• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » जैविक खेती कैसे करें: आवश्यकता, मुख्य घटक, जैविक खाद, फायदे

जैविक खेती कैसे करें: आवश्यकता, मुख्य घटक, जैविक खाद, फायदे

December 8, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जैविक खेती कैसे करें

जैविक खेती (Organic farming) देशी खेती का आधुनिक तरीका है| जहां प्रकृति एवं पर्यावरण को संतुलित रखते हुए खेती की जाती है| इसमें रसायनिक खाद कीटनाशकों का उपयोग नहीं कर खेत में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष, फसल चक और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं| फसल को प्रकृति में उपलब्ध मित्र कीटों, जीवाणुओं और जैविक कीटनाशकों द्वारा हानिकारक कीटों तथा बीमारियों से बचाया जाता है|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

जैविक खेती की आवश्यकता

आजादी के समय खाने के लिए अनाज विदेशों से लाया जाता था, खेती से बहुत कम पैदा होता था, किन्तु जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होती गई, अनाज की कमी महसूस होने लगी| फिर हरित क्रान्ति का दौर आया इस दौर में 1966-67 से 1990-91 के बीच भारत में अन्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई| अधिक अनाज उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अंधाधुंध उर्वरकों, कीटनाशकों और रसायनों का प्रयोग किया जाने लगा, जिसके कारण भूमि की विषाक्तता भी बढ़ गई| मिट्टी से अनेक उपयोगी जीवाणु नष्ट हो गए और उर्वरा शक्ति भी कम हो गई|

आज संतुलित उर्वरकों की कमी के कारण उत्पादन स्थिर सा हो गया है, अब हरित क्रान्ति के प्रणेता भी स्वीकारने लगे हैं, कि इन रसायनों के अधिक मात्रा में प्रयोग से अनेक प्रकार की वातावरणीय समस्याएं और मानव तथा पशु स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं एवं मिटटी की उर्वरा शक्ति में कमी होने लगी है, जिसके कारण मिटटी में पोषक तत्वों का असंतुलन हो गया हैं| मिटटी की घटती उर्वरकता के कारण उत्पादकता का स्तर बनाए रखने के लिए अधिक से अधिक जैविक खादों का प्रयोग आवश्यक हो गया है|

किसान महंगे उर्वरकों और कीटनाशकों को खरीदने से कर्ज में डूब रहे हैं, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में गिरावट आ रही है| मानव द्वारा रसायनयुक्त खाद्य पदार्थों के प्रयोग से शारीरिक विकलांगता एवं कैंसर जैसी भयंकर बीमारी होने लगी है| इस समस्या के निराकरण के लिए आधुनिक जैविक खेती अवधारणा एक उचित विकल्प के रूप में उभरकर सामने आई है| चूंकि जैविक कृषि में किसी भी प्रकार के रसायनिक आदानों का प्रयोग वर्जित है तथा फसल उत्पादन के लिए वांछित सभी संसाधन किसानों द्वारा ही जुटाने होते हैं|

यह भी पढ़ें- जैविक विधि से कीट और रोग तथा खरपतवार प्रबंधन

इसलिए किसानों को संसाधनों के उत्पादन, उनका उचित प्रयोग और जैविक खेती प्रबंधन तकनीकी के बारे में प्रशिक्षित करना बहुत आवश्यक है| कुछ अन्य कारण इस प्रकार है, जैसे-

1. कृषि उत्पादन में टिकाऊपन लाया जा सके|

2. मिटटी की जैविक गुणवत्ता बनाए रखी जा सके|

3. प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सके|

4. वातावरण प्रदूषण को रोका जा सके|

5. मानव स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके|

6. उत्पादन लागत को कम किया जा सके|

पर्यावरण को बिना हानि पहुंचाए खेती और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य के लिए संचित रखते हुए उनका सफल उपयोग करके फसलों के उत्पादन में लगातार वृद्धि करना एवं मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही टिकाऊ खेती कहलाता है|

जैविक खेती, टिकाऊ खेती का प्रमुख घटक है, जिसका मुख्य उद्देश्य रसायनों का कम से कम उपयोग और उनके स्थान पर जैविक उत्पादों का प्रयोग अधिक से अधिक हो जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहे व भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़े| जैविक खेती का मुख्य घटक जैविक खाद, जैव उर्वरक है, जो कि रसायनिक खादों का एक उत्तम विकल्प है|

यह भी पढ़ें- ट्राइकोडर्मा क्या जैविक खेती के लिए वरदान है?

