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Home » Blog » कागजी नींबू की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

कागजी नींबू की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

July 19, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

कागजी नींबू की खेती

नींबू फलों का एक वृहत्तम वर्ग है, जिसके अन्तर्गत मुख्य रूप से मैण्डरिन, सन्तरा, कागजी नींबू, माल्टा व चकोतरा आदि आते हैं| हमारे देश में फलों के कुल क्षेत्रफल के लगभग 9 प्रतिशत भाग पर नींबू वर्गीय फलों की खेती की जाती है और देश के कुल फल उत्पादन में इनका लगभग 9 प्रतिशत का अंशदान होता है| नींबूवर्गीय फल प्रायः भोजन के बाद ताजे फलों के रूप में खाये जाते हैं| माल्टा एवं खट्टी नारंगी से मार्मलेड बनाया जाता है साथ ही संतरा, मौसमी, नींबू और चकोतरा के रस से स्क्वैश बनाया जाता है|

नींबूवर्गीय फलों में विटामिन ‘सी’ पर्याप्त मात्र में पाया जाता है तथा फलों का यह वर्ग पोषक तत्वों से भरपूर होता है| यदि बागवान बन्धु इस वर्ग के फलों की खेती वैज्ञानिक तकनीक और उन्नत किस्मों के साथ करें, तो इनकी बागवानी से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में कृषकों की जानकारी के लिए कागजी नींबू की खेती कैसे करें, वैज्ञानिक तकनीक से का विस्तृत उल्लेख किया गया है| नींबू वर्गीय फसलों की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें

कागजी नींबू के लिए जलवायु

कागजी नींबू उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है, तथा यह पाला रहित क्षेत्रों में अधिक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है| इसके पौधों को अत्यधिक ठंड (चिलिंग) की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु शीत ऋतु के प्रभाव से पौधे की वृद्धि का रुकना, पुष्पन के लिए लाभकारी होता है| यदि वातावरण में आर्द्रता कम हो, तो फलों का रंग अच्छा होता है| अधिक आर्द्रता होने से मौसमी या माल्टा के फल अधिक रसयुक्त हो जाते है| अधिक आर्द्र उष्ण क्षेत्रों में पके फलों के छिलके में पीला रंग नहीं होता है| 1,000 मिलीमीटर औसत वार्षिक वर्षा, कागजी नींबू की खेती के लिये बहुत ही उपयुक्त है|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी के लिए वर्ष भर के कार्य

कागजी नींबू के लिए भूमि का चयन

नींबू वर्गीय फलों के पौधे के उचित विकास के लिये गहरी, भुरभुरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी अच्छी होती है| सख्त परत वाली भूमि, जिसमें कैल्शियम कार्बोनेट की सतहें पायी जाती हैं, इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं| मृदा, जिसका पी एच मान 5.5 से 7.5 होता है| कागजी नींबू के पौधों के लिये उपयुक्त होती है| नींबू वर्गीय फल लवणता के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा लवणता सहन नहीं कर पाते हैं|

कागजी नींबू पौध प्रसारण (प्रवर्धन)

कागजी नींबू का व्यवसायिक पौध प्रसारण कर्तन, कलिकायन, गूटी तथा न्यूसेलर सीडलिंग द्वारा भली-भांति किया जा सकता है और इसमें 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| इस प्रकार वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार किये गये पौधे लगभग 1 वर्ष तक पौधशाला में रखने के बाद रोपण के लिये तैयार हो जाते हैं| नींबू वर्गीय पौधों के प्रवर्धन की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

कागजी नींबू के लिए पौधरोपण

कागजी नींबू का बाग लगाने के लिए खेत में पौध रोपण के एक माह पहले 75 X 75 x 75 सेंटीमीटर आकार के गड्ढों में 40 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट के साथ मिट्टी में भली-भांति मिला दी जाती है| नींबू वर्गीय माल्टा तथा सन्तरा 6 से 8 मीटर, नींबू व कागजी नींबू 4.5 से 6 मीटर तथा पुमेलो व चकोतरा 6 से 7.5 मीटर की दूरी पर लगाये जाते हैं| पौध-रोपण के लिये 15 जून से अगस्त तक का महीना उपयुक्त होता है|

यह भी पढ़ें- संतरे की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार

कागजी नींबू में खाद व उर्वरक

कागजी नींबू के पौधों में जस्ता, लोहा, मैंगनीज, बोरॉन आदि सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देखी जाती है| अतः इनके बगीचों में खाद व उर्वरकों के साथ सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलाना चाहिए| पौधों को प्रति एक वर्ष उम्र के हिसाब से 10 किलोग्राम गोबर की खाद, 12 ग्राम नाइट्रोजन, 60 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 40 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश दिया जाता है|

इस मात्रा को प्रत्येक वर्ष तथा पाँच वर्ष तक उसी अनुपात में बढ़ाया जाता है| इसके बाद खाद एवं उर्वरक की मात्रा स्थिर कर दी जाती है| जिसे आगे के वर्षों में दिया जाता है| पौधों पर जस्ता, लोहा व बोरॉन की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.4 से 0.6 प्रतिशत जिंक व फेरस सल्फेट तथा 0.1 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का छिड़काव किया जाता है| कागजी नींबू में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण और निदान यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय बागों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं निदान के उपाय

