• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » धान में सूत्रकृमि क्या है?; धान में सूत्रकृमि को कैसे नियंत्रित करते हैं?

धान में सूत्रकृमि क्या है?; धान में सूत्रकृमि को कैसे नियंत्रित करते हैं?

December 31, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान में सूत्रकृमि क्या है?

धान की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीट और व्याधियों में सूत्रकृमियों का महत्वपूर्ण स्थान है| धान में सूत्रकृमि की कई प्रजातियाँ धान की फसल को हानि पहुंचाकर, पैदावार को प्रभावित करती हैं, धान में सूत्रकृमियों द्वारा क्षति, इनकी जनसंख्या के घनत्व पर निर्भर करती है| जो 2 से 40 प्रतिशत तक हो सकती है, अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में, कई बार ये नुकसान 80 प्रतिशत तक भी पाया गया है|

धान में ये परजीवी पौधों की विभिन्न भागों जैसे की जड़ों, तनों और पत्तियों पर अपना आक्रमण करते हैं| आमतौर पर सूत्रकृमी भूमि में रहते हुए जड़ों द्वारा पादप निकाय में प्रवेश करते हैं| लेकिन कुछ प्रजातियाँ बीजों में सुषुप्तावस्था में रहकर सालों तक जिन्दा रह सकते हैं एवं अनुकूल समय आने पर अपना प्रकोप दिखाती हैं|

धान पर परजीवी सूत्रकृमियों को दो भागों में बांटा जा सकता है| एक, जो जड़ों पर अपना आक्रमण करते हैं, दूसरे जो तना और पत्तियों को अपना निशाना बनाते हैं| धान के तना तंत्र को प्रभावित करने वाले सूत्रकृमियों में व्हाईट टिप निमेटोड (एफिलेन्कोईडस वैसीई) और तना सूत्रकृमि (डीटीलेनकस अनगसटस) प्रमुख हैं|

जो भारत के पूर्वोत्तर और दक्षिण राज्यों में मुख्य रूप से पाये जाते है| इसके अलावा जड़ों पर आक्रमण करके हानि पहुँचाने वाले सूत्रकृमियों में मुख्य रूप से धान जड़ गाँठ सूत्रकृमि (मिलेएडोगाईन ग्रेमिनोकोला) एवं जड़ सूत्रकृमि (हिरस्यमानियेला ओराईजी) प्रमुख हैं तथा सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुतायत से पाए जाते हैं|

इसके अलावा कुछ और प्रजातियाँ जैसे धान का पुट्टी सूत्रकृमि (हिटेरोडेरा ओराईजिकोला), जड़-घाव सूत्रकृमि (प्रेटीलेनकस प्रजाति) और लांस निमेटोड (होपलोलेमस इड़िका) के धान के परजीवी सूत्रकृमियों के रूप में जाने जाते हैं|धान की उन्नत खेती के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती कैसे करें

धान में सूत्रकृमि और नियंत्रण

व्हाईट टिप सूत्रकृमि-

धान में इस सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधों की पत्तियां शीर्ष से 3 से 5 सेंटीमीटर तक सफेद हो जाती है| धान में यह सूत्रकृमि बीजों के द्वारा फैलता है| इससे ग्रसित एक बीज में 5 से 14 सूत्रकृमि मिलते हैं| जो भूमि की आर्द्रता के संपर्क में आते ही सक्रिय हो जाते हैं| इससे ग्रसित पौधा झड़ा पत्ती में झुर्रा और विरूपण दिखाता है|

यह पौधों के पुष्पगुच्छ में फुटाव लेने से रोकता है और फुटाव की मात्रा कम तथा आकार छोटे हो जाते हैं| दाने की संख्या कम और आकार छोटा होने लगता है| ये सूत्रकृमि बालियों के आधार में रहकर बढ़वार को प्रभावित करते हैं और धीरे-धीरे दानों में पहुँच जाते हैं|

प्रबंधन-

1. यह सूत्रकृमि बीज द्वारा फैलता है, इसलिए सूत्रकृमि रहित बीज का उपयोग इससे बचाव का एक सरल उपाय है|

2. धान के बीज को 50 से 55 डिग्री सेल्सियस ताप पर 10 मिनट तक भिगोने से इसका उपचार हो जाता है और सूत्रकृमि भी नष्ट हो जाते हैं|

3. इसके बाद दो दिन तक बीज को कड़ी धूप में सुखाकर बोया जा सकता है|

4. इसके अलावा बीज उपचार के लिए कार्बोसल्फान 25 ई सी की 0.1 प्रतिशत क्रियाशील तत्व की मात्रा में 6 घंटे तक भिगोना चाहिए|

5. इसके साथ इस पीड़कनाशी की इसी मात्रा का छिड़काव, पौधा रोपण के 40 दिन बाद करना चाहिए|

6. प्रतिरोधक किस्में (रायादा-116) उगाकर भी इस धान में सूत्रकृमि का प्रकोप रोका जा सकता है|

7. नर्सरी में पौधों को उखाड़ने से 7 दिन पहले कार्बोफ्यूरान 3 जी की क्रियाशील तत्व की 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पौध को उपचारित करना चाहिए|

8. धान में पौधा रोपण के 45 दिन बाद कारटाप हाइड्रोक्लोराईड के क्रियाशील तत्व की 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग की जा सकती है|

9. धान में सूत्रकृमि प्रभावित पौधों और बीज तथा आसपास की खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

तना सूत्रकृमि (उफरा)-

इस बीमारी को उफरा कहा जाता है| धान में इस सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़कर बदरंग हो जाता है| फुटाव लेने वाले पौधे के साथ-साथ पूरा पौधा मुरझा कर मर जाता है या बदरंग हो जाता है| अत्यधिक प्रकोप होने पर पूरी फसल बदरंग हो जाती है, बालियाँ पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से पत्तियों में लिपटी रहती है|

बालियाँ बिना दाने के बढ़वार ले लेती हैं और बदरंग हो जाती हैं| फसल पकने के बाद यह सूत्रकृमि सुषुप्तावस्था में चला जाता है और अगले मौसम में पौध, सिंचाई या कृषि उपकरणों द्वारा फैल जाता है|

प्रबंधन-

1. यह सूत्रकृमि मिट्टी से, पौधों के सभी भागों से एवं सिंचाई से फैलता है, इसलिए इसके फैलाव को रोकने के सभी उपाय करने चाहिए|

2. धान में इससे ग्रसित सभी पौधों को पूर्णरूप से नष्ट कर देना चाहिए|

3. हमें ऐसी फसल चक्र अपनाना चाहिए, जो इस सूत्रकृमि की रोकथाम में सहायक हो|

4. जूट और सरसों में कार्बोफ्यूरान 3 जी की क्रियाशील तत्व की 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या बेनोमिल 24 किलोग्राम क्रियाशील तत्व प्रति हेक्टेयर पौधा रोपण के समय प्रयोग करने से पैदावार में संतोषजनक बढ़ोत्तरी होती है|

5. कार्बोफ्यूरान 3 जी की 0.1 प्रतिशत क्रियाशील तत्व का पौध रोपण के 40 और 120 दिन पर छिड़काव करना चाहिए|

6. नीम की खली का 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के प्रयोग से फसल को इस सूत्रकृमि के प्रकोप से बचाया जा सकता है|

7. इसके अलावा समेकित नियंत्रण में ट्रैप फसल, नीम तेल और नीम आधारित तत्वों के साथ उपचार भी अपनाया जा सकता है|

8. धान में सूत्रकृमि प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करके इसके प्रकोप से बचा जा सकता है|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे

धान का जड सूत्रकृमि-

जैसा कि इस सूत्रकृमि के नाम से विदित है, यह जड़ों पर भक्षण करता है और जड़ों में प्रवेश करके अपना जीवन चक्र पूरा करता है| इसके प्रकोप के प्रमुख लक्षण है, जैसे- बढ़वार को रोक देना, पौधों की उंचाई कम हो जाना, फुटाव में देरी और पौधों के भार में भारी कमी, जड़ों पर घाव करके उन्हें बदरंग करना और कोरटेक्स में घाव बनाना इत्यादि है| जिससे दूसरे परजीवियों का आक्रमण आसान हो जाता है, तथा पैदावार में अत्यधिक कमी आ जाती है और पौधा बदरंग दिखाई देता है|

प्रबंधन-

1. इसकी गर्मियों में सूर्य तपन विधि अपनाकर इसकी संख्या में कमी की जा सकती है|

2. पोषण के लिए प्रतिकूल फसलों के साथ फसल चक्र अपनाने से भी इस सूत्रकृमि का प्रकोप कम हो जाता है|

3. अत्यधिक प्रकोप प्रायः ऐसे खेतों में अधिक देखने को मिलता है, जहाँ संतुलित मात्रा में खाद और सिंचाई का अभाव होता है, इसलिए खाद की संतुलित मात्रा से पौधों की बढ़वार के साथ-साथ ऊपज भी बढ़ जाती है|

4. नीम की खली या सरसों की खली 225 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर ऊपज में बढ़ोत्तरी और सूत्रकृमियों की संख्या में संतोषजनक कमी हो जाती है|

5. धान में सूत्रकृमि ग्रसित पौधों के अवशेष अच्छी प्रकार से नष्ट कर देना एक बेहतर उपाय है|

6. मूंगफली, जूट, गेहूं, आलू या चने के साथ फसल चक्र अपनाकर भी इस सूत्रकृमि के प्रकोप से बचाव किया जा सकता है|

7. कार्बोफ्यूरान 3 जी की क्रियाशील तत्व की 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने से ऊपज में बढ़ोत्तरी और इस सूत्रकृमि से फसल को बचाया जा सकता है|

8. नर्सरी बोने से पहले, भमि को, कार्बोफ्यूरान 3 जी की 3.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से उपचारित कर लेना चाहिए|

9. सूत्रकृमियों की सघनता वाले क्षेत्रों में प्रतिरोधक किस्में जैसे- टी एम के- 9, सी आर- 142-3-2, सीआर- 52, सी एच- 136 और वी- 136 का प्रयोग करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

धान का जड सूत्रकृमि-

यह सूत्रकृमि सम्पूर्ण भारत में धान की खेती के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है और सभी धान बोये जाने वाले क्षेत्रों में पाया जाता है| यह ऊपरी, निचली भूमि तथा गहरे पानी के धान का एक अत्यंत हानिकारक परजीवी है| यह अच्छी तरह से बाढ़ की स्थिति के लिए अनुकूल है, यह मिट्टी में 14 महीने तक जीवित रह सकता है|

धान के अलावा यह सूत्रकृमि और भी फसलों जैसे- सब्जी फसलें आदि को भी अपना शिकार बनाता है| इसकी पहचान मुख्य रूप से, इसके द्वारा जड़ों पर बनाई जाने की विशेष गांठ है| जिसकी बनावट हुक के आकार की होती है| नई उगने वाली पत्तियां मुड़ी–तुड़ी, कटी-फटी एवं पीलापन लिए होती है|

पौधा बदरंग होने के साथ-साथ बौना दिखता है| इससे ग्रसित पौधों में फूल जल्दी आकर जल्दी पकते हैं| जिससे धान गुणवत्ता के साथ पैदावार भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है| पूरे खेत में इस सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों के लक्षण धब्बों जैसे दिखाई देते हैं|

फुटाव में कमी, बालियों में बौनापन और दानों की संख्या में कमी इसके अन्य मुख्य लक्षण हैं| यह सूत्रकृमि 1993 में पहली बार हरियाणा में मिला जो इस राज्य की 10 से 80प्रतिशत पैदावार को प्रभावित कर रहा है|

प्रबंधन-

1. इस सूत्रकृमि से बचाव के लिए सूर्यतपन विधि द्वारा इसकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है, जिसके लिए 25 से 50 माइक्रोन की पारदर्शी पोलीथिन का कम से कम तीन हप्तों तक प्रयोग किया जाता है|

2. नर्सरी में जड-गांठ रोग की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान की 0.3 ग्राम (क्रियाशील तत्व) प्रति वर्गमीटर की मात्रा के प्रयोग से सूत्रकृमि रहित पौध प्राप्त की जा सकती है, और पौध रोपण के 10 दिन बाद कार्बोफ्यूरान 3 जी की क्रियाशील तत्व की 1.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर धान की ऊपज में बढ़ोतरी एवं सूत्रकृमियों पर नियंत्रण किया जा सकता है|

3. कुछ नवीनतम प्रयोगों के आधार पर पाया गया है कि खेत में ढेचा उगाकर, उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला देने से भी धान में इन सूत्रकृमियों की संख्या में कमी और पैदावार में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है|

4. इसके अलावा जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास जीवाणु के घोल में 40 मिनट तक जड़ भिगोने से भी सूत्रकृमियों की संख्या और गांठों में कमी दर्ज की गई है एवं इस जीवाणु से तैयार फार्मुलेशन्स की 20 ग्राम मात्रा प्रति वर्ग मीटर की दर से नर्सरी क्षेत्र का उपचार करना लाभदायक रहता है|

यह भी पढ़ें- मिट्टी परीक्षण क्यों और कैसे करें, जानिए आवश्यकता, महत्व

अन्य हानिकारक सूत्रकृमि-

भारत में धान की फसल से सम्बद्ध आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सूत्रकृमि सफेद नोक सूत्रकृमि (एफेलेन्कोईडस बेसेई) जड़-गांठ सूत्रकृमि (मेलोईडोगाइन ग्रेमिनिकोला) उफ्रा सूत्रकृमि (डिटाईलेनकस अंगुसटस) घाव सूत्रकृमि (प्रेटाईलेनकस इंडीकस) धान जड़ सूत्रकृमि (हिर्समेन्निला ओराइजी) धान पुटी सूत्रकृमि (हेटेरोडेरा ओराईजिकोला) धान में आर्थिक क्षति (उपरोक्त सूत्रकृमि द्वारा)- 10 से 54 प्रतिशत|

प्रबंधन विकल्प-

1. पत्ती (पौधे के ऊपरी भाग) सूत्रकृमि (उफरा और सफेद नोक सूत्रकृमि) फसल के अवशेषों, खरपतवार या पुआल आदि को नष्ट करना और गहरी जुताई कर खेत को शुष्क रखने से सूत्रकृमि की संख्या को कम रखने में सहायता मिलती है|

2. सूत्रकृमि प्रभावित क्षेत्र के लिए सूत्रकृमि प्रतिरोधी धान की प्रजातियों की बुवाई करना|

3. धान के बीज का शोधन कार्बोसल्फान 25 डी एस, 3 प्रतिशत सक्रिय तत्व और धान की रोपाई के 40 एवं 120 दिन पश्चात् कार्बोसल्फान 25 ई सी 0.1 प्रतिशत सक्रिय तत्व का छिड़काव सूत्रकृमि प्रबंधन में सहायक पाया गया है|

4. कार्बोसल्फान 25 ई सी, 0.1 प्रतिशत सक्रिय तत्व के घोल में धान के बीज को 6 घंटे तक डुबोकर रखने और रोपाई के पश्चात 0.2 प्रतिशत कार्बोसल्फान का छिड़काव सफेद नोक सूत्रकृमि प्रबंधन में सहायक रहता है|

5. बीज की बुवाई से पहले बीज को 50 से 55 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर 10 मिनट तक गर्म पानी उपचार करने से सफेद नोक सूत्रकृमि प्रबंधन में सहायता मितली है|

6. सदैव स्वस्थ और प्रमाणित बीजों की ही बुवाई करना भी एक अच्छा विकल्प है|

यह भी पढ़ें- स्वस्थ नर्सरी द्वारा बासमती धान की पैदावार बढ़ाये

जड परजीवी सूत्रकृमि (धान जड गांठ और जड सूत्रकृमि)-

1. आलू, मूंगफली और चने की फसल को सूत्रकृमि अपोषित माना जाता है, इसलिए धान की फसल के साथ उल्लेखित फसलों के फसल चक्र को अपनाना सूत्रकृमि की संख्या को कम करने में सहायक होता है|

2. धान में सूत्रकृमि प्रतिरोधी प्रजातियों की बुवाई सूत्रकृमि प्रबंधन में सहायक होती है|

3. कार्बोसल्फान 25 ई सी, 0.1 प्रतिशत के घोल में धान के बीज को भिगोए रखने से जड़ गांठ सूत्रकृमि के अंड समूह के उत्पादन में कमी देखी गई है|

4. जैविक कारक स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 20 ग्राम प्रति वर्ग मीटर अनुसार नर्सरी का उपचार जड़ गांठ सूत्रकृमि के प्रबंधन में सहायक होता है|

5. कार्बोफ्यूरान 0.3 ग्राम सक्रिय तत्व से नर्सरी उपचार और कार्बोफ्यूरान 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का रोपाई के 40 दिन पश्चात छिड़काव सूत्रकृमि के प्रकोप को रोकने में सहायक देखा गया है|

6. उपरोक्त उपचार के साथ-साथ पोलिथीन शीट द्वारा नर्सरी का 15 दिनों तक सूर्य तापीकरण सूत्रकृमि के प्रबंधन में प्रभावी रहता है|

यह भी पढ़ें- उत्तम फसलोत्पादान के मूल मंत्र, जानिए कृषि के आधुनिक तरीके

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap