• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » लीची के पौधे कैसे तैयार करें? | लीची के पौधे तैयार करने की विधियां?

लीची के पौधे कैसे तैयार करें? | लीची के पौधे तैयार करने की विधियां?

July 26, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

लीची के पौधे कैसे तैयार करें?

लीची के पौधे बीज तथा कायिक प्रवर्धन द्वारा तैयार किये जा सकते हैं| बीज से तैयार पौधों में फलत 10 से 15 वर्ष बाद आती है, जो गुणों में भी अपने मातृ पौधे के समान नहीं होते तथा गुणवत्ता भी अच्छी नहीं पायी जाती है| गुणवत्ता बनाये रखने और जल्दी फलत प्राप्त करने के लिए पौधे कायिक प्रवर्धन द्वारा ही तैयार किये जाने चाहिए| इस लेख में लीची के पौधे तैयार करने की प्रवर्धन विधियों का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है|  लीची की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लीची की खेती कैसे करें

लीची प्रजनन प्रवर्धन

नई प्रजाति या किस्म का विकास मुख्यतः बीज से किया जाता है| इसलिए प्रजनन प्रवर्धन विधि किस्मों को विकसित करने के उद्देश्य से ही लगाये जाते हैं| सामान्यतः बीज द्वारा विकसित पौधों में पैतृक गुणों का अभाव रहता है तथा फलन भी देर से आती है और फलन की अवधि लम्बी होती है| संकर प्रजातियों का विकास बीज पौध प्रर्वधन से संभव हैं| लीची के बीजों की भंडारण एवं अंकुरण क्षमता बहुत कम होती है, इसलिए जनन द्रव्यों के विनियम एवं रखरखाव में इसका उपयोग नहीं हो पाता है|

लीची की तुड़ाई के बाद बीज गूदे में ही 4 सप्ताह तक अंकुरण क्षमता सहित भंडारित किया जा सकता है| इसके बाद अंकुरण क्षमता घटने लगती है| बीज को गुदे से बाहर कर दिया जाए तो मौजूदा अपेक्षित आर्द्रता एवं तापमान के आधार पर 4 से 14 दिनों तक ही अंकुरण क्षमता होती है| तुड़ाई के बाद गूदे निकाल कर बीजों को जल में डुबाकर रखने पर 2 से 4 दिनों तक अंकुरण क्षमता रहती है|

बीजों को जैव वृद्धि नियामकों (जैसे जिब्रेलिक अम्ल, आई बी ए और इथेफान) से उपचारित करने पर अंकुरण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है| इस प्रवर्धन विधि में बीज को मई से जून के महीने में पूर्ण रूप से तैयार पौधशाला में बोया जाता है| जब पौधे में पाँच से छः पत्ते हो जाये तो इसे प्लास्टिक, पॉलीथीन या गमले में पूर्ण विकसित पौधे (सैपलिंग) को लगाकर पॉली या नेट या एग्रोनेट से बने गृह में रखते हैं, ताकि पौधा पूर्ण विकास कर सकें|

मिस्ट हाउस या एग्रोशेड में पाँच छः महीने रखने के बाद यह खेत में लगाने लायक हो जाते हैं| ऐसे तो लीची के पौधे ज्यादा बार प्रतिरोपण का झटका बर्दास्त नहीं करते हैं और इस क्रम में वृद्धि की दर कम हो जाती है| बीजू पौधों का प्रयोग ग्राफ्टिंग के लिए मूलवृन्त के रूप में प्रयोग किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- लीची की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

लीची कायिक प्रवर्धन

कायिक प्रवर्धन लीची में बहुत ही प्रचलित विधि है| कायिक प्रवर्धन से प्राप्त पौधों में फलन- अपेक्षाकृत कम समय में प्रारंभ हो जाती है| यह विधि सरल और आसान है| इस विधि से प्राप्त पौधे अपने मातृ वृक्ष के सामान होते हैं| इस प्रर्वधन द्वारा किसी नई प्रजाति का विकास संभव नहीं है| यह विधि सघन बागवानी मे लिए बहुत ही उपर्युक्त एवं लाभकारी होती है| लीची मे कायिक प्रवर्धन निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जाता हैं, जैसे-

लीची माउंड या स्टुल लेयरीग

यह विधि अपेक्षाकृत आसान है, परन्तु सफलता दर कम होता है| इस विधि में गूटी विधि द्वारा तैयार एवं पूर्ण स्थापित पौधे को जमीन से 20 से 25 सेंटीमीटर ऊपर से प्रसुसुप्ता काल में काट देते हैं| कटे भाग से कल्ले निकलने के 8 से 10 माह बाद प्रत्येक कल्लों के निचले भाग पर छल्ला बनाते हैं| एक कल्ले को नर्स सूट के रूप में छोड़ देते हैं| तत्पश्चात कटे भाग को मिट्टी से पूर्णतः ढक देते है| लीची के कड़े शाखाओं के कल्ले आसानी से मुड़ते नहीं है और कटे शीर्ष पर वर्ष में कई बार घनी शाखाएं प्रस्फुटित होकर निकलती रहती हैं और आधार से जड़ निकलती हैं|