कागजी नींबू में कीट एवं नियंत्रण

पर्णसुरंगी कीट- इस कीट की सुंडी नई पत्तियों में घुसकर उनमें टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं, जिससे पौधे की ओज व बढ़वार प्रभावित होती है और पौधे की फलत भी मारी जाती है|

नियंत्रण- इसके नियंत्रण के लिये मोनोक्रोटोफॉस 40 ई सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या डेल्टामिश्रित 2.8 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर का 20 दिन के अन्तर में दो बार छिड़काव करना चाहिए|

नींबू की तितली- इस तितली की सुंडी वाली अवस्था ही हानिकारक होती है, जो पत्तियों को खाकर कागजी नींबू के पौधे को नुकसान पहुँचाती है| इसका प्रौढ़ चमकीले रंग की बड़ी तितली होती है| एक वर्ष में इस कीट की तीन से पाँच पीढ़ियाँ पायी जाती हैं और यह सितम्बर माह में अधिक सक्रिय होती हैं|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए वी टी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या इण्डोसल्फान 35 ई सी की 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए| कागजी नींबू में कीट रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबूवर्गीय फलों के प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम कैसे करें

कागजी नींबू में रोग एवं नियंत्रण

कैंकर या साइट्रस कैंकर- यह रोग जेन्थोमोनास सिट्री नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) द्वारा फैलता है| यह मुख्य रूप से कागजी नींबू के पौधों को प्रभावित करता है| इस रोग का प्रभाव पत्तियों, छोटी शाखाओं, कांटों व फलों पर दिखाई देता है| शुरू में छोटे आभायुक्त पीले धब्बे बनते हैं जो बाद में 3 से 4 मिलीमीटर आकार के भूरे रंग के व स्पंजी हो जाते हैं| ये धब्बे फलों की अपेक्षा पत्तियों पर अधिक स्पष्ट होते हैं| यह रोग वर्षा ऋतु में अधिक फैलता है और कागजी नींबू को अधिक प्रभावित करता है|

नियंत्रण- इस रोग के नियंत्रण के लिए वर्षा के दिनों में 0.2 प्रतिशत ब्लाइटाक्स 50 का छिड़काव 15 दिन के अन्तर में करना चाहिये तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 500 पी पी एम का घोल भी इसके नियंत्रण में प्रभावी पाया गया है|

फूल एवं फल का गिरना- कागजी नींबू में फूल मुख्य रूप से वसन्त ऋतु में (फरवरी से मार्च) मिश्रित कली पर आते हैं| परन्तु नींबू की खट्टी प्रजातियों में फूल लगभग पूरे वर्ष आते रहते हैं| नींबू वर्गीय फलों में फल झड़ने या गिरने की समस्या पायी जाती है|

नियंत्रण- पौधों पर 2,4- डी का 8 पी पी एम, एन ए ए का 30 पी पी एम तथा जी ए- 3, का 30 पी पी एम, का छिड़काव करना फल झड़न रोकने में लाभदायक पाया गया है|

फलों का फटना- फलों के फटने की समस्या कागजी नींबू में भी पायी जाती है| फल प्रायः उस समय फटते हैं, जब शुष्क मौसम से अचानक वातावरण में आर्द्रता आ जाती है| गर्मी में बरसात होने से फलों के फटने की समस्या बढ़ जाती है|

नियंत्रण- इस समस्या की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करनी चाहिये| इसके अतिरिक्त पौधों पर 10 पी पी एम जिब्रेलिक अम्ल का छिड़काव करने से फलों के फटने की समस्या काफी कम की जा सकती है| कागजी नींबू में रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फसलों के रोग एवं दैहिक विकार और उनकी रोकथाम कैसे करें

कागजी नींबू में पुष्पन, फलन व उपज

नींबू वर्गीय फलों में फूल आने के नौ माह बाद फल पककर तैयार हो जाते हैं| परन्तु नींबू व कागजी नींबू के फल, फूल लगने के छः माह बाद तोड़ने के लिये तैयार हो जाते हैं| पौधों से 3 से 5 वर्ष बाद फल मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं तथा 5 से 6 वर्ष के पौधे पूर्ण फल देना प्रारम्भ कर देते हैं| संतरे के पेड़ से 1,000 से 1,400 मीठे संतरे व नींबू से 500, पुमेलो तथा चकोतरा से 250 तथा लाइम से 800 से 1,200 फल प्रति पेड़ प्राप्त होते हैं|

कागजी नींबू का भण्डारण

नींबू वर्गीय फलों में माल्टा का भण्डारण सबसे अधिक समय के लिए किया जा सकता है| इसका भण्डारण 4 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा 85 से 90 प्रतिशत आद्रर्ता पर 4 माह तक किया जा सकता है| प्रायः माल्टा और संतरा 2 माह तक भंडारित किये जाते हैं| देशी नींबू व कागजी नींबू को 8 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान और 85 से 90 प्रतिशत आर्द्रता पर 2 माह तक के लिए भंडारित किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- नींबूवर्गीय फसलों में समन्वित रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें

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