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Home » Blog » मृदा स्वास्थ्य कार्ड: जाने महत्व, आवश्यकता, लाभ और अन्य प्रक्रिया

मृदा स्वास्थ्य कार्ड: जाने महत्व, आवश्यकता, लाभ और अन्य प्रक्रिया

December 8, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मृदा स्वास्थ्य कार्ड

मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil health card), हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मुख्य भूमिका है| पीछे के अनुसार देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 से 15 प्रतिशत कृषि एवं सम्बन्धित गतिविधियों से ही प्राप्त होता है| विश्व में देश की दो प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं और धान का उत्पादन में दूसरा स्थान है|

जबकि देश की कृषि योग्य भूमि लगातार कम होने के साथ-साथ इसकी उर्वराशक्ति भी कम होती जा रही है, और देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना एवं कम लागत में अधिकतम उत्पादन कर किसानों की आमदनी बढ़ाकर देश को प्रगतिशील बनाना कृषि वैज्ञानिकों का लक्ष्य है|

यह अतुलनीय सत्य है, कि खेती सीधे तौर पर मिट्टी से जुड़ी है तथा मिट्टी पर ही किसानों की उन्नति निर्भर करती है, कहते हैं ‘स्वस्थ धरा, खेत हरा’| देश के कृषि विशेषज्ञ समूह ने यह पाया कि किसानों में जानकारी के अभाव के कारण खेती में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रसायनों का असंतुलित मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है|

इससे मिट्टी की सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है एवं किसानों के फसल उत्पादन तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है| इसी सोच को लेकर ही भारत सरकार ने किसानों के कल्याण एवं फसल की उच्च उत्पादकता तथा गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित करते हुए फरवरी 2015 में ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ (सॉयल हेल्थ कार्ड) योजना का शुभारम्भ किया| यदि आप मिट्टी परीक्षण की जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- मिट्टी परीक्षण क्यों और कैसे करें

यह भी पढ़ें- क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में पोषक तत्वों का प्रबंधन भरपूर पैदावार के लिए कैसे करें

मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है?

1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एस एच सी) एक प्रिंटेड रिपोर्ट है, जिससे किसान अपने खेत की मृदा के स्वास्थ्य का आंकलन कर सकता है|

2. प्रयोगशाला में मिट्टी की जाँच के पश्चात मृदा स्वास्थ्य कार्ड में 12 घटकों का उल्लेख किया जाता है, जैसे एन पी के (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) मुख्य पोषक तत्व; सल्फर (गौण पोषक तत्व), जिंक, आयरन, मैंगनीज, कॉपर, बोरान (सूक्ष्म तत्व) तथा पीएच मान, वैद्युत चालकता और कार्बन के संबंध में मृदा की स्थिति निहित होती है|

3. मृदा की गुणवत्ता के अतिरिक्त, पानी की गुणवत्ता तथा अन्य जैविक गुणों का भी किसान पूर्ण मूल्यांकन कर सकते हैं| यदि मिट्टी लवणग्रस्त है, तो इसमें सुधारक उपाय भी शामिल होंगे, जो किसान को बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए अपनाने चाहिए|

यह भी पढ़ें- लवणीय एवं क्षारीय जल का खेती में सुरक्षित उपयोग कैसे करें

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की आवश्यकता

आमतौर पर देखा गया है, कि अधिकतर किसान लगातार अपने खेत में एक ही फसल उगाने के बाद खाद डालकर सिंचाई करते हैं, लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता की जांच में लापरवाही करते हैं| बार-बार एक ही फसल लेने से मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आ जाती है| ऐसे में अगर किसानों को मिट्टी की सही जानकारी समय रहते पता चल जाए तो वह फसल की अच्छी पैदावार ले सकता है|

यही वजह है, कि भारत सरकार द्वारा फरवरी 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरूआत की गई| इस कार्यक्रम के तहत, सरकार ने मृदा की गुणवत्ता का अध्ययन करके किसानों को अच्छी फसल पाने में मदद करने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने की योजना बनाई थी|

मृदा स्वास्थ्य कार्ड का मुख्य उद्देश्य

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का मुख्य उद्देश्य मिट्टी परीक्षण के आधार पर मिट्टी के संतुलन तथा उसकी उर्वरकता को बढ़ावा देना है, जिससे किसानों को कम कीमत में अधिक पैदावार मिल सके| मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत अगले तीन साल में 14 करोड़ से अधिक किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना है| इस योजना के अंतर्गत किसानों को एक मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिया जाता है, जिसमें खेत की मिट्टी की गुणवत्ता एव उपजाऊ शक्ति के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है|

यह भी पढ़ें- धान की पराली जलाने से होने वाले नुकसान एवं वैकल्पिक उपयोग

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की प्रक्रिया

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना निम्नलिखित प्रक्रिया से होकर गुजरती है, जैसे-

1. सबसे पहले किसानों के खेत से मिट्टी के नमूनों को इकट्ठा किया जाता है|

2. तत्पश्चात् इन नमूनों का प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाता है, जहां विशेषज्ञों की मदद से इनकी जाँच की जाती है|

3. मृदा स्वास्थ्य कार्ड में विशेषज्ञों द्वारा जांच के परिणामों का विश्लेषण किया जाता है|

4. विश्लेषण करने के बाद मिट्टी नमूने की ताकत एवं कमजोरी की सूची तैयार की जाती है|

5. मृदा में अगर कुछ कमी होती है, तो विशेषज्ञ की मदद से सुझावों की एक सूची तैयार की जाती है|

6. इसके बाद किसानों के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड फार्मेट में पूरी जानकारी डाल दी जाती है तथा यह कार्ड किसानों को बाँट दिए जाते हैं|

7. इन्हीं कार्ड को सरकार की वेबसाईट पर डालकर किसानों के आधार कार्ड से जोड़ दिया जाता है|

यह भी पढ़ें- गोमूत्र का कृषि में महत्व, जानिए, कीटनाशक लाभ, उपयोग एवं विधि

मृदा स्वास्थ्य कार्ड के लाभ

1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत प्रयोगशालाओं में 14.5 करोड़ किसानों के खेतों की मिट्टी की जाँच की जाती है|

2. किसानों के खेत की लवणता, क्षारीयता एवं अम्लीयता की पूरी जाँच की जाती है, जिससे अगर मिट्टी में बदलाव हो रहे हैं तो किसानों को सूचना समय रहते मिल सके|

3. मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का स्तर मिट्टी के स्वास्थ्य को इंगित करता है|

4. मिट्टी की गुणवत्ता जाँच के बाद किसान निर्णय लेने में सक्षम होंगे कि वह कौन सी फसल उगाए और उसमें कितनी मात्रा में उर्वरक डालने से अच्छा उत्पादन एवं लाभ कमा सकते हैं|

5. इस योजना द्वारा मिट्टी की कमी की जानकारी भी किसानों को दी जाएगी और वैज्ञानिक सुझावों के साथ इस कमी को दूर करके भरपूर फसल ले सकेगें|

6. प्रत्येक तीन वर्ष में एक खेत के लिए एक मृदा स्वास्थ्य कार्ड मुहैया करवाया जाएगा|

यह भी पढ़ें- नीम का कृषि में महत्व, जानिए उर्वरक, कीटनाशी एवं रोगनाशी में उपयोग

मृदा के गिरते स्वास्थ्य के कारण

कृषि योग्य भूमि के गिरते स्वास्थ्य की समस्या से भारत ही नहीं पूरा विश्व जूझ रहा है| इसी श्रृंखला में संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा वर्ष 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य वर्ष घोषित किया गया था, जिसमें मृदा के गिरते स्वास्थ्य पर सभी देशों में जन-जागृति और मृदा की उर्वरता तथा उत्पादन क्षमता बढ़ाने के कारगर कदम उठाने का संकल्प लिया गया है| मृदा स्वास्थ्य में कमी के आमतौर पर निम्नलिखित कारण पाये गये हैं, जैसे-

