द में जड़ विगलन के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी 4 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए|

9. टमाटर एवं बैंगन जैसी सब्जियों में उकठा से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 1 प्रतिशत डब्लू पी 20 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए|

10. मक्का में जड़ सड़न के लिए ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू पी 20 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए|

11. ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से पहले तथा बाद में रासायनिक फफूंद नाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए उपयोगी तकनीक

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