जड़ के पूर्णतः विकास करने पर इसे सावधानीपूर्वक अलग कर लेते है और जमीन में लगा देते हैं| इस तरह दो से तीन महीने में नये पौधे तैयार हो जाते हैं, जिसे मुख्य खेत में रोपित किया जा सकता है| माउंड या स्टूल लेयरिंग द्वारा प्राप्त पौधों से प्रवर्धन जल्दी एवं अधिक होती है, फिर भी इसमें शुरूआती जटिलता के कारण व्यवसायीकरण नहीं हो पा रहा है|

यह भी पढ़ें- लीची में कीट एवं रोग रोकथाम कैसे करें, जानिए समेकित उपाय

लीची गूटी या एयर लेयरिंग

लीची की व्यवसायिक खेती के लिए गूटी द्वारा तैयार पौधों का उपयोग किया जाना श्रेयस्कर होता है| पाँच वर्ष के उपरान्त ही लीची के पौधों में गूटी बाँधना चाहिए इसके पूर्व नहीं, क्योंकि इस अन्तराल में पौधे अपने स्थापना व वनस्पतिक वृद्धि की अवस्था में होते हैं| चुनी हुई डालियों (6 से 9 माह आयु की टहनियों) पर शीर्ष से 40 से 50 सेन्टीमीटर नीचे किसी गाँठ के पास गोलाई में 2 से 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ा छल्ला ग्राफ्टिग चाकू के मदद से बना लेते हैं|

छल्ले के ऊपरी सिरे पर सेराडिक्स पाउडर या 1000 पी पी एम, आई बी ए या आई ए ए का लेप लगाकर छल्ले को नम मॉस घास से ढ़क कर ऊपर से 400 गेज की पॉलीथीन का 15 से 20 सेंटीमीटर चौड़े पट्टी से 2 से 3 बार लपेटकर सुतली से दोनों सिरों को कस कर बाँध दिया जाता है| मॉस घास के बदले लीची के बाग की मिट्टी (20 किलोग्राम), गोबर की खाद (20 किलोग्राम), जूट के बोरे का सड़ा टुकड़ा (5 किलोग्राम) अरण्डी की खल्ली (2 किलोग्राम) के सड़े मिश्रण का प्रयोग किया जा सकता है|

पूरे मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर एवं हल्का नम करके एक जगह ढेर कर देते हैं तथा उसे जूट के बोरे या पालीथीन से 15 से 20 दिनों के लिए ढक देते हैं| जब गूटी बांधना हो तब मिश्रण को अच्छी तरह गूंथ कर 100 ग्राम की लोई बना कर कटे स्थान में लगा कर सावधानीपूर्वक गूटी बनाते हैं, जिससे स्थापना बेहतर होती है| गूटी लगभग दो माह में काटने लायक हो जाती है| गूटी काटने के पूर्व डाली की लगभग तीन चौथाई से अधिक पत्तियों एवं अवांछित टहनी को निकाल देते हैं|

गूटी को तेज चाकू या सिकेटियर के मदद से छल्ले के करीब 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे से काटकर अलग कर इसे प्रतिस्थापित करते है| नियमित तौर पर सिंचाई कीट व्याधि नियंत्रण करने, पोषक तत्वों के पर्णीय छिड़काव करने और खरपतवार निकालते रहने से स्वस्थ पौधे शीघ्र तैयार हो जाते हैं| भारतवर्ष में गूटी बांधने का सबसे उपयुक्त समय मानसून की शुरूआत यानि कि जून से जुलाई है|

यह भी पढ़ें- अलूचा या आलूबुखारा का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक

लीची कलम बाँधना (ग्राफ्टिग)

इस विधि में वांछित फल वृक्ष शाखा (सांकुर डाली) को लगभग उसी मोटाई और उसी जाति के किसी दूसरे पौधे (मूलवृन्त) पर बाँधी जाती है| जिस पौधे पर शाखा बाँधी जाती हैं, उसे ‘मूलवृन्त’ और जो शाखा बाँधी जाति है उसे ‘सांकुर डाली’ कहते हैं| पौधों की दोनों डालियों का जुड़ाव विभिन्न तरीकों से किया जाता है| इस मूलवृन्त और सांकुर डाली को बाँधने का कार्य इस प्रकार करते हैं, कि ये डालियाँ पूर्ण रूप से जुड़ जाती हैं| जुड़ने के बाद मूलवृन्त की जड़ों द्वारा मिट्टी से पोषक पदार्थ सांकुर डाली में भली भाँति पहुँचाये जाते है|

कलम बांधते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि मूलवृन्त और सांकुर डाली की कैम्बियम परत एक दूसरे से मिली हुई हो और कलम बाँधने के समय नष्ट नहीं होनी चाहिये| कलम बाँधते समय यह भी ध्यान रखना चाहिये कि मूलवृन्त और सांकुर डाली के कटाव के बीच में कोई खाली स्थान न रहे| अच्छी सफलता के लिए आवश्यक है, कि मूलवृन्त और सांकुर डाली एक ही जाति के हों|

बाँधने के लिये चुनी हुई सांकुर डाली स्वस्थ एवं निरोग तथा कीट मुक्त होनी चाहिये| साथ ही साथ देख लें कि किसी पोषक तत्व की कमी से डाली प्रभावित नहीं होनी चाहिये| विभिन्न फल वृक्षों में कलम बाँधने की अलग-अलग विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है। मोटे तौर पर दो प्रकार की विधियाँ प्रचलित हैं, जैसे-

1. पहली प्रकार की विधियों में कलम बाँधने के बाद सांकुर डाली को मूलवृन्त पर जूड़ने तक मातृ वृक्ष या मूल पौधे से अलग नहीं किया जाता है|

2. दूसरे प्रकार की विधियों में कलम बाँधने से पूर्व सांकुर डालियों को मूल पौधे या मातृ वृक्ष से अलग कर दिया जाता है|

यह भी पढ़ें- आड़ू का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए आधुनिक व्यावसायिक तकनीक

प्रथम प्रकार की विधियों में भेंट कलम और जीभी भेट कलम बाँधने की विधियाँ एवं दूसरी प्रकार में चीरा कलम और विनियर कलम बाँधने की विधियां प्रमुख हैं| जो इस प्रकार है, जैसे-

वेज कलम बांधना

यह सस्ती और सरल विधि है| इस विधि के मूलवृन्त वाले पौधे को मातृ वृक्ष के समीप ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है| कलम बांधने से पूर्व 3 से 4 माह पुरानी स्वस्थ शाखाओं का चुनाव करना चाहिये और कलम बाँधने से पूर्व चुनी शाखाओं की पत्तियों को 8 से 10 दिन पूर्व तोड़ देना चाहिये| मूलवृन्त वाले पौधे एक वर्ष की आयु के होने चाहिये|

कलम बाँधने के लिए मूलवृन्त वाले पौधों पर 20 से 25 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर काटकर उसके बीचो बीच 4 से 5 सेंटीमीटर लम्बा चीरा लगा दिया जाता है| जिससे अंग्रेजी के ‘V’ अक्षर का आकार हो जाता है| इसी तरह सांकुर डाली के निचले भाग को समान दूरी तक छीलकर मूलवृन्त के कटे भाग में फिट कर देना चाहिये|

सांकुर डाली का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि इसकी लम्बाई 10 से 15 सेंटीमीटर हो, और आगे की कलिका फूली हुई हो| वेज कलम बाँधने का उत्तम समय जून से जुलाई का महीना होता है| कुछ फल वृक्षों में सांकुर डाली नई शाखाओं से लेना लाभकारी होता है|

यह भी पढ़ें- चीकू का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए उपयोगी और आधुनिक व्यावसायिक तकनीक

भेट कलम

बागवानी में लीची के पौधों को तैयार करने की यह बहुत सरल तथा प्रचलित विधि है| इस विधि में एक वर्ष पुराने मूलवृन्त वाले पौधों को मातृ वृक्ष के पास लाया जाता है| मातृ वृक्ष पर मूलवृन्त के बराबर मोटाई वाली शाखा का चुनाव किया जाता है| मूलवृन्त वाले पौधों में 23 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर 4 से 5 सेंटीमीटर लम्बी छाल सहित थोड़ी लकड़ी काट कर छील ली जाती है, फिर दोनों कटे भागों को सुतली या अल्काथीन के टुकड़े से बाँध दिया जाता है| लगभग दो माह में ये शाखायें जुड़ जाती है|

जब जोड़ पक्का हो जाये तब मातृ वृक्ष वाली शाखा को ठीक जोड़ के नीचे से काटकर अलग कर दिया जाता है| इसके बाद मूलवृन्त वाले पौधे का ऊपरी भाग ठीक जोड़ के ऊपर से काट कर पौधशाला में किसी छायादार स्थान पर लगा देना चाहिये| भारतवर्ष में लीची भेंट कलम बाँधने का उत्तम समय जुलाई से अक्टूबर का महीना माना जाता है| लीची में कलम बाँधने के प्रयास में भी बहुत ही कम सफलता मिलती है|

जीभी कलम

यह विधि भेट कलम का बदला हुआ रूप है| इसमें मूलवृन्त कम से कम 1 से 2 वर्ष पुरानी लेते हैं| इस विधि में सांकुर डाली पर जीभी के आकार का एक चीरा ऊपर की ओर लगाया जाता है और इसी आकार का एक चीरा मूलवृन्त पर नीचे की ओर लगाया जाता है| इसके बाद दोनों चीरों को एक दूसरे में फंसा कर अल्काथीन की पट्टी से कसकर बाँध दिया जाता है|

शेष क्रियाएँ भेट कलम बाँधने की विधि की तरह ही अपनाते है| इस विधि से लीची में बहुत ही कम सफलता पायी गयी है, क्योंकि इस में सफलता मूलवृन्त एवं सांकुर डाली के जागृत कैम्बियम के सफल सटाव पर निर्भर करती है|

यह भी पढ़ें- अंगूर का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए आधुनिक व्यावसायिक तकनीक

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap