• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

दैनिक जाग्रति

ऑनलाइन हिंदी में जानकारी

  • ब्लॉग
  • करियर
  • स्वास्थ्य
  • खेती-बाड़ी
    • जैविक खेती
    • सब्जियों की खेती
    • बागवानी
  • पैसा कैसे कमाए
  • सरकारी योजनाएं
  • अनमोल विचार
    • जीवनी
Home » गाजर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

गाजर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

March 12, 2023 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गाजर की उन्नत खेती कैसे करें

गाजर (Carrot) एक महत्वपूर्ण जड़ वाली स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी है| इसकी खेती पूरे देश में की जाती है| इसकी जड़े, सब्जी, सलाद, अचार, मुरब्बा और हलवा आदि में प्रयोग होती है| अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती है| इसकी मुलायम पत्तियों का सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है| इसमें औषधीय गुण पाये जाते है|

इससे भूख बढ़ती है तथा यह गुर्दे के लिए लाभदायक है| नारंगी रंग वाली किस्मों में विटामिन ए (कैरोटिन) की मात्रा अधिक होती है| गाजर की अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक खेती करना आवश्यक जिसका संक्षिप्त वर्णन इस लेख में किया गया है| सब्जी वाली फसलों की जैविक तकनीक से खेती कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सब्जियों की जैविक खेती: प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ की प्रक्रिया

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

गाजर ठण्डे मौसम की फसल है| गाजर के रंग और आकार पर तापक्रम का बहुत असर पड़ता है| अच्छे आकार व आकर्षक रंग के लिए तापमान 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त रहता है|

यह भी पढ़ें- जड़ वाली सब्जियों की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

गाजर की खेती के लिए भूमि चुनाव और तैयारी

इसकी अच्छी पैदावार के लिए गहरी भूरभूरी, हल्की दोमट भूमि, जिसका पी एच 6.5 के लगभग हो, उपयुक्त होती है| भूमि में पानी का निकास अच्छा होना आवश्यक है| खेत को बिजाई से पहले समतल करें व 2 से 3 गहरी जुताई करें| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाऐं ताकि ढेले टूट जाएं| गोबर की खाद को भी खेत तैयार करते समय अच्छी तरह मिला दें|

गाजर की खेती के लिए उन्नतशील किस्में

अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती है| गाजर के जड़ के बीच का कठोर भाग कम और गूदा अच्छा होना चाहिए| गाजर की किस्मों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार है, जैसे-

यूरोपियन किस्में- इसकी जड़े सिलैंडरीकल, मध्यम लम्बी, पुंछनुमा सिरेवाली और गहरे संतरी रंग की होती है| इनकी औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| इन किस्मों को ठण्डे तापमान की आवश्यकता होती है| यह किस्में गर्मी सहन नहीं कर पाती है| इसकी प्रमुख किस्में- नैन्टीज, पूसा यमदागिनी, चैन्टने आदि है|

एशियाई किस्में- यह किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती है, जो इस प्रकार है, जैसे- पूसा मेघाली, गाजर नं- 29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन नं- 223, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता और पूसा जमदग्नि प्रमुख है| इनकी अगेती बुवाई अगस्त से सितम्बर में की जाती है| हालाँकि इसकी बुवाई अक्टूबर तक की जा सकती है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गाजर की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

गाजर की खेती के लिए बुवाई और बीज दर

एशियन किस्मों की बुवाई अगस्त से सितम्बर और यूरोपियन किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर तक करनी चाहिए| प्रति हैक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है|

यह भी पढ़ें- मूली की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

गाजर की खेती के लिए बुवाई की विधि

अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए| डोलियों के बीच का फासला 30 से 45 सेंटीमीटर व पौधों का परस्पर फासला 6 से 8 सेंटीमीटर होना चाहिए| डोलियों की चोटी पर 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर बीज बोना चाहिए|

गाजर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

औसत दर्जे की जमीन में लगभग 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर जुताई करते समय डालें| 20 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बिजाई के समय प्रति हैक्टेयर के खेत में डालें| 20 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ा से दें|

गाजर की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

गाजर में 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है| अगर खेत में बिजाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| ध्यान रहे पानी की डोलियों से ऊपर ना जाए बल्कि 3/4 भाग तक ही रहें, बाद की सिंचाईयां मौसम व भूमि की नमी के अनुसार 15 से 20 दिन के अन्तर पर करें|

गाजर की फसल में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार की रोकथाम हेतु 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई बुवाई के लगभग 4 सप्ताह बाद करके मिट्टी चढ़ा दें| यदि खेत में अधिक खरपतवार उगते है या रासायनिक खरपतवार नियंत्रण करना चाहते है, तो पेंडीमेथिलीन 30 ई सी 3 किलोग्राम को 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से 48 घंटे के अंदर समानांतर छिडकाव करे| जिससे शुरू के 30 दिन तक खरपतवार नही उगेंगे|

यह भी पढ़ें- शलजम की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

गाजर की खेती की देखभाल 

गाजर में मुख्यतः एक बीमारी अल्टरनेरिया ब्लाइट जिसमें पत्तियों पर अनेक पीले भूरे रंग के धब्बे बनते है, जिनमें कभी-कभी धारियां भी साफ दिखाई देती है का प्रकोप होता है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम हेतु खेत की सफाई रखें और हीरनखुरी व सांठी खेत में ना रहने दें| फसल पर 10 से 12 दिन के अंतराल पर 0.2 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें| इस फसल पर कीड़ों का प्रकोप बहुत कम होता है|

गाजर फसल की जड़ों की खुदाई

जड़ों की खुदाई करने की अवस्था किस्म पर निर्भर करती है| जड़ों की मुलायम अवस्था में खुदाई करनी चाहिये| प्रायः एशियन किस्मों की खुदाई 100 से 130 दिनों में तथा यूरोपियन किस्मों की खुदाई 60 से 70 दिनों में करनी चाहिए|

गाजर की खेती से पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से गाजर की पैदावार और गुणवत्ता किस्म, बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, आदि पर निर्भर करती है| इसकी अगेती फसल अगस्त में बुवाई से औसतन लगभग 20 से 25, मध्यम फसल सितम्बर से अक्टूबर में बुवाई से 30 से 40 और देर वाली फसल नवम्बर में बुवाई से 28 से 32 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है|

यह भी पढ़ें- चुकंदर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

गाजर का भंडारण

सामान्य दशा में गाजर को 3 से 4 दिन से अधिक भंडारित नहीं किया जा सकता है, परन्तु छिद्रित पॉलीथीन में रखकर इसे कम से कम लगभग 2 सप्ताह तक भडारित किया जा सकता है, जबकि छिद्रित पॉलीथीन में पैक की हुई गाजर शीतगृह में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 90 से 95 प्रतिशत आद्रता पर लम्बे समय (2 से 3 माह) तक आसानी से संरक्षित की जा सकती है|

गाजर की खेती के लिए आवश्यक बिंदु

1. कुछ अति उत्साही कृषक अधिक लाभ कमाने के लिए जुलाई के अन्त या अगस्त के मध्य तक बिजाई कर देते है इससे अकुंरण की समस्या आती है व गाजर की गांठ बन जाती है, जड़ से कई जड़े निकल जाती है तथा झण्डे निकल आते है व गाजर सफेद भी रह सकती है| इसलिए गाजर की बिजाई उचित समय से पहले न करें|

2. भारी भूमियों में या जहाँ नीचे की भूमि सख्त होती है, ऐसे खेतों में गाजर की फोर्किग (गाठ पंजा) की समस्या आ सकती है|

3. अत्यधिक पानी देने या ऐसी भूमि जहाँ पानी का जल स्तर ऊँचा हो वहाँ गाजर में रेशे बनने से सफेद रह जाती है, जिससे गाजर की गुणवत्ता कम हो जाती है तथा गाजर की उपज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

4. देर से खुदाई करने से गाजर की पौष्टिक गुणवत्ता कम हो जाती है यानि की गाजर फीकी और कपासिया हो जाती है तथा भार भी कम हो जाता है|

5. गाजर मे देर से पानी देने से गाजर फटने से गुणवत्ता कम हो जाती है| अधिक जानकारी के लिए स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर अपने नजदीकी कृषि विश्वविद्यालय या कृषि विभाग से परामर्श करें|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की नर्सरी तैयार कैसे करें : कैसे करें पौध तैयार

गाजर का बीज उत्पादन तकनीक

एशियन गाजर का बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है| इसके लिए गाजर के बीज की बुवाई अगस्त से सितम्बर माह में करते हैं और अन्य शस्य कियाएं व्यावसायिक (उपरोक्त तकनीक) गाजर उत्पादन की तरह ही करते हैं| नवम्बर से दिसम्बर माह में डण्ठल (पत्तों) सहित इसकी जड़ों की खुदाई करते हैं और खुदाई के तुरन्त बाद जड़ व डण्ठल दोनो के 2 से 3 इंच भाग को छोड़कर अन्य हिस्से को काटकर अलग कर देते हैं, तत्पश्चात इन्हे पूर्णतया तैयार खेत में 30 से 30 सेंटीमीटर के अन्तराल पर 60 सेंटीमीटर दूरी की पंक्तियों में रोपाई कर देते हैं|

रोपाई से पूर्व रोग व फटने की समस्या से ग्रसित, शाखायुक्त तथा ऐसे पौंधे जिनमें असमय फूल दिखाई देने लगे को छाँटकर अलग कर देना चाहिए| जड़ों की रोपाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए| चूंकि गाजर एक पर-परागित फसल है, इसलिए गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन हेतु इसकी दो किस्मों के बीच कम से कम 800 से 1000 मीटर की दूरी रखना अत्यन्त आवश्यक है| अच्छे बीज उत्पादन हेतु प्रजनक या आधारीय या प्रमाणीकृत बीज को ही प्रयोग करना चाहिए तथा किस्म की पहचान, प्रमाणीकरण, आदि की जानकारी पूर्व में ही सुनिश्चित कर लेनी चाहिए|

खेत को हमेशा खरपतवारों, कीटों तथा बिमारियों से मुक्त रखना चाहिए| गाजर के बीज मई माह के अन्त तक तैयार हो जाते हैं| पुष्पक्रम की कटाई सही अवस्था पर कर लेनी चाहिए अन्यथा देरी हाने पर बीज झड़ने लगते हैं| मड़ाई के पूर्व और कटाई के तुरन्त बाद पुष्पकर्मों को 1 से 2 सप्ताह तक सुखा लेना चाहिए| अच्छी फसल से औसतन लगभग 1000 से 2000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज आसानी से प्राप्त किया जा सकता है| बीज उत्पादन की अधिक जानकारी की लिए यहाँ पढ़ें- जड़ वाली सब्जियों के बीज का उत्पादन कैसे करें

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

अपने विचार खोजें

हाल के पोस्ट:-

आईटीआई इलेक्ट्रीशियन: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई फिटर कोर्स: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई डीजल मैकेनिक कोर्स: पात्रता और करियर

आईटीआई मशीनिस्ट कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

आईटीआई टर्नर कोर्स: योग्यता, सिलेबस और करियर

आईटीआई कोपा कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

आईटीआई स्टेनोग्राफर कोर्स: योग्यता, सिलेबस, करियर

[email protected] Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • संपर्क करें