बेल या लता वर्गीय सब्जियों जैसे लौकी, तोरई, खीरा, टिण्डा, करेला तरबूज, खरबूज, पेठा, आदि की खेती मैदानी भागों में गर्मी के मौसम में मार्च से लेकर जून तक की जाती हैं| अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती की जा सकती है| जिसके लिये पॉली हाउस तकनीकी का प्रयोग करके जाड़े के मौसम में लता वर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार की जा सकती है| पहले लता वर्गीय सब्जियों की पौध तैयार की जाती है, फिर मुख्य खेत में पौध रोपण किया जाता है| लता वर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करने से अनेक लाभ हैं जो इस प्रकार हैं, जैसे-
लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के फायदे
1. एक से डेढ़ माह अगेती फसल ली जा सकती है|
2. वर्षा, ओला, कम या अधिक तापमान, कीड़े व रोगों से पौध सुरक्षा कर सकते हैं|
3. पौधों के लिए उपयुक्त आवश्यक वातावरण प्रदान कर समय से पौधे तैयार किये जा सकते हैं|
4. बीज दर कम लगती है तथा स्वस्थ पौधे तैयार होते हैं, जिससे उत्पादन लागत कम होती है|
5. अगेती खेती के द्वारा कम समय में अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है|
6. यदि उपरोक्त फसलों को स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर मचान विधि से (तरबूज तथा खरबूज) को छोड़ कर लगाया जाये तो शस्यक्रियाओं की सुगमता के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता की फसल से कम लागत में अधिक आमदनी प्राप्त होती है|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती पौध तैयार करने की विधि (पालीथीन थैली द्वारा)
सर्दी के मौसम अर्थात् दिसम्बर और जनवरी के महीने में लता वर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों को पालीथीन की थैलियों में बो दिया जाता है| इसके लिये पालीथीन की छोटी-छोटी यानि 10 x 7 या 15 x 10 सेंटीमीटर और मोटाई 200 से 300 गेज की आकार वाली थैलियों का चयन करते हैं| इन थैलियो में मिट्टी, खाद व बालू (रेत) का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में मिलाकर भर लिया जाता है|
मिश्रण भरने से पहले प्रत्येक थैली की तली में 2 से 3 छेद पानी के निकास के लिए बना लेते हैं| थैलियों को भरने के बाद एक हल्की सिंचाई कर देते हैं| लता वाली सब्जियों के बीजों की थैलियों में बुआई करने से पूर्व इनका अंकुरण कराना आवश्यक है, क्योंकि दिसम्बर से जनवरी माह में अधिक ठण्ड के कारण जमाव बहुत देर से होता है|
बुआई करने से पहले बीजों को केप्टान (2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित कर लेना चाहिए| अंकुरण कराने के लिए सर्वप्रथम बीजों को पानी में भिगोते हैं तत्पश्चात्, उन्हें किसी सूती कपड़े या बोरे के टुकड़े में लपेट कर किसी गर्म स्थान जैसे बिना सड़ी हुई गोबर की खाद या भूसा या अलाव बुझ जाने के बाद गर्म राख में रखते हैं|
बीजों को जमाव के लिए भिगोने की अवधि 3 से 4 घन्टे (खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, कुम्हड़ा), 6 से 8 घन्टे (लौकी, तोरई, पेठा), 10 से 12 घन्टे (टिण्डा, चिचिण्डा) तथा 48 घन्टे (करेला) है| बीजों की बुआई 25 से 30 दिसम्बर के आस-पास कर देनी चाहिए| इस प्रकार बुआई के 3 से 4 दिन बाद बीजों में अंकुरण हो जाता है| इन अंकुरित बीजों की बुआई पहले से भरी हुई थैलियों में कर दी जाती है|
प्रत्येक थैली में 2 से 3 बीजों की बुआई कर देते है| पौधे बड़े होने पर प्रत्येक थैली में एक या दो पौधा छोड़कर अन्य को निकाल देते हैं| पौधों को निम्न ताप से बचाने के लिए 1 से 1.5 मीटर की ऊंचाई पर बांस या लकड़ी लगा कर पालीथिन की चादर से ढक देना चाहिए ताकि तापक्रम सामान्य से 8 से 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक बना रहे, और पौधों का विकास सुचारू रूप से हो सके|
