• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » अंगूर के पौधों की काट-छांट और सधाई कैसे करें; भरपूर उत्पादन हेतु

अंगूर के पौधों की काट-छांट और सधाई कैसे करें; भरपूर उत्पादन हेतु

July 21, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अंगूर के पौधों की काट-छांट और सधाई कैसे करें

अंगूर के पौधों में काट-छांट का उत्पादन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है| उत्तर भारत में अंगूर की बेलों की कटाई-छंटाई दिसम्बर से जनवरी में की जाती है| बेलों का ढांचा और फलोत्पादन काट-छांट पर ही निर्भर करता है| प्रथम 2 से 3 वर्षों तक बेलों में काट-छांट सधाई प्रणाली के अनुसार ढांचा तैयार करने हेतु की जाती है| काट-छांट से अंगूर बेलों की वृद्धि एवं उत्पादन क्षमता का आधार समीप एवं नियमित बना रहता है|

इसमें अंगूर के पुराने परिपक्व प्ररोहों (केन) को छांट दिया जाता है, तथा अधिक पुरानी शाखाओं को किनारे तक काटते हैं, जिससे उन पर नई टहनियां और नए प्ररोह विकसित हो जाएं| फलोत्पादन के लिए एक वर्ष के परिपक्व प्ररोहों को छांटते हैं, जिससे नये प्ररोह निकलते हैं और उन पर पुष्प गुच्छे विकसित होते हैं| अगले वर्ष जब नए प्ररोह पुराने हो जाते हैं, और बेलों में काफी भार हो जाता है तो उन्हें छंटाई की आवश्यकता होती है|

इसलिए बेलों की प्रत्येक वर्ष काट-छांट अति-आवश्यक सस्य क्रिया है| अंगूर में फल-उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से केन की संख्या से संबंधित होता है| लेकिन बेल की ओज क्षमता का सम्बंध इसके विपरीत है| इसलिए छंटाई के समय कितनी संख्या में केन रखे जायें और कितना फलन होने दिया जाए, यह उत्तम छंटाई, किस्म और सधाई प्रणाली पर निर्भर करता है| अंगूर में काट-छांट के मुख्यतः निम्नलिखित उद्देश्य हैं, जैसे-

1. पोषक रसों का बहाव फलोत्पादन क्षेत्र की ओर मोड़ना अथवा बदलना|

2. बेलों के आकार या ढांचे को ऐसी दशा में रखना कि उनका प्रबंध आसानी से किया जा सके|

3. बेलों से प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से अधिक उत्पादन के साथ उत्तम गुणों वाले फल प्राप्त करना|

यह भी पढ़ें- अंगूर की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार

अंगूर के पौधों की सधाई तकनीक

अंगूर की बागवानी में बेलों की सधाई का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है| अंगूर की बेलों के बीच का फासला भी इसी बात पर निर्भर करता है, कि उनकी सधाई किस प्रणाली से की जाए| सधाई के मुख्यतः दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं, जैसे-

1. अंगूर बेलों के ढांचे को अस्थाई रूप से सहारा देना|

2. पर्याप्त फलोत्पादन क्षेत्र उपलब्ध कराना एवं साधे रखना|

हमारे देश के विभिन्न भागों में अंगूर की कई किस्मों की सधाई के लिए भिन्न-भिन्न प्रणालियां अपनाई जाती हैं| इनमें से उत्तरी भारत में अंगूर की बेलों को साधने हेतु मुख्यतः निम्नलिखित तकनीक उचित मानी गई हैं, जैसे-

शीर्ष प्रणाली

यह प्रणाली बहुत सरल एवं कम लागत वाली तथा कम साधन वाले बागवानों के लिए उपयुक्त है, इससे साधी गई अंगूर की बेलें झाड़ीनुमा होती हैं| इनका तना सीधा एवं लगभग एक मीटर ऊंचा होता है| जिसके शीर्ष पर सुवितरित 5 से 6 मुख्य शाखाएं विभिन्न दिशाओं में फैली रहती हैं| कम बढ़ने वाली अधिकांश अगेती किस्में जैसे- परलेट, ब्युटी सीडलेस, पूसा उर्वशी, पूसा नवरंग और डिलाइट आदि सफलतापूर्वक इस प्रणाली पर साधी जा सकती है|

इस प्रणाली के तहत अंगूर की बेलों को 2 x 2 मीटर की दूरी पर लगाते हैं| प्रारम्भिक अवस्था में मुख्य तने को बांस या बल्ली के टुकड़ों से सहारा दिया जाता है| चार से पांच वर्ष बाद तने मजबूत एवं सुदृढ़ हो जाते हैं, जिन्हें सहारे की आवश्यकता नहीं रहती है|

यह भी पढ़ें- अंगूर की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

काट-छांट- प्रथम 2 से 3 वर्षों के अन्दर बेलों का ढांचा तैयार करते हैं| रोपाई के आरम्भ में जो 2 से 3 कलिकाएं फुटाव लेती हैं, उनमें से केवल एक ही स्वस्थ, मजबूत एवं सीधा प्ररोह मुख्य तने के लिए एक मीटर ऊंचाई तक बढ़ाते हैं तथा इस ऊंचाई तक अगल-बगल से निकलने वाले फुटाव अथवा पार्श्व प्ररोहों को काट देते हैं| मुख्य तने को एक मीटर ऊंचाई तक बढ़ाने के बाद काटते हैं, ताकि शीर्ष पर आवश्यकतानुसार सुवितरित 5 से 6 मुख्य शाखाएं विकसित हो जाएं|

फल वाली बेलों में मुख्य शाखाओं पर निकले प्ररोह जब एक वर्ष पुराने एवं परिपक्व हो जाते हैं, तो दिसम्बर से जनवरी में किस्मों के अनुसार में 2 से 3 गांठे रखकर छंटाई करनी चाहिए| इस प्रकार की फलवाली 10 से 15 केन अथवा स्पर प्रत्येक बेल में रखते हैं| इन्हीं केन से मार्च में नए प्ररोह निकलते हैं, जिनके ऊपर उसी समय फूलों के गुच्छे निकलते हैं| कुछ प्ररोह अत्यधिक मोटे या कमजोर होते हैं| उन्हें एक या दो कलिकाओं पर काट कर दलपुट (स्पर) बनाते हैं|

इन्हीं दलपुटों के ऊपर जो प्ररोह निकलते हैं, परिपक्व होकर अगले वर्ष फल देने योग्य हो जाते हैं| इसके अतिरिक्त, छंटाई करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आधे प्ररोह तत्काल फलत के लिए तथा आधे दलपुट (स्पर) बनाने के लिए प्ररोह किए जायें, ताकि फसल नियमित रूप से मिलती रहे| उत्तरी भारत में कई किसान इस विधि को सही ढंग से नहीं अपनाया तथा अपने बागों को बांछपन की तरफ मोड़ दिया|

यह भी पढ़ें- कागजी नींबू की खेती कैसे करें

जाफर प्रणाली

इस प्रणाली में दो तार (जी आई 11 गेज), जिनमें पहला तार भूमि से 75 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखकर, लोहे अथवा कंकरीट के खम्भों की मदद से क्षैतिज दिशा में फैलाते हैं| तार किनारे के दोनों खम्भों में पेच द्वारा कसे जाते हैं| इससे तारों को आवश्यकतानुसार कसा या ढीला किया जा सकता है| खम्भों की दूरी 4.8 मीटर रखते हैं| बेल 3 x 3 मीटर की दूरी पर लगाई जाती है| मुख्य तने को 75 सेंटीमीटर ऊंचाई तक सीधा बढ़ाकर, पाश्र्व शाखाएं विकसित करके, नीचे वाले तार पर दोनों तरफ फैलाते हैं|

इसके बाद मुख्य शाखा को 75 सेंटीमीटर तक और ऊंचा बढ़ाते हैं और दूसरे तार पर भी दो पार्श्व शाखाएं विकसित करके दोनों तरफ फैलाई जाती हैं| इन चारों पार्श्व शाखाओं को तार पर सुतली से ढीला बांध दिया जाता है, जो परिपक्व होने पर भुजाओं का कार्य करती हैं| इन्हीं भुजाओं पर फैलने वाली केन सुव्यवस्थित ढंग से विकसित करते हैं| यह प्रणाली कुछ मंहगी है, परन्तु यह लगभग सभी किस्मों के लिए तथा मुख्यतः अधिक ओजस्वी किस्मों जैसे- पूसा सीडलेस, थाम्पसन सीडलेस आदि के लिए उपयुक्त है|

काट-छांट- आरम्भ में बेलों को 75 सेंटीमीटर तक सीधा बढ़ाकर पहले तार की ऊंचाई पर मुख्य तने को काटते हैं, जिससे शीर्ष पर पार्श्व प्ररोह निकलते हैं| इनमें से तीन पार्श्व प्ररोह निकलते हैं| इनमें से तीन पार्श्व प्ररोह रखकर शेष, को काट देते हैं| नीचे वाले दोनों पार्श्व प्ररोहों को पहले तार के ऊपर विपरीत दिशा में बढ़ने दिया जाता है| फिर ऊपर वाले प्ररोह को 75 सेंटीमीटर और आगे बढ़ाते हैं तथा दूसरे तार के लिए दो शाखाएं विकसित करने हेतु बेल को भूमि से 1.5 मीटर ऊंचाई पर से काट देते हैं|

