हाइड्रोजेल (Hydrogel) का कृषि में महत्व, कृषि में जल का महत्व बढ़ती हुई जनसंख्या, कृषि, उद्योग और शहरी आबादी के बीच जल की प्रतिस्पर्धा के चलते कृषि में जल की उत्पादकता बढ़ाना वैश्विक चिंता का विषय है| बारानी खेती के तहत आने वाले उत्पादन क्षेत्र तथा इससे मिलने वाली फसल के मूल्य की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है| फसल विकास की क्रांतिक अवस्थाओं के दौरान विशेष रूप से शुष्क परिस्थितियों में जल तनाव फसल विफलताओं और कम पैदावार के प्रमुख कारण हैं|
कम जल का उपयोग कर अधिक फसल उगाने के लिए शोधकर्ता व किसान दोनों ही लगन से जुटे हुए हैं| इसके लिए जल प्रबंधन की विभिन्न तकनीकें जैसे ड्रिप व फव्वारा सिंचाई, छोटे पैमाने पर जल संचयन, मल्चिंग, शून्य अथवा न्यून जुताई, डोल रोपण आदि को अपनाया जा रहा है| इसी संदर्भ में रासायनिक पॉलीमरों की एक श्रेणी, जिन्हें हाइड्रोजेल कहा जाता है, यदि विशेष रूप से कृषि की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाये गये हों तो जल संरक्षण के लिए अत्यंत उपयोगी तकनीक है|
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हाइड्रोजेल क्या है?
हाइड्रोजेल रासायनिक पॉलीमरों की एक श्रेणी है| ये दो प्रकार के होते हैं- जल में घुलनशील और अघुलनशील| पौधे में जल तनाव की अवधि के दौरान जल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अघुलनशील हाइड्रोजेल ही महत्वपूर्ण है| ऐसे अघुलनशील हाइड्रोजेल जो अपने शुष्क भार से कई गुणा अधिक जल ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं, उन्हें एस ए पी (superabsorbent polymers) कहा जाता है| बाजार में उपलब्ध इस श्रेणी के सभी उत्पाद कृषि के लिए उपयुक्त नही हाते|
कृषि में उपयोगिता के लिए एस ए पी की महत्वपूर्ण विशेषताएं-
1. उच्च अथवा अधिक मात्रा में जल अवशोषण क्षमता|
2. पौधे की जड़ों में उत्पन्न जल तनाव की स्थिति में आवश्यकतानुसार जल की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक|
3. न्यूनतम घुलनशीलता|
4. न्यूनतम मोनोमर (प्रांरभिक संश्लेषण इकाई) अवशेष|
5. उच्च लाभ या लागत अनुपात|
6. विषैले अवशेष रहित धीमी जैव विघटन प्रक्रिया|
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पूसा हाइड्रोजेल
कृषि विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पूसा संस्थान के कृषि रसायन संभाग के वैज्ञानिकों के प्रयास से पूसा हाइड्रोजेल नामक हाइड्रोजैल तैयार किया गया है| यह कृषि रसायन प्राकृतिक पॉलीमर सैल्यूलोस पर आधारित है| यह अपने शुष्क वजन के मुकाबले 350 से 500 गुणा अधिक पानी ग्रहण कर फूल जाता है तथा पौधे की आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे जड़ क्षेत्र में छोड़ता है| यह उत्पाद उच्च तापमान (40 से 50 डिग्री सेल्सियस) पर भी प्रभावी रहता है| अतः यह हमारे देश की ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु के उच्च तापमान की परिस्थितियों में भी अत्यंत लाभदायक है|
पूसा हाइड्रोजेल के लाभ-
जड़ों के आसपास मृदा नमी बनाए रखता है- बारानी क्षेत्रों व सीमित सिंचाई जलवाले क्षेत्रों में किसानों के लिए पानी की प्रत्येक इकाई की बचत महत्वपूर्ण है| मृदा में पूसा हाइड्रोजेल डालने से सभी प्रकार की फसलों में जिनमें खाद्यान्न व बागवानी फसलें सम्मिलित हैं, सिंचाई की अपेक्षित संख्या कम हो जाती है| इस प्रकार यह सिंचाई, धन और समय की लागत को कम करने में सहायक है| गेहूं में इसके प्रभाव का आंकलन करने के लिए पूसा संस्थान व देश के अन्य कई संस्थानों द्वारा परीक्षण किए गए|
इन परीक्षणों में यह पाया गया कि सामान्य तौर पर गेहूं के लिए 5 से 6 सिंचाईयों की आवश्यकता रहती है, पूसा हाइड्रोजेल का उपयोग करके उपज में नुकसान के बिना आसानी से दो सिंचाई बचाई जा सकती है| इसी तरह के लाभकारी परिणाम मूंगफली, आलू, सोयाबीन, फूलों, शाकीय व अन्य फसलों में भी देखे गये हैं|