जैविक खेती के मुख्य घटक

जैविक खाद- जैविक खादों का तात्पर्य कार्बनिक पदार्थों से है, जो कि सड़ने पर कार्बनिक पदार्थ पैदा करते हैं| इसमें मुख्यतः खेती के अवशेष, पशुओं का मलमूत्र आदि होता है| इसमें फसलों के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व कम मात्रा में ही सही, उपस्थित होते है| इनमें मिटटी को सभी पोषक तत्व, जो फसलें अपनी बढ़वार के लिए ले लेती हैं, पुनः प्राप्त हो जाते है| आधुनिक कृषि में खेती की सघन पद्धतियाँ अपनाई जा रही हैं, जिनसे एक ही खेत में लगातार कई फसलें लेने से मिटटी में कार्बनिक पदार्थ की कमी हो जाती है|

जिससे मिटटी की संरचना और उर्वरा शक्ति पर बुरा असर पड़ता है| इसलिए मिटटी कार्बनिक पदार्थ को स्थिर रखने के लिए जैविक खादों का उपयोग अति आवश्यक है| साथ ही साथ जैविक खाद मिटटी की संरचना, वायु, तापमान, जलधारण क्षमता, जीवाणु संख्या तथा उनकी अभिक्रियाओं, बेस विनिमय क्षमता और भूमि कटाव को रोकने पर अच्छा प्रभाव डालती हैं|

हमारे देश में काफी समय से जैविक खादों का प्रयोग परम्परागत खेती में होता आया है| इनमें प्रमुख कम्पोस्ट खाद है, जो नगरों में कूड़े-करकट, दूसरी खेती अवशेष और गोबर से तैयार की जाती है| गोबर की खाद में अन्य कम्पोस्ट की अपेक्षा नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाये जाते हैं| जैविक खादों में लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा पाई जाती है|

यह भी पढ़ें- परजीवी एवं परभक्षी द्वारा खेती में कीट नियंत्रण

गोबर की खाद- भारत में प्रत्येक किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करता है| यदि किसान अपने उपलब्ध खेती अवशेषों और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करें तो स्वयं ही उच्च गुणवता की खाद तैयार कर सकता है| अच्छी खाद बनाने के लिए 1 मीटर चौड़ा, 1 मीटर गहरा या आवश्यकतानुसार 5 से 10 मीटर लम्बाई का गड्ढा खोदकर उसमें उपलब्ध खेती अवशेष की एक परत पर गोबर तथा पशुमूत्र की एक पतली परत दर परत चढ़ा दें| उसे अच्छी तरह नम करके गड्ढे को उचित ढंग से ढककर मिट्टी और गोबर से बंद कर दें| इस प्रकार दो महीने में 3 पलटाई करने पर अच्छी गुणवता की खाद बनकर तैयार हो जायेगी|

वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)- इसमें केंचुओं द्वारा गोबर और अन्य अवशेष को कम समय में उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद में बदल देते हैं| इस तरह की जैविक खाद से मिटटी जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है| यह भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, दीमक के प्रकोप को कम करने और पौधों को सन्तुलित मात्रा में आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए उत्तम है|

हरी खाद- जैविक खेती हेतु वर्षाकाल में जल्दी बढ़ने वाली दलहनी फसलें जैसे ढेचा, सनई, लोबिया, ग्वार आदि उगाकर कच्ची अवस्था में लगभग 50 से 60 दिन बाद खेत में जुताई करके मिटटी में मिला दें| इस प्रकार हरी खाद भूमि सुधारने, मिटटी कटाव को कम करने, नाइट्रोजन स्थिरीकरण, मिटटी संरचना और जलधारण क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी|