इस प्रकार दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में बोई गई लता वर्गीय नर्सरी जनवरी के अन्त तक तैयार हो जाती है| सामान्यतया, 5000 पौधे तैयार करने के लिए 9 x 3.5 मीटर आकार के पॉली हाउस की आवश्यकता होती है, जिसका पूरा क्षेत्रफल 31.5 वर्गमीटर होता है| इसमें प्रयुक्त पालीथीन 400 गेज मोटी होती है| पॉली हाउस की ऊँचाई उत्तर दिशा में 2 मीटर तथा दक्षिण दिशा में 1.80 मीटर रखते हैं|
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पॉली हाउस में आने जाने के लिए एक दरवाजा जिसकी चौड़ाई 75 सेंटीमीटर तथा ऊँचाई 2 मीटर रखते हैं| प्रवेश द्वार के पास ही 1.50 मीटर चौड़ा व 1.25 मीटर लम्बा रास्ता मध्य में रखते हैं| कद्दूवर्गीय सब्जियों की प्रति हेक्टेयर बीज दर, पौधों की संख्या, जमाव दिन तथा जमाव के लिए उपयुक्त तापक्रम निम्नलिखित है, जैसे-
सब्जियां | बीज दर (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) | पौधों की संख्या प्रति हेक्टेयर | जमाव के दिन | जमाव ताप डिग्री सेंटीग्रेट |
लौकी | 4 से 5 | 2500 से 3000 | 5 | 20 से 30 |
करेला | 5 से 6 | 7500 से 8000 | 5 | 28 से 30 |
खीरा | 2 से 3 | 7500 से 8000 | 5 | 28 से 30 |
कुम्हाडा | 4 से 5 | 2250 से 2500 | 5 | 28 से 30 |
टिंडा | 5 से 6 | 6250 से 7000 | 3 | 29 से 32 |
खरबूजा | 3 से 4 | 5500 से 6250 | 3 | 28 से 32 |
तरबूज, तौराई, पेठा | 4 से 5 | 3500 से 3600 | 4 | 26 से 28 |
नर्सरी में बीजों के जमाव के बाद थैलियों की मौसम के अनुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहते हैं| सिंचाई जहाँ तक हो सके फुहारे की सहायता से करें| यदि पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो तो पानी में घुलनशील एन पी के मिश्रण का पर्णीय छिड़काव करें| यदि कोई खरपतवार उग रहा हो तो हाथ द्वारा निकाल दें और यदि कीड़े व बीमारियों का प्रकोप दिखे तो उनका समुचित नियंत्रण करें|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती पौध तैयार करने की विधि (मृदा रहित माध्यम द्वारा)
इस विधि से लता वर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार करने के लिए सब्जी के बीज की बुवाई जमीन में न करके प्लास्टिक की ट्रे में तैयार करते हैं| इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि नर्सरी खेत में ही तैयार की जाय| इसको किसान भाई अपने घर के दरवाजे या छत पर जहाँ जगह खाली हो, डाल सकते हैं| इस विधि से नर्सरी तैयार करने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यक होती है, जैसे-
1. कोकोपीट (मृदा रहित माध्यम)
2. प्लास्टिक ट्रे (बड़े खाचों वाला)
3. वर्मी कम्पोस्ट
4. सब्जी बीज
5. बावस्टीन (50 प्रतिशत) घुलनशील पाउडर|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए नर्सरी तैयार करने की विधि
सर्वप्रथम कोकोपीट ब्रिक को एक प्लास्टिक या जूट के बोरे में भरकर ऊपर से बोरे का मुँह बाँध देते हैं| तत्पश्चात्, उसको पांच से छः घंटे के लिए या रात भर पानी (जिसमें बोरा अच्छी तरह से डूब जाय) में भिगो देते हैं| उसके बाद, बोरे को पानी से बाहर निकाल कर भीगे हुए कोकोपिट को साफ प्लास्टिक की पन्नी पर पतली पर्त बनाते हुए फैला देते हैं, जिससे उसमें से पानी निकल जाय और उपयुक्त नमी (जब कोकोपीट को मुट्ठी में लेकर दबाने पर उसमें से पानी न गिरे केवल हथेली भीग जाय) तक सुखाते हैं|
उसमें वर्मी कम्पोस्ट (जितनी मात्रा में कोकोपीट भिगोए थे उतनी ही मात्रा में) मिलाते हैं और उसको बावस्टीन से शोधित (एक किलोग्राम मिश्रण के लिए 2 से 2.5 ग्राम बावस्टीन) कर लेते हैं| अब तैयार मिश्रण को प्लास्टिक ट्रे, जिसमें 54 खाने बने होते है, में दबाते हुए भरते हैं| जब ट्रे पूरी तरह से भर जाय तो उसमें बीज की बुवाई कर ऊपर से कोकोपीट मिश्रण की एक हल्की परत से ढक देते हैं|
इसी तरह से सारे ट्रे में बीज की बुवाई कर ली जाती है| बुवाई करने के बाद प्लास्टिक ट्रे को एक के ऊपर एक चार या पांच ट्रे रखकर उपयुक्त स्थान पर, जहाँ पर नर्सरी पौध तैयार करना है, रख देते हैं| सात से आठ दिन बाद जब बीज अंकुरित होने लगे तो एक के ऊपर एक रखे हुए प्लास्टिक ट्रे को हटाकर लाइन से रख देते हैं और उसमे हलकी सिंचाई हजारे के माध्यम से सुबह-शाम या आवश्यकतानुसार करते हैं|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए नर्सरी की देखरेख
लता वर्गीय नर्सरी डालने के बाद निम्नांकित बिन्दुओं को ध्यान में रखना अत्यावश्यक होता है, जैसे-
1. उपयुक्त नमी बनाये रखने के लिए समय पर सिंचाई|
2. जब अंकुरण होने लगे तो ट्रे को छायादार स्थान से हटा देना है|
3. बुवाई के दसवें दिन तरल उर्वरक (एन पी के- 20: 20:20) का 2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी एवं 20वें दिन पुनः 4 से 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|
4. बुवाई के ग्यारहवें एवं इक्कीसवें दिन 2 मिलीलीटर मैंकोजेब प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे कि नर्सरी आद्रगलन, पौधगलन तथा अन्य फफूंदजनित बीमारियों से सुरक्षित रहे|
5. जब नर्सरी 4 से 5 पत्ती (30 से 35 दिन) की हो जाय तो ऊँची उठी हुई क्यारियाँ अथवा गड्ढा बनाकर निश्चित दूरी पर पौधों की रोपाई करनी चाहिए|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए खाद और उर्वरक
खेत की अन्तिम जुताई के समय 200 से 500 कुन्तल गोबर की पूर्णतया सड़ी-गली खाद के साथ 2 लीटर ट्राइकोडर्मा मिला देना चाहिए, जिससे कि मुख्य फसल को मृदाजनित फफूंद रोगों से बचाया जा सके| सामान्यतः, अच्छी उपज लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किलोग्राम यूरिया, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 125 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की आवश्यकता पड़ती है| इसमे सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते हैं|
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20 से 25 दिन बाद देकर मिट्टी चढ़ा देते हैं तथा चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग से देनी चाहिए| लेकिन जब पौधों को गडढ़े में रोपते हैं, तो प्रत्येक गड्ढे में 30 से 40 ग्राम यूरिया, 80 से 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40 से 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की मात्रा मिलाकर रोपाई करते हैं|
लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए पौधों की खेत में रोपाई
लता वाली सब्जियों की बुवाई के लिए नाली या थाले (हिल तथा चौनल) तकनीक अच्छी मानी जाती है| इसके लिए यदि सम्भव हो तो पूरब से पश्चिम दिशा की ओर 45 सेंटीमीटर चौड़ी तथा 30 से 40 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ रोपाई से पहले बना लेते हैं| एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी 2 मीटर (खीरा, टिण्डा से) 4 मीटर (कद्दू, पेठा, तरबूज, लौकी, तोरई) तक रखी जाती है| प्रत्येक नाली के उत्तरी किनारे पर थाले बना लेते हैं|
एक थाले से दूसरे थामले की दूरी 0.50 मीटर (चप्पन कद्दू, टिण्डा व खीरा) तथा 0.75 से 1.00 मीटर (कद्दू, करेला, लौकी ,तरबूज) रखते हैं| इस विधि से खेती करने से खाद, पानी तथा निराई गुड़ाई पर कम खर्च आता है तथा पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है| नालियों के बीच की जगह सिंचाई नहीं की जाती जिससे बेलों पर लगने वाले फल गीली मिट्टी के सम्पर्क में नहीं आते तथा खराब होने से बच जाते हैं|
