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Home » Blog » गेहूं की सिंचाई कैसे करें? | गेहूं फसल की सिंचाई कब कब करें?

गेहूं की सिंचाई कैसे करें? | गेहूं फसल की सिंचाई कब कब करें?

November 11, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गेहूं की सिंचाई कैसे करें?

गेहूं की सिंचाई, भारत में गेहूं की फसल शरद ऋतु में उगायी जाती है| जोकि लगभग 130 दिन का फसल चक्र पूरा करती है| असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की फसलावधि मध्य अक्टूबर से मार्च माह के बीच होती है और सिंचित क्षेत्रों में यह अवधि मध्य नवम्बर से मार्च से अप्रैल के बीच होती है| भारत में गेहूं की फसल मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों में होती है|

उत्तर भारत के राज्यों में गेहूं एक सिंचित फसल के रूप में उगाया जाता है, जबकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के ज्यादातर क्षेत्रों में गेहूं वर्षा द्वारा सिंचित फसलों में सम्मिलित है| कुल उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत गेहूँ केवल तीन राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा से ही प्राप्त होता है| देश भर में फसलों की सिंचाई के लिए सतही जल स्रोतों का अभाव होता चला जा रहा है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की फसल के रोग एवं उनकी रोकथाम कैसे करें

जिसके फलस्वरूप कृषि सिंचाई के लिए भूजल ही एक मात्र उपलब्ध संसाधन है| पिछले कुछ दशकों से भूजल के अधिक उपयोग के कारण और पर्याप्त मात्रा में वर्षा न होने के कारण, भूजल के स्तर में निरन्तर गिरावट होती जा रही है| भूजल के स्तर में यह गिरावट गेहूं के सिंचित बुआई क्षेत्र मुख्य तौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में भी दर्ज की गयी है|

ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को अपने भविष्य के बारे में सोचना होगा और पानी की बचत के तरीके खोजना होंगे, जिससे आपकी पैदावार भी बढ़े और पानी की भी बचत हो, इसी संबंध में ये लेख किसान बन्धुओं को समर्पित है, की गेहूं की सिंचाई कैसे करें, जिसे आप गेहूं की फसल से उन्नत पैदावार प्राप्त कर सकें| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी

गेहूं फसल में सिंचाई

विश्वसनीय सिंचाई की दशा में-

1. आमतौर पर बौने गेहूं अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए हल्की भूमि में गेहूं की सिंचाई निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए| इन अवस्थाओं पर जल की कमी का उपज पर भारी कुप्रभाव पड़ता है, परन्तु गेहूं की सिंचाई हल्की करे|

पहली सिंचाई- क्राउन रूट-बुआई के 20 से 25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था)

दूसरी सिंचाई- बुआई के 40 से 45 दिन पर (कल्ले निकलते समय)

तीसरी सिंचाई- बुआई के 60 से 65 दिन पर (दीर्घ सन्धि अथवा गांठे बनते समय)

चौथीं सिचाई- बुआई के 80 से 85 दिन पर (पुष्पावस्था)

पॉचवी सिंचाई- बुआई के 100 से 105 दिन पर (दुग्धावस्था)

छठी सिंचाई- बुआई के 115 से 120 दिन पर (दाना भरते समय)|

यह भी पढ़ें- गेहूं के प्रमुख कीट एवं उनकी रोकथाम

2. दोमट या भारी दोमट भूमि में निम्न चार सिंचाइयाँ करके भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है, परन्तु प्रत्येक सिंचाई कुछ गहरी 8 सेंटीमीटर करें|

पहली सिंचाई- बोने के 20 से 25 दिन बाद

दूसरी सिंचाई- बुआई के 45 से 50 दिन बाद

तीसरी सिंचाई- बुआई के 70 से 80 (आवश्यकतानुसार) दिन बाद

चौथी सिंचाई- बुआई के 95 से 110 दिन बाद|

सीमित गेहूं की सिंचाई साधन की दशा में-

यदि आपके पास तीन गेहूं की सिंचाई की सुविधा ही उपलब्ध हो तो ताजमूल अवस्था और बाली निकलने के पूर्व तथा दुग्धावस्था पर करें|

यदि गेहूं की सिंचाई के लिए दो ही सिंचाइयां उपलब्ध हों तो ताजमूल और पुष्पावस्था पर करें|

यदि गेहूं की सिंचाई एक ही उपलबध हो तो ताजमूल अवस्था पर करें|

यह भी पढ़ें- गेहूं की खरपतवार रोकथाम कैसे करें

गेहूं की सिंचाई में निम्नलिखित तीन बातों पर ध्यान दें-

1. गेहूं बुआई से पहले खेत भली-भाति समतल करे और किसी एक दिशा में हल्का ढाल दें, जिससे जल का पूरे खेत में एक साथ वितरण हो सके|

2. गेहूं की बुआई के बाद खेत को मिट्टी और सिंचाई के साधन के अनुसार आवश्यक माप की क्यारियों या पट्टियों में बांट दे, इससे जल के एक साथ वितरण में सहायता मिलती है|