फसलीय विकास व उपज वृद्धि में सहायक- पौधों की जड़ों में कम जल से उत्पन्न तनाव इनके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है| पूसा हाइड्रोजेल जड़ क्षेत्र में नमी और पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखता है| ये प्रभाव मुख्यतः फूलों व शाकीय फसलों की खेती में आसानी से देखे जा सकते हैं| नर्सरी लगाते समय व पौध रोपण के समय पूसा हाइड्रोजेल का प्रयोग अंकुरण व जड़ फुटाव को बढ़ावा देता है|
संस्थान के संरक्षित कृषि व प्रौद्योगिकी केन्द्र के पॉलीहाउस व खेतों में किए गए परीक्षणों में देखा गया कि गुलदाउदी में पूसा हाइड्रोजेल के उपयोग के फलस्वरूप उत्तम गुणवत्ता की नर्सरी मात्र 18 से 20 दिन में तैयार हो जाती है| जबकि सामान्यतः 28 से 30 दिन का समय लगता है|
मृदा नमी को संरक्षित रखने की क्षमता के फलस्वरूप पूसा हाइड्रोजेल न केवल बीज अंकुरण, फसल विकास आदि में सहायक है, अपितु पौधे को स्थाई रूप से मुरझाने की स्थिति से भी अपेक्षाकृत लम्बे समय तक बचाता है| संस्थान में किए गए शोध दर्शाते हैं, कि यह उत्पाद मृदा के विभिन्न भौतिक गुण जैसे मृदा संरचनात्मक स्थिरता, मृदा रंध्रता, जल चालकता आदि को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है|
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पूसा हाइड्रोजेल की कार्य प्रणाली-
मृदा में डालने पर पूसा हाइड्रोजेल इसी का एक हिस्सा बन जाता है| इसके चीनी के दानों जैसे कण जड़ क्षेत्र में सिंचाई अथवा वर्षा उपरांत अतिरिक्त जल, जो कि पौधों को अनुपलब्ध रहता है, को ग्रहण कर फूल जाते हैं| पौधों के विकास के दौरान जल की कमी से उत्पन्न होने वाले तनाव की स्थिति में जड़ें इन फूले हुए कणों से आवश्यकतानुसार पानी व पोषक तत्व लेती है|
उपयोग दर, उपलब्धता व मूल्य-
विभिन्न परिस्थितियों में उगाई जाने वाली अधिकांश फसलों के लिए पूसा हाइड्रोजेल की उपयोग दर 2.5 से 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयुक्त पाई गई है| बाजार में यह उत्पाद निम्नलिखित कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है, जैसे- कार्बोरंडम युनिवर्सल (पी) लिमिटेड (बैंगलुरू) ब्रांड नाम- कॉवेरी और अर्थ इंटरनेशनल (पी) लिमिटेड (नई दिल्ली) ब्रांड नाम- वारिधर जी-1 प्रमुख है|
पूसा हाइड्रोजेल की प्रारंभिक कीमत 1200 रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 1400 रूपये प्रति किलोग्राम रखी गई है| कंपनियों से मिली जानकारी के आधार पर मांगनुसार कीमत के कम होने की संभावनायें है|
पूसा हाइड्रोजेल की तकनीकी प्रोफाइल-
व्यापारिक नाम- कावेरी, वारिधर जी-1
रूप- दानेदार, हल्का पीला अथवा सफेद रंग|
जल ग्रहण क्षमता- 350 से 500 गुणा शुद्ध पानी के आधार पर पौधे को जल की उपलब्धताः अवशोषित जल का 90 प्रतिशत पौधे के लिए छोड़ता है; स्थायी मुरझाव की स्थिति से पौधे को बचाता है|
प्रकृति- वातावरण के लिए सुरक्षित है| प्राकृतिक पॉलीमर सेल्यूलोज पर आधारित है| बीज, उर्वरक, खाद, कीटनाशकों, जैव-उर्वरकों व अन्य कृषि रसायनों के साथ उपयोग किया जा सकता है| फसल उत्पादन पर कोई अवशिष्ट या नकारात्मक प्रभाव नहीं डालता है|
प्रभावशीलता अवधि- एक से दो फसलीय अवधि|
प्रयोग विधि- पूसा हाइड्रोजेल के प्रयोग के विभिन्न तरीकों को सुनियोजित शोध द्वारा मानकीकृत किया गया है| विधि निर्धारित करते समय इसकी प्रयोग में लाई जाने वाली बहुत कम मात्रा व विविध कृषि परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है| आवश्यकतानुसार तय की जाने वाली प्रत्येक विधि में यह ध्यान रखना अनिवार्य है, कि हाइड्रोजैल के कण बीज अथवा पौध के एकदम नीचे या आसपास गिराये जाएँ|
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हाइड्रोजेल उपयोग की विधियाँ
अ) गेहूं, मक्का, दालों, तिलहन आदि जैसी फसलों के लिए प्रयोग की विधि-
1. खेती की तैयारी, पूर्व बुवाई सिंचाई, उर्वरक की बेसल खुराक का प्रयोग सामान्य रूप से करें|
2. हाइड्रोजेल का प्रयोग बुआई के समय सबसे ज्यादा लाभदायक है|
3. खेत से 20 से 25 किलोग्राम सूखी मिट्टी लें व उसे एक समान कर लें| इसमें परिस्थिति अनुसार 2.5 से 5.0 किलोग्राम हाइड्रोजेल व बीज मिलाएं|
4. यदि किसान भाई डी ए पी का प्रयोग कर रहे हैं, तो इसे भी खेत में डालने की अपेक्षा मिट्टी-जैल के मिश्रण में मिलाना लाभदायक रहता है|
5. तैयार किये गये मिश्रण को सीड ड्रिल अथवा हल के द्वारा पंक्तियों में डालें तत्पश्चात फसल की अवस्था व मिट्टी में नमी के आधार पर सिंचाई करें|
ब) पौध तैयार करने के लिए प्रयोग की विधि-
फूल, शाकीय फसलों व फलों की पौध तैयार करना एक आवश्यक प्रक्रिया है| पौध अवधि नमी व पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है| पूसा हाइड्रोजेल इस संदर्भ में बहुत उपयोगी है| इसके प्रयोग की सिफारिश भी बुवाई से पूर्व मृदा या मीडिया की तैयारी के समय की जाती है|
1. ट्रे में पौध तैयार करने हेतु हाइड्रोजेल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) को सूखे मृदा रहित माध्यम में अच्छी तरह मिलाएँ और ट्रे को इस मिश्रण से भर लें|
2. ट्रे में बीज बो दें तथा सामान्य रूप से प्रथम सिंचाई अथवा फर्टीगेशन करें, बाद की सिंचाईयाँ बीज अंकुरण व समय-समय पर नमी की स्थिति का आंकलन करके तय करनी चाहिए| खेत में पौध तैयार करने के लिए हाइड्रोजेल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) तथा बीज आवश्यकतानुसार उतनी सूखी मिट्टी में मिलाएँ जिसे आसानी से नर्सरी क्षेत्र में समान रूप से फैलाया जा सके|
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स) पौध की खेत में रोपाई के समय-
हाइड्रोजेल को सूखी मिट्टी में मिलाएं, तैयार मिश्रण को खेत में बनाई गई कुंड पंक्तियों में समान रूप से डालें| तत्पश्चात् पौध रोपाई यह सुनिश्चित करते हुए करें कि डाला गया जैल जड़ क्षेत्र के आसपास ही रहें| डिबलिंग विधि द्वारा फसल (आलू, गन्ना) की रोपाई के समय जैल-मृदा मिश्रण बीज या कलम लगाने हेतु बनाये गये गड्ढों या कुंडों में समान रूप से विभाजित करके डालें| तत्पश्चात बीज या कलम रोपकर कुंड या गड्ढे को ढक दें|
इस प्रौद्योगिकी का आंकलन मुख्यतः सभी प्रमुख फसलों जैसे- गेहूँ, मूंगफली, आलू, सोयाबीन, सरसों, प्याज, टमाटर, फूलगोभी, गाजर, स्ट्रोबेरी, मक्का, गन्ना, धान, हल्दी, गुलदाउदी व कपास में किया जा चुका है| जिसका प्रभाव पानी की बचत और उत्पादन पर इस प्रकार है, जैसे-
फसल | हाइड्रोजेल की मात्रा (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) | उत्पादन वृद्धि (प्रतिशत में) | सिंचाई में बचत संख्या |
मूंगफली | 2.5 | 12.7 | 4-5 |
आलू (सर्दी) | 5.0 | 21.0 | 4 |
आलू (बसंत) | 5.0 | 16.3 | – |
सरसों | 2.5 | 14.3 | बारानी |
सोयाबीन | 5.0 | 47.5 | बारानी |
प्याज | 2.5 | 67.9 | बारानी |
टमाटर | 2.5 | 52.3 | 1 |
गन्ना | 2.5 | 13.1 | – |
गेहूं | 2.5 | 18.3 | सिमित |
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हाइड्रोजेल उपयोग में सावधानियाँ-
1. पैकेट को अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि नमी इसे प्रभावित न कर सके|
2. बुआई या पौध रोपण के समय हाइड्रोजेल-मृदा मिश्रण को पूर्ण रूप से नमी रहित सूखी मिट्टी में तैयार करें|
3. बीज व मृदा के साथ जैल का समांग मिश्रण करना वांछनीय है|
4. जैल एवं मृदा मिश्रण का खेत में समान रूप से प्रयोग सुनिश्चित करें|
5. जैल को बच्चे की पहुंच से दूर रखें तथा प्रयोग के बाद भलीभांति हाथ धोएं|
6. नमी रहित स्थान पर ही इसका भंडारण करें|
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