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Home » Blog » धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

November 30, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

धान की खेती में जैव नियंत्रण और एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, परिणाम स्वरूप सघन और एकल खेती तथा रसायनों के अविवेक पूर्ण एवं अत्यधिक प्रयोग से जहां, एक और जैव विविधता का ह्रास हुआ है| वहीं रोग जनकों और कीटों में रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हुई है|

यही कारण है, कि धान की खेती में निरन्तर रसायनिक दवाओं के प्रयोग के बावजूद कीट व्याधियों की समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं| धान की खेती में किसानों को इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुये एक लागत विहिन और अत्यधिक प्रभावशाली, पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल तथा सर्वत्र प्रभावी तकनीक न्यूनतम साझा कार्यक्रम का विकास किया गया है|

जो कि धान की खेती में एकीकृत या समेकित नाशीजीव प्रबन्धन का एक अंग है| इस लेख में उल्लेख है, की धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन किस प्रकार करें|यदि आप जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की अधिक जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

यह भी पढ़ें- अलसी की जैविक खेती कैसे करें

धान की फसल में जैव नाशीजीव प्रबंधन

मानक 1- जैविक धान की खेती हेतु, जैसे-

मुख्य रोग- भूरा धब्बा, झोंका, पर्ण छन्द विगलन, पर्ण छन्द अंगमारी, झुलसा, तना छेदक, पत्ती लपेटक और धान का फुदका|

खेत की तैयारी-

1. धान की खेती में ट्राइकोडर्मा या स्युडोमोनास की गोबर की खाद का प्रयोग करें|

2. मई से जून में ढेचे की बुवाई 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें और 45 से 55 दिन बाद जुताई कर खेत में मिला दें, जुताई से एक दिन पहले ट्राइकोडर्मा का 5 ग्राम प्रति लीटर घोल छिड़काव करें|

3. धान की खेती में 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग करें|

नर्सरी लगाने के समय-

1. धान की खेती में जहां तक सम्भव हो, ब्लास्ट प्रतिरोधी प्रजाति का प्रयोग करें|

2. स्युडोमोनास 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें|

3. धान की खेती में तना छेदक के लिए प्रति 100 वर्ग मीटर पर एक फेरोमैन ट्रैप का प्रयोग करें|

4. ट्राइकोग्रामा जापोनिकम ट्राइकोग्रामा चिलानिस 150000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें|

यह भी पढ़ें- मसूर की जैविक खेती कैसे करें

पौध रोपण के समय-

1. धान की खेती को जीवाणु झुलसा से बचने के लिए पौधों की रोपाई छायादार स्थान पर न करें|

2. नर्सरी में पौध उखाड़ने से एक दिन पूर्व स्युडोमोनास का छिड़काव 10 ग्राम वर्ग मीटर की दर से करें|

पौध रोपण के बाद से फसल पकने तक-

1. फेरोमैन ट्रैप 5 मिली ग्राम ल्योर प्रति ट्रैप, 20 ट्रैप प्रति हेक्टेयर, 20 से 25 मीटर की दूरी पर प्रयोग करें, 30 दिन बाद ल्योर बदल दें, ट्रैप की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखते हैं|

2. ट्राइकोग्रामा जापोनिकम ट्राइकोग्रामा चिलीनिस 3 से 4 बार 150000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़े|

3. धान की खेती के खेत में अधिक समय तक पानी नहीं रुकना चाहिये|

4. ट्राइकोडर्मा+स्युडोमोनास के 2 से 4 छिड़काव एक सप्ताह के अंतराल पर बाली निकलने के समय करना चाहिये, भूरा धब्बे के लिए उचित है|

5. इसके अलावा 5 प्रतिशत एन एस के ई का एक छिड़काव धान के बग को रोकता है|

यह भी पढ़ें- चने की जैविक खेती कैसे करें

मानक 2- प्रचलित सुगन्धित धान की खेती हेतु, जैसे-

किस्में- देहरादून बासमती, हंसराज, तिलक चंदन, बिन्दली, एवं काला नमक आदि प्रमुख है|

मुख्य रोग- भूरा धब्बा, झोंका, पर्ण छन्द विगलन, पर्ण छन्द अंगमारी, झुलसा, तना छेदक, पत्ती लपेटक और धान का फुदका|

उर्वरक- रोपाई के पूर्व नत्रजन 10 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम, पोटाश 60 किलोग्राम, जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, रोपाई के 30 दिनों के बाद- नत्रजन 10 किलोग्राम बाली निकलने के समय- नत्रजन 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें|

नर्सरी लगाने के समय-

1. धान की खेती हेतु स्युडोमोनास 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें|

2. तना छेदक के लिए प्रति 100 वर्ग मीटर पर एक फेरोमैन ट्रैप का प्रयोग करें|

3. ट्राइकोग्रामा जापोनिकम ट्राइकोग्रामा चिलानिस 150000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़े|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी पद्धति की प्रक्रिया

पौध रोपण के समय-

1. जीवाणु झुलसा से बचने के लिए पौधों की रोपाई छायादार स्थान पर न करें|

2. नर्सरी में पौध उखाड़ने से एक दिन पूर्व स्युडोमोनास का छिड़काव 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से करें|