3. हल्की भूमि में विश्वसनीय सिंचाई सुविधा होने पर सिंचाई हल्की लगभग 6 सेंटीमीटर करें और दोमट एवं भारी भूमि मे और सिंचाई साधन की दशा में सिंचाई कुछ गहरी यानि प्रति सिंचाई लगभग 8 सेंटीमीटर करें|

ध्यान दें- ऊसर भूमि में पहली सिंचाई बुआई के 28 से 30 दिन बाद एवं शेष सिंचाइयां हल्की और जल्दी-जल्दी करनी चाहिये, जिससे मिट्टी सूखने न पाये|

यह भी पढ़ें- गेहूं की श्री विधि से खेती कैसे करें

सिंचित तथा विलम्ब से बुआई की दशा में-

गेहूं की बुआई अगहनी धान तोरिया, आलू, गन्ना की पेड़ी और शीघ्र पकने वाली अरहर के बाद की जाती है, किन्तु कृषि अनुसंधान की विकसित निम्न तकनीक द्वारा इन क्षेत्रों की भी उपज बहुत कुछ बढ़ाई जा सकती है|

1. पिछेती बुआई के लिए क्षेत्रीय अनकूलतानुसार किस्मों का चयन करें, जिनका वर्णन पहले किया जा चुका है|

2. विलम्ब की दशा में बुआई जीरो टिलेज मशीन से करें|

3. बीज दर 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और संतुलित मात्र में उर्वरक (80:40:30) अवश्य प्रयोग करें|

4. बीज को रात भर पानी में भिगोकर 24 घन्टे रखकर जमाव करके उचित मिट्टी की नमी पर बोयें|

5. पिछैती गेहूं में सामान्य की अपेक्षा जल्दी-जल्दी गेहूं की सिंचाई की आवश्यकता होती है, इसलिए पहली सिंचाई जमाव के 15 से 20 दिन बाद करके टापड्रेसिंग करें, बाद की सिंचाई 15 से 20 दिन के अन्तराल पर करें|

6. बाली निकलने से दुग्धावस्था तक फसल को जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहे, इस अवधि में जल की कमी का उपज पर विशेष कुप्रभाव पड़ता है|

7. सिंचाई हल्की करें, अन्य शस्य क्रियायें सिंचित गेहूं की भॉति अपनायें|

यह भी पढ़ें- जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती कैसे करें

असिंचित या बारानी दशा में गेहूं की खेती-

भारत में बहुत कम असिंचित क्षेत्र में गेहूं की खेती होती है, जिसकी औसत उपज बहुत कम है| इसी क्षेत्र की औसत उपज अपने देश की औसत उपज को कम कर देती है| परीक्षणों से ज्ञात हुआ है, कि बारानी दशा में गेहूं की अपेक्षा राई जौ और चना की खेती अधिक लाभकारी है|

ऐसी दशा में गेहूं की बुआई अक्टूबर माह में उचित नमी पर करें| लेकिन यदि अक्टूबर से नवम्बर में पर्याप्त वर्षा हो गयी हो तो गेहूं की बारानी खेती निम्नवत् विशेष तकनीक अपनाकर की जा सकती है|

खेत की तैयारी और नमी का संरक्षण-

मानसून की अन्तिम वर्षा का यथोचित जल संरक्षण करके खेत की तैयारी करें असिंचित क्षेत्रों में अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं है, अन्यथा नमी उड़ने का भय रहता है, ऐसे क्षेत्रों में सायंकाल जुताई करके दूसरे दिन सुबह पाटा लगाने से नमी का सचुचित संरक्षण किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की पैरा विधि से खेती कैसे करें

समय से बुआई-

संस्तुत किस्मों की बुआई अक्टूबर के द्वितीय पक्ष से नवम्बर के प्रथम पक्ष तक भूमि की उपयुक्त नमी पर करें|

बीज दर एवं पंक्तियों की दूरी-

बीज का प्रयोग 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करे एवं बीज को कूड़ों में 23 सेंटीमीटर की दूरी पर बोयें जिससे बीज के ऊपर 4 से 5 सेंटीमीटर से अधिक भूमि न हो|

उर्वरक की मात्रा और प्रयोग विधि-

बारानी गेहूं की खेती के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें| उर्वरक की यह सम्पूर्ण मात्राा बुआई के समय कूड़ों में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे नाई या चोगें या फर्टीड्रिल द्वारा डालना चाहिए| बाली निकलने से पूर्व वर्षा हो जाने पर 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का प्रयोग लाभप्रद होगा, यदि वर्षा न हो तो 2 प्रतिशत यूरिया का पर्णीय छिड़काव किया जाये|

किसान भाइयों हम कुछ आगे पहुचं गये लेकिन यह भी गेहूं की सिंचाई का ही हिस्सा है, किसान बन्धुओं सिंचाई के बिना या वर्षा के बिना खाद व उर्वरक का कोई महत्व नही है| इसलिए यदि आप वर्षा या बरानी आधारित खेती कर रहें है, तो गेहूं की सिंचाई बिना खेती में बिना किसी पानी के स्रोत खाद और उर्वरक का प्रयोग न करें|

यह भी पढ़ें- गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

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