यह भी पढ़ें- केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट): विधि, उपयोग और लाभ

गोबर गैस स्लरी खाद- जैविक खेती में गोबर गैस संयन्त्र से निकली हुई स्लरी को सीधे ही तरल गोबर की खाद के रूप में खेत में दी जा सकती है| यह शीघ्र ही फसल को लाभ पहुंचाती है, गोबर की खाद मिटटी में मिलाने पर एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरने के बाद उसके पोषक तत्व फसल को उपलब्ध हो पाते हैं| जबकि स्लरी स्वयं ही सड़ने से इसमें विद्यमान सभी पोषक तत्व फसल या पौधों को शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं| एकत्रित स्लरी खाद का चूरा करके उसे सीधे ही कूड़ों में डाला जा सकता है| दो घन मीटर गैस संयत्र से प्रति वर्ष 10 टन बायौ गैस स्लरी का खाद प्राप्त होती है|

इसमें नाइट्रोजन 1. 5 से 2 प्रतिशत, फॉस्फोरस 1.0 प्रतिशत तथा पोटाश 1.0 प्रतिशत पाया जाता है| पतली स्लरी में 2 प्रतिशत नाइट्रोजन, अमोनिकल नाइट्रोजन के रूप में होता है| इसलिए इसे सिंचाई जल के साथ नालियों में दिया जाये तो इसका तत्काल प्रभाव फसल पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है| सूखी स्लरी में से नाइट्रोजन का कुछ भाग हवा में उड़ जाता है, प्रति हैक्टेयर 5 टन स्लरी की मात्रा असिंचित खेती में तथा 10 टन स्लरी सिंचित खेती में डालना चाहिए|

जैव उर्वरक- जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवों की जीवित कोशिकाओं को किसी वाहक केरियर में मिश्रित करके तैयार किए जाते हैं| इसमें राइजोबियम कल्चर सबसे अधिक उपयोग में आने वाला जैव उर्वरक है| इसके जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे बनाकर उसमें रहते हुए वायुमंडलीय नत्रजन को भूमि में स्थिरीकरण कर फसल को उपलब्ध कराते हैं| प्रत्येक दलहनी फसल का अलग अलग कल्चर होता है| यह जीवाणु 50 किलोगतं से 135 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर मिटटी में स्थिरीकरण करते हैं| राइजोबिया की 750 ग्राम मात्रा 80 से 100 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होती है|

एजोटोबेक्टर, खाद्यान फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य करते हैं| खाद्यान फसलों तथा सब्जियों आदि में इसके उपयोग से 15 से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है| घोलक जीवाणु (पीएसबी) में सुक्ष्म जीवाणु होते हैं| इसके प्रयोग से भूमि में अघुलनशील स्फुर घुलनशील स्फुर में परिवर्तित हो जाता है और 15 से 25 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि होती है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

जैविक खेती के फायदे

1. इस से ना केवल भूमि की उर्वरक शक्ति बनी रहती है बल्कि उसमें वृद्धि भी होती है|

2. इस पद्धति से पर्यावरण प्रदूषण रहित होता है|

3. इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है जैव खेती पानी का संरक्ष्ण करती है|

4. इस खेती से भूमि की गुणवत्ता बनी रहती है और सुधार होता रहता है|

5. यह किसान के पशुधन के लिए भी बहुत महत्व रखती है और अन्य जीवों के लिए भी|

6. फसल अवशेषों को नष्ट करने की आवश्यकता नही होती है|

7. उत्तम गुणवत्ता की पैदावार का होना|

8. जैविक खाद्यान महंगे मूल्य पर बिकते है|

9. कृषि के सहायक जीव न केवल सुरक्षित होंगे बल्कि उनमें बढ़ोतरी भी होगी|

10. इसमें कम लागत आती है और मुनाफा ज्यादा होता है|

यह भी पढ़ें- अरहर की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap