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Home » Blog » पुदीना (मेंथा) की खेती: किस्में, रोपण, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

पुदीना (मेंथा) की खेती: किस्में, रोपण, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

December 16, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

पुदीना (मेंथा) की खेती

व्यापारिक जगत में जापानी पुदीना (Mint) को ही मेंथा के नाम से जाना जाता है| लेकिन तकनीकी रूप से मेंथा शब्द पुदीना के एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें पुदीना की कई किस्में सम्मिलित हैं, जैसे- जापानी पुदीना या पिपर मिन्ट| इस प्रकार मेंथा के समूह में कई किस्में सम्मिलित हैं, जिनमें से एक किस्म जापानी पुदीना भी है| वर्तमान में विश्व भर में जापानी पुदीना के उत्पादन के क्षेत्र में भारत दूसरे स्थान पर है, जबकि प्रथम स्थान चीन को प्राप्त है|

जबकि पिपर मिन्ट और स्पीयर मिन्ट के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रथम स्थान प्राप्त है| वर्तमान में उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा इत्यादि, पुदीना के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं| इनके साथ-साथ अन्य राज्यों में भी मेंथा की खेती वृहत रूप से अपनाई जा रही है, क्योंकि परम्परागत खेती ज्यादा लाभकारी न होने के कारण किसानों का ध्यान मेंथा की खेती की ओर खींचता जा रहा है|

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पुदीना की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

पुदीना की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है| वैसे इसकी खेती उष्ण तथा उपोषण जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है| पुदीना फसल की अच्छी बढ़वार के लिए दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए| भारत की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त है|

पुदीना की खेती के लिए भूमि का चयन 

पुदीना के लिए समतल, अच्छे जल निकास वाली भूमि जो बलुई दोमट हो एवं जिसमें जीवांशों की प्रचुरता हो और जिसका पी एच मान 6.0 से 7.5 हो, जापानी पुदीना की खेती के लिए अच्छी होती है| भारत की सामान्य पी एच मान वाली लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है| भारी और चिकनी मिटटी में पौधों के विकास में कठिनाइयाँ होती है|

पुदीना की खेती के लिए खेत की तैयारी

पुदीना की बिजाई करने से पूर्व खेत को अच्छी प्रकार तैयार करना आवश्यक होता है| मिट्टी पलटने वाली हल से 2 से 3 बार अच्छी जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी कर लें| अंतिम जुताई से पहले 15 से 20 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें| दीमक तथा सूक्ष्मकृमि की बचाव के लिए 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खल्ली खेतों में मिलाई जाती है|

खेत तैयार होने के उपरांत खेत की छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित कर दें, ताकि सिंचाई देने में आसानी हो, इससे सकर्स की मात्रा कम लगती है और पौधा रोपण पर खर्च में कटौती होती है| रबी की फसल के उपरान्त किसानों को मेंथा की फसल से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है साथ ही साथ खरपतवार नियंत्रण पर कम खर्च होता है|

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पुदीना की खेती के लिए उन्नत किस्में

कोसी, हिमालय, कुशल, गोमती और शिवालिक प्रमुख किस्में हैं, यह किस्में कुशल तेजी से बढ़ती है एवं इसका उत्पादन भी दूसरी किस्मों से लगभग दोगुना होता है|

पुदीना की खेती के लिए रोपण का समय

जापानी पुदीना की रोपाई कभी भी (अधिक ठंड को छोड़कर) की जा सकती है, लेकिन इसका सर्वाधिक उपयुक्त समय वह रहता है, जब सर्दी का मौसम लगभग समाप्त हो रहा हो एवं गर्मी का मौसम प्रारंभ हो रहा है|

भारत में मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक का समय पुदीना की बुआई के लिए सर्वोत्तम है, परन्तु जिन क्षेत्रों में रबी की फसल लगाई गई हो वहाँ उनकी कटाई के बाद 30 मार्च तक जापानी पुदीना की बुआई की जा सकती है|

पुदीना की खेती के लिए प्रवर्धन तकनीक

पुदीना का प्रवर्धन आमतौर पर जड़ भाग द्वारा किया जाता है, जिसे सकर्स कहते हैं, 5 से 7 सेंटीमीटर लम्बा सकर्स 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरी होता है| प्रत्येक सकर्स के टूकड़े में कम से कम एक आंख (नोड) होनी चाहिए| अच्छे सकर्स मांसल, रसीले तथा सफेद होते हैं एवं सकर्स रोगमुक्त होने चाहिए| पहले से लगाई गई फसल को उखाड़कर उसकी निचली हिस्से से सकर्स प्राप्त करते हैं|

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पुदीना की खेती के लिए रोपण की विधि

जापानी पुदीना की बुआई दो विधियों द्वारा की जाती हैं, नर्सरी द्वारा और मुख्य खेत में सीधे बुआई जो इस प्रकार है, जैसे-

नर्सरी द्वारा- सबसे पहले सुविधानुसार 5 X 10 फीट की क्यारियाँ बनाते हैं| इन क्यारियों के किनारे को लगभग एक फीट ऊँचा रखते हैं| इन क्यारियों में खरपतवार नही होने चाहिए, प्रत्येक क्यारी में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद डालकर अच्छी तरह जोतकर मिट्टी भुरभुरी बनाएं|

तैयार क्यारियों में धान की क्यारी की तरह ही पानी से भर दें एवं जापानी पुदीना की कटी हुई सकर्स को नर्सरी में बिखेर दें| साथ ही साथ सकर्स को बिखेरने से पहले उन्हें साफकर के रात भर गोमुत्र (एक भाग गोमुत्र तथा दस भाग पानी) में डुबोकर रखते हैं| इसके अलावा कार्बोडजिम से उपचार भी किया जा सकता है|

मुख्य खेत में सीधे बुआई- इस विधि में नर्सरी में पौधों को तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है| सकर्स को सीधे मुख्य खेत में रोपाई कर दी जाती है|यह शार्ट-कट विधि है, परन्तु यह विधि उपयुक्त नहीं है, क्योंकि एक तो फसल के उगने के साथ हीं खरपतवार भी उग आते हैं, जिसकी रोकथाम में काफी खर्च आता है एवं दूसरा खेत में अधिक गैप रह जाने की संभावना होती है, क्योंकि कुछ संकर्स में उगाव नहीं भी हो सकता है|

इस विधि से बुआई के लिए एक से दो क्विंटल सकर्स की रोपाई वैसे हीं करते हैं- जैसे, धान की रोपाई करते हैं| पर खेत को केवल गीला रखते हैं, पानी लगाकर बुआई करने से फायदा यह रहता है, कि सकर्स का उगाव अधिक होता है तथा खेत खाली नहीं रहता है| मुख्य खेत में पौधों को 60 X 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाना उपयुक्त रहता है|

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पुदीना की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन

पुदीना हेतु आमतौर पर 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश की अनुशंसा की जाती है| इनमें से फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा सकर्स रोपाई के पहले दी जानी चाहिए|

नाइट्रोजन की शेष मात्रा प्रत्येक कटाई के बाद 2 से 3 बार में देना चाहिए| यदि खेत की तैयारी के समय 15 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाली गई हो तो उर्वरकों की अतिरिक्त मात्रा देने की आवश्यकता नहीं होती है|

पुदीना की खेती में सिंचाई प्रबंधन

पुदीना की अच्छी बढ़त तथा अच्छी फसल प्राप्ति के लिए पर्याप्त सिंचाई की जरूरत होती है| इसलिए जहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था न हो वहाँ यह फसल न लगावें| खेत में हमेशा नमी बनाए रखने की आवश्यकता होती है, इसलिए जल्द व हल्की सिंचाई अत्यंत आवश्यक है| मार्च में 10 से 15 दिन के अन्तर से, अप्रैल से जून में 6 से 8 दिन के अन्तर से और सर्दियों में 20 से 25 दिन पर हल्की सिंचाई करें|

ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा सिंचाई करने से समय के साथ-साथ पानी की भी बचत होती है| फसल की प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करें, खेतों में नमी की कमी होने पर फसल की वृद्धि रूक सकती है|