1. रासायनिक उर्वरकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे भूमि में पोषक तत्वों का न केवल संतुलन बिगड़ा है, अपितु पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंच रहा है|

2. मृदा में लगातार खेती होने और फसलों की आवश्यकतानुसार खाद एवं उर्वरकों की संस्तुतिया सिफारिशों के अनुसार प्रयोग न किया जाना|

3. जैविक खाद के अभाव में मृदा में जैविक कार्बन का लगातार घटता स्तर|

4. उर्वरकों का उचित समय और विधि से प्रयोग न करने से उर्वरक उपयोग दक्षता का कम होना|

5. वर्षा एवं वायु से मृदा क्षरण के कारण पोषक तत्वों का धीरे-धीरे हानि होना|

6. सघन खेती के प्रचलन से खेतों में एक साथ कई पोषक तत्वों की कमी होना|

7. मृदा में गौण और सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग न होना|

यह भी पढ़ें- उत्तम फसलोत्पादान के मूल मंत्र, जानिए कृषि के आधुनिक तरीके

मृदा का गिरता पीएच मान

मृदा स्वास्थ्य कार्ड में अंकित पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता को दर्शाता है| यह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण तथा पौधों के पोषक तत्वों की उपलब्धता भूमि के पीएच मान पर निर्भर करती है| इसके द्वारा भूमि में हाड्रोजन की क्रियाशीलता का परीक्षण किया जाता है|

1. यदि मृदा का पीएचमान 6.5 से कम हो तो मृदा अम्लीय होती है| अगर पीएच मान 6.5 से 8.2 के मध्य है तो भूमि सामान्य प्रकृति की मानी जाती है यानि की भूमि में अधिकांश पोषक तत्वों की उपलब्धता रहती है| अगर पीएच मान 6.5 से कम या 8.2 से अधिक है, तो पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता कम या ज्यादा आंकी जाती है, जिसका फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

2. मृदा का पीएच मान 8.2 से अधिक होने पर क्षारीयता की समस्या, कृषि उत्पादन को प्रभावित करती है| ऐसे खेत में परीक्षण आधारित जिप्सम डालने की सिफारिश की जाती है| मृदा जीर्णोद्धार के अंतर्गत गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, जिप्सम उपयोग, जीवाणु खाद से बीजोपचार, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग आदि पर ध्यान देना होगा|

3. यदि मृदा समस्याग्रस्त है, तो इसके आधार पर भूमि प्रबंध व सुधार की सिफारिश की जाती है|

यह भी पढ़ें- सुरक्षित अन्न भण्डारण कैसे करें, जानिए समस्या, उपाय एवं प्रबंधन

मृदा स्वास्थ्य के लिए क्या करें?

1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड की जांच के आधार पर हमेशा उचित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें|

2. मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बरकरार रखने के लिए जैविक खाद का उपयोग करें|

3. उर्वरकों का पूर्ण लाभ पाने के लिए उर्वरक को छिड़कने की बजाय जड़ों के पास डालें|

4. फास्फेटिक उर्वरकों का विवेकपूर्ण तथा प्रभावी प्रयोग सुनिश्चित करें ताकि जड़ों या तनों का समुचित विकास हो तथा फसल समय पर पके, विशेष रुप से फलीदार फसलें, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करती है|

5. सहभागी जैविक गारन्टी व्यवस्था (पी जी एस इंण्डिया) प्रमाणीकरण अपनाने के इच्छुक किसान अपने आस-पास के गांव में कम से कम पांच किसानों का एक समूह बनाकर इसका पंजीकरण निकटतम जैविक खेती के क्षेत्रीय केन्द्र में करायें|

क्या पायें- विभिन्न प्रकार की मिट्टी सुधार कार्यक्रम के तहत केंद्र और राज्य सरकारों से सहायता या अनुदान इसके लिए अपने जिला कृषि अधिकारी या जिला बागवानी अधिकारी या परियोजना निर्देशक से संपर्क करें|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में बेमौसमी सब्जियों की खेती

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