3. धान की खेती हेतु एक स्थान पर 2 से 3 पौधों की रोपाई करें|

4. लाइन से लाइन तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें|

5. खरपतवारनाशी ब्युटाक्लोर 1.5 किलोग्राम या एनेलोफॉस 0.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रोपाई के 3 से 5 दिन बाद प्रयोग करें|

रोपाई के बाद फसल पकने तक-

1. फेरोमैन ट्रैप 20 प्रति हेक्टेयर, 5 मिलीग्राम ल्योर, 20 x 25 मीटर की दूरी पर लगाएं और ल्योर 30 दिन बाद बदल दें|

2. यदि तना भेदक की संख्या अधिक हो तो ट्राइकोग्रामा चिलानिस 150000 प्रति हेक्टेयर की दर से 3 से 4 बार छोड़ें|

3. जल निकासी का उचित प्रबन्ध होना चाहिये, इससे पर्ण अंगमारी तथा जीवाणु झुलसा नहीं फैलता|

4. ट्राइकोडर्मास्युडोमोनास 10 ग्राम प्रति लिटर + प्रोपेकोनाजोल/कार्बेन्डाजिम 4 ग्राम + 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल 10 दिन के
अंतराल पर लक्षण की शुरुआत होते ही करें|

5. यदि भूरा फुदका दिखे तो इमीडाक्लोरोप्रिड 25 ग्राम अ ई प्रति हेक्टेयर 100 मिलीलीटर कान्फीडोर या टाटामीडा प्रति हेक्टेयर छिड़काव पौधे के निचले हिस्से की ओर करना चाहिये, फिनोप्रिल 50 ग्राम अ ई प्रति हेक्टेयर भी तना भेदक के लिए लाभदायक है|

6. धान की खेती में धान बग के लिये एन एस के ई 5 प्रतिशत का एक छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती कैसे करें

मानक 3- अधिक उत्पादन वाले सुगन्धित धान की खेती हेतु, जैसे-

किस्में- पूसा बासमती 1, सुगन्ध 2, सुगन्ध 3 आदि|

मुख्य रोग- भूरा धब्बा, झोंका, पर्ण छन्द विगलन, पर्ण छन्द अंगमारी, झुलसा, तना छेदक, पत्ती लपेटक और धान का फुदका|

उर्वरक- रोपाई के पूर्व नत्रजन 30 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम, जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, रोपाई के 30 दिनों के बाद- नत्रजन 30 किलोग्राम बाली निकलने के समय-नत्रजन 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें|

नर्सरी लगाने के समय-

1. स्युडोमोनास 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें|

2. तना छेदक के लिए प्रति 100 वर्ग मीटर पर एक फेरोमैन ट्रैप का प्रयोग करें|

3. ट्राइकोग्रामा जापोनिकमा ट्राइकोग्रामा चिलानिस 150000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे एवं उपयोगी पद्धति

पौध रोपण के समय-

1. जीवाणु झुलसा से बचने के लिए पौधों की रोपाई छायादार स्थान पर न करें|

2. नर्सरी में पौध उखाड़ने से एक दिन पुर्व स्यूडोमोनास का छिड़काव 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से करें|

3. धान की खेती हेतु एक स्थान पर 2 से 3 पौधों की रोपाई करें|

4. धान की खेती के लिए लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें|

5. खरपतवारनाशी ब्युटाक्लोर 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या एनेलोफॉस 0.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रोपाई के 3 से 5 दिन बाद प्रयोग करें|

रोपाई के बाद फसल पकने तक-

1. फेरोमैन ट्रैप 20 प्रति हेक्टेयर, 5 मिलीग्राम ल्योर, 20 x 25 मीटर की दूरी पर लगाएं और ल्योर 30 दिन बाद बदल दें|

2. यदि तना भेदक की संख्या अधिक हो तो ट्राइकोग्रामा चिलानिस 150000 प्रति हेक्टेयर की दर से 3 से 4 बार छोड़ें|

3. जल निकासी का उचित प्रबन्ध होना चाहिये, इस से पर्ण अंगमारी और जीवाणु झुलसा नहीं फैलता|

4. ट्राइकोडर्मा + स्यूडोमोनास 10 ग्राम प्रति लीटर + प्रोपेकोनाजोल/ कार्बेन्डाजिम 4 ग्राम + 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का 10 दिन के अंतराल पर लक्षण की शुरुआत होते ही छिड़काव करें|

5. यदि भूरा फुदका दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 25 ग्राम अ ई प्रति हेक्टेयर 100 मिलीलीटर कानफीडोर या टाटामीडा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव पौधे के निचले हिस्से की ओर करना चाहिये, फिनोप्रिल 50 ग्राम अ ई प्रति हेक्टेयर भी तना भेदक के लिए लाभदायक है|

6. धान की खेती में धान बग के लिये एन एस के ई 5 प्रतिशत का एक छिड़काव करें|

7. स्ट्रेप्टोसाइक्लिन + ब्लाइटॉक्स 30 6 ग्राम प्रति लीटर पानी जीवाणु झुलसा के लक्षण की शुरुआत होते ही छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- नीम आधारित जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

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