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पुदीना की खेती में खरपतवार रोकथाम

खरपतवार पुदीना की बढ़त को तो रोकते ही हैं साथ ही पुदीने के तेल में अनैच्छिक बदबू उत्पन्न कर उसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं, इसलिए खरपतवार की रोकथाम आवश्यक है| खरपतवारों का रोकथाम हाथ से निराई-गुड़ाई द्वारा और खरपतवारनाशी दवा के उपयोग से किया जा सकता है|

अच्छी रोकथाम के लिए कारमेक्स 80 डब्ल्यू पी, 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी में घोल कर फसल के जमाव से पहले छिड़काव करें एवं फिर 30 से 40 दिन बाद निराई करें| इसी तरह दूसरी कटाई के एक महीना बाद भी एक निराई-गुड़ाई कर दें|

पुदीना की खेती में पौधा संरक्षण

पुदीना फसल पर लगने वाले प्रमुख कीटों में सेमीलुपर सुन्डी, रोएंदार सुण्डी तथा जालीदार कीट हैं| जिनमें सर्वाधिक नुकसान रोएँदार सुन्डी से होती है| जो कि पत्तों के हरे उत्तकों को खाकर इन्हें कागज की तरह जालीदार बना देती है| जिससे पुदीना फसल को काफी हानि होती है, इसके रोकथाम के लिए क्विनैलफॉस के 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|

सेमीलुपर सुन्डी एवं जालीदार कीट के रोकथाम के लिए मेलाथियॉन 50 ई सी का 300 से 400 मिलिलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| कभी-कभी इस फसल पर सूत्रकृमियों का भी आक्रमण हो जाता है, जिससे सकर्स में गाँठे बन जाती हैं, जड़े फूल जाती है और जड़ों पर लाल धारियाँ बन जाती है| पौधा पीला एवं बौना रह जाता है, इसकी रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय ही 5 से 7 क्विंटल नीम की खल्ली प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें|

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पुदीना की फसल की कटाई

जापानी पुदीना एक वर्षीय फसल है तथा एक वर्ष के दौरान तीन कटाईयाँ ली जा सकती है| पुदीना फसल की पहली कटाई 90 से 115 दिन के उपरान्त पौधों पर हल्के सफेद व जामुनी रंग के फूल दिखाई दें, या जब 60 से 70 प्रतिशत पौधों में फूल आ जाते हैं|

पौधों की कटाई भूमि सतह से 6 से 8 सेंटीमीटर की ऊँचाई से करते हैं| दूसरी पहली के कटाई 70 से 80 दिन बाद व तीसरी दूसरी कटाई के 70 से 80 दिन बाद करते हैं| तीसरी कटाई के बाद पौधों का विस्तार नहीं करना चाहिए| पुदीना फसल की कटाई चमकीली धूप में दोपहर के समय तेज धारदार दराती से करें|

फसल काटने के बाद कम से कम 6 घंटे खेत में हीं पड़े रहने दें, ताकि अतिरिक्त नमी सूख जाये| वैसे फसल काटने के 6 घंटे से तीन दिन के भीतर आसवन करके तेल निकाल लेना चाहिए, हरे पुदीना के व्यवसाय के लिए आवश्यकतानुसार कटाई कर के तुरन्त भेज दें|

पुदीना की फसल से पैदावार

जापानी पुदीना से लगभग 300 से 350 किलोग्राम तेल प्रति प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है| प्राप्त होने वाले तेल की मात्रा कई बातों पर भी निर्भर करती है, जैसे- उगाई गई प्रजाति, फसल की वृद्धि, फसल की कटाई का समय, प्रयुक्त किया गया आसवन संयंत्र आदि, फिर भी शाक की तुलना में 0.5 से 2 प्रतिशत तक तेल प्राप्त हो सकता है| यदि हरा पुदीना विपणन की सुविधा है, तो उत्पादनकर्ता को अधिक फायदा हो सकता है|

यह भी पढ़ें- नैनो प्रौद्योगिकी का कृषि में महत्व, जानिए आधुनिक उपयोग की जानकारी

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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