• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post

पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व और उनकी कमी के लक्षण

March 31, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

पौधों की उचित बढ़वार और जीवन-चक्र सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए मुख्य तौर पर 16 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिसमें से कार्बन, आक्सीजन व हाइड्रोजन वायु तथा पानी से, शेष 13 तत्व भूमि से प्राप्त करते हैं| पोषक तत्वों को पौधों के लिये आवश्यक मात्रा के अनुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है, जैसे-

पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व

मुख्य पोषक तत्व- मुख्य पोषक तत्व वे पोषक तत्व है, जिसकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, जैसे-

आधारभूत पोषक तत्व- कार्बन, आक्सीजन और हाइड्रोजन है|

प्राथमिक पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश है|

गौण पोषक तत्व- गौण (द्वितीयक) पोषक तत्व वे पोषक तत्व है, जिसकी पौधों को कम मात्रा में आवश्यकता होती है, जैसे- कैल्शियम, मैग्नीशियम और गन्धक है|

सूक्ष्म पोषक तत्व- सूक्ष्म पोषक तत्व वे पोषक तत्व है, जिनकी पौधों को बहुत ही कम मात्रा में आवश्यकता होती है, जैसे- लोहा, जिंक, कापर, मैंगनीज, मालिब्डेनम, बोरान और क्लोरीन है|

यह भी पढ़ें- उर्वरकों एवं पोषक तत्वों का कृषि में महत्व, जानिए इनके कार्य, लक्षण और प्रबंधन

पौधों के लिए पोषक तत्वों की कमी के कारण 

भूमि में उपस्थित तत्वों की मात्रा में से कुछ मात्रा भूमि कटाव, भूमि से रिसाव, भूमि से बहाव, भूमि से गैस के रूप में उड़ने, खरपतवारों द्वारा उपयोग कर लिये जाने से और कुछ मात्रा उगाई जाने वाली फसल द्वारा ग्रहण कर लेने से कम होती है| उपरोक्त कारणों से होने वाली कमी को भूमि में पूर्ति न की जाये तो उसकी उपजाऊ शक्ति कम होती जाती है|

पौधों में प्राथमिक पोषक तत्वों की कमी के लक्षण

प्राथमिक पोषक तत्वों में नाइट्रोजन की कमी देश की सभी प्रकार की भूमियों में पाई जाती है| फास्फोरस तथा पोटाश भूमि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, परन्तु फसलों के लगातार उगाने व पोषक तत्व प्रबन्धन के अभाव में ये तत्व भी अधिकांश तौर पर भूमियों में कम हो गया है, जैसे-

नाइट्रोजन की कमी के लक्षण-

1. पौधों की बढ़वार रूक जाती है और तना पतला तथा छोटा हो जाता है|

2. पत्तियां पीली पड़ने लगती है, यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर पड़ता है और नई पत्तियां बाद में पीली पड़ती है|

3. पौधों का विकास कम या होता ही नही है|

4. फूल कम या बिल्कुल नहीं लगते हैं|

5. फूल, फल गिरना प्रारम्भ कर देते हैं|

6. दाने कम बनते हैं|

7. नाइट्रोजन की कमी से जड़ें, गुच्छेदार लाल बादामी रंग की हो जाती है|

नाइट्रोजन की अधिकता का प्रभाव

जिस प्रकार नाइट्रोजन की कमी नुकसानदायक है, उसी प्रकार नाइट्रोजन की अधिकता भी पौधों के लिए हानिकारक है, जैसे-

1. अधिक बढ़वार से पौधे गिर जाते हैं|

2. पौधे कोमल होने से कीट एवं रोगों का प्रकोप अधिक होता है|

3. पौधों की सूखा और पाला सहन करने की क्षमता कम होती है|

4. पौधे में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है और कार्बोहाइड्रेट्स तथा खनिज तत्वों की मात्रा कम हो जाती है|

5. फसल देर से पकती है और उसमें दाने की उपज कम तथा भूसे की उपज बढ़ जाती है|

यह भी पढ़ें- क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में पोषक तत्वों का प्रबंधन भरपूर पैदावार के लिए कैसे करें

फास्फोरस की कमी के लक्षण-

1. पौधों की वृद्धि कम होती है|

2. जड़ों का विकास रूक जाता है|

3. टिलरिंग कम होती है|

4. पत्तियों का रंग गहरा हरा हो जाता है, कुछ समय बाद पुरानी पत्तियाँ पीली पड़कर गिर जाती हैं|

