![कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें](https://www.dainikjagrati.com/wp-content/uploads/2018/11/कपास-में-एकीकृत-कीट.jpg)
कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन, कपास हमारे देश की एक प्रमुख नकदी फसल है| औद्योगिक एवं निर्यात की दृष्टि से कपास हमारे देश की की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| देश के कुल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 3 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पाद में 14 प्रतिशत, रोजगार उपलब्धता में 18 प्रतिशत और निर्यात में लगभग 30 प्रतिशत है| बी.टी. कपास के उगाने से भारत कपास की उत्पादकता में सुदृढ़ हुआ है| लेकिन उत्पादन क्षमता में आज भी हम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर काफी पिछड़े है|
कपास की फसल की कम पैदावार के लिए जैविक और भौतिक कारण जिम्मेदार हैं| जैविक कारणों में कीट, पतंगे कपास की कम पैदावार के मुख्य कारण हैं| कपास की फसल की सबसे अधिक क्षति रस चूसने और टिण्डे भेदने वाले कीटों से होती है, जबकि बी.टी. कपास में रस चूसने वाले और पत्तियों को खाने वाले कीट तथा रोग प्रमुख हैं| कपास में एकीकृत कीट प्रबन्धन के लिए अतिआवश्यक है, कि किसानों को फसलों में लगने वाले रोगों के लक्षण और कीटों की पहचान के साथ-साथ उनके प्राकृतिक शत्रु कीटों की भी पहचान हो|
कपास में इन कीटों और रोगों का प्रबन्धन एकीकृत या समन्वित रूप से करना पर्यावरण, फसल एवं मानवजाति के लिए अति आवश्यक है| कपास में एकीकृत विधि में उपयुक्त संभव उपायों को मिलाकर कीटों की संख्या को नुकसान स्तर की सीमा से नीचे रखा जाता है| कपास की खेती की जानकारी हेतु किसान बंधु यहां पढ़ें- कपास की खेती कैसे करें
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कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन की आवश्यकता
कपास में एकीकृत या समन्वित कीट प्रबन्धन की आवश्यकता निम्न कारणों से है| जो इस प्रकार है, जैसे-
1. लाभकारी मित्र कीटों की प्रचुर संख्या बनाए रखने के लिए|
2. अत्यधिक कीटनाशकों के उपयोग के कारण बढ़ता हुआ प्रदूषण रोकने के लिए|
3. कीटों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा हो गई है, इसलिए कीटनाशकों का अधिक मात्रा में उपयोग करना पड़ता है, इसलिए प्रतिरोधक क्षमता को रोकने के लिए भी एकीकृत कीट प्रबन्धन की आवश्यकता है|
4. आर्थिक क्षति कम कर प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढाना|
कपास में एकीकृत नाशकीय प्रबंधन
बीजाई से पहले की तैयारी-
1. क्षेत्रवार निर्देशित संकर (हाइब्रिड) किस्म का चयन करें|
2. बीज राज्य सरकार या भारत सरकार से अनुमोदित या प्रमाणित संस्थान या विश्वसनीय से ही खरीदें और साथ में पक्के दस्तावेज और बिल लेना नहीं भूलें|
3. बीज की दर 0.750 किलोग्राम प्रति एकड़ रखें|
4. संकर या हाइब्रिड किस्म के बीज पहले से ही उपचारित होते हैं, देशी किस्म के बीज को 7 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
5. जलनिकास का उचित प्रबन्धन होना चाहिए|
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कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें
फसल उत्पादन प्रणाली में एकीकृत कीट प्रबन्धन विभिन्न विधियों द्वारा खेत के चयन से लेकर फसल की कटाई तक किया जाता है| इस पद्धति में कीट, बीमारी, खरपतवार और चूहों के संगठित नियंत्रण हेतु सस्य, यांत्रिक, जैविक व रासायनिक विधियाँ अपनाई जाती हैं, जैसे-
सस्य कृषि क्रियाएं-
1. कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन के तहत खरपतवार और फसलों के अवशेष खेत में नहीं रहने दें, इससे कम्पोस्ट खाद तैयार करें अथवा नष्ट कर दें|
2. फसल में खरपतवार जैसे- कांग्रेस घास, गुटपटना, शंकरी और सांटी आदि, कई तरह के कपास के कीट पनपते हैं, इनसे कपास की खेती मुक्त होनी चाहिए, परजीवी तथा अवांछित पौधों को तत्काल निकाल कर नष्ट करें|
3. कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन में फसल में मिलीबग से अधिक प्रकोपित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए|
4. कपास में अन्तर शस्य फसल प्रणाली अपनाएं जैसे- कपास मक्का, कपास-लोबिया, कपास-मोठ, कपाससोयाबीन/मूंग आदि, इससे कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है तथा नत्रजन का स्थिरीकरण होता है, साथ ही भूमि की उर्वरकता में सुधार होता है|
5. रासायनिक उर्वरकों का निर्धारित मात्रा में और उपयुक्त तरीकों से प्रयोग करना चाहिये नही तो उनके अनुचित प्रयोग से नाशी-जीवों के प्रकोप बढ़ने की संभावना रहती है|
6. पौधों की ऊंचाई जब घुटनों तक हो जाये तो उनपर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये, ऐसा करना फसल के हित में तो हैं, साथ में मिट्टी-जनित जीवाणु व हानिकारक कीटों की भी क्षति होगी|
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यांत्रिक विधियाँ-
1. कपास में प्रभावित पौधों एवं पौधों के भागों को नष्ट करें|
2. कपास में कीट तथा रोग प्रभावित अधखिले फूलों को और इनकी हुई बढ़वार वाले फूलों को नष्ट करें|
3. कपास में फसल की 100 से 110 दिन की बढ़वार अवस्था पर उपरी अंतिम कोमल शाखाओं की कटाई करें|
4. कपास की फसल में व्यस्क कीट (प्रौढ़) को आकर्षित करने हेतु फेरामोन ट्रैप एवं प्रकाश पॉश का बड़े स्तर पर प्रयोग करें, ट्रैप में आए कीटों को नष्ट करें और स्टिकी ट्रैप का प्रयोग भी करें, ट्रैप में लगे ल्यूर को 20 दिनों में बदलते रहना चाहिए, ट्रैपों को फसल की ऊंचाई से 30 सेंटीमीटर ऊपर रखना चाहिए|
5. कपास में माहू एवं सफेद मक्खी की निगरानी के लिए पीले चिपकने वाले पाश (ट्रैप) लगाने चाहिए|
6. कपास के माहू,चेपा कीट से प्रभावित शाखाओं को पौधों से काटकर नष्ट कर देना चाहिए|
7. लाल कपास के कीट को पनपने से पहले पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
8. कपास के धूसर कीट से प्रभावित टिण्डों की तुड़ाई करके नष्ट कर देना चाहिए|
9. फसल जब 20 से 25 दिन की हो जाए तो उसमें निराई गुड़ाई करनी चाहिए जिससे खरपतवार नष्ट हो जायेंगे एवं फसल में अच्छी वृद्धि होगी|
10. नाशी कीट प्रबन्धन के लिए निरीक्षण करना एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जो निश्चित अन्तराल पर करते रहना चाहिए ताकि कीटों और रोगों के प्रकोप का समय रहते पता चल सके और उचित प्रबन्धन किया जा सके|
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जैविक विधियाँ-
1. कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु क्षेत्र में परजीवी और शिकारी कीट की सुरक्षा कर संख्या बढ़ाएं|
2. रस चूसने वाले कीट, चेपा, जैसिड आदि के नियंत्रण हेतु क्राईसोपा कीट के प्रथम अवस्था लार्वा 20,000 प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल से दो बार फसल पर छोडें|
3. कपास की फसल में बुवाई के 40 दिन खेत में बाल वर्म दिखाई देते ही ट्राइकोग्रामा कीलोनस कपास प्रजाति के कीट (60,000 प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से 6 बार) छोड़ें|
4. जैविक नियंत्रण के जन्तु समूह को सुरक्षित करने हेतु कपास की हर दस कतार के बाद ही दो लाइनें मोठ या बाजरे की बोएं|
5. कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु कीट खाने वाले पक्षियों (कौवा, मैना, नीलकंठ आदि) के बैठने हेतु प्रति हेक्टेयर 4 से 5 बसेरे बनाएं|
6. कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु कीट और प्रतिरक्षकों का अनुपात 21 रखें|
7. प्रकृति में पाए जाने वाले परभक्षियों के क्रियाकलापों को बढ़ावा देना चाहिए|
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रासायनिक नियंत्रण-
1. आर्थिक दृष्टि से लघुतम नुकसान होने की अवस्था में आवश्यकता अनुसार उचित एवं सुरक्षित रसायनों का प्रयोग करें|
2. कपास में कीट नियंत्रण हेतु कभी भी एक कीटनाशी के साथ अन्य कीटनाशी नहीं मिलाएं|
3. कपास की फसल में एक ही रसायन का प्रयोग बार-बार नहीं करें और ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करें जिनके उपयोग के बाद कीट बार-बार प्रकट होता रहे|
4. ऐसे रसायनों का प्रयोग नहीं करें, जिनसे वानस्पतिक वृद्धि होती है|
5. सिन्थेटिक पाइरेथ्राइड का प्रयोग कम से कम करें, जैसे फैनवलरेट, साइपरमेथ्रीन, डैकामेथ्रीन, एल्फामेथ्रीन आदि|
6. नीम आधारित फार्मुला वाले रसायन का प्रयोग करें, जैसे नीम के तेल का इमल्सन 0.003 प्रतिशत और निम्बोला कीटनाशी 0.15 प्रतिशत या 6.8 किलो ग्राम पिसी हुई निम्बोली प्रति एकड़ प्रयोग में लें|
7. छिड़काव बुरकाव हेतु उपयुक्त यंत्र का प्रयोग करें, छिड़काव 10 बजे से पहले व सायं 4 बजे के बाद किया जाए जिससे शिकारी और मित्र कीटों की संख्या में कमी न हो|
8. छिड़काव हवा की दिशा में ही करें और इस प्रकार करें कि हवा पौधों की पत्तियों के ऊपर व नीचे दोनों ओर पहुँच सके|
9. खरपतवार नियंत्रण हेतु समय पर खरपतवार नाशक रसायनों का सही मात्रा में सही प्रकार प्रयोग करें और पौध संरक्षण उपकरण को साबुन से धोकर साफ करके रखें|
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10. कीटनाशकों के छिड़काव के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें और इनको मुख्य तने के चारों तरफ जमीन पर भी छिड़काव करें|
11. जब रस चूसने वाले कीटों की संख्या दिए गए आर्थिक क्षति स्तर ई टी एल से ऊपर निकलने लगे तो निम्न कीटनाशकों का बदल-बदल कर छिड़काव करना चाहिए| फुदके, श्वेत मक्खी या माहू के लिए एमीडाक्लोप्रिड 200 एस एल की 100 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर या थायोमिथोक्सॉम 100 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर|
12. चींटियों के समूह एवं बिलों को ढूंढकर उन पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या 5 प्रतिशत पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बिखेरें, इस प्रक्रिया को वर्ष भर दोहराते रहें|
13. मिलीबग के नियंत्रण के लिए डाइक्लोरवॉस 76 ई सी, 2 मिलीलीटर, डाइमिथोएट 30 ई सी 2 मिलीलीटर लीटर, डेमीटॉन 25 ई सी, 2 मिलीलीटर, प्रोफेनाफॉस 50 ई सी, 2 मिलीलीटर, क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी.2 मिलीलीटर, एमिडाक्लोपरिड 200 एस एल 1 मिलीलीटर या मैलाथियान 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
14. चूहा नियंत्रण हेतु चूहों के बिलों को नष्ट करें और चूहा-नाशक रसायन का प्रयोग करते हुए चूहा नियंत्रण अभियान के रुप में करें|
15. कपास की फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए|
नोट- किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल करते समय तथा घोल बनाते समय स्टीकर सर्फ, सैण्डविटा, टीपोल आदि आवश्यक रुप से मिलाएं|
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