गेहूं भारत की प्रमुख खाद्य फसल है| भारत जैसे विशाल देश में खाद्य समस्या को सुलझाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है| गेहूं के प्रमुख कीटों से नुकसान कारण इसकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है| परन्तु कभी-कभी फसल पूरी तरह से चौपट हो जाती है| इसलिए अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्म के बीज, खाद और सिंचाई के साथ हानिकारक कीटों का उचित समय पर नियंत्रण भी अति आवश्यक हैं|
प्रस्तुत लेख में प्रमुख कीटों के लक्षण और उनकी रोकथाम के उपाय दिए जा रहे हैं, जिनकी सहायता से किसान भाई स्वयं समय से गेहूं के प्रमुख कीटों का प्रबन्ध कर अधिकतम पैदावार प्राप्त कर सकते है| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी
गेहूं के कीट की रोकथाम
तेला कीट- यह कीट गेहूं, जौ, जई की फसलों को प्रभावित करता है| यह कीट हरे रंग का जू की तरह होता है| जोकि ठण्ड एवं बादलों वाले दिनों में बहुत अधिक संख्या में कोमल पत्तों या बालियों पर प्रकट होते हैं, और गेहूं के दाने पकने के समय अपनी चर्म संख्या में पहुंच जाते हैं| इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पौधों के पत्तों से रस चूसते रहते हैं, विशेषकर बालियों को प्रभावित करते हैं| बादलों एवं ठण्ड वाले मौसम में तेला कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है| जो फसल अधिक खाद, अच्छी तरह से सिंचित और मुलायम हो वहाँ लम्बे समय तक इस कीट का प्रकोप बना रहता है|
रोकथाम- अधिक प्रकोप होने पर फसल में बालियाँ बनने की अवस्था में ही या 5 तेला कीट प्रति बाली दिखाई देने पर 1.5 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30 ई सी या 1.5 मिलीलीटर मोनोकोटोफॉस 36 एस एल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| क्योंकि तेला कीट सबसे पहले फसल के किनारे वाली पंक्तियों में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रभावित पंक्तियों में ही छिड़काव करें ताकि कीट का शेष फसल में फैलाव रोका जा सके|
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सेना कीट- नवजात सुण्डियाँ पौधों के साथ बारीक धागे की सहायता से लटकी रहती हैं और इसी धागे की मदद से एक पौधे से दूसरे पौधे तक जाती हैं| शुरू में ये सुण्डियाँ कोमल पत्तियों पर पलती हैं और बड़ी सुण्डियाँ पुरानी पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं| फसल में सुण्डियाँ उनकी वीठ से पहचानी जा सकती है| कभी-कभी सुण्डियाँ बालियों एवं दानों को भी खा जाती हैं|
रोकथाम- सुण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें, कीटनाशक जैसे डाइक्लोटवॉस 76 ई सी 2 मिलीलीटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यु पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं|
टिड्डे- इस कीट के प्रौढ़ और शिशु अंकुरित फसल को खाकर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं| मैदानी व निचले पर्वतीय क्षेत्रों में कई बार गेहूं की फसल में इससे काफी नुकसान देखा गया है| यह गेहूं के प्रमुख कीटों में से एक है|
रोकथाम- कीट प्रकोप होने पर फसल में मिथाईल पैराथियॉन 2 प्रतिशत डी पी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें| इसके अतिरिक्त 1 मिलीलीटर मिथाईल पैटाथियॉन 50 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव भी कर सकते हैं| खेतों की मेढ़ों पर उग रही घास पर भी इन कीटनाशकों का प्रयोग करें|
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गेहूं का बग- इन कीटों का प्रकोप आमतौर पर उत्तर पश्चिमी राज्यों में देखा गया है| जब फसल में दानें बनाना शुरू होते हैं, तब ये कीट नुकसान पहुंचाते हैं| जिसके कारण दाने खोखले रह जाते हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|
रोकथाम- कीट प्रकोप अधिक होने पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैन्टाथियॉन 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
फली छेदक- इस कीट की सुण्डियाँ पौधों की पत्तियों और बन रहे दानों को हानि पहुँचाती हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|
रोकथाम- सुण्डियों का प्रकोप दिखाई देने पर फसल पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैराथियान 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
मकड़ी, मोयला- ये भी गेहूं का प्रमुख कीट है, मकड़ी का प्रकोप मध्य दिसम्बर से शुरू होता है|
रोकथाम- पहली बार लाल मकड़ी दिखाई देने पर मिथाइल डिमेटॉन 25 ई सी या डायमिथोएट 30 ई सी एक लीटर या मेलाथियॉन 50 ई सी एक से डेढ लीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी 0.8 से 1.0 लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद किसी एक कीटनाशी के छिड़काव को दोहरायें|
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फ्ली बीटल, फड़का और क्रिकेट्स- गेहूं के प्रमुख इन कीटों पर नियन्त्रण इस प्रकार कर सकते है|
रोकथाम- कीट ग्रस्त खेत में मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या कार्बारिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम के समय भुरकाव करें या क्यूनॉलफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
तना छेदक- यह भी गेहूं के प्रमुख कीटों में शामिल कीट है, यह गेहूं के तने को खाकर नुकसान पहुचता है|
रोकथाम- फसल की फुटान शुरू होते ही क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तना छेदक की रोकथाम की जा सकती है|
दीमक- ये कीट फसल को अंकुरण के समय से ही हानि पहुंचाते हैं| ये कीट पौधों की जड़ों को खाते रहते हैं, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं|
रोकथाम- कच्चे गोबर की खाद का प्रयोग न करें, पिछली फसल के अवशेषों को एकत्रित करके नष्ट कर दें| बिजाई के समय खेत में 2 लीटर क्लोरपाइटीफॉस 20 ई सी 25 किलोग्राम सूखी रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं| प्रभावित क्षेत्रों में फसल की बिजाई क्लोरपाइटीफॉस 20 ई सी (4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज) से बीज उपचार करने के बाद ही करें|
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