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Home » ब्लॉग » गाजर की उन्नत किस्में: जाने विशेषताएं और पैदावार

गाजर की उन्नत किस्में: जाने विशेषताएं और पैदावार

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गाजर की उन्नत किस्में

गाजर सर्दियों में उगाई जाने वाली सब्जी की एक महत्वपूर्ण फसल है| इसकी खेती से इच्छित उत्पादन प्राप्त करने के लिए गाजर की उन्नत किस्मों का चयन करना आवश्यक है| जिससे किसान भाई इसकी व्यावसायिक फसल से अधिकतम उपज प्राप्त कर सकें| गाजर का उपयोग सलाद, रस, हलवा तथा सब्जी बनाने के साथ-साथ अचार, मुरबा, जैम, सूप, कैंडी आदि में भी किया जाता है| गाजर की उन्नत किस्म के साथ-साथ उत्पादकों को इसकी सस्य क्रियाओं, सिंचाई प्रबंधन, पौध संरक्षण पर भी उचित समय पर ध्यान देना होगा|

गाजर की किस्मों को दो भागों में बाटा जाता है, एक एशियन और दूसरी यूरोपियन| एशियन किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती है| जबकि यूरोपियन किस्में तापमान सहन नही करती है| इस लेख में गाजर की उन्नत किस्मों की विशेषताओं और पैदावार का विस्तार से वर्णन किया गया है| गाजर की उन्नत खेती की लिए यहाँ पढ़ें- गाजर की उन्नत खेती कैसे करें

गाजर की किस्में

एशियन किस्में- पूसा मेघाली, गाजर नं- 29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन नं- 223, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता और पूसा जमदग्नि प्रमुख है|

यूरोपियन किस्में- नैन्टीज, पूसा यमदागिनी और चैंटनी आदि प्रमुख है|

यह भी पढ़ें- जड़ वाली सब्जियों की खेती कैसे करें

गाजर की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार

चैंटनी- इस किस्म कि गाजरें मोटी तथा गहरे लाल नारंगी रंग कि होती है| यह किस्म बोने के 75 से 90 दिनों बाद तैयार हो जाती है| इस किस्म का बीज मैदानी क्षेत्रों में तैयार किया जा सकता है| यह प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल तक पैदावार देती है|

नैनटिस- इस किस्म का उपरी भाग छोटा तथा हरी पत्तियों वाला होता है| इस किस्म कि जड़ें बेलनाकार और नारंगी रंग कि होती है| जिनका अगला सिरा छोटा पतला होता है| यह एक अच्छी गंध वाली, दानेदार मुलायल एवं मीठी किस्म है| यह खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है| बीज बोने के 110 से 120 दिनों बाद तैयार हो जाती है| इसका बीज मैदानी भागों में तैयार नहीं किया जा सकता है यह प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार दे देती है|

पूसा मेघाली- इसकी जड़े गोलाकार, लम्बी, नारंगी रंग के गूदे और कैरोटीन की अधिक मात्रा वाली होती है| इसकी अगेती बुवाई अगस्त से सितम्बर में की जाती है, इसकी बुवाई अक्टूबर तक कर सकते है| फसल बोने के 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है| इसकी पैदावार 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

गाजर नं 29- यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है| इसकी जड़े लम्बी बढ़ने वाली और हल्की लाल रंग की होती है| इसकी औसत पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

पूसा केशर- यह एक अकेली देशी किस्म है| इस किस्म के पत्तों का समूह छोटा होता है| केसरिया रंग की जड़ों के बीच का भाग भी काफी लाली वाला होता है| औसत पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

हिसार गेरिक- इसकी जड़े लम्बी व संतरी रंग की है और औसत पैदावार 275 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

यह भी पढ़ें- जड़ वाली सब्जियों के बीज का उत्पादन कैसे करें

हिसार रसीली (संशोधित)- इस किस्म की गाजर 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी, पतली व आकर्षक लाल रंग, मध्य भाग का रंग हल्का लाल आकर्षक रंग के कारण ग्राहक की रुचि तथा उच्च उत्पादन के कारण कृषकों की पहली पसन्द, इसमें कैरोटीन 80 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होती है|

हिसार मधुर (संशोधित)- यह गाजर की नवीन किस्म है| औसतन गाजर की लम्बाई 25 से 30 सेंटीमीटर तथा गहरा लाल रंग या हल्की श्यामल झलक कैरोटीन की मात्रा 90 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होती है| शाखाएँ नही निकलती है, गाजर का व्यास 2.5 से 3.0 सेंटीमीटर होता है|

चयन नं 223- यह एशियाई किस्म है किन्तु यह यूरोपियन किस्म नेन्टस के समान गुणों का प्रदर्शन करती है| यह फसल बोने के 90 दिन बाद तैयार हो जाती है तथा खेत में 90 दिनों तक अच्छी दशा में रहती है| इसकी जड़ें नारंगी रंग कि 15 से 18 सेंटीमीटर लम्बी और मीठी होती है| इसे देर से भी बोया जा सकता है| यह प्रति हेक्टेयर 200 से 300 क्विंटल तक पैदावार दे देती है|

पूसा जमदग्नि- इस किस्म की जड़ें देश के अलग-अलग भागों में 85 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है| हरी पत्तियों वाला उपरी वाला भाग मंझौला होता है| इसका मध्य भाग तथा गुदा केसरिया रंग का होता है| जो उत्तम गंध वाला, कोमल और मीठे स्वाद वाला होता है| यह किस्म तेजी से बढ़ोत्तरी करती है तथा अधिक उपज देती है|

पूसा रुधिर- यह लम्बी और लाल रंग की होती है| इसकी बुवाई 15 सितंबर से अक्तूबर तक होती है, और यह दिसम्बर में तैयार हो जाती है| इसकी उपज 280 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

पूसा आंसिता- यह लम्बी और काला रंग लिए होती है| इसकी सितंबर से अक्तूबर तक बुवाई और 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है| इसकी उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

यह भी पढ़ें- मूली की उन्नत खेती कैसे करें

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