5. पुरानी पत्तियाँ सिरों की तरफ से सूखना प्रारम्भ करती हैं और पत्तियों का रंग ताँबे जैसा या बैगनी हरा हो जाता है|

6. फल कम लगते हैं, दानों की संख्या घट जाती है|

पोटाश की कमी के लक्षण-

1. पौधों में वृद्धि रूक जाती है या फिर वृद्धि झाड़ीनुमा होती है|

2. पत्तियां छोटी, पतली तथा सिरों की तरफ सूखकर भूरी पड़ जाती है और मुड़ जाती हैं|

3. पुरानी पत्तियां किनारों तथा सिरों पर झुलसी हुई दिखाई पड़ती हैं और किनारे से सूखना प्रारम्भ करती हैं|

4. जड़ों की वृद्धि रूक जाती है एवं पतली व भूरे रंग की हो जाती हैं|

5. कल्ले बहुत अधिक निकलते हैं|

6. तने कमजोर हो जाते हैं|

7. दानों का आकार छोटा हो जाता है|

8. पौधों पर रोग लगने की सम्भावना अधिक हो जाती है|

9. आलू तथा सरसों में पत्तियां झुलस जाती है और पटल ऊपर को उठ जाता है|

यह भी पढ़ें- समेकित पोषक तत्व (आई.एन.एम.) प्रबंधन कैसे करें

पौधों के लिए गौण तत्वों की कमी के लक्षण

वर्तमान में किसान खेती की उन्नत विधियों के साथ-साथ मुख्य रासायनिक उर्वरकों जैसे- नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश के प्रयोग की तरफ ध्यान देता है, परन्तु गौण और सूक्ष्म तत्वों के बारे में नहीं सोचता है| सघन कृषि प्रणाली व पोषक तत्व प्रबंधन के अभाव में इन तत्वों की जमीन में निरन्तर कमी होती जा रही है, जैसे-

गंधक की कमी के लक्षण-

1. नाइट्रोजन की कमी की तरह पत्तियाँ पीली हो जाती है, परन्तु नाइट्रोजन की कमी के लक्षण पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जबकि गंधक की कमी के लक्षण पहले नई पत्तियों पर दिखाई पड़ते है तथा फिर पूरा पौधा पीला हो जाता है|

2. पीला होने के बाद पत्तियों पर हल्का लाल रंग आता है|

3. नाइट्रोजन देने से भी पत्तियाँ हरी नहीं होती हैं|

4. तने की बढ़वार रूक जाती है|

5. फसलों के पकने की अवधि बढ़ जाती है|

6. तने की बढ़वार रूक जाती है एवं वे छोटे व पतले हो जाते हैं|

7. दलहनी फसलों में गंधक की कमी से गांठे कम बनती हैं|

8. तिलहनी फसलों में तेल की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों ही प्रभावित होती हैं|

9. दोमट, रेतीली व कम जीवाँश वाली भूमियों में आमतौर पर गन्धक की कमी पाई जाती है|

10. ऐसी भूमि जहाँ वर्षों से गन्धकरहित रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा हो, वहाँ भी इस तत्व की कमी हो जाती है|

कैल्शियम की कमी के लक्षण-

1. पौधों की पत्तियों का आकार छोटा और विकृत हो जाता है, किनारे कटे-फटे होते हैं|

2. जड़ों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है|

3. नई कलिकाएँ सूख जाती है|

4. दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रन्थियाँ कम व छोटी बनती हैं|

5. आलू के पौधे झाड़ी की तरह हो जाते हैं|

यह भी पढ़ें- कृषि में सिंचाई जल का प्रबंधन, जानिए योजनाएं एवं घटकों की उपयोगी जानकारी

मैग्नीशियम की कमी के लक्षण-

1. पत्तियों के शिराओं के बीच का भाग पर्णहरित की कमी से पीला दिखाई देता है|

2. पत्तियां आकार में छोटी, कड़ी और किनारों से ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं|

3. आलू के पौधों में कमी से पत्तियाँ जल्दी झड़ने वाली हो जाती हैं|

4. सब्जियों तथा फलों में दाग पड़ने लगते हैं|

पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षण

इस वर्ग के तत्वों की जरूरत फसलों को बहुत कम मात्रा में होती है, परन्तु इनकी कमी से इच्छित पैदावार नहीं मिलती है| कमी के लक्षण इस प्रकार है, जैसे-

जिंक की कमी के लक्षण-

1. शिराओं के बीच का भाग रंगहीन और नई पत्तियों के आकार में कमी हो जाती है| 2. पत्तियां पौधों पर गुच्छे के रूप में दिखाई देती हैं तथा तने की लम्बाई घट जाती है|पौधों में जिंक की कमी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-

1. मक्का के छोटे पौधों में सफेद कली रोग होना|

2. नीबू में लिटिल लीफ या मोटल लीफ (चित्तीदार बहुरंगी पत्ती) होना|

3. आडू में रोजेट होना|

4. धान का खैरा रोग होना, धान की खैरा बीमारी रोपाई के दो से तीन सप्ताह बाद जहां पानी भरा हो लगता है और इस बीमारी के लक्षणों में जैसे-

1. बाहरी पत्ती की सतह का रंग कत्थई होना|

2. पत्ती की नोक का सूखना|

3. जंक की तरह का रंग पत्ती की नोंक से शुरू होकर नीचे की तरफ किनारे-किनारे बढ़ना|

4. जस्तें की कमी के लक्षण 7.8 से 8.2 पी एच मान पर ही परिलक्षित होता है|

यह भी पढ़ें- टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है, जानिए लाभ, देखभाल, प्रबंधन एवं सरकारी अनुदान

लोहा की कमी के लक्षण-

1. पत्तियों के सिरे ऊपर मुड़ जाते हैं और पत्तियों में क्लोरोसिस हो जाता है|

2. कलियाँ शीध्र मुरझाने लगती है|

3. पत्तियों के किनारे तथा नोक अधिक समय तक हरे रहते हैं|

तांबा की कमी के लक्षण-

1. नई पत्तियों के किनारों और नोक पर क्लोरोसिस हो जाता है|

2. नींबू प्रजाति के पौधों में वृद्धि रूक जाती है|

3. फलों पर धब्बे बन जाते हैं|

4. फलों में अम्ल की कमी और फल स्वादहीन हो जाते हैं|

मैग्नीज की कमी के लक्षण-

1. पौधों की बढ़वार रूक जाती है|

2. जई के पौधों में ग्रे स्पेक रोग का प्रकोप बढ़ जाता है|

3. नई पत्तियों का रंग फीका होकर उनमें धब्बे पड़ने लगते हैं|

4. पत्तियों की शिराओं के बीच में क्लोरोसिस हो जाता है|

बोरान की कमी के लक्षण-

1. कली का रंग हल्का हरा हो जाता है|

2. पत्तियों का आकार छोटा हो जाता हैं और नई पत्तियाँ रोजेटी जैसी हो जाती हैं|

3. पत्तियों के डंठल और तनों की छालों में दरारें पड़ जाती हैं|

4. तना एवं पत्तियाँ मोटी होकर टूटने लगती हैं|

5. नई कलिकाओं का बनना या शीर्ष अक्ष का मुरझाना और कभी-कभी पौधे डाईबैक के कारण सूख जाते हैं|

6. फूलों में निषेचन क्रिया बाधित होती है|

7. जडों का विकास विकृत हो जाता है|

8. पत्तियों के ऊतक ठीक ढ़ग से कार्य नहीं कर पाते है|

9. पौधों में नाइट्रोजन का उपयोग कम हो जाता है|

यह भी पढ़ें- धान में पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन कैसे करें

मॉलिब्डेनम की कमी के लक्षण-

1. दलहनी फसलों में बढ़ोत्तरी रूक जाती है|

2. फूल आना रूक जाता है और फल देर से बनते हैं और फलियाँ ठीक से नहीं भरती हैं|

3. बीज का आकार सुडौल नहीं रहता है|

4. फूलगोभी का व्हिपटेल रूप हो जाता है|

5. पौधों का रंग पीला पड़ जाता है|

क्लोरीन की कमी के लक्षण-

1. पौधों की पत्तियां जलकर गिर जाती हैं|

2. पत्तियों में क्लोरोसिस तथा नैकरोसिस हो जाते हैं|

3. फूलगोभी सुगन्ध रहित होती है|

4. टमाटर की जड़े छोटी रह जाती हैं और पत्तियां चितकबरी हो जाती हैं तथा टमाटर की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है|

अन्य सूक्ष्म तत्व

अन्य सूक्ष्म तत्वों जैसे कोबाल्ट, वैनेडियम, सोडियम और सिलिकान की भूमि में कोई कमी नहीं होती हैं| इसलिए सफलतापूर्वक फसल उत्पादन में इसकी अलग से पूर्ति की आवश्यकता भी नहीं होती है|

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती क्या है, जानिए उद्देश्य, फायदे एवं उपयोगी पद्धति

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

Categories

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap

Copyright@Dainik Jagrati