जिससे तार के दोनों ओर फैलाने के लिए दो पाश्र्व शाखाएं तैयार हो सकें| इस तरह से दोनों तारों पर चार पार्श्व शाखाएं तैयार हो जाती हैं, जो मुख्य भुजाओं का कार्य करती हैं| इन्हीं भुजाओं पर फलने हेतु केन, सुव्यवस्थित ढंग से छंटाई करके, दोनों तरफ वितरित की जाती हैं|

फलन केन और स्पर की छंटाई तथा अंगूर किस्म के अनुसार करते हैं, जैसे- पूसा सीडलेस या थॉम्पसन सीडलेस में फल के लिए 8 से 9 कलिकाओं तक और ब्युटी सीडलेस, ‘परलेट एवं डिलाइट में 2 से 3 गांठों पर 16 से 20 केन प्रति बेल में रखकर छांटते हैं| इसके साथ-साथ इतनी ही मात्रा में 1 से 2 कलिकाओं वाले दलपुट (स्पर) भी आगामी वर्ष के फलत हेतु रखते है|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें, जानिए जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार

पण्डाल या बावर प्रणाली

यह प्रणाली थोड़ी महंगी परन्तु अंगूर की सफल बागवानी तथा अधिक फल उत्पादन हेतु बहुत कारगर है| इसमें पण्डालनुमा ढांचा बनाया जाता है| पण्डाल 6 और 10 नम्बर वाले तारों को बुनकर जालीनुमा तैयार किया जाता है और इसे लोहे या कंकरीट के खम्भों के सहारे टिकाया जाता है| तार खड़े और पड़े दोनों तरफ से 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर खींचे जाते हैं| बेलों की रोपाई 4 x 5 मीटर की दूरी पर करते हैं|

मुख्य तने को लगभग 2 मीटर ऊंचाई तक बढ़ाकर जाल पर फैला देते हैं और इस प्रकार साधते हैं, कि उनकी मुख्य शाखाओं से लगभग 45 सेंटीमीटर की दूरी पर उपशाखाएं निकलकर छतरीनुमा फैल जाएं| यह प्रणाली कम ओजस्वी अंगूर की किस्मों के अतिरिक्त ओजस्वी किस्में, जैसे- पूसा सीडलेस, थॉम्पसन सीडलेस एवं अनाब-ए-शाही, आदि के लिए अधिक उपयोगी है|

काट-छांट- इस प्रणाली में सर्वप्रथम, मुख्य तने को जाल से लगभग 10 सेंटीमीटर नीचे से काटते हैं, जिससे जाल के पास वाले क्षेत्र में पार्श्व शाखाएं निकलती हैं| फिर इनमें से दो ओजस्वी शाखाएं छोड़कर शेष काट देते हैं| इन दोनों शाखाओं को तार के ऊपर विपरीत दिशा में बढ़ने दिया जाता है| जो आगे चलकर मुख्य भुजाओं का कार्य करती हैं| इसके बाद इन मुख्य शाखाओं के निकले पार्श्व प्ररोहों में से 45 सेंटीमीटर दूरी पर तीन से चार प्ररोह दोनों तरफ छोड़कर शेष काट देते हैं, जिनसे उप-शाखाएं विकसित हो जाती हैं|

इस प्रकार प्रत्येक अंगूर की बेल में कुल 12 उप शाखाएं या द्वितीय भुजाएं तैयार हो जाती हैं, जिनकी संख्या क्षेत्र के अनुसार बढ़ाते रहते हैं| इस तरह फल उत्पादन हेतु स्थाई ढांचा तैयार हो जाता है| फल वाली बेलों में प्रत्येक उप शाखा पर 4 से 5 केन व स्पर रखकर छंटाई करते हैं| इस प्रकार छंटाई के समय प्रत्येक किस्म में क्रमशः कुल 40 से 50 केन या स्पर प्रति बेल रखते हैं|

इस विधि में ब्युटी सीडलेस, परलेट, डिलाइट की केन 2 से 3 गांठों पर तथा ओजस्वी किस्मों जैसे- पूसा सीडलेस और थॉम्पसन सीडलेस आदि को 8 से 9 कलिकाओं पर छांटते हैं| इसके अतिरिक्त आगामी वर्ष अंगूर के फलन के लिए एक या दो कलिका वाले लगभग 35 से 45 दलपुट (स्पर) भी प्रत्येक बेल छोड़ना अति आवश्यक है|

यह भी पढ़ें- संतरे की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap