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Home » ब्लॉग » गेहूं की श्री विधि से खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

गेहूं की श्री विधि से खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गेहूं की श्री विधि से खेती कैसे करें

गेहूं की श्री विधि से खेती लघु और सीमांत किसानों के लिए विशेष लाभदायी साबित हुई है, क्योंकि वे बहुत ही कम जमीन एवं सीमित संसाधनों के साथ खेती करते हैं तथा उन्हें अधिक बीज और खाद का प्रयोग किये बिना अधिक उपज की आवश्यकता होती है| ऐसे में गेहूं की श्री विधि से खेती अपनाकर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ आमदनी में भी बढ़ोतरी की जा सकती है| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी

गेहूं की श्री विधि से खेती क्या है?

यह गेहूं की खेती करने का एक तरीका है, जिसमें धान की श्री विधि के सिद्धांतों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त कि जाती है, जैसे-

1. कम बीज दर, यानि सिर्फ 10 किलोग्राम प्रति एकड़

2. बीज शोधन और बीज उपचार

3. पौधों के बीच अधिक दूरी 8 ईच कतार से कतार और 8 इंच पौधा से पौधा

4. 2 से 3 बार खरपतवार की निकासी और वीडर से कोड़ाई

5. फसल की देखभाल सामान्य (परम्परागत) गेहूं की फसल की ही तरह की जाती है|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती कैसे करें

गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए बीज चुनाव और बीज उपचार

बीज का चुनाव- गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए किसी खास बीज की जरूरत नहीं है, आपके क्षेत्र के लिए जो उन्नत बीज अनुशंसित है, उसी का प्रयोग करें| अगर आपका बीज पुराना है, तो नया बीज उपयोग में लें| बीज की मात्रा 10 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है|

बीज का उपचार- गेहूं की श्री विधि से खेती हेतु 10 किलो गेहूं के बीज के उपचार के लिए निम्नलिखित सामान की जरूरत होगी, जैसे-

1. 10 किलो उन्नत किस्म के गेहूं का बीज

2. गर्म गुनगुना पानी 20 लीटर

3. केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) 5 किलोग्राम

4. गुड़ 4 किलोग्राम

5. गौ-मूत्र 4 लीटर

6. बाविस्टिन (कार्बन्डाजिम) फुफूदीनाशक 20 ग्राम

गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए इस प्रकार बीज उपचार करके बीज में होने वाले रोगों से फसल को बचाया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें

श्री विधि से खेती के लिए बीज उपचार की विधि-

1. अपने 10 किलोग्राम बीज में से मिट्टी, कंकड़ और खराब बीजों को अलग छाँट लें|

2. 20 लीटर पानी एक बर्तन में गर्म करें (60 डिग्री सेल्सियस यानी गुनगुना होने तक)|

3. छाँटे हुए स्वच्छ बीजों को इस गर्म पानी में डाल दें|

4. पानी के ऊपर तैर रहे बीजों को निकाल दे और बीज के लिए प्रयोग में न लाएं|

5. इस पानी में 5 किलोग्राम केचुआ खाद, 4 किलोग्राम गुड़ और 4 लीटर गौमूत्र मिलाकर 8 घंटे के लिए छोड़ दें|

6. अब 8 घंटे के बाद इस मिश्रण को एक कपड़े से छान लें जिससे बीज और अन्य मिश्रण घोल से अलग हो जाए, घोल के पानी को फेंक दें|

7. बीज और अन्य मिश्रण में बाविस्टिन (कार्बन्डाजिम) फफूदीनाशक 20 ग्राम मिलाकर 12 घंटे के लिए अंकुरित होने के लिए गीले बोरे में बांधकर छोड़ दें| इसके बाद अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा|

इस प्रकार का बीज उपचार बीज के बढवार की शक्ति को बढ़ाता है तथा वे तेजी से बढवार लेते हैं, इसे प्राइमिंग भी कहते है|

यह भी पढ़ें- जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती कैसे करें

गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए खेत की तैयारी

गेहूं की श्री विधि के लिए खेत की तैयारी सामान्य गेहूं की खेती की तरह ही करते हैं, जैसे-

1. गोबर खाद 20 क्विंटल या केंचुआ खाद 4 क्विंटल प्रति एकड़ में प्रयोग करना चाहिए| कम्पोस्ट खाद की उचित मात्रा के बिना सिर्फ रासायनिक खाद का प्रयोग करते रहने से खेत की उपज क्षमता घटती जाती है|

2. अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं है तो बुआई के पहले एक बार पलेवा (जुताई से पहले सिंचाई) करना चाहिए|

3. अंतिम जुताई के पहले 27 किलोग्राम डी ए पी एवं 13.5 किलोग्राम पोटाश खाद प्रति एकड़ खेत में छींटकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला दें|

गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए बुआई

1. बुआई के समय खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना चाहिए, क्योंकि अंकुरित बीज लगाए जा रहे हैं, अगर पर्याप्त नमी नहीं होगी तो अंकुर सूख जायेंगे|

2. बीजों को कतार में 8 इंच की दूरी में लगाया जाता है|

3. इसके लिए एक पतले कुदाली से 8 ईंच की दूरी पर 1 से 1.5 ईंच गहरी नाली बनाते हैं, और इसमें 8 ईंच की दूरी पर 2 बीज डालते हैं और उसके बाद मिट्टी से ढक देते हैं, यदि एक सप्ताह के बाद जिस जगह बीज नहीं अंकुरते हैं वहाँ नया बीज लगा देते हैं|

यह भी पढ़ें- गेहूं की पैरा विधि से खेती कैसे करें

गेहूं की श्री विधि से खेती की देखभाल

1. गेहूं की श्री विधि से बुआई के 15 दिनों के बाद एक सिंचाई देना जरूरी है, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नई जड़े आनी शुरु होती है, यदि जमीन में नमी न हो, तो पौधा नई जड़े नहीं बनाएगा एवं बढ़वार रुक जाएगी|

2. सिंचाई के बाद 40 किलो यूरिया और 4 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट को मिलाकर बुरकाव कर दें|

3. सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें, साथ ही खरपतवार भी निकाल दें| यह करना अति आवश्यक है, नहीं तो सिंचाई और खाद देने के बाद खेत में खरपतवार उग जायेंगे|

इस प्रकार की कोड़ाई करने से गेहूं के पौधे की जड़ों को लंबा होने में मदद मिलती है और वे मिट्टी से ज्यादा पोषण और नमी प्राप्त करते है|

फसल की देखभाल बुआई के 25 दिनों के बाद-

1. बुआई के 25 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नए कल्ले तेजी से आने शुरु होते हैं एवं नए कल्ले बनाने के लिए पौधों को अधिक नमी और पोषण की जरुरत होती है|

2. सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें, साथ ही साथ खरपतवार भी निकाल दें, यह करना आवश्यक हैं, नही तो सिंचाई देने के बाद खेत में खरपतवार उगना शुरू हो जायेंगे|

 यह भी पढ़ें- गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

फसल की देखभाल बुआई के 40 दिनों के बाद-

1. बुआई के 35 से 40 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए, इसके बाद से पौधे तेजी से बड़े होते हैं, साथ ही नए कल्ले भी आते रहते हैं| इसके लिए पौधों को अधिक नमी एवं पोषण की जरूरत होगी|

2. इसलिए सिंचाई के तुरंत बाद 15 किलोग्राम यूरिया और 13 किलोग्राम पोटाश खाद प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से बुरकाव करें|

3. सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें और खरपतवार को निकाल दें, इससे मिट्टी ढीली होगी, जड़ों को हवा मिलेगी एवं पौधे तेजी से बढ़ेंगे|

फसल की देखभाल बुआई के 60 दिनों के बाद-

गेहूं की फसल में अगली सिंचाई 60वें, 80वें और 100वें दिनों पर की जाती है| यह समय मिट्टी के प्रकार और मौसम पर निर्भर करता है| ध्यान देने की बात यह है, कि फूल आने के समय और दानों में दूध भरने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो उपज में काफी कमी होती है|

फूल आना और दानों में दूध भरने का समय एक महत्वपूर्ण अवस्था है, इस समय पानी की कमी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए|

इस प्रकार उपरोक्त विधि से किसान भाई गेहूं की श्री विधि से सफलतापुर्वक खेती कर सकते है, और इस गेहूं की श्री विधि खेती से गेहूं की औसत पैदावार 19 क्विंटल प्रति एकड़ पाई गई है|

यह भी पढ़ें- टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है, जानिए लाभ, देखभाल, प्रबंधन

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