रोपाई का कार्य फरवरी माह में जब पाला पड़ने की सम्भावना समाप्त हो जाती है तब पालीथिन की थैलियों से पौधा मिट्टी सहित निकाल कर तैयार थामलों में शाम के समय करना चाहिये| एक थाले में एक ही पौधा लगाना चाहिए| रोपाई के तुरन्त बाद पौधों की हल्की सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए| रोपण से 4 से 6 दिन पूर्व सिंचाई रोक कर तथा वाह्य वातावरण में रखकर पौधों का कठोरीकरण करना चाहिए, जिससे पौधरोपण के पश्चात पौध मृत्यु की सम्भावना कम हो जाती है|
कद्रूवर्गीय सब्जियों की बेमौसम खेती से अच्छी एवं गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए क्रान्तिक अवस्थाओं (वृद्धि काल की अवस्था, पुष्पन की अवस्था, फल विकास की अवस्था) में सिंचाई अवश्य करना चाहिए| रोपाई के 10 से 15 दिन बाद हाथ से निराई करके खरपतवार साफ कर देना चाहिए, तथा समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए| पहली गुड़ाई के बाद जड़ों के आस-पास हल्की मिट्टी चढ़ानी चाहिए|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती फसल में कटाई, छटाई और सहारा देना
अधिक उपज प्राप्त करने और फलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए लता वर्गीय सब्जियों की कटाई छटाई अति आवश्यक होती है| जैसे खरबूजा में 3 से 7 गाँठ तक सभी द्वितीय शाखाओं को काट देने से उपज एवं गुणवत्ता में वृद्धि हो जाती है| तरबूज में 3 से 4 गाँठ के बाद के भाग की कटाई-छटाई कर देने से फल की गुणवत्ता में अच्छी वृद्धि होती है| इसी प्रकार इस कुल की सब्जियों में सहारा देना अति आवश्यक है|
सहारा देने के लिए लोहे की एंगल या बांस के खम्भे से मचान बनाते है| खम्भों के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को मचान पर चढ़ाया जाता है| सहारा देने के लिए दो खम्भों या एंगल के बीच की दूरी 2 मीटर रखते हैं, लेकिन ऊँचाई फसल के अनुसार अलग-अलग होती है| सामान्यतया, इसे करेला और खीरा के लिए 4.50 फीट लेकिन लौकी आदि के लिए 5.5 फीट रखते है|
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लता वर्गीय सब्जियों की अगेती फसल में कीट और रोगों से बचाव
लता वर्गीय सब्जियों में कई प्रकार के कीट व रोग नुकसान पहुँचाते हैं| इनमें मुख्य रूप से रेड पम्पकिन बीटल (लाल कीड़ा), चेपा, फलमक्खी, पाउडरी मिल्डयू (चूर्णिल आसिता) तथा डाउनी मिल्डयू (रोमिल आसिता) मुख्य है| रेड पम्पकिन बीटल, जो फसल को शुरू की अवस्था में नुकसान पहुँचाता है, को नष्ट करने के लिए लता वर्गीय फसलो में सुबह के समय मैलाथियान नामक दवा का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर पौधों एवं पौधों के आस पास की मिट्टी पर छिड़काव करना चाहिए|
चेपा, फलमक्खी तथा वीटल्स से बचाव के लिए एण्डोसल्फान या रोगोर 2 मिलीलीटर कीटनाशियों का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर पौधों पर छिड़काव करें| चूर्णिल आसिता रोग को नियंत्रित करने के लिए कैराथेन या कैलक्सिल या सल्फर नामक फफूंदनाशियों (1 से 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए| रोमिल आसिता के नियंत्रण हेतु डायथेन एम- 45 (1.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए| दूसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करना चाहिए| कीट और रोगों की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
लता वर्गीय सब्जियों की अगेती खेती से पैदावार
इस विधि द्वारा मैदानी भागों में लता वाली सब्जियों की खेती लगभग एक महीने से लेकर डेढ़ महीने तक अगेती की जा सकती है तथा उपज एवं आमदनी भी अधिक प्राप्त की जा सकती है| इस प्रकार खेती करने से टिण्डा की 100 से 150 कुन्तल, लौकी की 450 से 500 कुन्तल, तरबूज की 300 से 400 कुन्तल, कुम्हडा की 800 से 850 कुन्तल, पेठा की 550 से 600 कुन्तल, खीरा, करेला एवं आरा तोरई की 250 से 300 कुन्तल तथा खरबूजा एवं चिकनी तोरई की 200 से 250 कुन्तल उपज प्रति हेक्टेयर उपज की जा सकती है| बेहतर प्रबंध से उपज को बढ़ाया जा सकता है|
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