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सेब के विकार और उनका प्रबंधन: अच्छी उपज के लिए

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सेब के विकार

जिस प्रकार सेब के बागो को अनेक प्रकार के कीट एवं रोग हानी पहुंचाते है| उसी प्रकार अनेक प्रकार के विकार भी इसके बागों को प्रभावित करते है| सेब के विकार इस प्रकार है, जैसे- बिटर पिट, ब्राउन हार्ट, कॉर्क स्पॉट, स्काल्ड, जल कोर, सन बर्न, गेरूआपन और फल गिरना आदि प्रमुख है| इन सब विकारों से सेब के उत्पादन में गिरावट के साथ ही फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है| जिससे बागान बन्धुओं को उनके सेब उत्पादन का उचित मूल्य नही मिल पाता है|

यदि बागान बन्धु अपने बागों से अच्छा और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त करना चाहते है, तो इन सब सेब के विकारों का प्रबन्धन करना आवश्यक है| इस लेख में सेब उत्पादकों के लिए सेब के बागों के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें की जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| सेब की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें

बिटर पिट

यह सेब का एक शारीरिक विकार है, जो फल की ताज़ा बाज़ार गुणवत्ता कम कर देता है| तरूण पेड़ जो अभी आए ही होते हैं, वे अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं| अपरिपक्व फल सही परिपक्वता अवस्था में कटाई किए गए फलों की अपेक्षा अधिक अतिसंवेदनशील होते व्यास में 2 से 10 मिलीमीटर के छोटे भूरे घाव (कटाई करने वाले पर निर्भर करता है) फल के फ्लेश में विकसित होते हैं| त्वचा के नीचे के टिश्यू गहरे और कॉर्की हो जाते हैं|

फसल-कटाई पर अथवा भंडारण में एक अवधि के बाद, त्वचा सतह पर डिप्रेस्ड धब्बे विकसित करती है| ये धब्बे ऐसे होते हैं, जैसे कालेक्स के निकट त्वचा पर पानी से भीगे धब्बे दिखाई देते हैं| ये धब्बे सामान्यत: गहरे हो जाते हैं, आसपास की त्वचा की अपेक्षा अधिक धंस जाते हैं तथा भंडारण में एक अथवा दो माह के बाद पूरी तरह विकसित होते हैं|

रोकथाम- फसल-कटाई से पहले कैल्शियम का छिड़काव करने और भंडारण से पहले कैल्शियम में डुबोने से बिटर पिल की घटना नियंत्रित होती है और 15 दिनों के बाद छिड़काव दोहराते हुए फसल-कटाई से 45 दिन पहले पौधों पर छिड़काव किया जाना चाहिए और 1 से 2 मिनट के लिए कटाई उपरांत भंडारण से पहले इसके घोल में डुबोना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सेब की किस्में, जानिए उनका विवरण और क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण

ब्राउन हार्ट

यह सेब का शारीरिक विकार बड़े और अधिक परिपक्व फलों के साथ जुड़ा हुआ है| यह तब भी हो सकता है, जब भंडारण में सी ओ- 2 सान्द्रता से अधिक 1 प्रतिशत बढ़ जाती है| लक्षण फ्लैश में, सामान्यत: मूल में अथवा केन्द्र के निकट, भूरे डिस्क्लरेशन रूप में दिखाई देते हैं| ब्राउन क्षेत्र सुपरिभाषित मार्जिन हैं और शुष्कन की वजह से विकसित शुष्क कैविटी हो सकती हैं|

त्वचा के बिल्कुल नीचे छोड़ते हुए स्वस्थ सफेद फ्लेश के मार्जिन के साथ भूरे फ्लेश के छोटे धब्बे से फ्लेश के सम्पूर्ण भूरेपन तक लक्षण सीमा है| लक्षण भंडारण में जल्द ही विकसित हो जाते हैं और विस्तारित भंडारण समय के साथ तीव्रता में वृद्धि भी हो सकती है|

रोकथाम- अति-परिपक्व फलों की फसल काटने से बचा जाना चाहिए| नियंत्रित वातावरण (सी ए) में भंडारण के मामले में, फलों की फसल-कटाई सर्वोत्तम रूप से परिपक्व होने पर ही करनी चाहिए| सी ए में सी ओ- 2 सांद्रता ब्राउन हार्ट घटना के विकास को कम करने के लिए 1 प्रतिशत से कम होनी चाहिए|

कॉर्क स्पॉट

इस शारीरिक विकार के प्रारंभिक लक्षण प्रभावित भूरे धब्बे के ऊपर फल की त्वचा पर छोटे ब्लशड क्षेत्र रूप में दिखाई देते हैं| प्रभावित ऊतक सामान्य तौर पर स्वस्थ्य ऊतक से अधिक सख्त होते हैं| कॉर्क स्पॉट के विकास के लिए बोरान और कैल्शियम की कमी पाई जाती है|

रोकथाम- उचित पोषक तत्व प्रबंधन, विशेष रूप से बोरान तथा कैल्शियम इस विकार को रोकने में मदद करता है|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फसलों के रोग एवं दैहिक विकार और उनकी रोकथाम कैसे करें

स्काल्ड

यह सेब का शारीरिक विकार सेब उत्पादकों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है| इस भंडारण विकार की अतिसंवेदनशीलता सेब की किस्म, वातावरण और सांस्कृतिक पद्धतियों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है| घटना और स्काल्ड की गंभीरता में गर्मी, फसल-कटाई से पहले शुष्क मौसम, फसल-कटाई पर अपरिपक्व फल, फल में अधिक नाइट्रोजन और कम कैल्शियम सांद्रता का योगदान होता है| भंडारण कक्षों अथवा पैकेजिंग बॉक्सों में अपर्याप्त वेंटिलेशन से भी यह विकार होता है|

कोल्ड स्टोरेज से हटाने के बाद फल के गरम होने की वजह से 3 से 7 दिनों के भीतर मृत त्वचा के अनियमित भूरे रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं| गरम तापमान स्काल्ड का कारण नहीं होता है| परन्तु लक्षणों को पूर्व चोट, जो कोल्ड स्टोरेज के दौरान लगी हो, से विकसित होने की अनुमति देते हैं| लक्षण कोल्ड स्टोरेज में दृश्य हो सकते हैं, जब चोट गंभीर हो|

रोकथाम- उचित परिपक्वता पर फसल-कटाई और कोल्ड स्टोरेज में वेंटिलेशन से स्काल्ड घटना को कम करने में मदद मिलती है| स्काल्ड को नियंत्रित करने की सर्वाधिक सामान्य पद्धति फसल-कटाई के तत्काल बाद एंटीऑक्सीडेंट का प्रयोग है| डिफेनिलमाइन (डी पी ए) का आमतौर पर प्रयोग किया जाता है| इथोक्सिक्विन भी कुछ किस्मों के लिए प्रभावशाली है, परन्तु अन्य सेब की किस्मों के लिए नुकसान का कारण बन सकता है| अधिकतम नियंत्रण के लिए फसल-कटाई के एक सप्ताह के भीतर एंटीऑक्सीडेंट का अनुप्रयोग किया जाना चाहिए|

जल कोर

यह सेब शारीरिक विकार फल के अनुपात में अधिक पत्तों, फलों में नाइट्रोजन तथा बोरान के अधिक स्तरों, फल कैल्शियम के कम स्तर, अधिक विरलन, और अधिक तापमान पर फलों की अनाश्रयता से अधिक होते हैं| बड़े आकार के फल इस प्रकार के विकार के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं| फसल-कटाई से पहले की अवस्था में विकार से फ्लेश में पानी से भीगे हुए क्षेत्रों का विकास होता है|

ये क्षेत्र सख्त होते हैं, दिखने में ग्लासी होते हैं और बाह्य रूप में ही दृश्य होते हैं| जब संक्रमण बहुत गंभीर होता है, तो अधिकतर प्रभावित फलों से बदबू आती है और किण्वित स्वाद होता है| पानी से गीले क्षेत्र केन्द्र के निकट अथवा सम्पूर्ण सेब पर पाए जाते हैं| यदि लक्षण परिवर्तन में मन्द हों तो वे भंडारण पूरी तरह समाप्त हो सकते हैं|

रोकथाम- इस घटना को कम करने के लिए सबसे प्रभावी तरीका विलंबित फसल-कटाई से बचना है, जैसे फल परिपक्वता अवस्था में पहुंच जाते हैं| जल कोर विकास के लिए फल के नमूनों की जांच की जानी चाहिए| बड़े पैमाने पर जल कोर का विकास होने से पहले फल की फसल-कटाई कर लेनी चाहिए| गंभीर जल कोर लक्षणों को मॉडरेट करने के साथ फल ढेरों को नियंत्रित वातावरण (सीए) स्टोरेज़ में नहीं रखा जाना चाहिए परन्तु शीघ्रता से विपणन किया जाना चाहिए|

यह भी पढ़ें- आम के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उपज हेतु

सन बर्न

यह शारीरिक विकार सूर्य की तीव्र गर्मी के कारण होता है| आमतौर पर पेड़ के दक्षिण-पश्चिम दिशा में फल प्रभावित होते हैं| पानी स्ट्रेस भी सन बर्न की घटना में वृधि करता है| सूर्य की गर्मी के कारण फलों पर सफेद, भूरे अथवा पीले धब्बे पड़ना प्रारंभिक लक्षण हैं| ये क्षेत्र स्पंजी और पैंसे हुए हो सकते हैं| फसल-कटाई के बाद सूर्य की गर्मी के कारण फल अधिक सनबर्न हो सकते हैं|

रोकथाम- नियंत्रण की उत्तम पद्धति तीव्र गर्मी और सौर-विकिरण से फल को अचानक धूप में पड़ने से बचाना चाहिए| उचित पेड़ प्रशिक्षण तथा कटाई-छंटाई महत्वपूर्ण होती हैं| अत्यधिक सन-बर्न से बचने के लिए गर्मी में कटाई-छंटाई अवश्य ध्यानपूर्वक की जानी चाहिए|

कटाई-छंटाई किए गए बगीचों में गर्मी के दबाव को कम करने के लिए नियमित रूप से सिंचाई की जानी चाहिए| एक बार घाव हो जाने पर प्रभावित फल को पैकेजिंग किए जाने के समय हटाने के लिए ध्यानपूर्वक अलग करना ही एकमात्र समाधान है|

गेरूआपन

आर्द्र वातावरण में सेबों का गेरूआपन फल उत्पादकों की एक प्रमुख चिंता है| पत्ते गिरने के शीघ्र बाद ही फलों पर गेरूआपन आ जाता है| सेब केल्टिवर्स, जिनकी बारीक उपत्वचा होती है, गेरूआपन के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं| यह आमतौर पर छाया में रखे फलों की अपेक्षा अनावृत में रखे फलों पर देखा जाता है| पुष्प पुंज के दौरान या प्रारंभिक फल रचना अवस्था में पाला पड़ना भी गेरूआपन का कारण हो सकता है| गेरूआपन से फल की त्वचा फटने और दरारें विकसित होने लग जाती हैं|

रोकथाम- कम अतिसंवेदनशील क्लोनों का चयन करके और पर्याप्त सिंचाई, खाद डालने एवं प्रभावी कीट प्रबंधन से गेरूआपन कम किया जा सकता है|

फल गिरना

सेब की अधिकांश वाणिज्यिक किस्में फल गिरना के तीन चक्र अर्थात् प्रारंभिक गिराव, जून में गिरना और फसल-कटाई पूर्व गिरना प्रदर्शित करती हैं| प्रारंभिक गिराव प्राकृतिक माना जाता है तथा परागण की कमी एवं फल होड़ के कारण होता है| नमी दबाव और पर्यावरणीय परिस्थितियां जून में फल गिरना के कारण हैं|

इन दो कारणों से न तो अधिक आर्थिक नुकसान होते हैं और न ही कृत्रिम साधनों द्वारा प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है| फसल-कटाई पूर्व फल गिरना से गंभीर आर्थिक हानि होती है, क्योंकि पूर्णत: विकसित विपणन-योग्य फल ऑक्सिन्स के स्तरों में कटौती के कारण फसल-कटाई से पहले एब्सिाइस हो जाते हैं|

रोकथाम- फसल-कटाई पूर्व गिरने अथवा संभावित फल गिरने से 20 दिन पहले या फसल-कटाई के 20 से 25 दिन पहले एन ए ए (15 पी पी एम) का छिड़काव करके इससे नियंत्रित किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- आम के बागों का जीर्णोद्धार कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी

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